काव्य का सृजन करने वाले कवि रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 1889 ई. में जिला जौनपुर के अन्तर्गत कोइरीपुर ग्राम के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता पं. रामदत्त त्रिपाठी, ईश्वर में आस्था रखने वाले ब्राह्मण थे। केवल नवीं कक्षा तक पढ़ने के पश्चात् इनकी पढ़ाई छूट गई। बाद में इन्होंने स्वतन्त्र रूप से हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला तथा गुजराती का गहन अध्ययन किया तथा साहित्य सेवा को अपना लक्ष्य बनाया।
ये हिन्दी साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग के प्रचार मन्त्री भी रहे। इन्होंने दक्षिणी साहित्य मे राज्यों में हिन्दी के प्रचार हेतु सराहनीय कार्य किया। वर्ष 1962 में इनका निधन हो गया।
साहित्यिक परिचय-
त्रिपाठी जी मननशील, विद्वान् और परिश्रमी थे। अपनी कृतियों का प्रकाशन भी इन्होंने स्वयं ही किया। ये द्विवेदी युग के उन साहित्यकारों में से हैं, जिन्होंने द्विवेदी-मण्डल के प्रभाव से पृथक् रहकर अपनी मौलिक प्रतिभा से साहित्य के क्षेत्र में कई कार्य किए। इन्होंने भावप्रधान काव्य की रचना की। राष्ट्रीयता, देशप्रेम, सेवा, त्याग आदि भावना प्रधान विषयों पर इन्होंने उत्कृष्ट साहित्य की रचना की।
कृतियाँ-
त्रिपाठी जी ने हिन्दी की विविध विधाओं पर इन्होंने अपनी लेखनी चलाई। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं
- खण्डकाव्य- पथिक, मिलन और स्वप्न
- उपन्यास- वीरांगना और लक्ष्मी
- नाटक- सुभद्रा, जयन्त और प्रेमलोक
- कहानी संग्रह- स्वप्नों के चित्र
- आलोचना- तुलसीदास और उनकी कविता
- सम्पादित रचनाएँ- कविता कौमुदी और शिवाबावनी
- संस्मरण- तीस दिन मालवीय जी के साथ
- बाल साहित्य- आकाश की बातें, बालकथा कहानी, गुपचुप कहानी, फूलरानी और बुद्धिविनोद
- जीवन चरित- महात्मा बुद्ध तथा अशोक
- टीका साहित्य- श्रीरामचरितमानस’ का टीका।
भाषा शैली-
त्रिपाठी जी की भाषा भावानुकूल, प्रवाहपूर्ण, सरल खड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम विलीन हो शब्दों एवं सामासिक पदों की भाषा में अधिकता है। शैली सरल, स्पष्ट एवं प्रवाहमयी है। मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका प्रकृति-चित्रण वर्णनात्मक शैली पर आधारित है। तथा प्राचीन और आधुनिक दोनों ही छन्दों में काव्य रचना की है। इन्होंने श्रृंगार, शान्त और करुण रस का प्रयोग किया है। अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग दर्शनीय है।
हिन्दी साहित्य में स्थान-
त्रिपाठी जी एक समर्थ कवि, सम्पादक एवं कुशल पत्रकार थे। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित इनका काव्य अत्यन्त हृदयस्पर्शी है। इनके निबन्ध हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। इस प्रकार ये कवि, निबन्धकार, सम्पादक आदि के रूप में हिन्दी में सदैव जाने जाएँगे।