वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1
प्रश्न 1. भारत में बहुदलीय व्यवस्था ने प्रजातन्त्र को किस प्रकार मजबूत किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : भारत विभिन्नताओं का देश है। विश्व में ऐसा अन्य कोई देश नहीं जहाँ भारत जैसी विविधताएँ पायी जाती हैं। भारत में विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायो, जातियों के व्यक्ति निवास करते हैं जिनके हित एक-दूसरे से भिन्न हैं। ऐसी परिस्थिति में एकदलीय या द्विदलीय प्रतिनिधित्व प्रणाली सभी के हितों को पूरा नहीं कर सकती। अतः बहुदलीय व्यवस्था ने प्रत्येक धर्म, सम्प्रदाय एवं जाति को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान कर प्रजातन्त्र को सुदृढ़ किया है।
प्रश्न 2. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना तथा नीतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1924 ई० में हुई थी। स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान यह दल कभी कांग्रेस के पक्ष में रहा तो कभी विरोध में। इस दल का झुकाव रूस की तरफ रहा है। यह दल लेनिन तथा मार्क्स द्वारा प्रतिपादित विचारधारा में विश्वास रखता है तथा श्रमिकों की सरकार बनाना चाहता है। 1964 ई० में इस दल में फूट पड़ गई थी तथा यह दो भागों में विभाजित हो गया। एक दल का नाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ही रहा तथा दूसरे दल का नाम मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी रख दिया गया।
दलों की प्रमुख नीतियाँ- दलों की प्रमुख नीतियाँ निम्नलिखित है-
- ये दल साम्राज्यवादी तथा पूँजीवादी नीतियों के विरोधी हैं।
- ये पूँजीवादी लोकतन्त्र के विरुद्ध हैं तथा ऐसे लोकतन्त्र की स्थापना करना चाहते हैं जिसमें श्रमिकों तथा किसानों की सरकार हो। (3) समस्त बड़े उद्योगों, बीमा कम्पनियों व बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना।
- निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करना।
- महिलाओं को पुरुषों के समान लोकतान्त्रिक अधिकार प्रदान करना।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. राजनीतिक दल से क्या तात्पर्य है? लोकतन्त्र में इन दलों का क्या महत्त्व है?।
उत्तर : राजनीतिक दल: अर्थ तथा परिभाषा
राजनीतिक दल व्यक्तियों का ऐसा संगठन होता है जिनकी सामान्य विचारधारा तथा सिद्धान्त होते हैं तथा जिनका उद्देश्य सामूहिक प्रयासों द्वारा सत्ता प्राप्त करना होता है। राजनीतिक दल राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। राजनीतिक दल की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित है-
लीकॉक के शब्दों में, “राजनीतिक दल संगठित राजनीति के उस समूह को कहते हैं जो संगठित रूप से एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हैं। उनके विचार सार्वजनिक प्रश्नों पर एक जैसे होते है तथा सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए मतदान की शक्ति का प्रयोग करके शासन पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते हैं।”
लास्की के शब्दों में, “राजनीतिक दल से तात्पर्य नागरिकों के उस संगठित समूह से है जो एक संगठन के रूप में कार्य करते हैं।”
गैटिल के शब्दों में, “राजनीतिक दल न्यूनाधिक संगठित उन नागरिकों का एक समूह है जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हैं जिनका उद्देश्य अपने मताधिकार के प्रयोग द्वारा सरकार पर अधिकार जमाना तथा अपनी सामान्य नीति को लागू करना होता है।”
प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व –
प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-
- (1) स्वस्थ लोकमत का निर्माण करना।
- (2) निर्वाचनों का संचालन करना।
- (3) सभी वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करना।
- (4) मतों एवं सिद्धान्तों का प्रचार एवं प्रसार करना।
- (5) सरकार का निर्माण और संचालन करना।
- (6) शासन सत्ता को मर्यादित रखना।
- (7) शासन के विभिन्न अंगों में समन्वय स्थापित करना।
वर्तमान में कोई भी लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था दलों के अभाव में कार्य नहीं कर सकती है। नेपाल में कुछ समय पूर्व दलविहीन लोकतन्त्र के सिद्धान्त को अपनाने का प्रयास किया गया परन्तु यह प्रयास पूर्णतया असफल हो गया।
प्रश्न 2. लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं की चर्चा कीजिए।
अथवा राजनीतिक दलों की लोकतन्त्र में क्या उपयोगिता है? भारत के दो राष्ट्रीय एवं दो क्षेत्रीय दलों के नाम बताइए।
उत्तर : राजनीतिक दलों की लोकतन्त्र में निम्नलिखित रूप में उपयोगिता है-
- जनमत का निर्माण करना – जनमत की शक्ति लोकतन्त्र का प्राण है। राजनीतिक दलों द्वारा ही स्वस्थ, प्रबुद्ध तथा जागरूक जनमत का निर्माण किया जाता है। राजनीतिक दल शासन से सम्बन्धित सभी प्रकार की जानकारियाँ जनता को प्रदान करते हैं जो जनमत के निर्माण मे सहायक होती है।
- जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करना – राजनीतिक दल अपने विचारों, सिद्धान्तों अथवा गतिविधियों द्वारा जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करते हैं। राजनीतिक शिक्षा प्राप्त जनता राजनीति में भाग लेती है।
- सरकार का गठन करना – राजनीतिक दल स्वयं अथवा अन्य दलों के सहयोग से सरकार का गठन करते हैं तथा जनता को सुशासन प्रदान करने का प्रयास करते हैं।
- सरकार की आलोचना करना -सरकार का गठन सत्तारूढ़ दल द्वारा किया जाता है परन्तु जो सत्ता से वंचित हो जाता है वह विरोधी दल होता है। विरोधी दल सरकार की अनुचित अथवा जन-विरोधी नीतियों एवं कार्यक्रमों की आलोचना करता है तथा लोकतन्त्र की सुरक्षा करता है।
- उम्मीदवारों का चयन करना – चुनावों में राजनीतिक दल भाग लेते हैं। वे चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करते हैं तथा उन्हें दल का चुनाव चिह्न प्रदान किया जाता है।
- सदस्यों में एकता स्थापित करना – राजनीतिक दलों का प्रमुख कार्य अपने सदस्यों में एकता एवं सिद्धान्तों के प्रति आस्था बनाए रखना है।
- दलों की नीतियों तथा कार्यक्रमों का निर्धारण – राजनीतिक दल समय-समय पर अपनी नीतियों तथा कार्यक्रमों की घोषणा जनता के बीच करते रहते हैं जिससे उन्हें जन-समर्थन प्राप्त होता रहे।
- सरकार का विरोध करना– राजनीतिक दल संवैधानिक साधनों जैसे धरना, प्रदर्शनो, रैलियों, सभाओं तथा हड़तालो द्वारा सरकार की अनुचित नीतियो का विरोध भी करते हैं।
- मतदाताओं का मार्गदर्शन करना– राजनीतिक दल चुनाव के समय मतदाताओं का उचित मार्गदर्शन कर उन्हें बताते हैं कि इन्हें किस दल के पक्ष में मतदान करना है।
- राष्ट्र का विकास करना- राजनीतिक दल अपनी नीतियों तथा कार्यक्रमों द्वारा राष्ट्र के विकास को नवीन गति तथा दिशा प्रदान करते हैं। राजनीतिक दल राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में विश्वास रखते हैं।
भारत के दो राष्ट्रीय एवं दो क्षेत्रीय दल निम्नलिखित हैं-
राष्ट्रीय दल कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी।
क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी, अकाली दल।
प्रश्न 3. भारत में राजनीतिक दलों के भीतर आन्तरिक लोकतन्त्र की कमी क्यों है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: भारत में यह प्रवृत्ति बन गई है कि किसी दल की सम्पूर्ण शक्ति एक या कुछेक नेताओं के हाथ में सिमट जाती है तथा पार्टियों के पास न सदस्यो की खुली सूची होती है, न ही नियमित रूप से आन्तरिक चुनाव होते हैं। परिणामस्वरूप पार्टी के नाम पर सारे निर्णय लेने का अधिकार पार्टी के कुछ नेता हथिया लेते हैं। पार्टी के सदस्य भी भेड़-चाल की तरह प्रमुख नेताओं के पीछे-पीछे चलते हैं, जैसे कांग्रेस को गांधी-नेहरू परिवार का सहारा है, तो तृणमूल कांग्रेस को ममता बनर्जी का, राष्ट्रीय जनता दल को लालू प्रसाद यादव का। पार्टी में आन्तरिक लोकतन्त्र न होने के कारण सामान्य कार्यकर्ता के लिए नेता बनने की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है। इसका लाभ शक्तिशाली नेता अपने परिवार के सदस्यों को आगे बढ़ाने में उठाते हैं, जिससे वंशवाद को बढ़ावा मिलता है।
प्रश्न 4. राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियों हैं?
उत्तर : राजनीतिक दलों के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ-
राजनीतिक दलों के समक्ष विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ निम्नलिखित है-
- गलतियों के लिए राजनीतिक दलों पर दोषारोपण-लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था में जनता का पूर्ण विश्वास राजनीतिक दलों में होता है। लोकतान्त्रिक राजनीति का संचालन राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। अतः शासन की गलतियों के कारण जनता को जो कठिनाई होती है, उसका दोषारोपण राजनीतिक दलों के ऊपर किया जाता है।
- आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव– यद्यपि राजनीतिक दल लोकतन्त्र की दुहाई देते हैं, परन्तु उनमें आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव देखने को मिलता है।
- साधारण सदस्यों की उपेक्षा- यह भी देखा गया है कि दलो मे साधारण सदस्यों की उपेक्षा की जाती है, उसे दल की नीतियों के निर्माण में सहभागिता प्रदान नहीं की जाती है, वह दल के कार्यक्रमों के बारे में अनभिज्ञ बना रहता है। जो सदस्य दल की नीतियों का विरोध करते हैं उन्हें दल की प्राथमिक सदस्यता से वंचित कर दिया जाता है।
- धन की महत्ता– वर्तमान में राजनीतिक दलों में भी धन की महत्ता बढ़ती जा रही है। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा अपने प्रत्याशियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। सभी राजनीतिक दल चुनावो मे विजय प्राप्त करना चाहते हैं। अतः राजनीतिक दल चन्दों के माध्यम से धन का संग्रह करते हैं। सम्पूर्ण विश्व में लोकतन्त्र के समर्थक देशों ने लोकतान्त्रिक राजनीति में अमीर लोग तथा बड़ी कम्पनियों की बढ़ती भूमिका के प्रति चिन्ता व्यक्त की है।
- सार्थक विकल्प का अभाव – राजनीतिक दलों के समक्ष महत्त्वपूर्ण चुनौती राजनीतिक दलों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति की है। सार्थक विकल्प का तात्पर्य यह है कि राजनीतिक दलों की नीतियों तथा कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण अन्तर हो। वर्तमान विश्व के विभिन्न दलों के बीच वैचारिक अन्तर कम होता गया है तथा यह प्रवृत्ति सम्पूर्ण विश्व में दिखाई देती है।
- राजनीति का अपराधीकरण- वर्तमान में राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है। राजनीतिक दलो के समक्ष उनमें अपराधी तत्त्वों की बाहरी घुसपैठ तथा प्रभाव है। राजनीतिक दल चुनावों में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की सहायता लेते हैं। राजनीतिक दल उन्हें अपनी पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार भी बनाने में संकोच नहीं करते हैं।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों के सम्मुख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
प्रश्न 5. ‘भारतीय जनता पार्टी’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: भारतीय जनता पार्टी
अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में अप्रैल 1980 ई० में ‘भारतीय जनता पार्टी’ के नाम से एक नए दल की स्थापना की गई थी। भारतीय जनता पार्टी ने अपने दलीय कार्यक्रम में राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय एकीकरण पर बल दिया और प्रान्तीय, क्षेत्रीय अथवा जातीय हितों को, राष्ट्रीय हितों के सम्मुख गौण माना। यह दल प्रजातन्त्र और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए सदैव कटिबद्ध रहा है। यह दल सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता की नीति अपनाने पर जोर देता रहा है। इस दल की नीति के अन्तर्गत अल्पसंख्यकों के हितों का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा तथा उनके जीवन और सम्पत्ति को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इस दल ने गांधीवादी समाज के लक्ष्य को अपनाना निश्चित किया। इसके अन्तर्गत आर्थिक व्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में सहकारी पद्धति और न्याय पद्धति का प्रयोग किया जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को जीविका के साधन उपलब्ध कराए जाएँगे तथा नागरिकों को चहुंमुखी विकास के लिए अपेक्षित स्वतन्त्रताएँ प्रदान की जाएँगी। समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु दल अहिंसात्मक साधनों को अपनाने पर भी जोर देता रहा है। इस दल के नेताओं का कहना है कि निर्धनता तथा व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के शोषण को दूर किया जाना अति आवश्यक है तथा ऐसी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर बल दिया जाना चाहिए, जिससे जीवन कुछ मानको तथा मूल्यों द्वारा मार्गदर्शित हो।
बारहवीं लोकसभा के चुनावो में भाजपा को 179 स्थानों पर तथा उसके सहयोगी दलों को 73 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई थी। सन् 1999 में हुए तेरहवीं लोकसभा के चुनावों में भी भाजपा को केवल 182 सीटें प्राप्त हुई। किन्तु उसने अपने सहयोगी दलों की सीटों के आधार पर लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। तेरहवीं लोकसभा के गठन के पूर्व इस दल ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन का गठन किया था। चौदहवीं लोकसभा के चुनावों में इस गठबन्धन को 188 स्थान प्राप्त हुए थे। पन्द्रहवी लोकसभा (2009) में भारतीय जनता पार्टी को मात्र 116 स्थान प्राप्त हुए। वर्ष 2014 में सम्पन्न 16वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा को 282 स्थान प्राप्त हुए। सत्रहवीं लोकसभा (2019) में भारतीय जनता पार्टी को 303 सीटें प्राप्त हुई।
प्रश्न 6. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अतीत में कांग्रेस देश का सबसे शक्तिशाली राजनीतिक दल रहा है। इस दल की स्थापना 1885 ई० में एक अंग्रेज अधिकारी ए० ओ० ह्यूम द्वारा की गई थी। प्रारम्भ में ही इस दल ने राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व किया तथा देश को स्वाधीन कराने में सफलता प्राप्त की। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् कांग्रेस एक राजनीतिक दल बन गया। इसने अपना नया संविधान बनाया, जिसे मुम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में पारित किया गया। इस संविधान के अनुसार “कांग्रेस का लक्ष्य भारत की जनता का कल्याण तथा उन्नति व शान्तिपूर्ण तथा न्यायोचित उपायों से देश में एक ऐसे सहयोगमूलक राज्य की स्थापना करना है, जिसका आधार राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों की समानता, सभी को उन्नति के समान अवसर प्रदान करना तथा विश्व शान्ति तथा बन्धुत्व की स्थापना करना है।”
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पं० जवाहरलाल नेहरू तथा श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे समय तक शासन में बनी रही। पाँचवी लोकसभा निर्वाचन (1971 ई०) के समय कांग्रेस ने अधिक प्रगतिशील समाजवादी नीतियों को अपनाया तथा ‘गरीबी हटाओ’ और ‘बेरोजगारी दूर करो’ का नारा दिया। बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवीपर्स उन्मूलन, भूमिहीनों को भूमि, शहरी सम्पत्ति की सीमावन्दी आदि कुछ कारगर कदम भी उठाए। कांग्रेस ने समाजवाद, प्रजातन्त्र, धर्मनिरपेक्षता, रोजगार मिश्रित अर्थव्यवस्था, शिक्षा-सुधार, महँगाई रोकना तथा विश्व-शान्ति आदि लक्ष्यों की घोषणा की। इस पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’ है। वर्ष 2009 की अप्रैल-मई में सम्पन्न 15वीं लोकसभा के चुनाव में इस दल को 206 स्थान प्राप्त हुए। 16वीं लोकसभा (2014) में इस दल को मात्र 44 स्थान प्राप्त हुए। वर्ष 2019 में सम्पन्न 17वीं लोकसभा के चुनाव मे इस दल को 52 स्थान प्राप्त हुए।
प्रश्न 7. ‘एक-दलीय प्रणाली’ से आप क्या समझते हैं? एक-दलीय प्रणाली के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : एक-दलीय प्रणाली का अर्थ
जिस शासन व्यवस्था में शासन की नीतियों पर एक ही राजनीतिक दल का नियन्त्रण हो और सरकार की नीति का निर्धारण करने में भी वही राजनीतिक दल प्रभावशाली हो, तो वह पद्धति एक दलीय पद्धति कहलाती है। इस व्यवस्था में अन्य राजनीतिक दल भी हो सकते हैं परन्तु इन दलों का शासन की नीतियों या चुनाव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चीन, रूस आदि देशों में एक दलीय पद्धति विद्यमान है
एक-दलीय प्रणाली के गुण-दोष
एक-दलीय पद्धति के प्रमुख गुण निम्नांकित हैं-
(1) एक राजनीतिक दल का ही प्रभाव रहने के कारण राज्य के कार्यों में कम खर्च तथा कम समय लगता है। सभी कार्य सरलतापूर्वक पूर्ण हो जाते हैं। अतएव एक-दलीय शासन प्रणाली मितव्ययी होती है।
(2) एक-दलीय पद्धति में शासन की नीति का निर्माण एक ही दल के नेता द्वारा किया जाता है। इस प्रकार की नीति में स्थायित्व तथा दृढ़ता होती है। इससे प्रशासन में कुशलता पायी जाती है।
(3) एक-दलीय पद्धति में लोकहित की प्रधानता रहती है। लोक-कल्याण की व्यवस्था होना ही एक दलीय पद्धति का सर्वश्रेष्ठ गुण है।
(4) एक दल की प्रधानता के कारण सरकार के कार्यों में अनुशासनशीलता बनी रहती है। इसके अतिरिक्त एक दलीय पद्धति में सदस्यों की संख्या भी सीमित होती है। इसलिए भी एक दलीय सरकार में अनुशासनशीलता बनी रहती है।
(5) एक-दलीय पद्धति में सेना पर एक ही दल का नियन्त्रण होता है। अतएव एक-दलीय सरकार में राज्य का नैतिक संगठन ऊँचा होता है, जो संकटकाल में सुरक्षा प्रदान करता है।
(6) एक-दलीय पद्धति में गुणशील व्यक्तियों को ही प्रशासन में कार्य करने का अवसर दिया जाता है। अतएव इस पद्धति में योग्यतम व्यक्तियों की सेवा सरकार को मिल जाती है।
(7) किसी भी देश में समाजवाद की स्थापना के लिए एक-दलीय प्रणाली आवश्यक ही नहीं, वरन् अनिवार्य भी है।
(8) पिछड़े हुए देशों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से एक दलीय प्रणाली ही उपयुक्त मानी जाती है।
(9) एक-दलीय व्यवस्था में जनता में विभाजन तथा गुटबन्दी का डर समाप्त हो जाता है तथा राष्ट्रीय एकता बनी रहती है।
एक-दलीय पद्धति के प्रमुख दोष निम्नांकित हैं-
(1) एक-दलीय पद्धति में केवल एक ही दल का नियन्त्रण रहता है। अतएव इस पद्धति में व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर एक दल का ही नियन्त्रण रहता है। मतदाता
प्रत्याशी के व्यक्तित्व के आधार पर अपना मतदान करता है।
(2) लोकतन्त्र शासन में सत्तारूढ़ दल तथा शासन की आलोचना के लिए विरोधी दल का होना आवश्यक है, किन्तु एक दलीय पद्धति में इस प्रकार के विरोधी दलों का अभाव पाया जाता है। अतएव एक दलीय पद्धति लोकतन्त्र शासन की विरोधी कहलाती है।
(3) एक-दलीय पद्धति में सरकार पर एक ही दल का नियन्त्रण रहता है। अतएव एक-दलीय पद्धति में एक दल की निरंकुशता बढ़ने का भय रहता है। (4) राजनीतिक सरकार में सत्तारूढ़ दल केवल अपने ही हितों को पूरा करता है। इसलिए वह लोक-कल्याण व लोकहितों की उपेक्षा करता है।
(5) एक-दलीय पद्धति में दल के सदस्य दल के प्रति भक्तिभाव रखते हैं। और राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा करते हैं।
(6) एक-दलीय शासन सभी प्रगतिशील विचारों जैसे लोकतन्त्र, उदारवाद तथा स्वतन्त्रता का विरोधी हो जाता है।