प्रश्न 1. फ्रांस की क्रान्ति कब हुई? इसका मुख्य कारण क्या था?
उत्तर : फ्रांस की क्रान्ति सन् 1789 ई० में हुई थी। फ्रांस की क्रान्ति के अनेक कारण थे किन्तु इसका मुख्य कारण आर्थिक असमानता और राजा के स्वेच्छाचारी निरंकुश शासन को माना जा सकता है।
प्रश्न 2. जर्मनी का एकीकरण कब और कैसे हुआ? [2020]
अथवा ऑटो वॉन बिस्मार्क को जर्मनी के एकीकरण का जनक क्यों कहा जाता है? दो कारण लिखिए।
अथवा जर्मनी के एकीकरण में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान किसका था? जर्मन राष्ट्र का प्रथम सम्राट कौन घोषित किया गया?
उत्तर : बिस्मार्क जर्मनी के महान पुत्रों में से एक था। जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क का महत्त्वपूर्ण योगदान था। इसे जर्मनी के एकीकरण का जनक भी कहा जाता है। उसने प्रशा के प्रधानमन्त्री के रूप में जर्मनी का एकीकरण किया। बिस्मार्क ने ‘रक्त और लौह’ की नीति अपनाकर सर्वप्रथम श्लेसविग तथा होलस्टीन के प्रशासन पर नियन्त्रण स्थापित किया, फिर ऑस्ट्रिया को सेडोवा के युद्ध (सन् 1866) में पराजित करके उसने जर्मन राज्यों को उसके प्रभाव से मुक्त करा लिया। तत्पश्चात् बिस्मार्क ने सीडान के युद्ध में फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय को पराजित करके जर्मनी का एकीकरण पूर्ण कर दिया। 18 जनवरी 1871 को प्रशा सम्राट विलियम प्रथम महान को जर्मन साम्राज्य का प्रथम सम्राट घोषित किया गया। सन् 1871 में बिस्मार्क जर्मन साम्राज्य का प्रधानमन्त्री बना। सन् 1890 में जर्मन सम्राट कैसर विलियम द्वितीय से मतभेद हो जाने के कारण बिस्मार्क ने त्यागपत्र दे दिया। 31 जुलाई, 1898 को 83 वर्ष की आयु में बिस्मार्क की मृत्यु हो गई।
प्रश्न 3. ज्युसेपे मेजिनी के विचारों पर प्रकाश डालिए। [2023 FA]
उत्तर : ज्युसेपे मेजिनी इटली में राष्ट्रवाद का अग्रदूत था। अपनी किशोरावस्था में ही वह काबोंनरी नामक गुप्त संगठन का सदस्य बन गया। मात्र 24 वर्ष की आयु में उसे लिंगुरिया में क्रान्ति का प्रयास करने के लिए देश से बाहर निकाल दिया गया। उसने 1831 ई० में मासेंई में ‘यंग इटली’ सोसायटी और बर्न ‘में ‘यंग यूरोप’ की स्थापना की। इटली के नवनिर्माण में समान विचार रखने वाले युवा इस संगठन के सदस्य थे। उसे इटली की एकता और युवा शक्ति पर अत्यधिक विश्वास था।
‘ड्यूटीज ऑफ मैन’ नामक पुस्तक में उसने इटली की जनता के समक्ष राष्ट्रप्रेम का आदर्श प्रस्तुत किया। उसने एकता, स्वतन्त्रता, कल्याण, समानता तथा विश्वास के आधार पर इटली के एकीकरण को बल दिया। मेजिनी के शब्दों में “पहले तुम मनुष्य हो उसके बाद किसी देश के नागरिक या अन्य कुछ।”
प्रश्न 4. फ्रांस की क्रान्ति के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर : 1789 ई० में फ्रांस में एक क्रान्ति हुई जिसके द्वारा वहाँ पर लुई वंश के शासन का अन्त हुआ और लोकतन्त्र की स्थापना की गई। इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
- अयोग्य शासक – फ्रांस की क्रान्ति के समय वहाँ लुई वंश का शासन था जिसका शासक लुई 16वाँ था। वह एक अयोग्य, जिद्दी और अदूरदर्शी, कर्त्तव्यहीन शासक था। वह सुधारों का पक्षधर नहीं था बल्कि अपनी निरंकुशता को कायम रखना चाहता था। इस कारण जनता उसके विरुद्ध हो गई।
- मध्यम वर्ग – यहाँ पर औद्योगिक क्रान्ति होने के कारण मध्यम वर्ग का
उदय हो गया था जिसमें छोटे उद्योगपति, डॉक्टर, वकील, अध्यापक और निम्न पदों पर कार्य करने वाले अधिकारी आते थे। यह वर्ग नवीन विचारों और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत था तथा लोकतन्त्र का पक्षधर एवं निरंकुश राजशाही का विरोधी था। अतः जब जनता राजशाही के विरुद्ध हुई तो इसने उसका पूर्ण समर्थन किया। - आम जनता की दयनीय स्थिति- इस समय शासक, उच्च वर्ग और कुलीन वर्ग जहाँ विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे, वहीं आम जनता की स्थिति बड़ी दयनीय थी तथा लोग रोजी-रोटी को तरस रहे थे।
- मजदूर वर्ग की दुर्दशा – इस समय फ्रांस में जो उद्योग स्थापित हुए थे, उनमें मजदूरों के कार्य करने के लिए स्वास्थ्यवर्धक परिस्थितियाँ नहीं थीं। इनके काम के घण्टे निश्चित नहीं थे, न ही इन्हें उचित वेतन मिलता था। यदि कोई मजदूर किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता था तो उद्योगपति उसे मुआवजा नहीं देते थे। इस कारण इस वर्ग में असन्तोष था। अवसर आते ही यह वर्ग क्रान्ति का पक्ष लेने लगा।
- दार्शनिकों का प्रभाव – इस समय जो दार्शनिक वर्ग उदित हुआ उसने जनता को प्रशासन की दुर्दशा, न्याय व्यवस्था की कमियों व फ्रांसीसी समाज की बुराइयों से अवगत करवाया। इन्होंने जनता में क्रान्तिकारी भावनाओं का संचार किया जिस कारण जनता क्रान्ति करने के लिए अग्रसर हो गई।
- स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध – इस समय फ्रांसीसी सरकार ने लोगों की स्वतन्त्रता पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगा रखे थे, यहाँ तक कि उनके धार्मिक विश्वासों पर भी प्रतिबन्ध लगे हुए थे। फ्रांस में प्रोटेस्टेण्ट धर्मावलम्बियों पर अत्याचार होते थे। इस पर सरकार ने न्याय व स्वतन्त्रता की अवहेलना करते हुए ‘लेत्र द काशे’ (बिना कारण बताए कैद के आदेश-पत्र) जारी करके स्थिति को और भी भयानक बना दिया, जिससे जनता में असन्तोष की भावना जाग्रत हो गई और वह क्रान्ति के मार्ग पर बढ़ गई।
प्रश्न 5.1804 ई० की नेपोलियन नागरिक संहिता का विवरण दीजिए।
उत्तर: 1804 ई० की नागरिक संहिता जिसे साधारणतया नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है, ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे। उसने कानून के समक्ष बराबरी और सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया। इस संहिता को फ्रांसीसी नियन्त्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लागू किया गया। डच गणतन्त्र, स्विट्जरलैण्ड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया, सामन्ती व्यवस्था को समाप्त किया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई। शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी संघों के नियन्त्रणों को हटा दिया गया। यातायात और संचार व्यवस्थाओं को सुधारा गया।
प्रश्न 6. उदारवादियों की 1848 ई० की क्रान्ति का क्या अर्थ लगाया जाता है? उदारवादियों ने किन राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया?
उत्तर : उदारवादियों की 1848 ई० की क्रान्ति का अर्थ लगाया गया- राजतन्त्र के स्थान पर लोकतन्त्र और गणराज्य की स्थापना। गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी से पीड़ित किसान, मजदूर, विद्रोहियों की माँगों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक मताधिकार पर आधारित जनप्रतिनिधि सभाओं का निर्माण और यूरोप में स्वतन्त्र राष्ट्र के निर्माण की माँग को आगे बढ़ाना।
उदारवादियों की इस क्रान्ति का आशय राष्ट्रीय राज्यों में संविधान बनाना, प्रेस को स्वतन्त्रता देना और किसान तथा श्रमिकों आदि को संगठन बनाने की स्वतन्त्रता जैसे संसदीय सिद्धान्तों पर आधारित शासन व्यवस्था की स्थापना करना था।
उदारवादियों ने जिन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया, वे निम्नलिखित थे-
(1) मताधिकार के प्रयोग से सरकार का चयन।
(2) महिलाओं को राजनीतिक अधिकार प्रदान करना लेकिन सभी उदारवादी इस विषय में एकमत नहीं थे।
(3) बहुत-से देशों में उदारवादी विचारों से प्रभावित होकर भू-दास प्रथा, बंधुआ मजदूरी समाप्त कर दी गई।
प्रश्न 7. यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति का क्या योगदान था ?
उत्तर : रूमानीवाद एक ऐसा सांस्कृतिक आन्दोलन था जो विशिष्ट प्रकार की राष्ट्रीय भावना का विकास करना चाहता था।
क्षेत्रीय बोलियाँ राष्ट्र-निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती थीं क्योंकि यही यथार्थ रूप में आधुनिक राष्ट्रवादियों के सन्देश को (अधिक-से- अधिक) लोगों तक पहुँचाती थीं जो अधिकांशतः निरक्षर थे।
संगीत ने भी राष्ट्रवाद में योगदान किया। कैरोल कुर्पिस्की, एक पोलिश नागरिक, ने राष्ट्रीय संघर्ष का अपने ऑपेरा में संगीत के रूप में गुणगान किया और पोलेनेस और माजुरला जैसे लोकनृत्यों को राष्ट्रीय प्रतीकों में बदल दिया। यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में संस्कृति के योगदान के अन्तर्गत विभिन्न सांस्कृतिक पहलू सम्मिलित थे।
प्रश्न 8. बाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव क्यों पनपा? [NCERT EXERCISE]
उत्तर : वाल्कन प्रदेशों में राष्ट्रवादी तनाव पनपने के निम्नलिखित कारण थे-
- (1) बाल्कन प्रदेशों में विभिन्न जातीय समूह निवास करते थे।
- (2) इन जातीय समूहों में आपसी संघर्ष होता रहता था।
- (3) पूरे क्षेत्र पर ऑटोमन साम्राज्य का आधिपत्य था जो अपने पतन के कगार पर था।
- (4) इसी समय स्लाव-बाल्कन के जातीय समूह भी उदारवादी और राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित हुए बिना न रह सके। अतः ये सभी जातीय समूह अपने लिए अलग राष्ट्र राज्य की माँग करने लगे। इसी समय उनके बीच कटुतापूर्ण संघर्ष भी चलता रहा। वे सभी अपने लिए अधिक-से-अधिक क्षेत्र हथियाना चाहते थे।
- (5) इंग्लैण्ड, जर्मनी, रूस, ऑस्ट्रो-हंगरी जैसी शक्तियाँ वाल्कन पर अन्य शक्तियों की पकड़ को कमजोर करके क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थीं।
(6) बाल्कन के जल-क्षेत्र पर नियन्त्रण करके उन्होंने यूरोप में नौसैनिक प्रभुत्व स्थापित करने की भी योजना बनाई थी।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. फ्रांस की राजनीतिक क्रान्ति के क्या कारण थे?
अथवा फ्रांसीसी क्रान्ति के कारणों का विस्तार से वर्णन कीजिए। अथवा फ्रांसीसी क्रान्ति के किन्हीं तीन कारणों को स्पष्ट कीजिए। उनका क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा फ्रांस की क्रान्ति के क्या कारण थे? इनमें से किन्हीं तीन का उल्लेख कीजिए।
अथवा फ्रांस की क्रान्ति के सामाजिक-आर्थिक कारण क्या थे?
उत्तर :
फ्रांस की क्रान्ति के कारण
फ्रांसीसी क्रान्ति 5 मई, 1789 ई० को हुई थी। इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
I. राजनीतिक कारण
फ्रांस के शासक स्वेच्छाचारी और निरंकुश थे। वे राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धान्त में विश्वास करते थे, अतः वे प्रजा के सुख-दुःख, हित-अहित की कोई चिन्ता न करके अपनी इच्छानुसार कार्य करते थे। वे जनता पर नए-नए कर लगाते रहते थे और कर के रूप में वसूले गए धन को मनमाने ढंग से विलासिता के कार्यों पर व्यय करते थे। सम्पूर्ण देश के लिए एकसमान कानूनी व्यवस्था भी नहीं थी। इस प्रकार फ्रांस की जनता शासकों की निरंकुशता से अत्यधिक त्रस्त थी।
II. सामाजिक कारण
- पादरी वर्ग- फ्रांस का समाज तीन वर्गों में विभक्त था। प्रथम वर्ग में कैथोलिक चर्च के उच्च पादरी (पुरोहित) या उच्च धर्माधिकारी आते थे। उस समय कैथोलिक चर्च एक शक्तिशाली संस्था के रूप में कार्य करता था। इसे ‘टाइद’ (Tithe) नामक कर लगाने का अधिकार था तथा यह किसानों से उनकी आय का दस प्रतिशत भाग वसूल करता था। चर्च को और भी अनेक अधिकार प्राप्त थे।
- कुलीन वर्ग – इस वर्ग में बड़े-बड़े सामन्त, उच्च प्रशासनिक अधिकारी – एवं राजपरिवार के सदस्य सम्मिलित थे। ये लोग सभी प्रकार के करों से पूर्णतया मुक्त थे। इन्हें लोगों से वेगार एवं भेंट आदि लेने की विशेष अधिकार प्राप्त था। ये अनेक विशेषाधिकारों का प्रयोग करके जनसाधारण का शोषण किया करते थे।
- जनसाधारण वर्ग – इस वर्ग के अन्तर्गत सामान्य जनता को सम्मिलित किया गया था। मजदूर, कृषक तथा सामान्य शिक्षित वर्ग भी इसी वर्ग के अन्तर्गतआते थे। इस वर्ग में आने वाले धनवान एवं शिक्षित वर्ग को कोई विशेष अधिकारअधिकार नहीं था, जबकि इससे कम शिक्षित और कम धनवान कुलीनों को यहअधिकार प्राप्त था। इससे फ्रांस की मध्यमवर्गीय, धनी एवं शिक्षित जनता; कुलीनवर्ग के लोगों तथा चर्च के उच्च अधिकारियों से सदैव द्वेष रखती थी। अतः क्रान्तिप्रारम्भ होते ही तृतीय वर्ग की सम्पूर्ण जनता ने इसका पूर्ण समर्थन किया।
III. आर्थिक कारण
- फिजूलखर्ची और रिक्त राजकोष – किसी प्रकार का भी नियन्त्रण न होने के कारण फ्रांस की सरकार दरबार की शान-शौकत, ठाठ-बाट, विलासिता तथा युद्धो पर मनमाने ढंग से धन व्यय करती थी। फ्रांस का राजकोष रिक्त हो गया था, परन्तु राजा-रानी ने फिर भी अपने विलासितापूर्ण खर्चों पर रोक नहीं लगाई थी।
- जनता का आर्थिक शोषण – राजदरवार की शान-शौकत एवं उच्च श्रेणी के व्यक्तियों की विलासप्रियता तथा लम्बे खर्चीले युद्धों के कारण धन प्राप्त करने के लिए साधारण जनता पर अनेक प्रकार के कर लगाए जाते थे और उनकी वसूली अत्यन्त निर्दयतापूर्वक की जाती थी।
- उच्च वर्ग करों से मुक्त – फ्रांस में उच्च वर्ग और पादरियों पर कोई कर नहीं लगाया जाता था। इस प्रकार जो लोग करों का भार वहन करने में समर्थ थे वे करों से मुक्त रखे गए थे, जबकि साधारण जनता करो के बोझ से दबी जा रही थी।
IV. दार्शनिकों तथा लेखकों के विचारों का प्रभाव
फ्रांस जैसी दशा यूरोप के लगभग सभी देशों की थी। फिर भी फ्रांस के दार्शनिकों और लेखकों के क्रान्तिकारी विचारों के परिणामस्वरूप फ्रांस में ही सबसे पहले क्रान्ति हुई। फ्रांस के लेखकों एवं दार्शनिकों के विचारों ने राज्य-क्रान्ति की भावना का बीजारोपण किया। इनमें मॉण्टेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो, क्वेसेने, दिदरो आदि दार्शनिकों ने फ्रांस की क्रान्ति के अभ्युदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
V. क्रान्ति का तात्कालिक कारण
फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाया जाना था। लुई 16वें ने देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए वित्तमन्त्री कैलोन के परामर्श से जनता पर नए कर लगाने का निश्चय किया क्योंकि यह संस्था ही नए कर प्रस्तावों को पारित कर सकती थी। 4 मई 1789 ई० को एस्टेट्स जनरल के आमन्त्रण की तिथि निर्धारित की गई। किन्तु फ्रांस में तो क्रान्ति का वारूद तैयार हो चुका था अतः उसमें एस्टेट्स जनरल के आमन्त्रण ने चिनगारी का काम किया और 5 मई, 1789 ई० को क्रान्ति का विस्फोट हो गया।
प्रश्न 2. फ्रांस की क्रान्ति के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। अथवा फ्रांस की क्रान्ति के दो परिणाम बताइए।
उत्तर : फ्रांस की क्रान्ति का महत्त्व/परिणाम
फ्रांस की क्रान्ति का महत्त्व निम्नलिखित कारणों से है-
- इस क्रान्ति ने सदियों से चली आ रही यूरोप की पुरातन व्यवस्था (Ancient Regime) का अन्त कर दिया।
- इस क्रान्ति की महत्त्वपूर्ण देन मध्यकालीन समाज की सामन्ती व्यवस्था का अन्त करना है।
- फ्रांस के क्रान्तिकारियों द्वारा की गई ‘मानव अधिकारों की घोषणा’ (27 अगस्त, 1789 ई०), मानव जाति की स्वाधीनता के लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण है।
- इस क्रान्ति ने समस्त यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास और प्रसार किया। परिणामस्वरूप यूरोप के अनेक देशों में क्रान्तियों का सूत्रपात हुआ।
- फ्रांस की क्रान्ति ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा को जन्म दिया।
- इस क्रान्ति ने लोकप्रिय सम्प्रभुता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
फ्रांसीसी क्रान्ति ने मानव जाति को स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व का नारा प्रदान किया। - इस क्रान्ति ने इंग्लैण्ड, आयरलैण्ड तथा अन्य यूरोपीय देशों की विदेश नीति को प्रभावित किया।
- कुछ विद्वानों के अनुसार फ्रांस की क्रान्ति समाजवादी विचारधारा का स्रोत थी क्योंकि इसने समानता का सिद्धान्त प्रतिपादित कर समाजवादी व्यवस्था का मार्ग भी खोल दिया था।
- इस क्रान्ति के फलस्वरूप फ्रांस ने कृषि, उद्योग, कला, साहित्य, राष्ट्रीय शिक्षा तथा सैनिक गौरव के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति की।
प्रश्न 3. जमनी के एकीकरण की प्रक्रिया के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2023 FB, FC]
अथवा जर्मनी के एकीकरण के बारे में एक संक्षिप्त लेख लिखिए। [2022]
उत्तर: जर्मनी का एकीकरण जिन-जिन सोपानों में हुआ उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
- पहली अवस्था- 18वीं शताब्दी में जर्मनी अनेक राज्यों- प्रशिया, बावेरिया, सैकसनी आदि में विभाजित था। इसलिए इसके आर्थिक विकास की गति भी बहुत धीमी थी। राष्ट्रीय चेतना के जाग्रत होने पर जर्मनी के विभिन्न राज्यो के लोगों ने एकीकरण की माँग उठाना आरम्भ कर दी। 1815 ई० में जर्मनी के राज्यों को ऑस्ट्रिया के साथ मिलाकर एक जर्मन महासंघ की स्थापना का प्रयास किया। फ्रैंकफर्ट में एक राष्ट्रीय पार्लियामेण्ट बुलाई गई जिसे संविधान बनाने का कार्य सौंपा गया परन्तु इस पार्लियामेण्ट को ऑस्ट्रिया के विरोध के कारण सफलता प्राप्त न हो सकी।
- दूसरी अवस्था– इस क्रान्ति की असफलता के पश्चात् जर्मनी के एकीकरण का कार्य लोकतन्त्र के रूप में न होकर बिस्मार्क द्वारा सैन्यशक्ति एवं कूटनीति के सहारे किया जाने लगा। बिस्मार्क ने अपनी ‘रक्त और लौह’ की नीति द्वारा इस एकीकरण के कार्य को पूरा किया। सबसे पहले 1864 ई० में बिस्मार्क के नेतृत्व में प्रशिया और डेनमार्क में एक युद्ध हुआ जिसमें प्रशिया की जीत हुई और उसे श्लेसविग का प्रदेश प्राप्त हुआ।
- तीसरी अवस्था – 1866 ई० में प्रशिया (या जर्मनी) का ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में विजय के पश्चात् प्रशिया के साथ अनेक प्रदेश (जैसे हैनोवर, होल्सटीन, लक्समबर्ग, कैसल तथा फ्रैंकफर्ट आदि) आ मिले। जर्मनी से ऑस्ट्रिया का प्रभाव अब हमेशा के लिए समाप्त हो गया और इससे जर्मनी के एकीकरण का कार्य भी सरल हो गया।
- चौथी अवस्था – अन्त में 1870 ई० में फ्रांस के साथ जर्मनी का एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें फ्रांस को पराजय का सामना करना पड़ा और उससे आल्सेस और लारेन के महत्त्वपूर्ण प्रदेश छीन लिए गए। इन विजयों से प्रभावित होकर शेष बचे हुए जर्मन प्रदेश (जैसे बवेरिया, बर्टमबर्ग, बेडन और दक्षिणी है।) भी जर्मन महासंघ में सम्मिलित हो गए और प्रशिया के शासक विलियम प्रथम को 1871 ई० में संयुक्त जर्मनी का सम्राट घोषित कर दिया गया।
प्रश्न 4. नेपोलियन कौन था? उसके सुधार क्या थे? उसके सुधारों का क्या प्रभाव पड़ा? [2023 EY]
उत्तर : नेपोलियन बोनापार्ट, फ्रांसीसी सैन्य प्रमुख और सम्राट था, जिसने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप के अधिकांश हिस्से पर विजय प्राप्त की थी। उसने अपने जीवन की शुरुआत एक सामान्य नागरिक की तरह की थी। नेपोलियन को इतिहास के सबसे महान सेनापति के रूप में भी जाना जाता है। उसने फ्रांस में नवीन विधि संहिता को लागू करने का कार्य किया था जिसे ‘नेपोलियन की संहिता’ भी कहा जाता है।
नेपोलियन के सुधार- नेपोलियन ने सन् 1799 में सत्ता को हाथों में लेकर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने तथा फ्रांस को प्रशासनिक स्थायित्व प्रदान करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सुधार किए, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
(i) संविधान निर्माण – फ्रांस के लिए एक नवीन संविधान का निर्माण किया जो क्रान्ति युग का चौथा संविधान था।
(ii) प्रशासनिक सुधार – शासन व्यवस्था का केन्द्रीकरण किया और डिपार्टमेण्ट्स तथा ड्रिस्ट्रिक्ट की स्थानीय सरकारों को समाप्त कर प्रीफेक्ट एवं सब-प्रीफेक्ट्स की नियुक्ति की।
(iii) आर्थिक सुधार – सर्वप्रथम कर प्रणाली को सुचारु बनाया। कर वसूलने का कार्य केन्द्रीय कर्मचारियों को सौंपा गया तथा उसकी वसूली सख्ती से की जाने लगी।
सुधारों का प्रभाव – नेपोलियन को उनकी नीतियों और वादों के कारण मुक्तिदाता कहा जाता था। उसके द्वारा किए गए सुधारों के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित थे-
(i) निजी सम्पत्ति का संरक्षण- लोगों को अपनी सम्पत्ति का कानूनी रूप से स्वामित्व प्राप्त होने लगा।
(ii) वजन (माप-तौल) की एक समान प्रणाली- वजन की एक समान प्रणाली की शुरुआत हुई।
(iii) दशमलव प्रणाली पर आधारित माप – आर्थिक गतिविधियों के समुचित संचालन के लिए दशमलव प्रणाली पर आधारित माप की व्यवस्था की शुरुआत हुई।
प्रश्न 5. किन्हीं दो देशों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए बताएँ कि उन्नीसवीं सदी में राष्ट्र किस प्रकार विकसित हुए?
उत्तर : उन्नीसवीं सदी में यूरोप में अनेक राष्ट्र विभिन्न तरीकों से विकसित हुए, जिनमे से जर्मनी व इटली प्रमुख हैं-
1. जर्मनी राष्ट्र-राज्य का विकास
- फ्रैंकफर्ट संसद के प्रयास – जर्मनी में राष्ट्रवादी भावनाएँ मध्य वर्ग के लोगों में अधिक थीं। उन्होंने सन् 1848 में जर्मन महासंघ के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़कर एक निर्वाचित संसद (फ्रैंकफर्ट संसद) द्वारा शासित राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया। लेकिन राष्ट्र निर्माण का वह उदारवादी प्रयास राजशाही तथा सैन्य शक्ति ने मिलकर विफल कर दिया।
- प्रशा का नेतृत्व तथा बिस्मार्क की भूमिका- इसके बाद प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व सँभाला। प्रशा के प्रमुख मन्त्री ऑटोवॉन बिस्मार्क ने प्रशा की सेना तथा नौकरशाही की सहायता ली। उसने ‘लौह और रक्त’ की नीति अपनाते हुए सात वर्ष की अवधि में डेनमार्क, ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस को पराजित कर दिया और जर्मनी का एकीकरण पूरा किया।
- जर्मन साम्राज्य की घोषणा – 18 जनवरी, 1871 को बिस्मार्क ने वर्साय के शीशमहल में विलियम प्रथम को नवीन जर्मन साम्राज्य का सम्राट घोषित किया। एकीकरण के पश्चात् नए जर्मन राज्य में मुद्रा, बैंकिंग, कानूनी तथा न्यायिक व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण पर बल दिया गया।
2. इटली राष्ट्र-राज्य का विकास
- ज्युसेपे मेजिनी का योगदान – इटली अपने एकीकरण के पूर्व सात राज्यों में बँटा हुआ था। इनमें से केवल एक राज्य सार्डीनिया-पीडमाण्ट के इतालवी राजवंश का शासन था। इटली के क्रान्तिकारी नेता ज्युसेपे मेजिनी ने सन् 1831 में ‘यंग इटली’ नामक एक क्रान्तिकारी संस्था की स्थापना की और इसके माध्यम से इटलीवासियों में राष्ट्रीयता, देशभक्ति, त्याग और बलिदान की भावनाएँ उत्पन्न कीं।
- कावूर का योगदान – कावूर सार्डीनिया-पीडमाण्ट का प्रधानमन्त्री था। सन् 1859 में फ्रांस की सैनिक सहायता प्राप्त करके साडींनिया-पीडमाण्ट ने ऑस्ट्रिया की सेनाओं को पराजित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप लोम्बार्डी को सार्डीनिया-पीडमाण्ड में मिला लिया गया।
- गैरीबाल्डी का योगदान – गैरीबाल्डी इटली का एक महान स्वतन्त्रता सेनानी था। उसने सन् 1860 में सिसली और नेपल्स पर आक्रमण किया और उन पर अधिकार कर लिया। जनमत संग्रह के बाद सिसली और नेपल्स को सार्डीनिया-पीडमाण्ट में मिला लिया गया।
- विक्टर इमैनुअल द्वितीय का योगदान – विक्टर इमैनुअल द्वितीय सार्डीनिया-पीडमाण्ट का राजा था। सन् 1861 में उसे एकीकृत इटली का राजा
घोषित किया गया। सन् 1866 में वेनेशिया को भी इटली में मिला लिया गया। सन् 1870 में इटली की सेनाओं ने रोम पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार इटली का एकीकरण पूरा हुआ।
प्रश्न 6. यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय होने में कौन-सी परिस्थितियाँ सहायक हुईं? [2022]
उत्तर: उन्नीसवीं सदी के अन्तिम चौथाई भाग तक राष्ट्रवाद का आदर्शवादी-उदारवादी जनतान्त्रिक स्वभाव समाप्त हो गया जो सदी के प्रथम भाग में था। अब राष्ट्रवाद सीमित लक्ष्यों वाला संकीर्ण सिद्धान्त बन गया।
1871 ई० के पश्चात् यूरोप में गम्भीर राष्ट्रवादी तनाव का स्रोत बाल्कन क्षेत्र था। इस क्षेत्र में भौगोलिक और जातीय भिन्नता थी। इसमें आधुनिक रोमानिया, बल्गेरिया, अल्बेनिया, यूनान, मेसिडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्विया-मोण्टेनीग्रो शामिल थे। क्षेत्र के निवासियों को आमतौर पर स्लाव कहकर पुकारा जाता था। वाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा ऑटोमन साम्राज्य के नियन्त्रण में था। बाल्कन क्षेत्र में रूमानी राष्ट्रवाद के विचारों के फैलने और ऑटोमन साम्राज्य के विघटन से स्थिति अधिक विस्फोटक हो गई। उन्नीसवीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य ने आधुनिकीकरण और आन्तरिक सुधारों के जरिए मजबूत बनना चाहा था किन्तु इसमें इसे बहुत कम सफलता मिली। एक के बाद एक उसके अधीन यूरोपीय राष्ट्रीयताएँ उसके चंगुल से निकलकर स्वतन्त्रता की घोषणा करने लगीं। बाल्कन लोगों ने स्वतन्त्रता या राजनीतिक अधिकारों के अपने दावों को राष्ट्रीयता का आधार दिया। उन्होंने इतिहास का इस्तेमाल यह सिद्ध करने के लिए किया कि वे कभी स्वतन्त्र थे तत्पश्चात् विदेशी शक्तियों ने उन्हें अधीन कर लिया। अतः बाल्कन क्षेत्र के विद्रोही राष्ट्रीय समूहों ने अपने संघर्षों को लम्बे समय से खोई आजादी को वापस पाने के प्रयासों के रूप में देखा। जैसे-जैसे विभिन्न स्लाव राष्ट्रीय समूहों ने अपनी पहचान और स्वतन्त्रता की परिभाषा तय करने की कोशिश की, बाल्कन क्षेत्र गहरे टकराव का क्षेत्र बन गया। रूस, जर्मनी, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रिया-हंगरी की हर ताकत बाल्कन क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहती थी। इससे इस क्षेत्र में कई युद्ध हुए और अन्ततः प्रथम विश्वयुद्ध हुआ।
साम्राज्यवाद से जुड़कर राष्ट्रवाद 1914 ई० में यूरोप को महाविपदा की ओर ले गया। लेकिन इस बीच विश्व के अनेक देश जिनका उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय शक्तियों ने औपनिवेशीकरण किया था, साम्राज्यवादी प्रभुत्व का विरोध करने लगे। हर तरफ जो साम्राज्य विरोधी आन्दोलन विकसित हुए इस अर्थ में राष्ट्रवादी थे कि वे सभी स्वतन्त्र राष्ट्र राज्य का निर्माण करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। वे सभी एक सामूहिक राष्ट्रीय एकता की भावना से प्रेरित थे।
प्रश्न 7. यूरोप में राष्ट्रवाद के उदय में जर्मनी एवं इटली के एकीकरण का योगदान बताइए। [2023 FA]
उत्तर : 19वीं शताब्दी में यूरोपीय महाद्वीप में राष्ट्रवाद की एक लहर चली जिसने यूरोपीय देशों का कायाकल्प कर दिया। जर्मनी, इटली, रोमानिया आदि नवनिर्मित देश कई क्षेत्रीय राज्यों को मिलाकर बने जिनकी राष्ट्रीय पहचान ‘समान’ थी। राष्ट्रवादी चेतना का उदय यूरोप में पुनर्जागरण काल से ही शुरू हो चुका था, परन्तु 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रान्ति में यह सशक्त रूप लेकर प्रकट हुआ।
18वीं सदी में कई देश जैसे जर्मनी, इटली तथा स्विट्जरलैण्ड आदि उस रूप में नहीं थे जैसा कि आज हम इन्हें देखते हैं। 18वीं सदी के मध्य जर्मनी, इटली और स्विट्जरलैण्ड राजशाहियों, डचों और कैंटनों में बँटे हुए थे जिनके शासकों के स्वायत्त क्षेत्र थे। वे अपने आप को एक सामूहिक पहचान या किसी समान संस्कृति का भागीदार नहीं मानते थे।
फ्रांसीसी क्रान्ति से पहले फ्रांस एक ऐसा राज्य था जिसके सम्पूर्ण भू-भाग पर एक निरंकुश राजा का शासन था।
19वीं शताब्दी आते-आते परिणाम युगान्तकारी सिद्ध हुए। नेपोलियन की संहिता को 1804 में लागू किया गया। इसने जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। नेपोलियन के आक्रमण से इटली और जर्मनी में एक नया अध्याय प्रारम्भ हुआ। इससे वहाँ राष्ट्रीयता के विचार उत्पन्न हुए जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
- (1) यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास के कारण यूरोपीय राज्यों का एकीकरण हुआ।
- (2) यह यूरोपीय राष्ट्रवाद का परिणाम था कि 19वीं शताब्दी के अन्तिम उत्तरार्द्ध में संकीर्ण राष्ट्रवाद का जन्म हुआ।
- (3) यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रभाव के कारण जर्मनी, इटली जैसे राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों का उदय हुआ।
प्रश्न 8. इटली के एकीकरण में मेजिनी, कावूर और गैरीबाल्डी के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर : इटली का राष्ट्रीय एकीकरण आधुनिक यूरोप के इतिहास में महत्त्वपूर्ण घटना है। 19वीं सदी के मध्य में इटली सात राज्यों में विभाजित था, जिनमें से केवल एक इतालवी राजघराने के अधीन था। इटली के एकीकरण में देशभक्तों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इन देशभक्तों में गैरीबाल्डी, मेजिनी और कावूर का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान – मेजिनी ने इटली को एकीकृत कर गणराज्य बनाने में उल्लेखनीय भूमिका का निर्वाह किया। उसने 1860 के दशक में इटली के एकीकरण हेतु एक सुविचारित कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिसके प्रचार-प्रसार के लिए उसने एक गुप्त संगठन ‘यंग इटली’ बनाया। 1841 ई० से 1848 ई० में इस संगठन की सहायता से मेजिनी ने सिसली तथा नेपल्स के विद्रोहों को सफल बनाने का प्रयास किया, किन्तु पूर्ण सफलता नहीं मिली।
इटली के एकीकरण में कावूर का योगदान – कावूर एक उच्च शिक्षित फ्रेंच भाषी था, किन्तु वह कट्टर देशभक्त था, उसके कार्यों के विषय में ग्रांट एवं टेम्परले के द्वारा यह विचार दिया गया है कि “उसके प्रथम कार्यों में से एक कार्य मिशनरियों का विनाश भी था, परन्तु इटली के एकीकरण ने उसका ध्यान सबसे अधिक आकर्षित किया था।”कावूर ने क्रीमिया के युद्ध में भाग लेकर फ्रांस और इंग्लैण्ड की सहानुभूति प्राप्त की तथा 1858 ई० में नेपोलियन के साथ प्लोम्बियर्स का समझौता किया।
इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का योगदान – गैरीबाल्डी को इटली की सेना का निर्माता कहा जाता है। इटली के एकीकरण के लिए गैरीबाल्डी ने महत्त्वपूर्ण कार्य किए।गैरीबाल्डी ने सिसली के विद्रोह का लाभ उठाकर उस पर अधिकार कर लिया तथा रोम और वेनेशिया पर आक्रमण करने की योजना तैयार की। इसी समय कावूर ने गैरीबाल्डी पर सन्देह करके पोप के राज्य अंब्रिया तथा मार्चेज पर अधिकार कर लिया और नेपोलियन को अपने साथ मिला लिया। गैरीबाल्डी ने इटली के एकीकरण के लिए नेपल्स और सिसली, सार्डीनिया के राजा को दे दिए। गैरीबाल्डी के नेतृत्व में भारी संख्या में सशस्त्र स्वयंसेवकों की सेना बनाई गई गैरीबाल्डी के प्रयासों से 1861 ई० में रोम तथा वेनेशिया को छोड़कर सम्पूर्ण इटली के प्रतिनिधियों ने इटली राज्य की घोषणा की तथा इमैनुअल द्वितीय को इटली का राजा घोषित किया गया। इस तरह इन देशभक्तों ने अपने प्रयासों से इटली को एक एकीकृत राज्य के रूप में स्थापित किया।
प्रश्न 9. यूरोप में राष्ट्रवाद का आशय स्पष्ट कीजिए। [2023 FD]
उत्तर : यूरोप में राष्ट्रवाद का आशय
राष्ट्रवाद वह भावना या विचारधारा है जिसके माध्यम से जनता में राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक एकीकरण का प्रादुर्भाव होता है। 19वीं सदी में राष्ट्रवाद एक ऐसी ताकत बनकर उभरा जिसने यूरोप के राजनीतिक तथा बौद्धिक क्षेत्र में भारी परिवर्तन ला दिया। बहु-राष्ट्रीय वंशीय साम्राज्य के स्थान पर राष्ट्र राज्य का उदय हुआ। यूरोप के राष्ट्रवाद में साझा संस्कृति, साझा इतिहास और विरासत की भावना न केवल केन्द्रीय सत्ता में थी वरन् शासकों में भी थी। यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में क्रान्ति, उदारवादी विचारधारा तथा साझा संस्कृति एवं नए मध्य वर्ग का विशेष योगदान था।
18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में नेपोलियन के आक्रमणों ने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इटली, पोलैण्ड, जर्मनी और स्पेन में नेपोलियन ने ही ‘नवयुग’ का सन्देश पहुँचाया। वहाँ एक संगठित एवं एकरूप शासन की स्थापना हुई। वहाँ राष्ट्रीयता के विचार उत्पन्न हुए। इसी राष्ट्रीयता की भावना ने जर्मनी और इटली को मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति की सीमा से बाहर निकालकर उसे वास्तविक एवं राजनीतिक रूप प्रदान किया जिससे जर्मनी और इटली के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।