‘रश्मिरथी’ रचना का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। (2005, 06, 07)
अथवा ‘रश्मिरथी’ शीर्षक/नामकरण की सार्थकता पर विचार कीजिए। (2006, 08)
अथवा “एक पुरातन कथा पर आधारित होते हुए भी ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य अपने भीतर से आधुनिक भारतीय समाज की कमजोरियों पर परोक्ष रूप से प्रहार करता है।” सिद्ध कीजिए।
अथवा ”रश्मिरथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु अतीत के धरातल पर वर्तमान का बोध है। कीजिए।
‘रश्मिरथी’ शीर्षक/नामकरण की सार्थकता
राष्ट्रकवि रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य ‘महाभारत’ के प्रसिद्ध पात्र कर्ण के चरित्र की विशेषताओं पर आधारित है। कर्ण की प्रतिभा, सामाजिक बहिष्कार के कारण उसके मन की व्यथा एवं उसके तेजस्वी व्यक्तित्व को प्रकाशित करना ही इस खण्डकाव्य का उद्देश्य है। इस दृष्टिकोण से कवि ने इसका नामकरण कर्ण के व्यक्तित्व को ही आधार बनाकर किया है। कर्ण को ‘रश्मिरथी’ के नाम से सम्बोधित करने के निम्नलिखित कारण है-
- पौराणिक विवरण के अनुसार कर्ण सूर्य का पुत्र है। सूर्य की रश्मियों अर्थात् उसकी किरणों को उसका पुत्र ही कहा जा सकता है। सूर्य की किरणों का साकार रूप ‘रश्मिरथी’ है।
- कर्ण की प्रतिभा सूर्य की किरणों के समान दीप्तिमान् थी। वह प्रतिभा के इस रथ का रथी था, इसलिए भी उसे ‘रश्मिरथी’ कहा जा सकता है।
- कर्ण के व्यक्तित्व में जो गुण थे, वे सूर्य की रश्मियों की तरह गुणों के प्रकाश को प्रसारित करने वाले थे, इसलिए भी उसे ‘रश्मिरथी’ कहा जा सकता है।
- यदि हम कर्ण को समाज के उपेक्षित वर्ग के प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व का प्रतीक मान लें तो भी ऐसी प्रतिभा को किरणों की संज्ञा दी जा सकती है और ऐसे प्रतिभावान् को ‘रश्मिरथी’ कहा जा सकता है। इन समस्त दृष्टिकोणों से इस खण्डकाव्य का नामकरण अत्यन्त उपयुक्त है।
‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य का उद्देश्य
कवि ने इस खण्डकाव्य के माध्यम से समाज के उपेक्षित एवं प्रतिभावान् मनुष्यों के स्वर को बाणी दी है। इसमें जन्म, वर्ण, कुल आदि के नाम पर समाज में किए जा रहे व्यक्तित्व हनन का परिणाम दिखलाया है। यदि कर्ण को बचपन से यथोचित सम्मान प्राप्त होता तो वह कदाचित् कौरवों का साथ न देता और सम्भवतः महाभारत का युद्ध भी न होता। कवि ने यह स्पष्ट किया है कि प्रतिभाएँ कुण्ठित होकर समाज को ही विनाश की खाई में ढकेल देती हैं, इसलिए योग्य प्रतिभा को जन्म, कुल, जाति आदि के नाम पर प्रताड़ित एवं कुण्ठित करना समाज का ही दुर्भाग्य बन जाता है। इसमें भारतीय समाज में नारियों की मनोदशा एवं समाज में उनकी स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है और भौतिक स्वार्थ में लीन संसार को सावधान भी किया गया है। इस प्रकार उद्देश्य की दृष्टि से ‘रश्मिरथी’ एक सफल खण्डकाव्य है।