प्रश्न 1. संघवाद क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : संघवाद संवैधानिक राज संचालन की उस प्रवृत्ति का प्रारूप है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न राज्य एक संविदा द्वारा एक संघ की स्थापना करते हैं।
संघीय सरकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- सरकार के दो या अधिक स्तर– सामान्यतः संघीय शासन व्यवस्था में दो स्तर पर सरकारे होती हैं। एक सरकार सम्पूर्ण देश के लिए होती है एवं दूसरी सरकार राज्य स्तर की होती है।
- दोहरे उद्देश्य– संघीय शासन व्यवस्था में दोहरे उद्देश्य सन्निहित होते हैं।
- नागरिक समूह एक पर अधिकार अलग-अलग– संघीय शासन व्यवस्था में अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं। उनका अपना अलग-अलग अधिकार क्षेत्र होता है।
- संविधान की सर्वोच्चता– संघीय व्यवस्था के अन्तर्गत संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्र स्पष्ट रूप से उल्लिखित होते हैं। संविधान सरकार के प्रत्येक स्तर के अस्तित्व एवं अधिकार की गारण्टी और सुरक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 2. 1992 ई० के पहले तथा बाद के स्थानीय शासन के दो महत्त्वपूर्ण अन्तरों को बताइए।
उत्तर: 1992 ई० के पहले तथा बाद के स्थानीय शासन के दो अन्तर निम्नलिखित हैं-
- (1) 1992 ई० से पूर्व स्थानीय शासन पूर्ण रूप से राज्य सरकारों के नियन्त्रण में था। स्थानीय शासन नाममात्र का था। परन्तु अब स्थानीय शासन को संवैधानिक स्तर प्राप्त है। पहले राज्य सरकार स्थानीय निकायों का चुनाव ठीक समय पर नियमित रूप से नहीं कराती थी परन्तु अब इन निकायों के चुनाव ठीक समय पर नियमित रूप से कराना राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य है।
- (2) 1992 ई० से पूर्व स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओ के लिए स्थानी का आरक्षण नहीं था परन्तु अब इन निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थानों को आरक्षित कर दिया गया है। प्रश्न 3. क्या भारत में राज्यों को केन्द्र से पृथक् होने का अधिकार प्राप्त है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: भारत में राज्यों को केन्द्र से पृथक् होने का अधिकार प्राप्त नहीं है जबकि विश्व के अन्य संघीय ढाँचे में राज्यों को केन्द्र से पृथक् होने का अधिकार है। भारत में राज्यों को यह अधिकार इसलिए प्रदान नहीं किया गया क्योंकि सविधान निर्माताओं को यह आशंका थी कि कहीं कोई राज्य भाषा, संस्कृति अथवा क्षेत्र के आधार पर अपनी सम्प्रभुता की माँग न करने लगे। ऐसा होने पर एक-एक करके राज्य केन्द्र से पृथक् होते जाएंगे तथा केन्द्र की शक्ति निरन्तर कम होती जाएगी। केन्द्र की कमजोर स्थिति पड़ोसी राज्यों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित करेगी। शक्तिशाली केन्द्र सरकार ही पड़ोसी राज्यों के आक्रमणों का मुकाबला करने में सक्षम हो सकती है। इन परिस्थितियो को ध्यान में रखते हुए ही संविधान निर्माताओं तथा विधिवेत्ताओं ने राज्यों को केन्द्र से पृथक् होने का अधिकार प्रदान नहीं किया।
प्रश्न 4. सत्ता के विकेन्द्रीकरण की दृष्टि से 1992 के संविधान संशोधन के किन्हीं चार विन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: 1992 का संविधान संशोधन सत्ता के विकेन्द्रीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसके चार बिन्दु निम्नलिखित हैं-
- (1) स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक बाध्यता है।
- (2) निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए सीटें आरक्षित हैं।
- (3) कम-से-कम एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
प्रश्न 5. भारत में राजनीतिक क्षमता के विकेन्द्रीकरण के पीछे क्या मूल सोच थी?
उत्तर : भारत में राजनीतिक क्षमता के विकेन्द्रीकरण के पीछे की मूल सोच
भारत में राजनीतिक क्षमता के विकेन्द्रीकरण के पीछे की मूल सोच राजनीतिक क्षमता का विकास करना था। राजनीतिक क्षमता विकसित होने के कारण सत्ता के विकेन्द्रीकरण होने से राजनीतिक दल व जनता से सीधा जुड़ाव होने लगा जिससे अनेक मुद्दों एवं समस्याओं का निदान स्थानीय स्तर से लेकर राज्य व राष्ट्र स्तर तक होने लगा। इस कारण राजनीतिक दल या उनके नेताओ को अपने-अपने क्षेत्रों की समस्याओं की समझ भली प्रकार होने लगी।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. शासन के संघीय और एकात्मक स्वरूपों में क्या-क्या प्रमुख अन्तर हैं? इसे उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट करें।
उत्तर : शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में अन्तर
शासन के संघात्मक तथा एकात्मक स्वरूप में निहित अन्तर को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
- (1) संघात्मक शासन में दोहरी शासन व्यवस्था होती है- एक केन्द्र स्तर पर तथा दूसरी राज्य स्तर पर, जबकि एकात्मक शासन में सम्पूर्ण शक्तियाँ केन्द्र में निहित होती हैं। प्रान्तों की शासन व्यवस्था केन्द्र के अधीन होती है। संघात्मक व्यवस्था में शक्तियाँ केन्द्र तथा राज्यों में विभाजित होती है। अमेरिका, बेल्जियम तथा भारत में संघीय व्यवस्था है। भारत में 28 राज्य हैं, जबकि अमेरिका में राज्यों की संख्या 50 है। ब्रिटेन तथा श्रीलंका में एकात्मक सरकारें हैं।
- (2) संघात्मक शासन व्यवस्था में लिखित तथा कठोर संविधान का होना अत्यावश्यक है, जैसा कि अमेरिका का संविधान है, जबकि एकात्मक शासन के लिए यह अनिवार्य शर्त नहीं है। ब्रिटेन में अलिखित तथा लचीला संविधान है।
- (3) संघात्मक शासन व्यवस्था में दोहरा संविधान तथा दोहरी नागरिकता का प्रावधान होता है। परन्तु भारत में संघीय शासन व्यवस्था होने के बावजूद भी इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान है। एकात्मक शासन में इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान होता है।
- (4) संघात्मक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका का स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष होना अत्यावश्यक है जबकि एकात्मक शासन के लिए यह आवश्यक नहीं है। इस प्रकार संघात्मक शासन व्यवस्था एवं एकात्मक शासन व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण अन्तर विद्यमान हैं।
प्रश्न 2. भारतीय संघ में केन्द्र राज्य सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा भारत में केन्द्र और राज्यों के बीच सत्ता के बँटवारे की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: केन्द्र तथा राज्यों के सम्बन्धों की व्यावहारिकता को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
- (1) भारतीय संघ को सहकारी संघवाद की संज्ञा प्रदान की जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि केन्द्र तथा राज्यों के सम्वन्ध सौहार्दपूर्ण रहे हैं तथा केन्द्र तथा राज्यों के बीच टकराव अथवा तनाव की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है।
- (2) स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अनेक वर्षों तक कांग्रेस पार्टी का केन्द्र तथा राज्यों की राजनीति पर पूर्ण आधिपत्य रहा। दोनों ही स्तरों पर कांग्रेस पार्टी की सरकार रही। अतः केन्द्र तथा राज्यों के सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण रहे।
(3) 1967 ई० के उपरान्त अनेक राज्यों में गैर-कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों का निर्माण हुआ तथा केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार का अस्तित्व रहा। इस काल में केन्द्र ने राज्यपाल के माध्यम से अनेक गैर-कांग्रेसी सरकारों को भंग किया। अतः राज्यों तथा केन्द्र के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए। - (4) आर्थिक रूप से भी राज्य केन्द्र के अधीन है। केन्द्र द्वारा ही राज्यों के – आर्थिक विकास के लिए अनुदान दिया जाता है। अतः राज्यों की केन्द्र पर आर्थिक निर्भरता है।
- (5) केन्द्र की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्यों तक है। केन्द्र की सरकार किन्हीं भी कार्यों को पूर्ण करने के लिए राज्य सरकारों को आदेश और निर्देश दे सकती है।
- (6) सम्पूर्ण देश के लिए एक ही सवर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई है। राज्यों के उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय की अधीनता में कार्य करते हैं।
इस प्रकार केन्द्र एवं राज्य सम्बन्धों का मिला-जुला परिणाम रहा है।
प्रश्न 3. विकेन्द्रीकरण क्या है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था दी गई है? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : सत्ता के विकेन्द्रीकरण से आशय सत्ता का निम्नतम स्तरों तक हस्तान्तरण है। भारत के सन्दर्भ में इसे आसानी से समझा जा सकता है। भारत लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास करने वाला और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को अपनाने वाला देश है। सम्पूर्ण विश्व में इसे अच्छे लोकतन्त्र के उदाहरण के रूप में जाना जाता है। भारत जैसे विशाल देश में केवल द्विस्तरीय शासन (केन्द्र सरकार और राज्य सरकार) व्यवस्था से ही कामकाज सुचारु रूप से संचालित नहीं हो सकता। भारत के कई राज्य यूरोप के कई स्वतन्त्र देशों से भी बड़े हैं। कई ऐसे राज्य भी हैं जिनकी अपनी अलग संस्कृति व पहचान है। इसलिए सत्ता का विकेन्द्रीकृत होना नितान्त आवश्यक है। जब केन्द्र और राज्य सरकार की कुछ शक्तियों को स्थानीय सरकारों (ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और नगरपालिका आदि) को दे दिया जाता है तो यह स्थिति सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहलाती है।
सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि भारत में स्थानीय स्तर पर कई ऐसे मुद्दे एवं समस्याएँ हैं, जिनका समाधान स्थानीय स्तर पर ही हो सकता है। वस्तुतः लोगों को अपने क्षेत्रों की अच्छी समझ होती है और उन्हें पता होता है कि मूल समस्या क्या है। सत्ता के विकेन्द्रीकरण द्वारा स्थानीय लोगों को निर्णयों में सीधे भागीदार बनाना सम्भव हो पाता है। इससे सामान्य लोगों की लोकतन्त्र में भागीदारी की आदत पड़ती है। लोकतन्त्र के लिए यह आदर्श स्थिति है।
भारत के नीति-नियन्ताओं ने विकेन्द्रीकरण के महत्त्व को समझा। संविधान में इसके लिए विभिन्न प्रावधान कर गाँवों में ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और शहरों में नगरपालिकाओं आदि की स्थापना हुई। विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को और मजबूत और प्रभावी बनाने हेतु सन् 1992 में संविधान संशोधन कर बड़ा कदम उठाया गया, जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवस्था की गई-
- (1) स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से कराना संवैधानिक वाध्यता है।
- (2) निर्वाचित स्वशासी निकायों में सदस्यों और पदाधिकारियों के पदों हेतु अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए उपयुक्त सीटे आरक्षित हैं। महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए भी उपयुक्त संख्या में सीटें आरक्षित हैं।
- (3) प्रत्येक राज्य में पंचायत और नगरपालिका का चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया है। यह स्वतन्त्र रूप से कार्य करता है।
- (4) राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ भाग स्थानीय स्वशासी निकायों को देना पड़ता है ताकि वे समस्त कार्य सुचारु रूप से कर सकें।
प्रश्न 4. “भारतीय संघ एक अर्द्ध-संघीय ढाँचा है।” इसकी पुष्टि में किन्हीं दो कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : भारतीय संघ एक अर्द्ध-संघीय ढाँचा है।
संघीय शासन व्यवस्था में दो स्तर की सरकारें होती हैं और दोनों ही अपने दायित्वों व शक्तियों के प्रयोग हेतु स्वतन्त्र होती हैं किन्तु भारत में संघीय व्यवस्था को पूर्णतः नहीं अपनाया गया है। हमारे देश के संवैधानिक ढाँचे में ऐसी व्यवस्था है कि राज्य सरकारें पूर्ण रूप से स्वतन्त्र नहीं हैं। ये अपनी शक्तियों का प्रयोग केन्द्र सरकार के अधीन रहते हुए करती हैं। युद्ध या आपातकाल के समय तो सम्पूर्ण शक्तियाँ केन्द्र सरकार के नियन्त्रण में आ जाती हैं। इसे निम्न प्रकार से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है-
- सत्ता का विकेन्द्रीकरण – भारत राज्यों का एक संघ है और यहाँ सत्ता का विकेन्द्रीकरण निम्न तीन स्तरों पर किया गया है-
- (A) केन्द्र सरकार – पूरे देश के लिए।
- (B) राज्य सरकार – प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग।
- (C) स्थानीय संस्थाएँ – नगर निगम, ग्राम पंचायत (स्थानीय स्तर पर)।
भारत में शक्तियों और कार्यों का बंटवारा भी स्पष्ट रूप से किया गया है-
- (i) संघ सूची – इसमें प्रतिरक्षा, विदेश, बैंकिंग, संचार, मुद्रा जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के विषय हैं। इन पर केन्द्र सरकार कानून बनाती है।
- (ii) राज्य सूची – इसमें पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, कृषि, सिंचाई जैसे प्रान्तीय महत्त्व के विषय आते हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है।
- (iii) समवर्ती सूची – इसमें शिक्षा, वन, मजदूर संघ, विवाह जैसे विषय शामिल हैं। इन पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र तथा राज्य दोनों सरकारों को है। लेकिन जब दोनों के कानूनों में टकराव हो तो केन्द्र सरकार द्वारा बनाया कानून ही मान्य होता है।
- (iv) अवशिष्ट – अवशिष्ट विषयों की सूची में वे विषय रखे गए जो तीनों सूचियों में शामिल नहीं थे या जो नए विषय उभरे हैं। इन पर केन्द्र सरकार कानून बनाती है।
- इकहरी नागरिकता – प्रायः संघीय शासन व्यवस्था वाले देशों में दोहरी नागरिकता का प्रावधान होता है किन्तु भारत में इकहरी नागरिकता का प्रावधान है। स्पष्ट है कि भारत की संघीय व्यवस्था पूर्णतया संघीय न होकर अर्द्ध-संघीय है।
प्रश्न 5. संविधान की संघीय व्यवस्था क्या है? भारतीय संघवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। V IMP
उत्तर : संघवाद-संघवाद संवैधानिक राज संचालन की उस प्रवृत्ति का प्रारूप है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न राज्य एक संविदा द्वारा एक संघ की स्थापना करते हैं। इस संविदा के अनुसार एक संघीय सरकार एवं अनेक राज्य सरकारे संघ की विभिन्न इकाइयाँ हो जाती हैं।
संविधान की संघीय व्यवस्था
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त भारत में जिस संघीय व्यवस्था को अपनाया गया है, वह ब्रिटिश शासन व्यवस्था में अपनाई गई व्यवस्था का ही प्रतिरूप है। ब्रिटिश शासन व्यवस्था में भारत में केन्द्र के पास अधिक शक्तियाँ थीं तथा उनका अनुसरण करने में भारतीयों को कभी कोई आपत्ति नहीं हुई।
- भारत की एकता तथा अखण्डता को बनाए रखने के लिए भी शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता को महसूस किया गया। संविधान के निर्माताओं ने विगत अनुभव के आधार पर राज्यों को केन्द्र की तुलना में कम अधिकार प्रदान किए।
- आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से भी केन्द्र को शक्तिशाली बनाया गया। ग्रामीण विकास को नई दिशा प्रदान करने में केन्द्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- सामाजिक तथा आर्थिक परिवर्तन के कारण भी सभी संघीय राज्यों में केन्द्र की शक्तियाँ बंटती जा रही हैं। कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण तथा आर्थिक संकट एवं युद्धों के भय को समाप्त करने में राज्यों की अपेक्षा केन्द्र की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण है; अतः केन्द्र को शक्तिशाली बनाना अपरिहार्य है।
- भारत के राजनीतिज्ञों तथा विधिवेत्ताओं ने यह भी महसूस किया कि यदि केन्द्र को शक्तिशाली न बनाया गया तो राज्य आपस में मिलकर केन्द्र के विरुद्ध कोई भी पड्यन्त्र रच सकते हैं अथवा किसी विदेशी राष्ट्र को देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
भारतीय संघवाद की प्रमुख विशेषताएँ
- लिखित एवं कठोर संविधान- भारतीय संविधान लिखित संविधान है। इसमे 441 अनुच्छेद हैं। इसका निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया था। संविधान कठोर है क्योकि इसका संशोधन विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा किया जाता है। सविधान संशोधन में केन्द्र तथा राज्य दोनों की समान भूमिका है।
- शक्तियों का विभाजन- संविधान द्वारा केन्द्र तथा राज्यों में शक्तियों का विभाजन किया गया है। इस सम्बन्ध में तीन सूचियों- केन्द्र सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का निर्माण किया गया है। अवशिष्ट शक्तियों केन्द्र को प्रदान की गई हैं।
- स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका- शक्तियों के विभाजन को बनाए रखने तथा संविधान की रक्षा करने के उद्देश्य से स्वतन्त्र, सर्वोच्च तथा निष्पक्ष न्यायपालिका की भी व्यवस्था की गई है।
- एकात्मकता की ओर झुकी हुई संघात्मक व्यवस्था– भारतीय संघवाद की यह प्रमुख विशेषता है कि यह एकात्मकता की ओर झुकी है। इसलिए कुछ विद्वानों ने इसे अर्द्ध-संघ की संज्ञा प्रदान की है तो कुछ ने इसके शरीर को संघात्मक तथा आत्मा को एकात्मक की संज्ञा प्रदान की है।
- इकहरी नागरिकता तथा इकहरा संविधान– भारतीय संघ में अन्य देशों की संघात्मकता के विपरीत इकहरी नागरिकता तथा इकहरे संविधान को व्यवस्था है।
- राज्य सभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व- भारतीय संघ में राज्य सभा में राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं किया गया है। छोटे राज्यों की तुलना में बड़े राज्यों का अधिक प्रतिनिधित्व है।
- राज्यों को अपनी भाषा तथा लिपि बनाए रखने का अधिकार– भारत में राज्यों को अपनी संस्कृति, भाषा तथा लिपि को बनाए रखने का अधिकार है। किसी राज्य में उसकी इच्छा के विपरीत अन्य भाषा को थोपा नहीं जाएगा।