संकेत बिन्दु-प्रस्तावना, सदाचार का अर्थ, सदाचार का महत्त्व, सच्चरित्रता, धर्म की प्रधानता, निष्कर्ष
प्रस्तावना
संसार को सभ्यता और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले महापुरुष, साधु-संत और भगवान अपने सदाचार के बल पर ही शान्ति और अहिंसा का संदेश फैलाने में सफल हुए हैं। गौतम बुद्ध ने सदाचार का पालन करके भगवान का दर्जा प्राप्त किया। उनके विचार, आचरण और बौद्ध धर्म ने न केवल भारत में, बल्कि एशिया के कई देशों में अपनी जगह बनाई। एक मनुष्य जब सदाचार की राह पकड़ता है, तो वह भगवान जैसा बन सकता है। सदाचारी व्यक्ति हमेशा सुखी, धार्मिक, बुद्धिमान और दीर्घायु होता है। इसलिए, हमें सदाचार का पालन करना चाहिए, क्योंकि सदाचार से आयु, सम्पत्ति और बुराइयों से मुक्ति मिलती है।
सदाचार का अर्थ
“सदाचार” शब्द संस्कृत के दो शब्दों—”सत्” और “आचार”—से बना है, जिसका अर्थ है सज्जन का आचरण। यह सत्य, अहिंसा, ईश्वर और विश्वास की दिशा में किया गया आचरण है। जो व्यक्ति इन गुणों का पालन करता है, उसे सदाचारी कहा जाता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति बुरे आचरण करता है, वह दुराचारी कहलाता है। दुराचारी व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है और समाज में उसका अपमान होता है।
कहा जाता है कि, “आचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते।” इसका मतलब है कि अगर किसी व्यक्ति का आचरण अच्छा नहीं है, तो वह वेद या धार्मिक शिक्षा भी उसे सुधार नहीं सकती। सदाचार से व्यक्ति का कल्याण होता है और समाज में उसका सम्मान बढ़ता है।
सदाचार का महत्त्व
भारतीय संस्कृति में सदाचार का विशेष महत्त्व है। सदाचार वह आचरण है, जो समाज का कल्याण करता है और व्यक्ति को सुख-शान्ति प्रदान करता है। इसके कारण व्यक्ति को कभी कोई कष्ट नहीं होता। मनुष्य ही वह प्राणी है, जो सदाचार और दुराचार के बीच अंतर कर सकता है, जबकि अन्य प्राणियों को यह ज्ञान नहीं होता।
सच्चरित्रता
सच्चरित्रता, या अच्छा चरित्र, सदाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कहा गया है, “यदि धन नष्ट हो जाए तो कोई बड़ा नुकसान नहीं होता, स्वास्थ्य खराब हो जाने से कुछ हानि होती है, लेकिन अगर व्यक्ति का चरित्र नष्ट हो जाए तो उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है।” महाभारत में एक कथा है, जिसमें एक राजा का शील (अच्छा आचरण) नष्ट हो जाने के बाद उसका धर्म, यश, और धन सब कुछ नष्ट हो गया। इस प्रकार, विद्वानों के अनुसार, अच्छे शील और सदाचार को जीवन में अपनाना आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल व्यक्ति को सुख और शान्ति देता है, बल्कि समाज में उसे सम्मान भी प्राप्त होता है।
धर्म और सदाचार का सम्बन्ध
भारत एक आध्यात्मिक देश है, और यहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति धर्म प्रधान है। धर्म से ही मनुष्य की लौकिक और आत्मिक उन्नति होती है। धर्म व्यक्ति की आत्मा को उन्नत करता है और उसे पतन से बचाता है। अगर धर्म का पालन किया जाए, तो उसे सदाचार के रूप में देखा जा सकता है।
सदाचार में वही गुण होते हैं, जो धर्म में होते हैं। सदाचार के आधार पर ही धर्म की स्थिति सम्भव है। वह आचरण, जो मनुष्य को ऊँचा उठाता है और उसे चरित्रवान बनाता है, वही धर्म है और वही सदाचार है।
निष्कर्ष
सदाचार मनुष्य के जीवन का ऐसा मार्गदर्शक है, जो उसे बुरे विचारों से दूर रखता है और अच्छे विचारों की ओर प्रेरित करता है। जब मनुष्य अपने मन की चंचलता पर काबू पा लेता है, तो वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी विवेकानन्द जैसे महान व्यक्तित्वों ने अपने सदाचार और आचरण से पूरे विश्व को प्रभावित किया।
इसलिए, हमें भी अपने जीवन में सदाचार का पालन करना चाहिए ताकि हम न केवल स्वयं को, बल्कि समाज और देश को भी आगे बढ़ा सकें।