वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1▼
प्रश्न 1. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
- (क) कोपरा (COPRA) 1986,
- (ख) आई०एस०ओ०।
उत्तर : (क) कोपरा (COPRA) 1986 – सन् 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून का बनना था, जो COPRA के नाम से प्रसिद्ध है। कोपरा अधिनियम ने केन्द्र और राज्य सरकारों के उपभोक्ता मामले अलग-अलग विभागों को स्थानान्तरित करने में मुख्य भूमिका का निर्वाह किया है।
(ख) आई०एस०ओ० (ISO) – इसका पूरा नाम इण्टरनेशनल ऑरगेनाइजेशन फॉर स्टेण्डर्डाइजेशन है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय संरचना है और विभिन्न देशों में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से कार्य करती है। इसका गठन 23 फरवरी, 1947 को हुआ था। यह औद्योगिक और वाणिज्यिक संस्थाओं को उनके मानक तय कर प्रमाणपत्र उपलब्ध कराती है।
प्रश्न 2. बाजार में नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता क्यों पड़ती है? कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
उत्तर: बाजार में हमारी भागीदारी उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है। उत्पादक के रूप में हम कृषि, उद्योग अथवा सेवा क्षेत्र में कार्यरत हो सकते हैं। उपभोक्ता के रूप में हमारी भागीदारी बाजार में तब होती है जब हम अपनी आवश्यकतानुसार बाजार में वस्तुओं अथवा सेवाओं को खरीदते हैं। बाजार में उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि अकेला उपभोक्ता प्रायः स्वयं को कमजोर स्थिति में पाता है। खरीदी गई वस्तु अथवा सेवा के बारे में जब भी कोई शिकायत होती है तो विक्रेता सारा दायित्व क्रेता पर डालने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्त बाजार में उत्पादक एवं विक्रेता उपभोक्ताओं का भरपूर शोषण करने का प्रयास करते हैं। विक्रेता उचित वजन से कम तौलते हैं, व्यापारी अनेक शुल्कों को भी बाद में जोड़ देते हैं तथा वस्तुओं में मिलावट कर देते हैं। बड़ी कम्पनियाँ तो चालाकीपूर्वक बाजार को प्रभावित करने में सफल हो जाती है। वे उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए गलत सूचनाएँ प्रसारित करती हैं जो बाद में झूठी सिद्ध होती हैं। अतः उपभोक्ताओं का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए नियमों एवं विनियमों की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 3. उपभोक्ता का शोषण किस प्रकार किया जाता है? इसकी रोक के लिए सरकार ने क्या उपाय किया है?
अथवा वे कौन से तरीके हैं? जिनके द्वारा बाजार में लोगों का शोषण हो सकता है?
उत्तर: उपभोक्ता का शोषण बाजार में लोगों का शोषण विभिन्न तरीको से हो सकता है। कुछ मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं-
(1) साहूकार कर्जदार पर विभिन्न प्रकार के बन्धन लगा देते हैं। वे उत्पादक को निम्न दर पर उत्पाद बेचने के लिए मजबूर कर देते हैं। वे ऋण चुकाने के लिए जमीन बेचने को भी विवश कर सकते हैं।
(2) व्यापारी/उत्पादक कपटपूर्ण एवं अनुचित व्यापार व्यवहार द्वारा उपभोक्ताओं का भरपूर शोषण करते हैं।
(3) व्यापारी वस्तु को वजन में कम तौलते हैं, इसके अतिरिक्त उन शुल्को को जोड़ देते हैं जिनका वर्णन पहले नहीं किया गया है अथवा उत्पादों में मिलावट कर देते हैं।
उपभोक्ता के हितों को संरक्षित करने के लिए एक बड़े कदम के रूप में देश मे सन् 1986 ई० में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। इसकी
आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से पड़ी-
(1) उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करने के लिए,
(2) वस्तुओं के मूल्यों पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए,
(3) उत्पादकों को सही और उत्तम कच्चे माल का उपयोग करते हुए अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन करने हेतु प्रोत्साहन देने के लिए।
उपभोक्ता के चार अधिकार निम्नलिखित हैं-
- शोषण के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार- अनुचित तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार, स्वतन्त्र प्रतियोगिता को समाप्त करके समाज के हितों की उपेक्षा करते हैं और उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों से बचित रखते हैं। अनुचित व्यापार व्यवहार है- भ्रामक विज्ञापन, नकली अथवा मिलावटी वस्तुओं का विक्रय, नाप-तौल में कमी, अनुचित आश्वासन, मुनाफाखोरी, जमाखोरी व कालाबाजारी आदि। इन व्यवहारों के माध्यम से व्यवसायी व्यापक रूप से उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। अतः उपभोक्ताओं को ऐसे शोषण के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986’ इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।
- स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के संरक्षण का अधिकार– अनेक वस्तुएँ असुरक्षित होती हैं तथा उनके प्रयोग में अनेक जोखिम भी निहित होते हैं। उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओ के विक्रय के विरुद्ध संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि उपभोक्ताओं को वस्तुओं के गुण, विश्वसनीयता तथा कार्य निष्पादन सम्बन्धी आश्वासन दिया जाना चाहिए तथा असुरक्षित वस्तुओं के विरुद्ध उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पारित अधिनियमो का कठोरता से क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।
- सूचित किए जाने का अधिकार- उपभोक्ताओं को वस्तुओं या सेवाओं के गुण, कार्य निष्पादन के स्तर, उत्पादन के उपादानों, वस्तुओं की शुद्धता एवं ताजगी, वस्तु के सम्भावित पार्श्व प्रभाव तथा अन्य सम्बन्धित तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। वस्तु के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् उपभोक्ता क्रय सम्बन्धी उचित निर्णय ले सकता है।
- सुनवाई किए जाने का अधिकार- उपभोक्ताओं को यह अधिकार है कि उत्पादक एवं वितरक उनकी शिकायतों को सुने। यह एक महत्त्वपूर्ण अधिकार है क्योंकि इसके अभाव में अन्य अधिकार निरर्थक हैं। यह अधिकार उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण हेतु आवश्यक है।
प्रश्न 4. उपभोक्ता इण्टरनेशनल क्या है?
उत्तर: उपभोक्ता इण्टरनेशनल एक वैश्विक महासंघ है जो दुनिया भर के उपभोक्ताओं के समूहों से बना है। इसका उद्देश्य उपभोक्ता संरक्षण के अन्तर्राष्ट्रीय आधार के रूप में उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा, प्रचार, विकास करना है। इस संघ का दावा है कि यह उपभोक्ताओं के अधिकारों को सशक्त बनाने के लिए 100 से अधिक देशों में 200 से अधिक सदस्य संगठनों को एक साथ लाते हैं।
प्रश्न 5. उपभोक्ता जागरूकता हेतु कोई चार उपाय सुझाइए।
उत्तर -उपभोक्ता जागरूकता हेतु चार उपाय निम्नलिखित है-
(1) उपभोक्ताओं को वस्तुओं व सेवाओं के बारे में समुचित ज्ञान व निपुणता प्राप्त करने हेतु प्रेरित करना।
(2) उपभोक्ताओं को सूचना पाने के अधिकार से अवगत कराना जिससे वे वस्तु व सेवा के प्रति सही निर्णय ले सकें।
(3) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की जानकारी देना।
(4) चुनने का अधिकार, सुने जाने का अधिकार, सुरक्षा के अधिकार, न्याय पाने का अधिकार आदि से अवगत कराना।
प्रश्न 6. उपभोक्ता के कुल कितने अधिकार होते हैं? सभी अधिकारों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – कोपरा एक्ट के अन्तर्गत उपभोक्ता को निम्नलिखित छह अधिकार है-
(1) सुरक्षा का अधिकार।
(2) वस्तुओं और सेवाओं के बारे में सूचना का अधिकार।
(3) चयन का अधिकार।
(4) सुनवाई का अधिकार।
(5) निवारण का अधिकार।
(6) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
प्रश्न 7. आई०एस०आई० और एगमार्क क्या हैं? दो कारणों का वर्णन कीजिए, जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
उत्तर– वस्तुओं का मानकीकरण
भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए तथा उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उपलब्ध कराने के लिए मानकीकरण (Standardization) का प्रावधान किया है। इस प्रावधान के अन्तर्गत सरकार द्वारा उपभोग की वस्तुओं, उपकरणों, खाद्य पदार्थों तथा आभूषणो आदि के स्तर को निर्धारित करने की व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ मानक संस्थान स्थापित किए गए हैं। ये संस्थान उत्पादकों द्वारा उत्पादित किए गए उत्पादनों की जांच-पड़ताल करके उनके स्तर का निर्धारण करते हैं। यदि सम्बन्धित उत्पादन संस्थान के मानक स्तर पर खरा उतरता है तो उसे मानक संस्थान द्वारा निर्धारित चिह इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी जाती है।
उपभोक्ताओं के लिए ये चिह्न विशेष उपयोगी सिद्ध होते है। कोई भी उपभोक्ता मानक चिह्नों को देखकर सम्बन्धित वस्तु की गुणवत्ता तथा स्तर के प्रति आश्वस्त हो सकता है। हमारे देश में प्रमुख मानक संस्थान है- भारतीय मानक संस्थान (Indian Standard Institution या IS.L.)।
भारतीय मानक संस्थान (I.S.1.)
वास्तव में, कोई भी उपभोक्ता दिन-प्रतिदिन की वस्तुएँ खरीदते समय कुछ बाते देखना चाहता है। जैसे- वस्तु की गुणवत्ता, विश्वसनीयता तथा सुरक्षा। सामान्य उपभोक्ता अपनी आवश्यकता की वस्तुओं में इन वस्तुओं की स्वयं आँच नहीं कर सकता। ‘भारतीय मानक संस्थान’ सामान्य उपभोक्ता को इन तथ्यों की जानकारी प्रदान करता है तथा उसे आश्वस्त करता है। भारतीय मानक संस्थान का चिढ़ L.S.1. है। L.S.I. चिह्न वाली वस्तु या उपकरण को ही खरीदना उचित है। सामान्य रूप से इन वस्तुओ को विश्वसनीय माना जाता है। यदि इस चिह्न से युक्त वस्तु या उपकरण में कोई दोष या खराबी होती है तो उस स्थिति में उपभोक्ता उसकी शिकायत कर सकता है। उपभोक्ता द्वारा विधिवत् की गई शिकायत की संस्थान द्वारा जाँच-पड़ताल की जाती है। यदि सम्बन्धित शिकायत को उचित पाया जाता है तथा सम्बन्धित वस्तु या उपकरण को निर्धारित स्तर से निम्न स्तर का पाया जाता है तो उपभोक्ता की क्षतिपूर्ति के आदेश दिए जाते हैं।
एगमार्क मानकीकरण
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा तथा समुचित आश्वासन के लिए एक मानकीकरण या प्रमापीकरण का प्रावधान है, जिसे ‘एगमार्क मानकीकरण’ (The Agmark Standards) के नाम से जाना जाता है। इस मानक स्तर की स्थापना भारत सरकार के ‘मार्केटिंग एण्ड इन्स्पेक्शन निदेशालय’ (Directorate of Marketing and Inspection of Government of India) द्वारा की गई है। इस मानकीकरण के अन्तर्गत मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के स्तर का निर्धारण किया जाता है। सामान्य रूप से खाद्यान्नों, मसालों, तेल के बीजों, तेलों, मक्खन, घी, फलियों तथा अण्डों और उनके उत्पादनों की गुणवत्ता को प्रमाणित करने के लिए ‘एगमार्क’ का चिह्न प्रदान किया जाता है। यह संस्थान खाद्य पदार्थों की शुद्धता एवं गुणवत्ता की जाँच करके उन्हें श्रेणीबद्ध करता है। कोई भी उपभोक्ता खाद्य पदार्थों को खरीदते समय उन पर अंकित ‘AGMARK’ के चिह्न को देखकर वस्तु की गुणवत्ता के प्रति आश्वस्त हो सकता है।
उपभोक्ताओं का शोषण – उपभोक्ताओं का शोषण निम्न रूप में हो सकता है-
(1) घटिया या नकली वस्तु का विक्रय,
(2) वस्तु के मूल्य में अनावश्यक वृद्धि दर्शाना,
(3) वस्तुओं में मिलावट,
(4) माप-तौल में ईमानदारी न रखना आदि।
प्रश्न 8. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
- मानक उत्पादों की कमी की समस्या।
- भ्रामक विज्ञापनों की समस्या।
उत्तर : 1. मानक उत्पादों की कमी की समस्या
हमारे उपभोग की कुछ वस्तुएँ ऐसी भी हैं जिनका उच्चस्तरीय होना आवश्यक होता है। इसके लिए सरकार ने कुछ मानक (Standards) निर्धारित किए हैं। मानक वस्तुएँ एवं उपकरण सुरक्षित व टिकाऊ माने जाते हैं। व्यवहार में देखा जाता है कि अनेक आवश्यक वस्तुएँ एवं उपकरण निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं होते। इस स्थिति में उपभोक्ताओं को घटिया तथा निम्न स्तर की वस्तुएँ एवं उपकरण लेने पड़ते हैं जोकि आगे चलकर परेशानी एवं हानि का कारण बनते हैं।
II. भ्रामक विज्ञापनों की समस्या
वर्तमान युग विज्ञापनों का युग है। आज सभी उत्पादक बड़े-बड़े विज्ञापनों के माध्यम से अपने उत्पादों की गुणवत्ता को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। ये विज्ञापन यथार्थ न होकर भ्रामक होते हैं। अनेक उत्पादक अपने भ्रामक विज्ञापनों द्वारा अनुचित ढंग से उपभोक्ताओं की भावनाओं को भड़काकर अपने उत्पाद बेचने में सफल हो जाते हैं। इससे भिन्न, भ्रामक विज्ञापनों द्वारा ही गुणरहित अथवा आंशिक गुणों वाले उत्पादों को भी बेच दिया जाता है। इन विज्ञापनों से प्रेरित होकर सम्बन्धित वस्तुओं को खरीदने वाले उपभोक्ता बाद में अपने आप को ठगा गया महसूस करते हैं और निराश होते हैं।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत किन कारणों से हुई? इसके विकास के बारे में पता लगाएँ।
अथवा उपभोक्ता आन्दोलन के कारण बताइए।
उत्तर : भारत में उपभोक्ता आन्दोलन की शुरुआत उपभोक्ताओं के असन्तोष के कारण हुई क्योंकि विक्रेता अनेक अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में सम्मिलित होते थे। बाजार में उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। किसी दुकानदार अथवा ब्राण्ड से असन्तुष्ट होने पर वह स्वयं दुकान अथवा ब्राण्ड बदल देता था। यह माना जाता था कि यह उपभोक्ता का उत्तरदायित्व है कि वह किसी वस्तु अथवा सेवा को खरीदते समय पूर्ण सावधानी बरते। उपभोक्ताओं को इस दृष्टि से जागरूक बनाने में अनेक वर्ष लग गए। धीरे-धीरे वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी विक्रेताओं पर डाल दी गई।
इस प्रकार ‘सामाजिक बल’ के रूप में उपभोक्ता का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ। खाद्यान्नों की कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट आदि के कारण साठ के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आन्दोलन का उदय हुआ। 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ व्यापक स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बन्धित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी के आयोजन का कार्य करने लगी थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़भाड़ और राशन की दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नजर रखने के लिए उपभोक्ता दल बनाया। हाल ही में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। इस आन्दोलन के फलस्वरूप व्यापारियों के अनुचित व्यावसायिक व्यवहार में काफी कमी आई है।
सन् 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। इस वर्ष उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 पारित किया गया जो ‘कोपरा’ (COPRA) के
नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 2. एगमार्क तथा आई०एस०आई० चिह्न कहाँ प्रयुक्त होते हैं?
उत्तर : एगमार्क तथा आई०एस०आई० (ISI) चिह्न मानकीकरण चिह्न हैं। सन् 1972 के ISI अधिनियम के अन्तर्गत भारतीय मानक ब्यूरो को किसी भी पदार्थ तथा प्रणाली के लिए मानक स्थापित करने का अधिकार है। इसमें लगभग सभी भोज्य पदार्थ, विद्युत उपकरण, बर्तन तथा सौन्दर्य प्रसाधन सम्मिलित हैं। किसी भी निर्माता को अपने उत्पादन पर ISI चिह्न लगाने की अनुमति तभी दी जाती है यदि उत्पाद पूरी निर्माण प्रक्रिया में भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों के अनुसार तैयार किया गया है। खाद्य संसाधन इकाई को ISI चिह्न तभी दिया जाता है यदि वहाँ स्वास्थ्यकर वातावरण हो और अपने पदार्थ के परीक्षण के लिए जाँच सुविधाएँ उपलब्ध हों।
कुछ खाद्य पदार्थ जिन्हें ISI चिह्न दिया जाता है वे हैं शिशु दूध आहार, पाउडर दूध, कॉफी पाउडर, बिस्कुट, नमक, रम, बियर, ब्राण्डी, पनीर, वेफर आदि।
ISI चिह्न वाले उपकरण हैं- प्रेस, केतली, स्विच, विद्युत पंखे, मिक्सी, गैस चूल्हा, प्रेशर कुकर।
एगमार्क (Agmark)- यह भारत सरकार के विपणन एवं निरीक्षण निदेशालय द्वारा कृषि सम्बन्धी विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं के लिए निर्धारित किया गया है। एगमार्क द्वारा प्रमाणीकृत कुछ खाद्य पदार्थ है-काली मिर्च, इलायची, हल्दी, जीरा, सरसों का तेल, तम्बाकू, घी, मक्खन, खाद्य तेल, चावल, दाले, आटा, चाय पत्ती आदि।
प्रश्न 3. उपभोक्ता के अधिकारों से आप क्या समझते हैं? उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम (1986) की उपयोगिता की भी विवेचना कीजिए।[2023 EY]
उत्तर: उपभोक्ता के अधिकारों का अर्थ जब हम एक उपभोक्ता के रूप में बहुत-सी वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं तो हमें वस्तुओं के बाजारीकरण और सेवाओं की प्राप्ति के विरुद्ध सुरक्षित रहने का अधिकार होता है। उत्पादकों के लिए आवश्यक है कि वे सुरक्षा नियमों और विनियमों का पालन करें। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के अनुसार, उपभोक्ता अधिकार की परिभाषा है- “किसी गुणवत्ता या उसकी गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मूल्य और मानक जैसे विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी रखने का अधिकार है।”
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम (1986) की उपयोगिता
यह अधिनियम उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के उद्देश्य से बनाया गया है। इस अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य सभी उपभोक्ताओं को श्रेष्ठ समय पर तथा उचित कीमत पर उत्पाद उपलब्ध कराना है। इसकी उपयोगिता निम्नलिखित है-
(1) इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के हितो के उन्नयन एवं संरक्षण. के अनेक प्रावधान हैं; जैसे-
- ऐसी वस्तु के विषय में प्रतिबन्ध लगाना जो जीवन तथा सम्पत्ति के प्रति हानिकारक हो।
- वस्तुओं के विभिन्न प्रतियोगियों की कीमत में एकरूपता लाना।
- उपभोक्ताओं को उचित प्रतिफल प्रदान करना।
- उपभोक्ता शिक्षा का विकास करना।
(2) इस अधिनियम के माध्यम से उपभोक्ताओं के हितों के अच्छे संरक्षण हेतु उपभोक्ता परिषदों की स्थापना की गयी तथा उनके नियम बनाए गए।
(3) उपभोक्ताओं के विवादों के निपटारे एवं सम्बन्धित विषयक अधिकारियों की नियुक्ति की गयी।