वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1
प्रश्न 1. विनिर्माण उद्योग को आर्थिक विकास की रीढ़ क्यों कहा जाता है?
उत्तर : विनिर्माण उद्योग को आर्थिक विकास की रीढ़ माने जाने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
- (1) यह द्वितीयक एवं तृतीयक सेवाओं में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता को कम करता है।
- (2) देश के विभिन्न भागों में स्थापित विनिर्माण उद्योग लोगों को रोजगार उपलब्ध कराकर गरीबी को कम करने का प्रयास करते हैं।
- (3) जनजातीय एवं पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित विनिर्माण उद्योग क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में सहायक होते हैं।
- (4) विनिर्माण उद्योगों से प्राप्त उत्पादों के निर्माण से व्यापार और वाणिज्य का विस्तार होता है तथा देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
उपर्युक्त कारण विनिर्माण उद्योग को आर्थिक विकास की रीढ़ सिद्ध करते हैं।
प्रश्न 2. ‘कृषि और उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं।’ इस कथन का औचित्य निर्धारित कीजिए।
उत्तर : निम्नलिखित तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कृषि और उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं-
- (1) कृषि उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराती है; जैसे- कपास, गन्ना, जूट, रबड़ आदि।
- (2) उद्योग कृषि को विभिन्न सहायक वस्तुएँ; जैसे- कृषि औजार, मशीनें, उर्वरक, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराते हैं। इनसे फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- (3) उद्योग, कृषि के अतिरिक्त श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं, जिससे कृषि पर दबाव कम होता है।
- (4) उद्योग, कृषि से प्राप्त कच्चे मालों को विभिन्न उच्च कीमतों वाली तैयार वस्तुओं में परिवर्तित करते हैं, जिससे देश में आर्थिक समृद्धि आती है।
- (5) कृषि औद्योगिक श्रमिकों को खाद्यान्न उपलब्ध कराती है।
प्रश्न 3. समन्वित इस्पात उद्योग मिनी इस्पात उद्योगों से कैसे भिन्न है? इस उद्योग की क्या समस्याएँ हैं? किन सुधारों के अन्तर्गत इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ी है?
उत्तर : समन्वित इस्पात संयन्त्र विशाल संयन्त्र होता है जिसमें कच्चे माल को एक स्थान पर एकत्रित करने से लेकर इस्पात बनाने, उसे ढालने और आकार देने की समस्त क्रियाएँ की जाती हैं। जबकि मिनी इस्पात उद्योग छोटे संयन्त्र हैं जिनमें विद्युत भट्ठी, रद्दी इस्पात व स्पंज आयरन का प्रयोग किया जाता है। ये संयन्त्र हल्के स्टील या निर्धारित अनुपात के मृदु व मिश्रित इस्पात का उत्पादन करते हैं। इस्पात उद्योग की समस्याएँ एवं सुधार के उपाय-1950 के दशक में भारत व चीन ने एकसमान मात्रा में इस्पात उत्पादित किया था। आज चीन इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक है। इस्पात की सर्वाधिक खपत भी चीन में होती है। भारत यद्यपि संसार का आज भी महत्त्वपूर्ण उत्पादक देश है तथापि हम इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए निम्नलिखित समस्याएँ उत्तरदायी है-
- (1) उच्च लागत तथा कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता,
- (2) कम श्रमिक उत्पादकता,
- (3) ऊर्जा की अनियमित पूर्ति तथा
- (4) अविकसित अवसंरचना आदि।
निजी क्षेत्र में उद्यमियों के प्रयत्न से तथा उदारीकरण व प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने इस उद्योग को प्रोत्साहन दिया है। इस्पात उद्योग को अधिक स्पर्द्धावान बनाने के लिए हमें अनुसन्धान और विकास के संसाधनों को नियत करने की आवश्यकता है, इसके साथ ही हमें ऊर्जा की पूर्ति और अवसंरचना को भी विकसित करने की आवश्यकता है।
प्रश्न 4. इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (इस्को) के स्थानीकरण में सहायक कारक बताइए।
उत्तर : इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (इस्को) के स्थानीकरण के कारक निम्नलिखित हैं-
- (1) दामोदर घाटी निगम से सस्ती दर पर जलविद्युत शक्ति की प्राप्ति।
- (2)-ओडिशा की गंगपुर खानों से चूना पत्थर की प्राप्ति।
- (3) सिंहभूम की खानों से लौह अयस्क की उपलब्धता।
- (4) दामोदर नदी घाटी परियोजना से स्वच्छ जल की सुविधा।
- (5) दक्षिण-पूर्वी रेलमार्ग से परिवहन की सुविधा।
- (6) समीप में ही चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स तथा बर्नपुर स्थित इण्डियन स्टैण्डर्ड वैगन उद्योग में इस्पात की भारी माँग।
प्रश्न 5. हुगली नदी के किनारे पश्चिम बंगाल में कागज के कारखाने अधिक स्थापित होने के क्या कारण हैं?
उत्तर : पश्चिम बंगाल राज्य में हुगली तदी के किनारे कागज के अनेक कारखाने स्थापित हुए है। यहाँ इस उद्योग की स्थापना के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी रहे हैं-
- (1) पश्चिम बंगाल तथा उसके समीपवर्ती राज्यों-असम, बिहार व छत्तीसगढ़ में बाँस एवं घास पर्याप्त मात्रा में उगती है, जो कागज उद्योग हेतु प्रमुख कच्चा माल है। यहाँ कागज उद्योग में स्थानीय स्तर पर उत्पादित बाँस का उपयोग भी कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
- (2) कागज उद्योग में स्वच्छ जल की अधिकतम आवश्यकता होती है। हुगली नदी के सदावाहिनी होने के कारण यहाँ पर्याप्त जल उपलब्ध हो जाता है।
- (3) कागज उद्योग में चालक शक्ति के रूप में जलविद्युत शक्ति अथवा कोयले से प्राप्त ताप-शक्ति की आवश्यकता होती है। ये दोनों शक्ति-संसाधन पश्चिम बंगाल राज्य में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
- (4) पश्चिम बंगाल तथा समीपवर्ती राज्यों में जनाधिक्य के कारण पर्याप्त संख्या में कुशल एवं अनुभवी श्रमिक उपलब्ध हो जाते हैं।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2
प्रश्न 1. भारत में कृषि पर आधारित प्रमुख उद्योगों के नाम लिखिए और इनका महत्त्व भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : वस्त्र, चीनी, जूट, ऐल्कोहॉल तथा वनस्पति तेल आदि उद्योगों के लिए कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है। इसी कारण इन्हें कृषि आधारित उद्योग कहा जाता है। मानव की प्राथमिक आवश्यकताओं की आपूर्ति में इन उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
कृषि का उद्योगों के लिए महत्त्व
भारत में कृषि का उद्योगों के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान है जिसे निम्नलिखित तथ्यों द्वारा समझा जा सकता है-
- (1) कृषि से उद्योगों को कच्चे माल की प्राप्ति होती है; जैसे कपास (रूई), रेशम, पटसन एवं ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए आधारभूत कच्चा माल है। कपास एवं पटसन जैसे कच्चे माल प्रत्यक्ष रूप से मृदा से प्राप्तं होते हैं जबकि रेशम एवं ऊन परोक्ष रूप से कीटों एवं पशुओं से प्राप्त होती है।
- (2) ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर कार्यशील जनसंख्या का सतत पलायन होता है जिससे कृषि का अतिरिक्त श्रम उद्योगों को मानवीय श्रम की आपूर्ति करता है।
- (3) कृषि हमारे औद्योगिक उत्पादन की एक बड़ी उपभोक्ता है क्योकि यह विभिन्न उद्योगों में उत्पादित कृषि यन्त्र व उपकरण तथा रासायनिक उर्वरकों के लिए उपभोक्ता बाजार की सुविधा प्रदान करती है। इस प्रकार इन यन्त्रों एवं उपकरणों के प्रयोग से कृषि उत्पादन यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है।
- (4) कृषि’ में आधुनिक एवं नवीन प्रौद्योगिकी अपनाने से कृषि यन्त्रों एवं उपस्करों तथा रासायनिक उर्वरकों की माँग में वृद्धि हो जाती है जिससे उद्योगों का विकास होता है। भारत में हरित क्रान्ति की सफलता में इन औद्योगिक उत्पादों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
अतः भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि पर आधारित उद्योगों की महत्ता को किसी भी प्रकार कम नहीं आँका जा सकता है।
प्रश्न 2. भारत में उद्योगों की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर : भारत में उद्योगों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
- प्रौद्योगिकी सुधार के लिए प्रेरणा का अभाव – भारतीय औद्योगिक तकनीक अभी भी पिछड़ी हुई अवस्था में है। भारतीय उद्यमी नवीनतम तकनीक एवं प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं हो पाते। उनमें इच्छा-शक्ति का अभाव पाया जाता है। नवीन प्रौद्योगिकी को अपनाने के प्रति वे सशंकित रहते हैं। इसका प्रमुख कारण उनमें प्राचीन प्रबन्धन का पाया जाना है।
- स्थापित क्षमता का पूर्ण उपयोग न हो पाना– अधिकांश उद्योग अपनी उत्पादन क्षमता के 50% भाग का भी उपयोग नहीं कर पाते हैं जिससे उनका अपव्यय बढ़ जाता है और उत्पादन लागत अधिक आती है। इस प्रकार उत्पादित माल अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में ठहर नहीं पाता है।
- पूँजीगत व्यय में वृद्धि – भारतीय उद्योगों में पूँजीगत व्यय अधिक ऊँचे हैं जिस कारण इन उद्योगों को लाभ का स्तर प्राप्त नहीं हो पाता है।
- अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रमों का अभाव – उद्योगों का आकार छोटा होने और वित्तीय सुविधाओं की कमी के कारण इन उद्योगों में अनुसन्धान एवं विकास कार्यक्रम लागू नहीं हो पाते हैं, फलस्वरूप उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इन उद्योगों में परम्परागत माल का ही उत्पादन होता है, जबकि अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा और वैश्विक युग में इन्हें गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं का ही उत्पादन करना चाहिए।
- अनुत्पादक व्ययों की अधिकता – भारतीय उद्योगों में अनुत्पादक व्यय सामान्य से अधिक रहते हैं, जिसका प्रभाव उत्पादन लागत में वृद्धि और उत्पादकता में कमी के रूप में पड़ा है।
- उपक्रमों के निर्माण में देरी– देश में उद्योग-धन्धों के स्थापन में निर्धारित समय से अधिक समय लगता है। इससे इन उद्योगों की कार्यकुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और देरी के कारण इनकी निर्माण लागत में भी वृद्धि हो जाती है। यह स्थिति सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में अधिक दिखाई पड़ती है।
- वित्तीय सुविधाओं की अपर्याप्तता – भारत में औद्योगिक बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों की पर्याप्त संख्या में स्थापना नहीं हो पायी है जिससे उद्योगों को समय पर वित्तीय सहायता नहीं मिल पाती है। इससे उद्योगों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- श्रम-प्रबन्धन संघर्ष – भारत में औद्योगिक प्रबन्धन एवं श्रमिकों के बीच सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। इसका परिणाम हड़ताल, तालाबन्दी के रूप में सामने आता है जिस कारण औद्योगिक उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
उपर्युक्त समस्याओं के कारण भारतीय उद्योगों का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है।
प्रश्न 3. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर : सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलेक्ट्रॉनिक उद्योग सूचना प्रौद्योगिकी इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अन्तर्गत ट्रांजिस्टर से लेकर टेलीविजन सेट तक विभिन्न प्रकार के उत्पाद व्यापक रूप से तैयार किए जाते हैं। न टेलीफोन एक्सचेंज, सैल्यूलर फोन, कम्प्यूटर, डाकघरों व तारघरों में प्रयुक्त होने वाले सभी उपकरण इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की देन हैं। रक्षा, रेल, वायुयान, अन्तरिक्ष उड़ान और मौसम विभागों में प्रयुक्त उपकरणों के निर्माण का दायित्व भी इसी उद्योग का है। इस उद्योग ने आम लोगों के जीवन, देश के आर्थिक स्वरूप और लोगों की जीवन गुणवत्ता में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया है। इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में ट्राम्बे ने विकसित उत्पादों और जानकारी के फलस्वरूप सन् 1967 में हैदराबाद में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड (ECIL) का गठन किया गया। कम्पनी ने भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्प्यूटर क्रान्ति की पहल की। सन् 1970 और 1980 के दशकों में ई०सी०आई०एल० ने देश में स्वदेशी श्याम-श्वेत और रंगीन टेलीविजन सेट उतारकर और ग्रामीण पुनः प्रसारण प्रणालियाँ विकसित कर देश में टेलीविजन क्रान्ति ला दी। इस निगम द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर से बैंकिंग क्षेत्र तथा पुलिस के लिए डॉयल 100 के स्वचालन व नियन्त्रण कक्ष में सहायता मिली। रक्षा एवं दूरसंचार क्षेत्रों की सन्देश स्विचिंग प्रणालियों, पत्तनों, नगर निगमों और बाजारों व अन्य क्षेत्रों की सूचना प्रबन्ध प्रणालियों में भी सहायता मिली। कम्पनी ने देशभर में एस०पी०सी० टेलेक्स नेटवर्क, सन्देश स्विचिंग नेटवर्क और टेलीविजन एक्सचेंजों के रख-रखाव की प्रणालियाँ उपलब्ध कराई हैं।
कम्प्यूटर उद्योग, हार्डवेयर के रूप में सन् 1990 के दशक में प्रारम्भ हुआ। हार्डवेयर के अतिरिक्त देश ने सॉफ्टवेयर के विकास में बहुत ही ख्याति अर्जित की है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था का तेजी से विकसित होने वाला क्षेत्र है। हाल ही के वर्षों में श्रव्य तन्त्र के उत्पादन में असाधारण वृद्धि दर्ज की गई है। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक उद्योग ने अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी विकास में भी विशेष योगदान दिया है। इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी के रूप में बंगलुरु विकसित हो गया है। हैदराबाद, दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ एवं कोयम्बटूर इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के प्रमुख उत्पादक केन्द्र है।
प्रश्न 4. महाराष्ट्र और गुजरात में सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्रीकरण के प्रमुख कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : महाराष्ट्र और गुजरात में सूती वस्त्र उद्योग का केन्द्रीकरण
भारत में सूती वस्त्र उद्योग का सर्वाधिक विकास महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्यों में हुआ है। मुम्बई और अहमदाबाद महानगर सूती वस्त्र उद्योग के प्रधान केन्द्र हैं। महाराष्ट्र के सूती वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा एवं प्रमुख केन्द्र मुम्बई है, जहाँ सूती वस्त्रों की सर्वाधिक मिलें हैं। इसी कारण इसे ‘सूती वस्त्रों की राजधानी’ कहा जाता है। इसी प्रकार अहमदाबाद गुजरात राज्य में सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र है, इसे ‘भारत का मानचेस्टर’ तथा ‘पूर्व का बोस्टन’ कहा जाता है। इन दोनों राज्यों में सूती वस्त्र उद्योग के केन्द्रीकरण के निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं-
- पर्याप्त कपास का उत्पादन – महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों की लावायुक्त काली मिट्टी में कपास का पर्याप्त उत्पादन किया जाता है। यहाँ उत्पादित कपास का एकत्रण मुम्बई एवं अहमदाबाद महानगरों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त लम्बे रेशे वाली कपास का मिस्त्र, सूडान एवं ब्राजील आदि देशों से मुम्बई तथा काण्डला पत्तनों द्वारा आयात कर लिया जाता है।
- आर्द्र जलवायु – सागर की निकटता के कारण इन दोनों ही राज्यों की जलवायु आर्द्र है। इस जलवायु की विशेषता है कि इसमें कताई एवं बुनाई के समय धागा नहीं टूटता है।
- पत्तन की सुविधा – मुम्बई तथा काण्डला पत्तनों से सूती वस्त्र उद्योग हेतु मशीने, कल-पुर्जे, रासायनिक पदार्थ, कपास तथा अन्य आवश्यक पदार्थों का विदेशों से आयात करने की सुविधा रहती है तथा निर्मित वस्त्रों के निर्यात करने की सुविधा भी उपलब्ध है।
- ऊर्जा के पर्याप्त साधन – पश्चिमी घाट क्षेत्र में जलविद्युत शक्ति का पर्याप्त विकास किया गया है। अतः इन केन्द्रों के सूती वस्त्र कारखानों को सस्ती दर पर जलविद्युत शक्ति सरलता से सुलभ हो जाती है।
- पर्याप्त पूँजी – महाराष्ट्र तथा गुजरात राज्यों में मारवाड़ी पूँजीपति निवास करते हैं जो बहुत ही धनाढ्य है। अतः यहाँ पूँजीपतियों ने धन कमाने के उद्देश्य से पर्याप्त पूँजी लगाकर सूती वस्त्र मिलों की स्थापना की है।
- बाजार की सुविधा – यहाँ उत्पादित सूती वस्त्रों का उपभोक्ता बाजार बड़ा ही विस्तृत है। वर्तमान में सिले-सिलाए परिधानों (Readymade Garments) के निर्यात का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।
- सस्ते एवं कुशल श्रमिक – मुम्बई तथा अहमदाबाद महानगरों के न पृष्ठप्रदेशों की सघन जनसंख्या सूती वस्त्र मिलों में कार्य करने के लिए परम्परागत सस्ते और कुशल श्रमिक उपलब्ध कराती है।
उपर्युक्त कारणों से ही महाराष्ट्र और गुजरात में सूती वस्त्र का उद्योग का केन्द्रीकरण हो पाया है।
प्रश्न 5. विनिर्माण उद्योग को आर्थिक विकास की रीढ़ क्यों कहा जाता है?
उत्तर : कच्चे माल को अधिक मात्रा में मूल्यवान वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया को वस्तु निर्माण या विनिर्माण कहा जाता है।
विनिर्माण उद्योग को आर्थिक विकास की रीढ़ निम्नलिखित कारणों से कहा जाता है-
- (1) विनिर्माण उद्योग किसी देश की अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
- (2) विनिर्माण उद्योगों के द्वारा लोगों के दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का निर्माण किया जाता है और उद्योग लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- (3) विनिर्माण उद्योगों के द्वारा निर्मित वस्तुएँ देश-विदेश में बेचकर विदेशी मुद्रा कमाई जा सकती है, जिससे राष्ट्रीय धन में वृद्धि होती है।
प्रश्न 6. उद्योगों द्वारा पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपायों की चर्चा करें। [NCERT EXERCISE]
उत्तर : पर्यावरण के निम्नीकरण को नियन्त्रित करने के उपाय
पर्यावरण के निम्नीकरण को नियन्त्रित करने के उपाय निम्नलिखित हैं-
- (1) उचित योजनाओं के क्रियान्वयन द्वारा प्रदूषण को रोका जा सकता है।
- (2) उद्योगों का निर्धारित स्थानों पर स्थापन, उपकरणों की गुणवत्ता को बनाए रखकर तथा उनका सही परिसंचालन करके प्रदूषण को कम किया जा
सकता है।
(3) ईंधन के उचित चयन और उसका सही उपयोग वायु प्रदूषण को रोकने का प्रमुख साधन है। कोयले के स्थान पर तेल के उपयोग से धुआँ रोका जा सकता है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में कई उपकरण पृथक्कारी छन्ना व स्क्रबर यन्त्र आदि के माध्यम से वायु में उत्सर्जित प्रदूषकों को रोका जा सकता है। - (4) उद्योगो द्वारा प्रदूषित जल को नदियों के जल में छोड़ने से पूर्व उपचारित कर प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।
- (5) उद्योगों से निष्कासित द्रव को तीन स्तरों पर उपचारित किया जा सकता है-
- प्राथमिक उपचार में छँटाई, पिसाई, निथराई एवं गन्द को तली में बैठाने की क्रिया सम्मिलित है।
- द्वितीयक उपचार में जैविक विधियाँ सम्मिलित है।
- तृतीयक उपचार में भौतिक, रासायनिक एवं जैविक प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं अर्थात् प्रदूषित जल को पुनःचक्रीय क्रिया द्वारा प्रदूषण मुक्त किया जाता है।’
- (6) मृदा एवं भूमि प्रदूषण के नियन्त्रण में तीन क्रियाएँ सम्मिलित हैं-
- विभिन्न स्थानों से कूड़ा-कचरे की सफाई कर उसे एकत्र किया जाना।
- भूमि भराव द्वारा कूड़े-कचरे का निपटान करना।
- कूड़े-कचरे का पुनःचक्रण कर उसे उपयोगी बनाना।
पर्यावरण निम्नीकरण को कम करने के लिए उपर्युक्त सुझाए गए उपायों को क्रियान्वित करने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी कानून बनाए गए हैं और पर्यावरण मन्त्रालय व उच्चतम न्यायालय द्वारा दिशा निर्देश जारी किए गए हैं तथा इनको लागू कराने का प्रयास किया जाता है।