कथावस्तु पर आधारित प्रश्न
(मुजफ्फरनगर, बुलन्दशहर, मथुरा, वाराणसी, फतेहपुर, उन्नाव तथा देवरिया जनपदों के लिए।)
प्रथम सर्ग : कर्ण का शौर्य प्रदर्शन (2017)
प्रश्न- ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। (2020, 18)
कर्ण का जन्म कुन्ती के गर्भ से हुआ था और उसके पिता सूर्य थे। लोकलाज के भय से कुन्ती ने नवजात शिशु को नदी में बहा दिया, जिसे सूत (सारथि) ने बचाया और उसे पुत्र रूप में स्वीकार कर उसका पालन-पोषण किया। सूत के घर पलकर भी कर्ण महान् धनुर्धर, शूरवीर, शीलवान, पुरुषार्थी और दानवीर बना। एक बार द्रोणाचार्य ने कौरव व पाण्डव राजकुमारों के शस्त्र कौशल का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। सभी दर्शक अर्जुन की धनुर्विद्या के प्रदर्शन को देखकर आश्चर्यचकित रह गए, किन्तु तभी कर्ण ने सभा में उपस्थित होकर अर्जुन को द्वन्द्वयुद्ध के लिए ललकारा। कृपाचार्य ने कर्ण से उसकी जाति और गोत्र के विषय में पूछा। इस पर कर्ण ने स्वयं को सूतपुत्र बताया, तब निम्न जाति का कहकर उसका अपमान किया गया। उसे अर्जुन से द्वन्द्वयुद्ध करने के अयोग्य समझा गया, पर दुयोंधन कर्ण की वीरता एवं तेजस्विता से अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसे अंगदेश का राजा घोषित कर दिया। साथ ही उसे अपना अभिन्न मित्र बना लिया। गुरु द्रोणाचार्य भी कर्ण की वीरता को देखकर चिन्तित हो उठे और कुन्ती भी कर्ण के प्रति किए गए बुरे व्यवहार के लिए उदास हुई।
द्वितीय सर्ग : आश्रमवास
प्रश्न- ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के ‘द्वितीय सर्ग’ की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। (2019, 18)
अथवा ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। Imp (2017, 16)
राजपुत्रों के विरोध से दुःखी होकर कर्ण ब्राह्मण रूप में परशुराम जी के पास धनुर्विद्या सीखने के लिए गया। परशुराम जी ने बड़े प्रेम के साथ कर्ण को धनुर्विद्या सिखाई। एक दिन परशुराम जी कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे, तभी एक कीड़ा कर्ण की जंघा पर चढ़कर खून चूसता-चूसता उसकी जंघा में प्रविष्ट हो गया। रक्त बहने लगा, पर कर्ण इस असहनीय पीड़ा को चुपचाप सहन करता रहा और शान्त रहा, क्योंकि कहीं गुरुदेव की निद्रा में विघ्न न पड़ जाए। जंघा से निकले रक्त के स्पर्श से गुरुदेव की निद्रा भंग हो गई। अब परशुराम को कर्ण के ब्राह्मण होने पर सन्देह हुआ। अन्त में कर्ण ने अपनी वास्तविकता बताई। इस पर परशुराम ने कर्ण से ब्रह्मास्त्र के प्रयोग का अधिकार छीन लिया और उसे श्राप दे दिया। कर्ण गुरु के चरणों का स्पर्श कर वहाँ से चला आया।
तृतीय सर्ग : कृष्ण सन्देश
प्रश्न- ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथावस्तु लिखिए। V Imp. (2018, 14, 13, 12)
बारह वर्ष का वनवास और अज्ञातवास की एक वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने पर पाण्डव अपने नगर इन्द्रप्रस्थ लौट आते हैं और दुयोंधन से अपना राज्य वापस माँगते हैं, लेकिन दुर्योधन पाण्डवों को एक सूईं की नोक के बराबर भूमि देने से भी इनकार कर देता है। श्रीकृष्ण सन्धि प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास आते हैं। दुर्योधन इस सन्धि के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता और श्रीकृष्ण को ही बन्दी बनाने का प्रयास करता है। श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाकर उसे भयभीत कर दिया। दुर्योधन के न मानने पर श्रीकृष्ण ने कर्ण को समझाया। श्रीकृष्ण ने कर्ण को उसके जन्म का इतिहास बताते हुए उसे पाण्डवों का बड़ा भाई बताया और युद्ध के दुष्परिणाम भी समझाए, लेकिन कर्ण ने श्रीकृष्ण की बातों को नहीं माना और कहा कि वह युद्ध में पाण्डवों की ओर से सम्मिलित नहीं होगा। दुर्योधन ने उसे जो सम्मान और स्नेह दिया है, वह उसका आभारी है।
चतुर्थ सर्ग : कर्ण के महादान की कथा (सर्वाधिक प्रभावशाली घटना)
जब कर्ण ने पाण्डवों के पक्ष में जाने से इनकार कर दिया, तो इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण करके कर्ण के पास आए। वह कर्ण की दानवीरता की परीक्षा लेना चाहते थे। कर्ण इन्द्र के इस छल-प्रपंच को पहचान गया, परन्तु फिर भी उसने इन्द्र को सूर्य के द्वारा दिए गए कवच-और कुण्डल दान में दे दिए। इन्द्र कर्ण की इस दानवीरता को देखकर अत्यन्त लज्जित हुए। उन्होंने स्वयं को प्रवंचक, कुटिल और पापी कहा तथा उन्होंने प्रसन्न होकर कर्ण को ‘एकघ्नी’ नामक अमोघ शक्ति प्रदान की
पंचम सर्ग : माता की विनती
प्रश्न- ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग की कथावस्तु लिखिए। (2020, 16)
अथवा ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के ‘पंचम सर्ग’ की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। (2016)
अथवा ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग में कुन्ती और कर्ण के संवाद का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। (2011)
कुन्ती को चिन्ता है कि रणभूमि में मेरे ही दोनों पुत्र कर्ण और अर्जुन परस्पर युद्ध करेंगे। इससे चिन्तित हो वह कर्ण के पास जाती है और उसे उसके जन्म के विषय में सब बताती है। कर्ण कुन्ती की बातें सुनकर भी दुर्योधन का साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता है, किन्तु अर्जुन को छोड़कर अन्य किसी पाण्डव को न मारने का वचन कुन्ती को दे देता है। कर्ण कहता है कि तुम प्रत्येक दशा में पाँच पाण्डवों की माता बनी रहोगी। कुन्ती निराश हो जाती है। कर्ण ने यद्ध समाप्त होने के बाद कुन्ती की सेवा करने की बात कही। कुन्ती निराश मन से लौट आती है।
षष्ठ सर्ग : शक्ति परीक्षण
प्रश्न– ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। (2019)
श्रीकृष्ण इस बात से भली-भाँति परिचित थे कि कर्ण के पास इन्द्र द्वारा दी गई ‘एकघ्नी’ शक्ति है। जब कर्ण को सेनापति बनाकर युद्ध में भेजा गया, तो श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को कर्ण से लड़ने के लिए भेज दिया। दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने घटोत्कच को एकघ्नी शक्ति से मार दिया। इस विजय से कर्ण अत्यन्त दुःखी हुए, पर पाण्डव अत्यन्त प्रसन्न हुए। श्रीकृष्ण ने अपनी नीति से अर्जुन को अमोघशक्ति से बचा लिया था, परन्तु कर्ण ने फिर भी छल से दूर रहकर अपने व्रत का पालन किया।
सप्तम सर्ग : कर्ण के बलिदान की कथा
प्रश्न– ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के ‘सप्तम सर्ग’ की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। (2018)
अथवा ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग की कथा (कथावस्तु) संक्षेप में लिखिए। Imp (2018, 16)
अथवा ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के अन्तिम/सप्तम सर्ग की कथा/कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए। (2020, 12)
कर्ण का पाण्डवों से भयंकर युद्ध होता है। वह युद्ध में अन्य सभी पाण्डवों को पराजित कर देता है, पर माता कुन्ती को दिए गए वचन का स्मरण कर सबको छोड़ देता है। कर्ण और अर्जुन आमने-सामने हैं। दोनों ओर से घमासान युद्ध होता है। अर्जुन कर्ण के बाणों से विचलित हो उठते हैं। एक बार तो वह मूर्छित भी हो जाते हैं। तभी कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में फँस जाता है। कर्ण रथ से उतरकर पहिया निकालने लगता है, तभी श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्ण पर बाण चलाने की आज्ञा देते हैं। श्रीकृष्ण के संकेत करने पर अर्जुन निहत्थे कर्ण पर प्रहार कर देते हैं। कर्ण की मृत्यु हो जाती है, पर वास्तव में नैतिकता की दृष्टि से तो कर्ण ही विजयी रहता है। श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि विजय तो अवश्य मिली, पर मर्यादा खोकर।