जीवन परिचय
केदारनाथ सिंह का जन्म वर्ष 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में चकिया नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने बनारस विश्वविद्यालय से वर्ष 1956 में हिन्दी में एम. ए. और वर्ष 1964 में पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। वे अनेक कॉलेजों में पढ़ाते हुए अन्त में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में हिन्दी के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी कविता में गाँव एवं शहर का द्वन्द्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ‘बाघ’ नामक लम्बी कविता को नई कविता के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है।
श्री केदारनाथ सिंह को उनकी कविता ‘अकाल में सारस’ के लिए वर्ष 1989 का साहित्य अकादमी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दिनकर सम्मान, जीवन भारती सम्मान और व्यास सम्मान दिया गया है। हिन्दी साहित्य अकादमी के वर्ष 2009-10 के प्रतिष्ठित और सर्वोच्च शलाका सम्मान से उन्हें सम्मानित किया। साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ वर्ष 2013 का प्रो. केदारनाथ को प्रदान किया गया।केदारनाथ सिंह की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता है-अपनी संस्कृति, सभ्यता, भाषायी सिद्धपन, मानवता और अपनी ज़मीन से जुड़े रहना। इनसे उनका जुड़ाव शाश्वत और सकारात्मक है। उनकी कविताओं में सर्वत्र निराशा में भी आशा की किरण दिखाई देती है, पतझड़ में वसन्त की आहट सुनाई देती है। जन-जन में मानव-मूल्यों के संचार का प्रयास भी हर पद में दिखाई देता है। उनकी यह विशेषता उन्हें अन्य कवियों से सबसे अलग, किन्तु उच्च स्तर पर खड़ा करती है। किन्तु उसकी प्रवाहमयता नदी के समान अविरल है। वे काव्य की भाषा का परिष्कार करते हुए दिखाई देते हैं। उनका झुकाव भाषा की मुक्ति की ओर है।
कृतियाँ (रचनाएँ)-
केदारनाथ सिंह की प्रमुख कृतियाँ निम्नांकित हैं-
अभी बिलकुल अभी, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ-बाघ, टॉल्सटॉय और साइकिल।
भाषा शैली-
केदारनाथ सिंह की भाषा अत्यन्त सरल व स्पष्ट है। इनकी भाषा के सम्बन्ध में कहा गया है कि भाषा को लेकर यह निरन्तर निरीक्षण करते दिखाई देते हैं कि भाषा कहाँ है, कैसे बचेगी और कहाँ विफल है और कहाँ विकसित किए जाने की आवश्यकता है। इनकी शैली मानव-मूल्यों के संचार के लिए सदैव प्रयासरत रही है, जिसमें मनुष्य की कभी न नष्ट होने वाली ऊर्जा तथा अदम्य जिजीविषा है। इन्होंने मुक्तक शैली का प्रयोग किया है।
हिन्दी साहित्य में स्थान-
केदारनाथ सिंह समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे भाषा की मुक्ति चाहते हैं, पर उसमें गुणात्मक परिवर्तन भी करते रहते हैं। यह सुधार उनकी कविता तक ही सीमित नहीं रहता है। अपनी कृतियों के माध्यम से उन्होंने हिन्दी साहित्य को अत्यधिक समृद्ध किया है। हिन्दी साहित्य जगत् में उन्हें उच्च स्थान प्राप्त है।