वाक्यों में त्रुटि-मार्जन
एक समय था जब संकेतो की भाषा का प्रयोग किया जाता था। अब हमारे प्रयोग के लिए एक समृद्ध और वैज्ञानिक भाषा उपलब्ध है। इसके द्वारा हम अपने भावों और विचारों को व्यक्त करने के साथ ही व्यक्त भावो और विचारों को ठीक-ठीक उसी अर्थ में ग्रहण भी कर सकते हैं, जिसे वक्ता अभिव्यक्त करना चाहता है। हमारा यह उद्देश्य उच्चारण अथवा लेखन को शुद्धता से हो पूर्ण हो सकता है। वक्ता की त्रुटि तो उससे पूछकर ठीक की जा सकती है, किन्तु लेखक की अशुद्धि से अर्थ का अनर्थ हो जाता है; जैसे- हँस-हंस ।
‘हँस’ शब्द को सामान्यतः हंस लिख दिया जाता है। चन्द्रबिन्दु का प्रयोग न करने के कारण ‘हँसना’ क्रिया ‘हंस’ पक्षी के रूप में बदल जाती है।
उपर्युक्त उदाहरण वाक्य केवल वर्तनी की त्रुटि से ही सम्बन्धित हैं। वर्तनी के अतिरिक्त वाक्य में प्रायः और भी अनेक प्रकार की त्रुटियाँ हो जाती हैं। विद्यार्थियों को इस प्रकार की त्रुटियों और वाक्यों को शुद्ध रूप में लिखने की जानकारी होनी परम आवश्यक है। वाक्य-संशोधन की दृष्टि से इस प्रकार की निम्नलिखित त्रुटियों की वांछित जानकारी यहाँ प्रस्तुत की जा रही है-
- लिंग एवं वचन सम्बन्धी त्रुटियां,
- कारक सम्बन्धी त्रुटियाँ,
- काल सम्बन्धी त्रुटियाँ,
- वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियाँ
(1) लिंग एवं वचन सम्बन्धी त्रुटियाँ
लिग और वचन सम्बन्धी त्रुटियों के लिए हिन्दी भाषा में ‘अन्चिति’ का ज्ञान होना परम आवश्यक है। ‘अन्विति’ का अर्थ है- ‘मेल’; अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त पदों के लिग, बचन, पुरुष आदि का क्रिया के साथ मेलअथवा अनुरूपता को ‘अन्विति’ कहा जाता है। लिग, वचन आदि से सम्बन्धित अन्विति के नियम निम्नलिखित है-
(अ) कर्ता और क्रिया की अन्विति
- यदि वाक्य में कर्ता विभक्तिरहित हो तो उसकी क्रिया के लिए लिग, वचन और पुरुष कत्र्ता के लिग, बच्चन और पुरुष के अनुसार होते हैं, जैसे-
(i) रवि पुस्तक पढ़ता है।
(ii)सीता विद्यालय जाती है।
- यदि कत्र्ता के साथ ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग हुआ हो तो सकर्मक क्रिया; कर्म के लिग और वचन के अनुरूप होती है; जैसे-
(i) लड़के ने पुस्तक पढ़ी।
- यदि समान लिंग के विभक्तिरहित अनेक कत्र्ता पद ‘और’ से जुड़े हो तो क्रिया उसी लिग में तथा बहुवचन में होती है, जैसे-
(i)रवि, मोहन और सोहन विद्यालय जाते हैं।
- यदि वाक्य में दो या दो से अधिक कत्तांओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय ‘या’ का प्रयोग हुआ हो तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिग और वचन के अनुसार होगी: जैसे-
(i)श्याम की दस गायें या एक बैल बिकेगा।
- यदि विभिन्न लिगो के अनेक कर्त्ता ‘और’ से जुड़े हो तो क्रिया पुंलिंग बहुवचन में होती है; जैसे-
(i) एक गाय, दो बैल औरअनेक बकरियाँ चर रहे हैं।
- यदि वाक्य में दो भिन्न लिग विभक्तिरहित एकवचन कर्ता हो तथा दोनों के बीच ‘और’ संयोजक का प्रयोग हुआ हो तो उनकी क्रिया पुंलिंग व बहुवचन में होगी; जैसे-
(i) बकरी और शेर पानी पीते हैं।
(ii)राम और सरला प्रतिदिन घूमने जाते हैं
(ब) कर्म और क्रिया की अन्विति
- यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्तिसहित हो तो क्रिया पुंलिंग एकवचन में होती है; जैसे-
(i) प्रधानाचार्य ने छात्र को बुलाया।
( ii) शिक्षक ने विद्यार्थियों को समझाया।
- यदि कत्र्ता ‘को’ प्रत्यय से जुड़ा हो तथा कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आई हो तो क्रिया सदैव एकवचन, पुंलिंग तथा अन्य पुरुष में होगी; जैसे-
(i) उसे (उसको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
(ii) तुम्हें (तुमको) बात करना नहीं आता।
- यदि वाक्य में कर्ता ‘ने विभक्ति से युक्त हो तथा कर्म की ‘को’ विभक्ति प्रयुक्त नहीं हुई हो तो उसकी क्रिया; कर्म के लिग, वचन और पुरुष के अनुसार होगी; जैसे-
(i) उसने क्षमा मांगी।
- यदि एक ही लिग और वचन के अनेक अप्रत्यय कर्म एक-साथ एकवचन में आएँ तो क्रिया एकवचन में होगी: जैसे-
(i) प्रकाश ने एक घोड़ा और एक गाय खरीदी।
- यदि एक ही लिग और वचन के अनेक प्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ प्रयुक्त हो तो क्रिया उसी लिग में तथा बहुवचन में होगी: जैसे-
(i) राम ने गाय और बकरी मोल लो।
- यदि वाक्य में भिन्न-भिन्न लिग के अनेक अप्रत्यय कर्म प्रयुक्त हो तथा वे ‘और’ से जुड़े हों तो क्रिया। अन्तिम कर्म के लिग और वचन के अनुसार होगी; जैसे-
(1) उसने चावल और रोटी खाई।
(ii) रमेश ने रोटी और सेब खाया।
- यदि कर्ता भिन्न-भिन्न पुरुषों के हो तो उनका क्रम होगा- सर्वप्रथम मध्यम पुरुष, इसके पश्चात् अन्यपुरुष और अन्त में उत्तम पुरुष। साथ ही क्रिया: अन्तिम कर्ता के लिग के अनुसार तथा बहुवचन में होगी; जैसे
(i) तुम, सरिता और मैं नाटक देखने चलेंगे।
- यदि कर्ता का लिंग ज्ञात न हो तो क्रिया पुंलिंग में होगी; जैसे-
(i) देखो, कौन शोर मचा रहा है।
- सम्मान देने हेतु एकवचन के कर्ता के लिए बहुवचन की क्रिया प्रयुक्त होती है; जैसे-
(i) राष्ट्रपति माल्यार्पण कर रहे हैं।
(स) संज्ञा एवं सर्वनाम की अन्विति
- वाक्य में सर्वनाम उसी संज्ञा के लिग, वचन और पुरुष का अनुसरण करता है; जिस संज्ञा के स्थान पर उसका प्रयोग हुआ है; जैसे-
(i) मैंने शीला को देखा, वह आ रही थी।
(ii) मैंने सुशील को देखा, वह आ रहा था।
- यदि अनेक संज्ञाओं के स्थान पर एक ही सर्वनाम प्रयुक्त हो तो वह पुलिंग बहुवचन में होगा, जैसे
(i) हरि, मोहन और सोहन यहाँ आ गए हैं, परन्तु वे कल ही चले जाएंगे।
नितिन, सचिन और विपिन अभी पढ़ रहे हैं, परन्तु वे शीघ्र ही खेलने चले जाएँगे।
- सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एकवचन के लिए भी बहुवचन सर्वनाम प्रयुक्त होता है; जैसे-
(i) गुरुजी आए हैं। वे एक सप्ताह रुकेंगे।
(ii) स्वामीजी आ चुके हैं। अब वे प्रवचन करेंगे।
- वर्ग अथवा समूह का प्रतिनिधि अपने लिए ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ का प्रयोग करता है; जैसे—
(i) शिक्षक ने कहा हमें अपने देश का गौरव बढ़ाना है।
(ii) मन्त्री ने कहा हमें अपने देश की एकता बनाए रखनी है।
(द)विशेष और विशेष की अन्विति
- विशेषण का लिंग और वचन अपने विशेष्य के अनुसार होता है; जैसे-
(i) यहाँ उदार और परिश्रमी लोग रहते हैं।
(ii) गोरे मुख पर काला तिल अच्छा लगता है।
- यदि विशेष्य एक से अधिक हों, तब भी उपर्युक्त नियम का ही अनुसरण किया जाता है; जैसे-
(i) वह गिरती-उठती बड़ी-बड़ी लहरों को निहारती रही।
- अनेक समासरहित विशेष्यों का विशेषण अपने निकटवर्ती विशेष्य के अनुसार होता है; जैसे-
(i) भोले-भाले बालक और बालिकाएँ।
(ii) भोली-भाली बालिकाएँ और बालक।
(ख) कारक अथवा परसर्ग सम्बन्धी त्रुटियाँ
कारक चिह्न ‘परसर्ग’ कहे जाते हैं। हिन्दी में कर्ता कारक के लिए ‘ने’; कर्म कारक के लिए ‘को’; करण कारक के लिए ‘से’ (सहायता), ‘द्वारा’; सम्प्रदान कारक के लिए ‘को’, ‘के लिए’; अपादान कारक के लिए में (अलग होने के अर्थ में); सम्बन्ध कारक के लिए ‘का’, ‘की’, ‘के’, ‘रा’, ‘री’, ‘रे’ तथा अधिकरण के लिए ‘भ’ और ‘पर’ परसर्ग (कारक चिह्न) का प्रयोग किया जाता है। इनका प्रयोग कारक के लक्षणों को ध्यान में रखकर हो किया जाना चाहिए; अन्यथा वाक्य में अशुद्धि उत्पन्न हो जाती है; जैसे-
(i) मैं यह काम नहीं किया।
मैंने यह काम नहीं किया।
(ii) रमेश पुस्तक को पढ़ता है।
रमेश पुस्तक पढ़ता है।
परसर्गों की सही पहचान हेतु कारकों के निम्नलिखित लक्षणों को ध्यान में रखना चाहिए–
- कर्ता कारक – जिसके द्वारा कार्य सम्पन्न किया जाता है।
- कर्म कारक-जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता हो।
- करण कारक– जो क्रिया सम्पन्न करने का साधन हो।
- सम्प्रदान कारक-जिसके लिए क्रिया की जाती है।
- अपादान कारक-जिससे अलग होने की क्रिया होती है।
- अधिकरण कारक – क्रिया जिस पर आधारित रहती है।
(ग) काल सम्बन्धी त्रुटियाँ
क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने का समय ज्ञात हो, उसे ‘काल’ कहा जाता है। इस दृष्टि से प्रत्येक काल के लिए क्रिया के निश्चित रूप का निर्धारण किया गया है, जिनका उचित प्रयोग किया जाना आवश्यक है। वाक्य में काल के अनुसार क्रियाओं का उचित प्रयोग करने के साथ ही क्रिया के वाच्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है। प्रत्येक वाक्य में कर्त्ता, कर्म और क्रिया (भाव) में से एक की प्रधानता अवश्य रहती है। क्रिया के जिस रूप के आधार पर यह ज्ञात होता है कि वाक्यगत क्रिया का प्रधान विषय कत्र्ता है, कर्म है अथवा क्रिया (भाव) है, उसे ‘वाच्य’ कहते हैं।
वाच्य तीन प्रकार के होते हैं-
- कर्तृवाच्य-जहाँ वाक्यगत क्रिया का प्रधान विषय कर्ता हो, वहाँ ‘कर्तृवाच्य’ होता है; जैसे-
(i) रमेश को ज्वर आ रहा है।
( ii) हरि ने पुस्तक पढ़ ली है।
- कर्मवाच्य-जहाँ वाक्यगत क्रिया या वाच्य का प्रधान विषय कर्म हो, वहाँ ‘कर्मवाच्य’ होता है:
(i) दवा दी गई है।
(ii) पंखा अच्छी हवा दे रहा है।
- भाववाच्य – जहाँ वाक्यगत क्रिया का प्रधान विषय क्रिया हो, वहाँ ‘भाववाच्य’ होता है; जैसे-
(i) मुझसे अब चला नहीं जाता।
(ii) सर्दियों में खूब सोया जाता है।
क्रियाओं एवं वाच्य शुद्धि से सम्बन्धित नियम निम्नलिखित है-
- क्रियाओं का प्रयोग वाक्य में दिए गए काल के अनुसार ही करना चाहिए; जैसे-पूर्ण भूतकाल में किसी वाक्य का शुद्ध रूप निम्नवत् होगा-
(i) नेता ने भाषण दिया। (अशुद्ध)
नेता भाषण दे चुका था। (शुद्ध)
उपर्युक्त वाक्य में प्रथम वाक्य सामान्य भूतकाल से सम्बन्धित है, जबकि हम नेता के द्वारा भाषण का कार्य भूतकाल में पूर्ण हो चुका दर्शाना चाहते हैं। इस दृष्टि से ‘पूर्ण भूतकाल’ (चुका था, चुकी थी, चुके थे) से सम्बन्धित दूसरा वाक्य ही शुद्ध है।
- वाक्य में जहाँ कर्म प्रधान हो, वहाँ कर्तृवाच्य सूचक क्रियाएँ प्रयुक्त नहीं करनी चाहिए; जैसे-
(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ कामायनी से ली हैं। (अशुद्ध)
प्रस्तुत पंक्तियाँ कामायनी से ली गई हैं। (शुद्ध)
- कर्म प्रधान होने पर कर्ता के उपरान्त ‘के द्वारा’ शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए; जैसे-
(i) लड़कों ने चोरों का पीछा किया गया। (अशुद्ध)
लड़कों के द्वारा चोरों का पीछा किया गया। (शुद्ध)
- कर्म प्रधान होने पर प्रेरणार्थक क्रिया का उपयुक्त प्रयोग किया जाना चाहिए; जैसे
(i) अध्यापक ने निबन्ध लिखवाया। (अशुद्ध)
अध्यापक ने निबन्ध लिखाया। (शुद्ध)
(घ) वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियाँ
वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों प्राय: निम्नलिखित कारणों से होती हैं-
- उच्चारण की भूलें – मानव की सबसे बड़ी विशेषता उसकी वाणी है। वाणी ध्वनिमय होती है और बनियाँ उच्चारण द्वारा प्रस्तुत होती है। अतः उच्चारण के मेरुदण्ड पर ही भाषा का ढाँचा खड़ा होता है। भाषा का बन्दियं और सौष्ठव उसके गठन और उच्चारण की शुद्धता पर आधारित होता है। शुद्ध उच्चारण से ही भाषा का लिखित रूप (वर्तनी) शुद्ध होता है। यही कारण है कि प्राचीनकाल में, जबकि भाषा का रूप केवल उच्चरित होता उच्चारण की शुद्धता पर विशेष बल दिया जाता था।
हिन्दी भाषा की यह विशेषता है कि वह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी जाती है और जैसी लिखी जाती है, सी ही पड़ी या बोलो भो जाती है। उच्चारण-अवयव में दोष, बोलने में असावधानी, शुद्ध उच्चारण का ज्ञान न होने, रेहुविधा-भोग अथवा क्षेत्रीय प्रभाव के कारण उच्चारण में अन्तर आ जाता है और इस भूल का निराकरण न होने तक इतनी को भूले होती रहती है।
- असावधानी अथवा जल्दबाजी – असावधानी व शीघ्रता के कारण भी अनेक प्रकार की भूले हो ती है। सामान्यतः उनकी संख्या निश्चित नहीं की जा सकती। अनेक बार बहुत अच्छी तरह से ज्ञात शब्द के (दखने में भी अशद्धि हो जाती है। जब कभी ऐसो भलो की ओर संकेत किया जाता है तो सहज उत्तर यह मिलता कि ‘जल्दी में ऐसा हो गया’। गौण का गौड़, घन का धन, पत्ता का पता लिखा जाना सामान्य बात है। इस भूल के निवारण के लिए यही कहा जा सकता है कि लेखक को सावधानी से कार्य करना चाहिए।
- मातृभाषा का अभ्यास-बच्चे का पालन-पोषण जिस भाषा क्षेत्र या उच्चारण-क्षेत्र में होता है; वह उसी में सोचता, बोलता और व्यवहार करता है। अंग्रेजी बोलनेवाला चाहे कितना अभ्यास करे, जब भी वह हिन्दी बेलेगा, उसके उच्चारण में अंग्रेजी का पुट अनजाने व अनचाहे ही आ जाएगा। यही स्थिति हिन्दी भाषा में भी होती है। (और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली व हरियाणा के निवासी कै, खै, गै बोलते हैं जबकि इसका पूर्वी अंचल में क, ख, गः का अभ्यास विकसित होता है। स्वाभाविक है कि क्षेत्र-विशेष के उच्चारण का प्रभाव लिखने पर भी पड़ेगा, परिणामतः (और इतनी में भी इस प्रकार की भूलें दिखाई देती हैं: यथा-रोटी (रोट्टी), जीने (जीन्ने), गाड़ी (गाड्डी), आलू (ब) (आत्तू) आदि।
अब हम वर्तनी सम्बन्धी विभिन्न प्रकार की भूलों और उसके शुद्ध रूपों की ओर संकेत करेंगे। वस्तुतः हंनी की शुद्धि निरन्तर अभ्यास पर निर्भर होती है। हिन्दी भाषा में वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ प्रायः निम्नलिखित प्रकार की होती है-
- स्वर या मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
- व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
- समास सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
- सन्धि सम्बन्धी अशुद्धियाँ। (
- विसर्ग सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
- हलन्त सम्बन्धी अशुद्धियाँ।
(अशुद्ध) | (शुद्ध) |
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आधीन | अधीन |
गत्यावरोध | गत्यवरोध |
कल्यान | कल्याण |
रावन | रावण |
आत्मापुरुष | आत्मपुरुष |
निरपराधी | निरपराध |
परमर्थ | परमार्थ |
अभिष्ट | अभीष्ट |
निस्वार्थ | निःस्वार्थ |
दुख | दुःख |
जगत | जगत् |
श्रीमान | श्रीमान् |