श्रद्धा-मनुजयशंकर प्रसाद
पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1.और देखा वह सुन्दर दृश्य नयन का इन्द्रजाल अभिराम। कुसुम-वैभव में लता समान चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम। हृदय की अनुकृति वाह्य उदार एक लम्बी काया, उन्मुक्त। मधु पवन क्रीड़ित ज्यों शिशु साल सुशोभित हो सौरभ संयुक्त। मसृण गान्धार देश के, नील रोम वाले मेषों के चर्म, ढक रहे थे उसका वपु कान्त बन रहा था वह कोमल वर्म। नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघ-वन बीच गुलाबी रंग। आह ! वह मुख ! पश्चिम के व्योम-बीच जब घिरते हों घन श्याम; अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम !
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा की अपूर्व सुन्दरता और आन्तरिक गुणों का उल्लेख किया गया है तथा श्रद्धा के रूप-सौन्दर्य की तुलना प्रकृति के सुन्दर दृश्यों से की गई है।
व्याख्या श्रद्धा की सुमधुर ध्वनियों को सुनने के पश्चात् जब मनु का ध्यान उसके रूप की ओर गया तब वह दृश्य उनकी आँखों को जादू के समान सुन्दर और मोहक लगा। श्रद्धा फूलों से परिपूर्ण लता के समान सुन्दर और शीतल चाँदनी में लिपटे हुए बादल-सी आकर्षक प्रतीत हो रही थी। उसका हृदय उदार और विस्तृत था। वह लम्बे कद की उन्मुक्त युवती थी। लम्बे और सुन्दर दिखने वाले शरीर में वह ऐसे शोभायमान थी मानो वसन्त की बयार अर्थात् वसन्ती हवा में झूमता हुआ साल का कोई छोटा-सा वृक्ष सुगन्ध से सराबोर होकर चारों ओर अपनी शोभा बिखेर रहा हो। श्रद्धा के वस्त्र गान्धार देश में पाई जाने वाली नीले बालों की भेड़ों की खाल से बने थे। अत्यन्त कोमल होते हुए भी वे वस्त्र न केवल उसके सुन्दर तन को ढक रहे थे, बल्कि कवच के समान शरीर की रक्षा भी कर रहे थे। कहने का तात्पर्य है कि श्रद्धा उन वस्त्रों में सुन्दर और सुरक्षित दिख रही थी।
मनु के भावों की अभिव्यक्ति करते हुए प्रसाद जी लिखते हैं कि श्रद्धा भेड़ की खाल के बने नीले वस्त्र में अत्यन्त आकर्षक दिख रही है। वस्त्रों के मध्य कहीं-कहीं से दिखाई दे रहे उसके कोमल अंग ऐसे प्रतीत हो रहे हैं, जैसे वे नीले बादलों के समूह में चमकती हुई बिजली के गुलाबी गुलाबी फूल हों। नीले वस्त्र के मध्य श्रद्धा के लालिमायुक्त तेज मुख को देख ऐसा आभास होता है, मानो साँझ के समय काले बादलों को भेदकर चारों ओर लाल किरणें बिखेरता सूर्य शोभायमान हो।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ श्रद्धा के आन्तरिक गुणों के साथ-साथ उसके वस्त्रों की विशेषता व्यक्त की गई है।
(ii) प्रस्तुत पंक्तियों द्वारा कवि श्रद्धा के अपूर्व सुन्दर होने का भाव दर्शा रहा है।
(iii) रस संयोग श्रृंगार
कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली
शैली प्रबन्धात्मक
अलंकार उपमा, रूपकातिशयोक्ति, उत्प्रेक्षा,रूपक एवं अनुप्रास
छन्द श्रृंगार छन्द (16 मात्राओं का)
गुण माधुर्य
शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) “हृदय की अनुकृति बाह्य उदार” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति से कवि का आशय यह है कि श्रद्धा आन्तरिक रूप से जितनी उदार, भावुक, कोमल हृदय की थी, उसका बाह्य रूप भी वैसा ही था। वह अपने आन्तरिक गुण से जिस प्रकार सबको मोहित कर लेती थी, उसी प्रकार उसका रूप सौन्दर्य भी सभी को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम था।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए। उत्तर प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित गीत ‘श्रद्धा-मनु’ से उद्धृत किया गया है।
(iii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका के मुख की तुलना किस-किस से की गई है?
उत्तर पद्यांश में नायिका के मुख की तुलना दो भिन्न स्थानों पर दो भिन्न उपमानों से की गई है। पहले स्थान पर ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ में नायिका की तुलना बादलों के बीच दिखने वाले चाँद से की गई है। वहीं दूसरे स्थान पर ‘अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम’ में शाम के समय आकाश में छाए बादलों के बीच दिखाई देने वाले सूर्य से की गई है।
(v) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अनुप्रास, उपमा, रूपकातिशयोक्ति व उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम’ में रूपक अलंकार, ‘सुशोभित हो सौरभ संयुक्त’ में अनुप्रास अलंकार, ‘खिला हो ज्यों बिजली का फूल’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
2.समर्पण लो सेवा का सार सजल संसृति का यह पतवार; आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद तल में विगत विकार। बनो संसृति के मूल रहस्य तुम्हीं से फैलेगी वह बेल; विश्व भर सौरभ से भर जाए सुमन के खेलो सुन्दर खेल। और यह क्या तुम सुनते नहीं विधाता का मंगल वरदान- ‘शक्तिशाली हो, विजयी बनो’ विश्व में गूँज रहा, जय गान। डरो मत अरे अमृत सन्तान अग्रसर है मंगलमय वृद्धि; पूर्ण आकर्षण जीवन केन्द्र खिंची आवेगी सकल समृद्धि!
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा की अपूर्व सुन्दरता और आन्तरिक गुणों का उल्लेख किया गया है तथा श्रद्धा के रूप-सौन्दर्य की तुलना प्रकृति के सुन्दर दृश्यों से की गई है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा-मनु के समक्ष आत्मसमर्पण करती है, ताकि दोनों मिलकर सम्पूर्ण मानवता की सेवा कर सकें। श्रद्धा उसे एकान्त एवं निराश जीवन में आशा का संचार करती हुई नवीन मानव-सृष्टि का प्रवर्तक बनने की प्रेरणा देती है।
व्याख्या श्रद्धा मानवता के हितार्थ स्वयं को मनु को सौंप देना चाहती है। वह मनु से कहती है कि मैं तुम्हारी सेवा करना चाहती हूँ, इसलिए तुम मुझे स्वीकार कर लो। तुम्हारे द्वारा मेरा समर्पण स्वीकार कर लेने से हम इस सृष्टि अर्थात् सम्पूर्ण मानव जाति की भी सेवा कर सकेंगे। इस प्रकार, मेरा सेवा-कर्म इस जलमग्न अर्थात् समस्याओं से ग्रस्त संसार हेतु पतवार बनकर लोक-कल्याण में सहायक होगा। तुम्हारे पिछले सभी दोषों को भूलकर मैं आज से अपना जीवन तुम्हें सौंप रही हूँ। जग कल्याणार्थ मुझे अपनी जीवनसंगिनी स्वीकार कर लो। मैं जीवन भर तुम्हारा साथ देकर अपने कर्त्तव्यों का पूर्णतः निर्वाह करूंगी। श्रद्धा आगे कहती है कि हे तपस्वी ! मुझे अपनाकर सृष्टि को आगे बढ़ाने में सहायक बनो और इसके रहस्यों अर्थात् जीवन-मरण के सच का साक्षात्कार करो। इस सृष्टि को तुम्हारी नितान्त आवश्यकता है। तुम्हारे द्वारा ही सृष्टि की बेल जीवन पा सकेगी। अतः मुझे अपनी संगिनी अर्थात् पत्नी के रूप में सहर्ष स्वीकार कर संसार रूपी बेल को सूखने से बचा लो। तुम्हारे ऐसा करने अर्थात् सृष्टि के सुन्दर खेलों को खेलने से सम्पूर्ण विश्व मानव रूपी सुगन्धित पुष्पों से सुवासित हो उठेगा और प्रकृति खुश होकर झूमने लगेगी।
श्रद्धा मनु से कहती है कि तुमने इस संसार की रचना करने वाले विधाता का कल्याणकारी वरदान नहीं सुना, जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘शक्तिशाली बनकर विजय प्राप्त करो।’ श्रद्धा कहती है कि हे देवपुत्र मनु ! तुम इस नवीन सृष्टि का विकास करने के लिए तैयार हो जाओ। किसी भी प्रकार की आशंका से भयभीत न हो, क्योंकि कल्याणकारी उन्नति तुम्हारे सम्मुख है। तुम्हारा जीवन आकर्षण से भरा हुआ है। अतः सभी सुख-सम्पन्नता और वैभव स्वयं ही तुम्हारे सम्मुख उपस्थित हो जाएगा।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) प्रस्तुत पद्यांश में मनु के विगत दोषों को भूलकर श्रद्धा द्वारा उसके प्रति पूर्ण समर्पण का भाव प्रस्तुत किया गया है। साथ ही श्रद्धा के द्वारा सृष्टि को आगे बढ़ाने की बातें करने से उसका मानवतावादी दृष्टिकोण भी स्पष्ट होता है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने श्रद्धा के माध्यम से मनु में वीरता और विजयी होने के भावों को जगाने का प्रयास किया है। श्रद्धा द्वारा मनु को सृष्टि के क्रम को आगे बढ़ाने का सन्देश दिया गया है।
(iii) रस संयोग श्रृंगार एवं शान्त
कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली
शैली प्रबन्धात्मक
छन्द श्रृंगार छन्द (16 मात्राओं का)
अलंकार अनुप्रास एवं यमक
गुण माधुर्य एवं प्रसाद
शब्द शक्ति अभिधा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित जयशंकर प्रसाद रचित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iii) “बनो संसृति के मूल रहस्य” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु से स्वयं को पत्नी के रूप में स्वीकार कर इस निर्जन संसार में मानव की उत्पत्ति का मूलाधार बनने का आग्रह करती है। उसका आशय यह है कि उन दोनों के मिलन से ही इस जगत् में मनुष्य जाति की उत्पत्ति सम्भव होगी।
(iv) “शक्तिशाली हो, विजयी बनो” पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु से क्या कहना चाहती है?
उत्तर “शक्तिशाली हो विजयी बनो” पंक्ति के माध्यम से श्रद्धा मनु की एकान्त में जीवनयापन करने की इच्छा एवं निराश व हताश मनःस्थिति में परिवर्तन करके उसे अकर्मण्यता को त्यागकर कर्त्तव्यशील बनकर विश्व को विजय करने की प्रेरणा देना चाहती है।
(v) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने प्रबन्धात्मक शैली का प्रयोग किया है। कवि ने काव्य रचना के लिए तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है, जो भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। भाषा सहज, सरल एवं प्रभावमयी है।
अथवा
समर्पण लो सेवा का सार सजल संसृति का यह पतवार; आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद तल में विगत विकार। बनो संसृति के मूल रहस्य तुम्हीं से फैलेगी यह बेल; विश्वभर सौरभ से भर जाय सुमन के खेलो सुन्दर खेल।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
‘(i) समर्पण लो सेवा का सार’ किसने किससे कहा है?
उत्तर ‘समर्पण लो सेवा का सार’ यह श्रद्धा ने मनु से कहा है कि वह स्वयं को मनु की जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार कर लेने की इच्छा व्यक्त करती है।
(ii) बनो संसृति के मूल रहस्य’ किसके लिए कहा गया है?
उत्तर ‘बनो संसृति के मूल रहस्य’ मनु के लिए कहा गया है। श्रद्धा मनु से स्वयं को पत्नी के रूप में स्वीकार कर इस निर्जन संसार में मानव की उत्पत्ति का मूलाधार बनने का आग्रह करती है।
(iii) ‘विश्वभर सौरभ से भर जाय’ का क्या आशय है?
उत्तर ‘विश्वभर सौरभ से भर जाए’ का आशय यह है कि सृष्टि के सुन्दर खेलों को खेलने से सम्पूर्ण विश्व मानव रूप सुगन्धित पुष्पों से सुवासित हो उठेगा और प्रकृति खुश होकर झूमने लगेगी।
(iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) पाठ का नाम तथा रचयिता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर पाठ का नाम ‘श्रद्धा-मनु’ है तथा रचयिता का नाम ‘जयशंकर प्रसाद’ है।
3.विधाता की कल्याणी सृष्टि सफल हो इस भूतल पर पूर्ण; पटें सागर, बिखरें ग्रह-पुंज और ज्वालामुखियाँ हों चूर्ण। उन्हें चिनगारी सदृश सदर्प कुचलती रहे खड़ी सानन्द; आज से मानवता की कीर्ति अनिल, भू, जल में रहे न बन्द। जलधि के फूटें कितने उत्स द्वीप, कच्छप डूबें-उत्तराय; किन्तु वह खड़ी रहे दृढ़ मूर्ति अभ्युदय का कर रही उपाय। शक्ति के विद्युत्कण, जो व्यस्त विकल विखरे हैं, हो निरुपाय; समन्वय उसका करे समस्त विजयिनी मानवता हो जाय।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा की अपूर्व सुन्दरता और आन्तरिक गुणों का उल्लेख किया गया है तथा श्रद्धा के रूप-सौन्दर्य की तुलना प्रकृति के सुन्दर दृश्यों से की गई है।
प्रसंग. प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा ने मनु को मानवता की विजय का उपाय बताया है। स्वयं को मनु को सौंप देने का प्रस्ताव रख श्रद्धा मनु को विश्वास दिलाती है कि हम दोनो के प्रयास से सम्पूर्ण जगत् में अर्थात् सभी दिशाओं में मानवता की कीर्ति फैल जाएगी। साथ ही श्रद्धा मनु को कर्मवीर होकर जीने की सीख देती हुई कहती है कि मानवता विकास के नित नए मार्गों को ढूँढती रहती है।
व्याख्या सृष्टि की रचना में सहायक बनने के लिए मनु को प्रेरित करते हुए श्रद्धा कहती है कि मानव सृष्टि संसार के समस्त जीव-जन्तुओं एवं प्रकृति के लिए कल्याणकारी है। तुम अपने मानवोचित कर्त्तव्यों का निर्वहन कर ईश्वर द्वारा रचित इस सृष्टि के क्रम को चलाने में अपना योगदान दो, ताकि वंश वृद्धि के द्वारा पृथ्वी अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सके। तुम्हारे योगदान से अर्थात् सृष्टि-क्रम को आगे बढ़ाने से मानव-शक्ति के द्वारा सारे उफनते समुद्रों पर नियन्त्रण प्राप्त कर लिया जाएगा। सारे ग्रह-नक्षत्र चारों ओर फैलकर सृष्टि को आलोकित करते हुए मानव-शक्ति का गुणगान करेंगे। उसके समक्ष विध्वंसकारी ज्वालामुखियों की भी एक न चलेगी और उन्हें भी शान्त कर दिया जाएगा अर्थात् मानव समस्त प्राकृतिक आपदाओं पर विजय पाकर उनसे होने वाली हानियों से समस्त जीवों की रक्षा करेगा। आज से वायु, पृथ्वी एवं जल जैसे प्राकृतिक तत्त्व भी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैलने वाले मानवता के यश को अवरुद्ध नहीं कर पाएँगे। प्रलय अर्थात् पृथ्वी के जलमग्न होने की बातो का उल्लेख करते हुए श्रद्धा मनु को समझाती है कि भीषण प्रलय में समुद्र के बहुत से स्रोत फूट गए थे और चारों ओर जल-ही-जल हो जाने की स्थिति में द्वीपों सहित कछुआ आदि समस्त जीव-जन्तु उसमें डूबने और बहने लगे थे इसके बावजूद मानवता की रक्षा और उत्थान हेतु नव प्रयास जारी है। मानवता की दृढ़ मूर्ति के रूप स्वयं हम दोनो यहाँ एक साथ विद्यमान हैं। यहाँ श्रद्धा की बातों का आशय यह है कि महाप्रलय के बाद भी मानवता अपने अस्तित्व की रक्षा करने में विजयी रही है। अतः मनु को स्वयं को निरुपाय न मानकर समस्या के समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
श्रद्धा कहती है कि इस सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युतकणों से हुई है, किन्तु जब तक विद्युतकण अलग-अलग होकर भटकते हैं, तब तक ये शक्तिहीन होते हैं और जब ये परस्पर मिल जाते हैं, तब इनमें अपार शक्ति का स्रोत प्रस्फुटित होता है।
ठीक उसी प्रकार जब तक मानव अपनी शक्ति को संचित न करके उसे बिखेरता रहता है, तब तक वह शक्तिहीन बना रहता है और जब वह समन्वित हो जाता है, तो वह विश्व को जीत लेने की अपार शक्ति प्राप्त कर लेता है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) यहाँ श्रद्धा द्वारा मनु को प्रेरित किए जाने के क्रम में मानवीय शक्तियों के अनन्त विस्तार का भाव प्रकट किया गया है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा द्वारा मानवता के असहाय एवं निरुपाय होने का खण्डन किया गया है।
(iii) यहाँ विश्व कल्याणार्थ समन्वय अर्थात् एकता की भावना पर जोर दिया गया है।
(iv) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा खड़ीबोली
शैली प्रबन्धात्मक
छन्द श्रृंगार छन्द (16 मात्राओं वाला)
अलंकार उपमा एवं अनुप्रास एवं दृष्टान्त
गुण प्रसाद
शब्द शक्ति अभिधा व्यंजना एवं लक्षणा
भाव साम्य निम्नलिखित पंक्तियों में उपरोक्त पद्यांश के समान ही भावों की अभिव्यक्ति की गई है-
“हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप, हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।” – दिनकर
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iii) श्रद्धा मनु को स्वयं वरण करने हेतु क्या कहकर प्रेरित करती है?
उत्तर श्रद्धा मनु से कहती हैं कि यदि वह उसका वरण कर लेता है, तो वह संसार के सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं के लिए मानव सृष्टि कल्याणकारी होगी। मानव समस्त प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, उफनते सागरों आदि पर विजय पाकर समस्त जीवों की रक्षा करेगा, इसलिए उसे उसका वरण कर लेना चाहिए।
(iv) श्रद्धा जल-प्लावन की घटना का उल्लेख क्यों करती है?
उत्तर श्रद्धा जल-प्लावन की घटना का उल्लेख मनु को यह समझाने के लिए करती है कि इस प्रलयकारी घटना के पश्चात् भी मानवता की रक्षा एवं उत्थान हेतु नव प्रयास जारी रहे। अतः मनु को स्वयं को निरुपाय न मानकर समस्या के समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
(v) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर अलंकार किसी भी काव्य रचना के सौन्दर्य में वृद्धि करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रस्तुत पद्यांश में भी कवि ने विभिन्न अलंकारों का प्रयोग किया है। ‘सदृश सदर्प’ में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार तथा विद्युतकणों का उदाहरण देने के कारण दृष्टान्त अलंकार का प्रयोग हुआ है।
अथवा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) ‘दृढ़ मूर्ति’ से आशय किसकी मूर्ति से है?
उत्तर दृढ़ मूर्ति से आशय मानवता की मूर्ति से है। मानवता की दृढ़ मूर्ति के रूप में श्रृद्धा और मनु दोनों एक साथ विद्यमान हैं।
(ii) ‘उत्स’ और ‘अभ्युदय’ शब्दों का अर्थ लिखिए।
उत्तर ‘उत्स’ का अर्थ है- जल का स्रोत तथा ‘अभ्युदय’ का अर्थ है- उन्नति या उत्थान।
(iii) ‘द्वीप-कच्छप’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर ‘द्वीप-कच्छप में उपमा अलंकार है।
(iv) रेखांकित अंश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) पद्यांश के पाठ का शीर्षक और उसके कवि का नाम लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश के पाठ का शीर्षक ‘श्रद्धा-मनु’ है तथा उसके कवि का नाम ‘जयशंकर प्रसाद’ है।