वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1▼
प्रश्न 1. भारत में मृदाओं के वर्गीकरण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर : भारत में मृदाओं के वर्गीकरण का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
- (1) जलोढ़ मृदा
- (2) काली मृदा
- (3) लाल और पीली मृदा
- (4) लैटेराइट मृदा
- (5) मरुस्थली मृदा
- (6) वन मृदा।
प्रश्न 2. भूमि संसाधन से क्या तात्पर्य है? भूमि संसाधन के कोई तीन महत्त्व बताइए। [2023 FD]
उत्तर : भूमि संसाधन – भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर मानव जीवन, वन्य जीवन, प्राकृतिक वनस्पति, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन एवं संचार आदि आधारित हैं।
भूमि संसाधन के तीन महत्त्व –
- जीवन का आधार – जीवन के सभी क्रियाकलाप, जैसे- निवास, व्यवसाय, कृषि, उत्खनन, कारखाने, वनस्पतियाँ, पेयजल आदि भूमि पर ही सम्भव है।
- आर्थिक विकास का आधार – किसी भी देश का विकास वहाँ पर उपस्थित प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करता है।
- प्राथमिक उद्योगों का विकास – विभिन्न प्राथमिक उद्योगों, जैसे- कृषि, मत्स्य पालन, खनिज व्यवसाय आदि भूमि पर निर्भर होते हैं।
प्रश्न 3. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए? [2020, NCERT EXERCISE]
उत्तर : मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में वनोन्मूलन, अति पशुचारण, निर्माण और खनन जैसे मानवीय तत्त्व एवं पवन, हिमनदी और जल आदि प्राकृतिक तत्त्व मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी हैं। पहाड़ी क्षेत्रों पर मानवीय क्रियाओं को नियन्त्रित करने के लिए अतिरिक्त ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर जुताई, सीढ़ीदार कृषि तथा वृक्ष मेखला का विकास करके मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
प्रश्न 4. भूमि निम्नीकरण क्या है? [2022]
उत्तर : पेड़-पौधों तथा फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक प्राकृतिक पोषक तत्त्वों की कमी होना भूमि निम्नीकरण कहलाता है।
प्रश्न 5. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पायी जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? [NCERT EXERCISE]
उत्तर : पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पायी जाती है। इस मृदा का जमाव महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियाँ अपने डेल्टाई भाग में करती हैं। इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) इस मिट्टी की संरचना रेत, सिल्ट और मृत्तिका के विभिन्न अनुपात से होती है।
(2) जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है। इस मृदा में पोटाश, फॉस्फोरस और चूना पर्याप्त मात्रा में होता है अतः इस मृदा में चावल, गेहूँ, गन्ना तथा दलहन
फसलें पैदा की जाती हैं।
(3) सूखे क्षेत्रों में यह मृदा क्षारीय हो जाती है जिसे उचित उपचार और सिंचाई द्वारा अधिक पैदावार देने योग्य बनाया जा सकता है।
प्रश्न 6. तीन राज्यों के नाम बताएँ जहाँ काली मृदा पायी जाती है। इस पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है? [NCERT EXERCISE]
अथवा किन्हीं दो राज्यों के नाम बताइए जहाँ काली मिट्टी पायी जाती है। इस मिट्टी पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है? [2020]
उत्तर : जहाँ काली मृदा पायी जाती है उन तीन राज्यों के नाम है-
(1) महाराष्ट्र, (2) गुजरात, (3) मध्य प्रदेश।
काली मृदा कपास की खेती के लिए महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इसी कारण इसे ‘काली कपास मृदा’ के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 7. भू-क्षरण रोर्कने के कोई तीन उपाय सुझाइए। [2022]
उत्तर : भू-क्षरण रोकने के तीन उपाय हैं-
- नाली एवं गड्डों को समतल बनाना – अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जल बहने से गहरी नालियाँ एवं गड्ढे बन जाते हैं। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए इन नालियों तथा गड्डों को मिट्टी से भरते रहना चाहिए।
- वन संरक्षण-वनों की अन्धाधुन्ध कटाई पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। भारत सरकार ने अनेक वनों को सुरक्षित वन घोषित कर दिया है।
- जल के बहाव-मार्गों का निर्माण – वर्षा तथा अन्य प्रकार के जल के उचित ढंग से बहने के लिए नालों व नालियों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे जल इधर-उधर बहकर भूमि का कटाव न कर पाए। नदियों, नालों व नहरों के किनारों को ऊँचा किया जाना चाहिए ताकि बाढ़ का पानी इधर-उधर न फैल पाए।
प्रश्न 8. संसाधन नियोजन की आवश्यकता क्यों पड़ती है? इस हेतु कोई दो/तीन उपाय सुझाइए। [2022, 23 EY]
उत्तर : संसाधन नियोजन की आवश्यकता एवं उपाय- संसाधन नियोजन निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है-
(1) संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध है इसलिए उनका नियोजन आवश्यक है जिससे उन्हें हम स्वयं भी उचित ढंग से प्रयोग करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रखें।
(2) संसाधन न केवल सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है वरन् उनकी उपलब्धता में काफी विभिन्नता और विविधता पायी जाती है, भारत जैसे देश में बहुत-से ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचुरता है परन्तु दूसरी तरह के संसाधनों की कमी। संसाधन नियोजन की प्रक्रिया से देश के प्रत्येक राज्य का समान और सन्तुलित विकास सम्भव हो सकता है।
(3) संसाधन नियोजन से उनका विनाश रोका जा सकता है और देश की मूल्यवान सम्पदा का संरक्षण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया से वृक्षों को अन्धाधुन्ध काटना और वन्य प्राणियों का विनाश रोका जा सकता है। अन्यथा लोग अपने लालच के लिए संसाधनों का दुष्प्रयोग कर सकते हैं और राष्ट्रीय सम्पदा का
विनाश कर सकते हैं।
(4) संसाधनों के नियोजन से देश के विकास से सम्बन्धित योजनाओं को सफल बनाया जा सकता है।
इस प्रकार संसाधन नियोजन देश के निरन्तर और निश्चित विकास के लिए आवश्यक है।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. संसाधन नियोजन की आवश्यकता क्या है? भारत में संसाधन नियोजन हेतु उपाय सुझाइए। [2023 EZ]
उत्तर : संसाधन नियोजन का अर्थ- संसाधन नियोजन वह कला अथवा तकनीक है, जिसके द्वारा हम अपने संसाधनों का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से करते हैं।
संसाधन नियोजन की आवश्यकता – संसाधन नियोजन निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है-
(1) संसाधन सीमित मात्रा में उपलब्ध है इसलिए उनका नियोजन आवश्यक है जिससे उन्हें हम स्वयं भी उचित ढंग से प्रयोग करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रखें।(2)संसाधन न केवल सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं वरन् उनकी उपलब्धता में काफी विभिन्नता और विविधता पायी जाती है। भारत जैसे देश में बहुत-से ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचुरता है परन्तु दूसरी तरह के संसाधनों की कमी। संसाधन नियोजन की प्रक्रिया से देश के प्रत्येक राज्य का समान और सन्तुलित विकास सम्भव हो सकता है।
(3) संसाधन नियोजन से उनका विनाश रोका जा सकता है और देश की मूल्यवान सम्पदा का संरक्षण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया से वृक्षों को अन्धाधुन्ध काटना और वन्य प्राणियों का विनाश रोका जा सकता है। अन्यथा लोग अपने लालच के लिए संसाधनों का दुष्प्रयोग कर सकते हैं और राष्ट्रीय सम्पदा का विनाश कर सकते हैं।
(4) संसाधनों के नियोजन से देश के विकास से सम्बन्धित योजनाओं को सफल बनाया जा सकता है।
इस प्रकार संसाधन नियोजन देश के निरन्तर और निश्चित विकास के लिए आवश्यक है।
संसाधन नियोजन की प्रक्रिया या उपाय- संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें निम्नलिखित सोपान हैं-
(1) देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना। इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना और संसाधनों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक अनुमान लगाना व मापन करना।
(2) संसाधन विकास योजनाएँ लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी, कौशल और संस्थागत नियोजन ढाँचा तैयार करना।
(3) संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजना में समन्वय स्थापित करना।
उपर्युक्त तीनों प्रक्रियाओं से संसाधनों का उचित तरीके से नियोजन किया जा सकता है।
प्रश्न 2. “संसाधनों के अन्धाधुन्ध प्रयोग ने अनेक समस्याएँ पैदा कर दी हैं। समीक्षा कीजिए। [2023 FC]
उत्तर: संसाधनों के अत्यधिक उपयोग से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जैसे-
- संसाधनों का ह्रास – संसाधनों के अति उपयोग से उनका तीव्रगति से ह्रास हो रहा है। उदाहरण के लिए पेट्रोलियम उत्पादों के अति उपयोग ने सम्पूर्ण विश्व में ऊर्जा संकट उत्पन्न कर दिया है।
- संसाधनों का केन्द्रीकरण- संसाधनों के अति दोहन व उपयोग के कारण वैश्विक समुदाय दो वर्गों – संसाधन सम्पन्न एवं संसाधन विहीन देशों मे बँट गया है।
- वैश्विक पारिस्थितिक संकट – संसाधनों के अन्धाधुन्ध उपयोग से भूमण्डलीय तापन, ओजोन परत अवक्षय, पर्यावरण प्रदूषण और भू-निम्नीकरण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
- वनस्पतियों और जीवों के आवास का क्षरण – संसाधनों के अति उपयोग के कारण मृदा अपरदन और वनोन्मूलन से जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास नष्ट हुए है। इससे जैव-विविधता का ह्रास हुआ है।
प्रश्न 3. भारत में भूमि उपयोग के प्रमुख प्रारूपों की विवेचना कीजिए। [2022, 23 EY]
उत्तर : भारत में भूमि उपयोग प्रारूप–
भारत का कुल भूमि क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है। परन्तु इसके 93% भू-भाग के ही भूमि उपयोग आँकड़े उपलब्ध हैं। उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में भूमि उपयोग सन्तुलित नहीं है। सन् 2014-15 के आँकड़ों से स्पष्ट है कि भूमि का सर्वाधिक 45.5% उपयोग शुद्ध बोए गए क्षेत्र के अन्तर्गत तथा सबसे कम उपयोग 1% विविध वृक्ष एवं उपवनों के अन्तर्गत आते हैं। इसके अतिरिक्त वनों के अन्तर्गत 23.3% क्षेत्र है। स्थायी चरागाहों के अन्तर्गत भी भूमि कम है। अतः भूमि उपयोग का यह प्रारूप देश में असन्तुलित प्रारूप को प्रकट करता है। देश में भूमि उपयोग का यह प्रारूप राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर भी सन्तुलित रूप में नहीं है। इसलिए भारत जैसे अधिक जनसंख्या और सीमित भूमि संसाधन वाले देश में नियोजित व सन्तुलित भूमि उपयोग प्रारूप स्थापित करने की अधिक आवश्यकता है।
प्रश्न 4. मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा मृदा अपरदन क्या है? भारत में प्रचलित मृदा अपरदन के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2023 FC]
उत्तर : मिट्टी के कटाव अथवा मृदा अपरदन का अर्थ मिट्टी के कटाव का अर्थ है, भूमि की उर्वरा शक्ति का नष्ट होना। दूसरे शब्दों में, मिट्टी की ऊपरी परत के कोमल तथा उपजाऊ कणों को प्राकृतिक कारको (जल, नदी, वर्षा तथा वायु) या प्रक्रमों द्वारा एक स्थान से हटाया जाना ही भूमि का कटाव या मृदा अपरदन कहलाता है। यह कटाव अत्यधिक उपजाऊ भूमि को शीघ्र ही बंजर बना देता है। भारत में लगभग एक चौथाई कृषि भूमि, भूमि कटाव से प्रभावित है। असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्य भूमि-कटाव की समस्या से अत्यधिक प्रभावित हैं।
भूमि (मिट्टी) कटाव के प्रकार-
मिट्टी का कटाव निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है-
- धरातलीय या परतदार कटाव – तेज मूसलाधार वर्षा के कारण जब धरातल का ऊपरी उत्पादक भाग तेज पानी से बह जाता है, तब उसे धरातलीय या परतदार कटाव कहते हैं।
- कछार वाला कटाव- नदियाँ अथवा तेज बहने वाली जल-धाराओं के द्वारा जो कटाव होता है, उसे कछार वाला कटाव कहते हैं। इसमें मिट्टी कुछ गहराई तक कट जाती है तथा भूमिं सतह पर नालियाँ व गड्ढे बन जाते हैं।
- वायु का कटाव – तेज मरुस्थलीय हवाओं के द्वारा धरातल की सतह की उपजाऊ मिट्टी उड़ जाती है जो उड़कर अन्य स्थानों पर ऊँचे-ऊँचे मिट्टी के टीले बना देती है।
मिट्टी के कटाव के कारण-
मिट्टी के कटाव के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
- (1) तीव्र एवं मूसलाधार वर्षा। भारत में 90% वर्षा केवल 4 महीने में हो जाती है।
- (2) नदियों का तीव्र बहाव एवं उनमें उत्पन्न बाढ़।
- (3) वनों का अत्यधिक विनाश।
- (4) खेतों को जोतकर खुला छोड़ देना।
- (5) तेज हवाएँ चलना।
- (6) कृषि-भूमि पर पशुओं द्वारा अनियन्त्रित चराई।
- (7) खेतों पर मेड़ों का न होना।
- (8) भूमि का अत्यधिक ढालू होना।
- (9) पानी के निकास की उचित व्यवस्था न होना।
- (10) कृषि करने के दोषपूर्ण ढंग; जैसे-ढालू भूमि पर सीढ़ीदार जुताई न करना, फसलों के हेर-फेर के दोषपूर्ण ढंग इत्यादि।
प्रश्न 5. मृदा संरक्षण के उपायों का वर्णन कीजिए।
अथवा भू-क्षरण से आप क्या समझते हैं? इसे रोकने के लिए चार उपाय बताइए।[2023 EX]
अथवा मृदा अपरदन का क्या अभिप्राय है? इस समस्या के समाधान हेतु कोई चार उपाय सुझाइए। [2023 EZ]
उत्तर : भू-क्षरण-मिट्टी या मृदा के कणों का टूटकर एक स्थान से दूसरे स्थान को चले जाना मृदा अपरदन या भू-क्षरण कहलाता है।
मृदा संरक्षण के उपाय
- वृक्षारोपण – वृक्ष लगाकर जल की गति को नियन्त्रित किया जा सकता है और बाढ़ के प्रकोप से भूमि के कटाव को रोका जा सकता है। हरियाणा व उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा की ओर पश्चिमी हवाओं (पछुआ हवा) से होने वाले कटाव को रोकने हेतु एक बहुत विस्तृत क्षेत्र में वन लगाए गए है।
- नदियों पर बाँध बनाना- नदियों पर बाँध बनाकर जल के तीव्र प्रवाह को रोककर भूमि के कटाव को रोका जा सकता है। 3. खेतों की मेड़बन्दी करना – खेतों पर ऊँची मेड़बन्दी करना, भूमि के कटाव को रोकने का कारगर उपाय है। मेड़ मिट्टी के उपजाऊ जीवांशों को बहने से
रोक देती है। - पशुओं की अनियन्त्रित चराई पर रोक – खुली या जुती हुई भूमि में पशुओं को नहीं चराना चाहिए क्योंकि पशुओं के खुरों से मुलायम मिट्टी कट जाती है और वायु अपने साथ उड़ा ले जाती है अथवा जल में बह जाती है।
- ढाल के विपरीत जुताई करना – ढालू खेती की जुताई ढाल के विपरीत करनी चाहिए, इस प्रकार बनी नालियाँ पानी की गति कम कर कटाव को रोकने में सहायक होती हैं।
- जल-निकासी की उचित व्यवस्था करना- खेतों में जल निकास की उचित व्यवस्था कर भूमि कटाव को कुछ सीमा तक रोका जा सकता है। पर्वतों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर यह कार्य सुविधापूर्वक किया जा सकता है।
- खेतों पर हरी खाद वाली फसलें उगाना – खेतों में मूँग नं० 1, सनई, ढेंचा जैसी हरी खाद वाली फसलें उगानी चाहिए। इससे मिट्टी को उपजाऊ तत्त्व अर्थात् जीवांश प्राप्त होते हैं तथा कटाव भी कम हो जाता है।
- नाली एवं गड्डों को समतल बनाना – अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जल बहने से गहरी नालियाँ एवं गड्ढे बन जाते हैं। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए इन नालियों तथा गड्डों को मिट्टी से भरते रहना चाहिए।
- वन संरक्षण-वनों की अन्धाधुन्ध कटाई पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। भारत सरकार ने अनेक वनों को सुरक्षित वन घोषित कर दिया है।
- जल के बहाव-मार्गों का निर्माण – वर्षा तथा अन्य प्रकार के जल के उचित ढंग से बहने के लिए नालों व नालियों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे जल इधर-उधर बहकर भूमि का कटाव न कर पाए। नदियों, नालों व नहरों के किनारों को ऊँचा किया जाना चाहिए ताकि बाढ़ का पानी इधर-उधर न फैल पाए।
भारत में इस समस्या के स्थायी समाधान हेतु सन् 1953 ई० में ‘केन्द्रीय भू-संरक्षण बोर्ड’ की स्थापना की गई तथा निम्नलिखित तीन लक्ष्य निर्धारित किए गए-
(i) कटी-फटी भूमि को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित करना,
(ii) मरुभूमि के विस्तार को नियन्त्रित करना तथा
(iii) वर्तमान कृषिगत भूमि की उपजाऊ शक्ति में कमी न आने देना।
इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए देहरादून, कोटा, जोधपुर, ऊटकमण्ड एवं बेलोरी में अनुसन्धानशालाएँ स्थापित की गई हैं।
प्रश्न 6. एक संसाधन के रूप में मिट्टी के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। [2022, 23 EX]
उत्तर : मृदा एक प्रमुख नवीकरणीय संसाधन है। यह वनस्पति उत्पादन क -साधन है तथा इसमें विभिन्न प्रकार के जीवाश्म होते हैं। मृदा एक जीवि प्रणाली है। एक सेण्टीमीटर मोटी परत बनने में लाखों वर्ष लगते हैं। उच्चाव पैतृक पील, जलवायु, वनस्पति और समय इसके निमार्ण लगते हैं। उत्त्वा प्रकृति की अन्य शक्तियाँ जैसे ताप परिवर्तन, बहते जल का कार्य, पवन और नदी जैसे विघटकों का कार्य मृदा निर्माण में सहयोग देते हैं। रासायनिक जैविक परिवर्तन जो मृदा में होते रहते हैं, का समान महत्त्व होता है। मृदा में जैजि और अजैविक पदार्थ भी होते हैं।
प्रश्न 7. भारत में पायी जाने वाली मिट्टी के किन्हीं दो/तीन प्रकारों की विवेचना कीजिए। [2022, 23 EX)
उत्तर : भारत में विभिन्न प्रकार के उच्चावच, जलवायु, भू-आकृतियाँ और वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। इस कारण भारत में अनेक प्रकार की मृदाओं का भी विकास हुआ, इनमें से तीन का वर्णन निम्नवत् है-
- जलोढ़ मृदा – लगभग भारत का समस्त उत्तरी मैदान जलोढ़ मृदा से बना है यह मृदा हिमालय के तीन नदी तन्त्रों- गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों से निर्मित हैं। जलोढ़ मृदा में रेत, सिल्ट और मृत्तिका के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं। जिस कारण यह बहुत उपजाऊ होती है। इसमें पोटाश, फॉस्फोरस और चूना होता है। यह मृदा गन्ने, चावल, गेहूँ और अन्य अनाजों तथा दलहन फसलों की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
- काली मृदा-काले रंग वाली इस मृदा को रेगर मृदा भी कहते हैं। कपास की कृषि के लिए उपयोगी यह मृदा दक्कन के पठार क्षेत्र के उत्तर-पश्चिमी भागों में पायी जाती है। देश के महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के पठार में काली मृदा पायी जाती है। कैल्सियम, कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटाश और चूने जैसे पोषक तत्त्व इस मृदा में पाए जाते हैं।
- मरुस्थलीय मृदा-इन मृदाओं का रंग लाल और भूरा होता है ये मृदाएँ आमतौर पर रेतीली और लवणीय होती हैं। शुष्क जलवायु और उच्च तापमान के कारण जल वाष्पन दर अधिक होती है। मृदाओं में ह्यूमस और नमी की मात्रा कम होती है। इस मृदा को सही तरीके से सिंचित करके कृषि योग्य बनाया जा सकता है जैसा कि पश्चिमी राजस्थान में हो रहा है।
प्रश्न 8. भू-संसाधन से क्या तात्पर्य है? भारत के भू-उपयोग में आवश्यक परिवर्तनों हेतु कोई चार उपाय सुझाइए। [2023 FA]
उत्तर : प्रकृति द्वारा प्रदत्त वह संसाधन, जिस पर हम निवास करते हैं, अनेक प्रकार के आर्थिक क्रियाकलाप करते हैं तथा जिसका विभिन्न रूपों में उपयोग करते हैं, भू-संसाधन कहलाता है।
भारत के भू-उपयोग में आवश्यक परिवर्तनों हेतु चार उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) वन क्षेत्र में वांछित वृद्धि जो अपेक्षित 33% से कम है।
(2) बंजर व कृषि अयोग्य भूमि का कृषि या अन्य उत्पादक कार्य हेतु प्रयोग, उनके उपजाऊपन में वृद्धि करके।
(3) चरागाह के अन्तर्गत क्षेत्र में विस्तार।
(4) शुद्ध बोए क्षेत्र में जहाँ सम्भव हो विस्तार किया जाए व उसके उपजाऊपन को बनाए रखने का समुचित उपाय किया जाए।