सत्संगति का महत्त्व | सुसंगति के लाभ | सुसंगति : एक वरदान  पर निबंध

संकेत बिन्दु -भूमिका, सज्जन के लक्षण, सज्जनों की संगति के लाभ,उपसंहार

भूमिका
यह संसार गुण और दोष दोनों से भरा हुआ है। एक विवेकी व्यक्ति हमेशा गुणों को अपनाता है और दोषों को त्याग देता है, जबकि मूर्ख व्यक्ति दोषों को पकड़ लेता है और गुणों को नकार देता है। मनुष्य पर गुण और दोषों का प्रभाव उसकी संगति से पड़ता है। सज्जन व्यक्तियों की संगति में गुण होते हैं और दुर्जन व्यक्तियों की संगति में दोष। हम जिससे मेल-जोल रखते हैं, वह हमारे जीवन पर असर डालता है। यह तथ्य केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सभी जीवों और यहां तक कि हवा पर भी लागू होता है। इस प्रकार, हम जिस संगति में रहते हैं, उसी का प्रभाव हम पर पड़ता है।

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सज्जन के लक्षण
सज्जन व्यक्ति वे होते हैं जो सदैव दूसरों के भले के लिए काम करते हैं और अपने जीवन को उन्नत बनाने के लिए परिश्रमपूर्वक अच्छे कार्यों में लगे रहते हैं। वे सत्य बोलते हैं और दूसरों में भी सत्य का प्रचार करते हैं। सज्जन व्यक्ति का दिल कोमल और दयालु होता है। वे दूसरों के दुःख में दुःखी और सुख में सुखी होते हैं। उनका जीवन दूसरों की सहायता करने में व्यतीत होता है। दूसरी ओर, दुर्जन व्यक्ति दूसरों को नुकसान पहुंचाने में आनंदित होते हैं और दूसरों के दुःख से खुश होते हैं। उनमें ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, छल और कपट जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ होती हैं।

सज्जनों की संगति के लाभ
सज्जनों की संगति से जीवन में बड़ा परिवर्तन आ सकता है। कई अपराधी और दुर्जन व्यक्ति सज्जनों की संगति से बदल जाते हैं। जैसे रत्नाकर डाकू जो बाद में वाल्मीकि बने, या अंगुलीमाल डाकू जो बुद्ध की संगति से संत बन गए। तुलसीदास जी ने कहा है:

“सठ सुधरहिं सत्संगति पाई, पारस परस कुधातु सुहाई।”

सज्जन व्यक्तियों की संगति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वे अपने साथ आने वाले लोगों को अपने समान महान बना देते हैं। विद्यालयों में परिश्रमी, विनम्र, और मृदुभाषी बच्चे सज्जन होते हैं। ऐसे बच्चे हमेशा सफलता की ऊँचाइयों को छूते हैं। उनके संपर्क में आने वाले भी उन्हीं के जैसा महान बनते हैं। ऐसे छात्र अच्छे अंक प्राप्त करते हैं और विद्यालय में सभी के प्रिय होते हैं।

उपसंहार
हर व्यक्ति को अपने हित की चिंता करनी चाहिए, और हित सदैव सज्जन व्यक्तियों की संगति में ही होता है। दुर्जन व्यक्ति की संगति से अच्छा कोई भी नहीं बन सकता। यदि कोई सज्जन व्यक्ति गलती से दुर्जन की संगति में फंस जाए, तो वह भी प्रभावित हो सकता है। जैसा कि एक कहावत है:

“संगति कीजै साधु की, हरे और की व्याधि। संगति बुरी असाधु की, आठों पहर उपाधि।”

इसलिए, हमें सदैव अच्छे लोगों की संगति में रहकर अपने जीवन को उत्तम बनाना चाहिए।

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