वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1▼
प्रश्न 1. विश्व व्यापार संगठन क्या है? इसके क्या कार्य हैं?
अथवा विश्व व्यापार संगठन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : 30 अक्टूबर, 1947 ई० को विश्व के अनेक देशों ने GATT नामक एक बहुपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। तब से लेकर दिसम्बर 1994 ई० तक गैट के अन्तर्गत वार्त्ताओं के आठ दौर सम्पन्न हुए। गैट का आठवाँ दौर बहुचर्चित एवं विवादास्पद रहा क्योंकि इसमें वस्तुओं के व्यापार के साथ-साथ सेवाओं, बौद्धिक सम्पदाओं आदि के सम्मिलित किए जाने के लिए विकसित देशों की ओर से काफी दबाव पड़ा। अन्ततः 15 अप्रैल, 1995 ई० को मराकश (मोरक्को) में समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसके द्वारा नये विषयों को भी विश्व व्यापार के क्षेत्र में सम्मिलित कर लिया गया और विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना की अनुशंसा की गई।
विश्व व्यापार संगठन ने 1 जनवरी, 1995 ई० से कार्य करना आरम्भ कर दिया। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। वर्ष 2015 में विश्व व्यापार संगठन की सदस्य संख्या 16-4 हो गई थी। अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य राष्ट्र बना। कार्य-विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कुछ कार्यों का उल्लेख निम्नवत् किया जा सकता है-
(1) विश्व व्यापार समझौता एवं बहुपक्षीय तथा बहुवचनीय समझौतों के कार्यान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधाएं प्रदान करना।
(2) व्यापार एवं प्रशुल्क से सम्बन्धित किसी भी भावी मसले पर सदस्यों के बीच विचार-विमर्श हेतु एक मंच के रूप में कार्य करना।
(3) विवादों के निपटारे से सम्बन्धित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना।
(4) व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना।
(5) वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण से अधिक सामंजस्य भाव लाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक से सहयोग करना।
(6) विश्व संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।
प्रश्न 2. प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार बढ़ावा दिया है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: विगत 50 वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में अत्यधिक उन्नति हुई है। इसने लम्बी दूरियों तक वस्तुओं की तीव्र आपूर्ति को कम लागत पर सम्भव किया है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ने विश्व में सेवाओं के उत्पादन का विस्तार किया है। दूरसंचार सुविधा (टेलीग्राफ, टेलीफोन, मोबाइल फोन, फैक्स) और उपग्रह संचार का उपयोग विश्व में एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों से संवाद करने में प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण- लन्दन में पाठकों के लिए प्रकाशित एक समाचार-पत्र है, जिससे दिल्ली में डिजाइन और मुद्रित किया गया है। पत्रिका का पाठ लन्दन ने इण्टरनेट द्वारा दिल्ली के कार्यालय तक भेजा जाता है। दिल्ली कार्यालय में डिजाइनर दूरसंचार सुविधाओं का उपयोग करके लन्दन कार्यालय से पत्रिका के डिजाइन के विषय में निर्देश प्राप्त करते हैं, फिर छपाई के बाद पत्रिकाओं को लन्दन भेजा जाता है।
प्रश्न 3. श्रम कानूनों में लचीलापन कम्पनियों को कैसे मदद करेगा?
उत्तरः श्रम कानूनों में लचीलापन कम्पनियों को निम्न प्रकार मदद करेगा-
(1) कम्पनियों श्रमिकों को अपनी शर्तों पर रोजगार देगी।
(2) कम्पनियों मजदूरी को उत्पादकता से सम्बद्ध कर सकती हैं।
(3) बड़ी विदेशी ताकतों, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों व देश की केन्द्र एवं राज्य सरकारों के सहयोग एवं समर्थन के कारण श्रम संगठन कमजोर बन जाएंगे और वे कम्पनियों पर अनुचित दबाव नहीं डाल सकेंगे।
(4) कम्पनियाँ आवश्यकतानुसार श्रमिको को नियुक्त कर सकेंगी और आवश्यकता न होने पर उन्हें नौकरी से बाहर कर सकेगी। इससे श्रमिकों की नौकरी की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
(5) असंगठित क्षेत्रक में कार्यरत कम्पनियों पर श्रम कानून लागू ही नहीं होते। ऐसी कम्पनियाँ मजदूरों को वे सब सुविधाएँ नहीं देतीं जो संगठित क्षेत्रक में कार्यरत कम्पनियाँ देती हैं।
प्रश्न 4. भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगाने के क्या कारण थे? इन अवरोधकों को सरकार क्यों हटाना चाहती थी?
उत्तर: भारत सरकार ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर अवरोधक लगा दिए थे। ये अवरोधक 1991 ई० तक लगे रहे। इन अवरोधकों को लगाने के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
(1) भारत एक विकासोन्मुखी देश है। सरकार जानती थी कि यहाँ उद्योग; लघु व वृहत उद्योगः विदेशी प्रतिस्पर्द्धा का सामना नहीं कर सकते अतः इन्हें संरक्षण देना आवश्यक था।
(2) भारत सरकार भारतीय बाजारों पर विदेशी कम्पनियों का प्रभुत्व होने देना नहीं चाहती थी।
(3) विदेशी पूँजी मुख्यतः शर्तसहित (Tied) थी जो केवल उन क्षेत्रों में आना चाहती थी जो अधिक लाभप्रद थे।
(4) सरकार घरेलू बचत एवं निवेश को प्रोत्साहन देना चाहती थी।
सरकार इन अवरोधकों को धीरे-धीरे हटा रही है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(1) भारत ने 1991 ई० से नई आर्थिक नीति अपनाई। यह नीति वैश्वीकरण एवं उदारीकरण पर आधारित है। इस नीति के आधारभूत तत्त्व हैं- विदेशी आयातों को प्रोत्साहन देना, भारतीय वस्तुओं और सेवाओं को विदेशों में भेजना, आयात करों में ढील देना, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रम, पूँजी तथा प्रौद्योगिकी का आवागमन।
(2) विश्व व्यापार संगठन विभिन्न देशों के मध्य व्यापार अवरोधकों को हटाने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रश्न 5. प्रतिस्पर्द्धा से भारत के लोगों को कैसे लाभ हुआ है?
उत्तर : प्रतिस्पर्द्धा से भारत के लोगों को निम्नलिखित लाभ हुए हैं-
(1) उपभोक्ताओं को उत्तम कोटि की वस्तुएँ कम कीमत पर उपलब्ध होने लगी हैं।
(2) विभिन्न प्रकार की कम्पनियों के विस्तार के लिए नये-नये अवसरों का सृजन किया जाने लगा है।
(3) अनेक शीर्ष भारतीय कम्पनियों ने नवीनतम प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रणाली में निवेश किया है और अपने उत्पादन मानकों को ऊँचा उठाया है। अनेक भारतीय कम्पनियाँ विश्व स्तर पर अपने क्रियाकलापों का विस्तार कर रही है।
(4) विगत वर्षों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है।
(5) उन क्षेत्रकों में जहाँ नये उद्योग स्थापित हुए हैं, रोजगार के नये अवसरों का सृजन हुआ है।
(6) इन उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों का भी विस्तार हुआ है।
प्रश्न 6. व्यापार अवरोधक क्या है? सरकार इनका प्रयोग क्यों करती है?
उत्तर : किसी भी आयात पर कर लगाना व्यापार अवरोधक का एक उत्तम उदाहरण है। इसे अवरोधक इसलिए कहा गया है क्योंकि यह कुछ प्रतिबन्ध लगाता है। सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेश व्यापार में वृद्धि या कटौती (नियमित करने) करने और देश में आयात की जाने वाली वस्तुओं के प्रकार व उनकी मात्रा का निर्णय करने के लिए कर सकती हैं।
प्रश्न 7. वैश्वीकरण क्या है? इसका कोई एक लाभ लिखिए।
अथवा वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : विभिन्न देशों के मध्य परस्पर सम्बन्ध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया वैश्वीकरण है। इसका एक लाभ यह है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का भारत में निवेश बढ़ा है।
प्रश्न 8. भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए कोई तीन उपाय सुझाइए।
उत्तर : विदेशी निवेश को आकर्षित करने वाले तीन उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) विदेशी निवेश को संरक्षण देना चाहिए।
(2) साख की सुविधाओं में शिथिलता देनी चाहिए।
(3) उद्योग स्थापना के अवरोधों को हटाना चाहिए।
प्रश्न 9. विदेश व्यापार से आप क्या समझते हैं? विदेश व्यापार को अनुकूल बनाने के लिए कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर : विदेश व्यापार– जब एक देश अपनी सीमा से बाहर जाकर दूसरे देशो में व्यापार करता है तो उसे विदेश व्यापार कहते हैं। अर्थात् जब दो देश आपस में वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात-निर्यात करते हैं तब उसे विदेश व्यापार कहा जाता है।
विदेश व्यापार को अनुकूल बनाने के उपाय – विदेश व्यापार को अनुकूल बनाने के उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा देना।
(2) विदेशों में पर्याप्त माँग वाले बाजारों की खोज।
(3) देशों से आयांत होने वाली वस्तुओं का अपने देश में ही उत्पादन करने का प्रयास करना।
(4) अनुसन्धान को बढ़ावा देना।
(5) आयात-निर्यात नीति का सरलीकरण करना।
प्रश्न 10. प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपयोग कैसे हुआ है?
उत्तर : (1) संसाधनों का अधिक उपयोग प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास से सम्बन्धित है। प्रौद्योगिकी के विकास के कारण संसाधनों का दोहन भारी पैमाने पर सम्भव हुआ तथा आर्थिक विकास के लिए अधिक-से-अधिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ी।
(2) संसाधनों की उपलब्धता अपने आप में विकास का कारण नहीं बन सकती, जब तक कि उसे उपयोग में लाने लायक प्रौद्योगिकी अथवा कौशल का विकास नहीं किया जाए। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी का विकास होता गया संसाधनों का दोहन भारी पैमाने पर किया जाने लगा।
(3) जितना अधिक संसाधनों का दोहन हुआ आर्थिक विकास भी उतना आगे बढ़ा।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. विकसित देश, विकासशील देशों से उनके व्यापार और निवेश का उदारीकरण क्यों चाहते हैं?
उत्तर : सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रतिबन्धों को हटाने की प्रक्रिया को उदारीकरण कहते हैं। व्यापार के उदारीकरण से व्यापारियों को स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने की अनुमति मिल जाती है कि वे क्या आयात और क्या निर्यात करना चाहते हैं। सरकार व्यापार पर पहले की तुलना में कम नियन्त्रण रखती है और में इसीलिए उसे अधिक उदार कहा जाता है। कुछ अत्यधिक प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठन व विकसित देश यह चाहते हैं कि विकासशील देश (भारत सहित) उनके व्यापार एवं निवेश के लिए उदारीकरण की नीति अपनाएँ। वे मानते हैं कि विदेश व्यापार एवं विदेशी निवेश पर सभी अवरोधक हानिकारक हैं, अवरोधक हटाकर स्वतन्त्र व्यापार होना व चाहिए। विकसित देशों की पहल पर स्थापित विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। व्यवहार में विश्व व्यापार संगठन के नियमों ने विकासशील देशों को व्यापार अवरोधों को हटाने के लिए विवश किया है; उदाहरण के लिए भारत में अधिकांश रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद का महत्त्वपूर्ण भाग कृषि क्षेत्र प्रदान करता है। इसकी तुलना में अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में ‘कृषि का हिस्सा मात्र 1 प्रतिशत और कुल रोजगार में मात्र 0-5 प्रतिशत है। फिर भी अमेरिका के कृषि क्षेत्र में कार्यरत इतने कम प्रतिशत लोग भी – अमेरिकी सरकार से उत्पादन और दूसरे लोगों से निर्यात करने के लिए बहुत अधिक धनराशि प्राप्त करते हैं। इस भारी धनराशि के कारण अमेरिकी किसान अपने कृषि उत्पादों को असाधारण रूप से कम कीमत पर बेच सकते हैं। अधिशेष कृषि उत्पादों को दूसरे देशों के बाजारों में कम कीमत पर बेचकर विकासशील देश के कृषकों को बुरी तरह प्रभावित किया है। अपने अधिशेष को विकासशील देशों में बेचने के लिए वे व्यापार अवरोधकों को हटवाना चाहते हैं।
यद्यपि विश्व व्यापार संगठन सभी देशों को स्वतन्त्र व्यापार की सुविधा देता है तथापि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विकसित देशों ने अनुचित ढंग से व्यापार अवरोधकों को अभी भी बरकरार रखा है। अतः यह न्यायपूर्ण है कि विकासशील देश भी विकसित देशों से व्यापार एवं निवेश के उदारीकरण की माँग करें। जब विकासशील देशों ने विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार व्यापार अवरोधकों को कम कर दिया है तो विकसित देश ऐसा क्यों न करें।
प्रश्न 2. “वैश्वीकरण का प्रभाव एकसमान नहीं है।” इस कथन की अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
अथवा वैश्वीकरण के सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव बताइए।
अथवा उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति अपनाने के फलस्वरूप भारत में आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
वैश्वीकरण का प्रभाव
वैश्वीकरण का प्रभाव सर्वत्र अथवा सभी वर्गों पर एकसमान नहीं पड़ा है। दूसरे शब्दों में, यह सभी के लिए लाभप्रद नहीं है। कुछ वर्गों एवं क्षेत्रकों पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा है, जबकि कुछ वर्गों एवं क्षेत्रकों पर इसका प्रतिकूल एवं हानिकारक प्रभाव भी पड़ा है। अनेक लोग वैश्वीकरण के लाभों से वंचित रह गए हैं। उपर्युक्त कथन की व्याख्या हम निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं-
1.सकारात्मक प्रभाव
विभिन्न वर्गों पर वैश्वीकरण के निम्नलिखित सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं-
- उत्पादकों पर प्रभाव – स्थानीय एवं विदेशी उत्पादकों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा बढ़ी है। इससे शहरी क्षेत्र के धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। उन्हें कम कीमत पर अच्छी किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध होने लगी हैं। फलस्वरूप उनका जीवनस्तर भी उच्च हुआ है।
- निवेशकों पर प्रभाव – बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए भारत में निवेश करना लाभप्रद रहा है। स्थानीय एवं बाह्य निवेशकों ने विभिन्न उद्योगों एवं सेवाओं में निवेश बढ़ाया है। इन उद्योगों एवं सेवाओं में नये रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं। इसके अतिरिक्त इन उद्योगों को आदाओं की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कम्पनियाँ भी समृद्ध हुई हैं।
- भारतीय कम्पनियों पर प्रभाव– अनेक शीर्ष भारतीय कम्पनियाँ बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा से लाभान्वित हुई हैं। इन कम्पनियों ने नवीनतम प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रणाली में निवेश किया व अपने उत्पादन मानकों को ऊँचा किया। कुछ कम्पनियों ने विदेशी कम्पनियों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग कर लाभ अर्जित किया। दूसरे वैश्वीकरण ने कुछ बड़ी भारतीय कम्पनियों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में उभरने के योग्य बनाया; जैसे- टाटा मोटर्स, इन्फोसिस, रैनबैक्सी आदि। तीसरे, वैश्वीकरण ने सेवाप्रदाता कम्पनियों विशेषकर सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नये अवसरों का सृजन किया है।
II. नकारात्मक प्रभाव
विभिन्न वर्गों पर वैश्वीकरण के निम्नलिखित नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं-
(1) प्रतिस्पर्द्धा के कारण छोटे विनिर्माताओं पर कड़ी मार पड़ी है। अनेक इकाइयाँ बन्द हो गईं और बड़ी संख्या में श्रमिक बेरोजगार हो गए।
(2) अधिकांश नियोक्ता श्रमिकों को रोजगार देने में लचीलेपन की नीति अपनाने लगे है। इससे श्रमिकों का रोजगार सुनिश्चित एवं सुरक्षित नहीं रह गया है।
(3) नियोक्ता श्रम लागतों में निरन्तर कटौती करने का प्रयास कर रहे हैं। वे कम वेतन पर श्रमिकों से अधिक समय तक काम ले रहे हैं। दूसरे, लाभ का
न्यायसंगत हिस्सा श्रमिकों को नहीं दिया जाता है
(4) संगठित क्षेत्रक में कार्य दशाएँ अधिकांशतः असंगठित क्षेत्रक की भाँति होती जा रही हैं।
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण का प्रभाव सभी क्षेत्रकों/वर्गों पर एक समान नहीं रहा है। कुछ क्षेत्रक/वर्ग इससे लाभान्वित हुए है, जबकि कुछ क्षेत्रको वर्गों पर इसका हानिकारक प्रभाव पड़ा है।
प्रश्न 3. ‘वैश्वीकरण’ क्या है? वैश्वीकरण को सम्भव बनाने वाले कारकों का विवरण दीजिए।
अथवा वैश्वीकरण क्या है? विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने में कैसे सहायक हो रहा है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
अथवा बहुराष्ट्रीय कम्पनी (MNC) से क्या तात्पर्य है? ये कम्पनियाँ किस प्रकार विभिन्न देशों में अपने उत्पादों का प्रसार करती हैं और स्थानीय उत्पादकों के साथ पारस्परिक सम्पर्क स्थापित करती हैं।
अथवा विश्व अर्थव्यवस्था ने कैसे स्थान ग्रहण किया? इसमें तकनीक का क्या योगदान है?
उत्तर :
वैश्वीकरण का अर्थ
विभिन्न देशों के बीच परस्पर सम्बन्ध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्वीकरण है। इस प्रक्रिया में एक देश की अर्थव्यवस्था विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओ के साथ एकीकृत हो जाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका अर्थ इससे भी अधिक है। भारत के सन्दर्भ में वैश्वीकरण के अन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-
अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोलना, नियन्त्रणो को धीरे-धीरे कम करना, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को निवेश सुविधाएँ प्रदान करना, मात्रात्मक प्रतिबन्धों को धीरे-धीरे समाप्त करना, आयात उदारीकरण कार्यक्रमों को व्यापक आधार पर लागू करना तथा निर्यात संवर्द्धन को प्रोत्साहित करना। 1991 ई० की औद्योगिक नीति के फलस्वरूप विश्वव्यापीकरण को प्रोत्साहन मिला है।
विदेश व्यापार घरेलू बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादको को एक अवसर प्रदान करता है। इस प्रक्रिया में उत्पादक केवल अपने देश के बाजारों में ही अपने उत्पाद नहीं बेच सकते हैं बल्कि अन्य देशों के बाजारों से भी प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं। इसी प्रकार दूसरे देशो में उत्पादित वस्तुओं का आयात कर सकते हैं।
सामान्यतः व्यापार के खुलने से वस्तुओं का एक बाजार से दूसरे बाजार में आवागमन होता है। बाजार मे वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं। दो बाजारों में एक ही वस्तु का मूल्य एकसमान होने लगता है। अब दो देशों के उत्पादक हजारों मील दूर होकर भी एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इस प्रकार विदेश व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ने या उनके एकीकरण में सहायक होता है; उदाहरण के लिए भारत में सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, सॉफ्टवेयर, इन्जीनियरिंग उपकरणों का बहुतायत में उत्पादन होता है। विश्व के विभिन्न देशों में इन वस्तुओं का निर्यात किया जाएगा, यदि वे इनकी माँग करते हैं। दूसरी तरफ भारत में खाद्य तेल, खनिज तेल व जीवनरक्षक दवाइयों की कमी भी है। ये वस्तुएँ भारत में विभिन्न देशों से आयात की जाएँगी। इस प्रकार विदेश व्यापारं से विभिन्न देशों के बाजारों के एकीकरण में सहायता मिलेगी।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से अभिप्राय– बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ऐसी कम्पनियों हैं जो अनेक देशों में अपनी शाखाएँ स्थापित करती हैं ताकि वे उत्पादन पर अधिक-से-अधिक अपना नियन्त्रण या स्वामित्व स्थापित कर सकें।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भूमिका
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उसी स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं जो बाजार के नजदीक हो, जहाँ कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम उपलब्ध हो। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों इन देशों की स्थानीय कम्पनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कम्पनी को दोहरा लाभ होता है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ स्थानीय कम्पनियों को खरीदकर उसके बाद उत्पादन का प्रसार करती हैं। अपार सम्पदा वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों आसानी से स्थानीय
कम्पनियों को खरीद लेती है।
विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों छोटे उत्पादकों को उत्पादन का ऑर्डर देती हैं। वस्त्र, जूते-चप्पल एवं खेल का सामान ऐसे उद्योग है जिनका विश्वभर में बड़ी संख्या में छोटे उत्पादकों द्वारा उत्पादन किया जाता है। बहुराष्ट्रीय
कम्पनियाँ फिर इन्हें अपने ब्राण्ड नाम से ग्राहकों को बेचती है।
प्रश्न 4. भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर: भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्वीकरण का महत्त्व
विभिन्न देशों के मध्य तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया, वैश्वीकरण कहलाती है। इस प्रक्रिया में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ प्रमुख भूमिका निभा रही है। भारत में वैश्वीकरण से शहरी क्षेत्र के धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प मिले हैं। उपभोक्ता उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली वस्तुओं को कम कीमत पर प्राप्त कर पा रहे हैं। स्पष्ट है कि प्रतिस्पर्धी बाजार की गतिविधियों ने लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाया है। अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अधिक निवेश किया है जिससे उद्योगों व सेवाओं में नए रोजगारों का सृजन हुआ है। उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाली छोटी कम्पनियाँ भी समृद्ध हुई हैं। वैश्वीकरण ने सेवा प्रदाता कम्पनियों विशेषकर सूचना और संचार प्रौद्योगिकी वाली कम्पनियों के लिए नए अवसरों का सृजन किया है। लेखाकरण, डेटा एण्ट्री, प्रशासनिक कार्य, जैसी अनेक सेवाएँ अब भारत जैसे देशों में सस्ते में उपलब्ध हैं।
प्रश्न 5. भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर : भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं-
(1) वैश्वीकरण के कारण अधिक उत्पादित होने वाली वस्तुओं को अन्य देशों को बेचकर अच्छे दाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
(2) विभिन्न फसलों की माँग बढ़ने से भारत में इन चीजों का अधिक उत्पादन होने लगा।
भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव इस प्रकार हैं-
(1) कृषि के वैश्वीकरण ने व्यापारिक कृषि को बढ़ावा दिया। किसानों ने वही वस्तु पैदा की जिसकी बाजार में माँग थी न कि जनता की जरूरत को पूरा करने वाली वस्तुओं का उत्पादन किया।
(2) कृषि के वैश्वीकरण के कारण छोटे किसानों को कृषि कार्य, छोड़ना पड़ा क्योंकि वे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में टिक नहीं पाए।
वैश्वीकरण और उदारीकरण के अन्तर्गत 1990 के बाद से देश के किसानों को अनेक नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। विश्व में चावल, चाय, कपास, कॉफी, जूट आदि का प्रमुख उत्पादक देश होने के बाद भी भारत विकसित देशों से स्पर्द्धा करने में स्वयं को समर्थ नहीं पा रहा है क्योंकि विश्व के विकसित देशों में कृषि क्षेत्रों को अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है। ऐसे में यदि भारतीय कृषि की दशा सुधारनी है तो इसके लिए सरकार संरक्षण अपेक्षित है।