पवन-दूतिका : अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध
पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर–
1. बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली। आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।। आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गन्ध को ले। प्रातःवाली सुपवन इसी काल वातयनों से।। सन्तापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो। धीरे बोली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों।। प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती। क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।
सन्दर्भ -प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग– प्रस्तुत पद्य में राधा द्वारा प्रातःकालीन पवन को फटकार लगाने का वर्णन किया गया है। राधा को लगता है कि प्रातः की सुगन्धित वायु उसके दुःख को और अधिक बढ़ा रही है।
व्याख्या कवि कहता है कि एक दिन जब राधा उदास, खिन्न मन के साथ घर में अकेली बैठी हुई थी और उसकी दोनों आँखों से आँसू बहकर ज़मीन पर गिर रहे थे, तभी प्रातःकालीन सुगन्धित पवन रोशनदानों से होकर घर के अन्दर प्रवेश करती है, किन्तु इससे राधा का दुःख और अधिक बढ़ गया और वह दुःखी होकर पवन को फटकार लगाते हुए बोली कि हे प्रातःकालीन पवन ! तू मुझे और क्यों सता रही है? क्या तू भी समय की कठोरता से दूषित हो गई है? क्या तुझ पर भी समय की क्रूरता का प्रभाव पड़ गया है? कहने का अभिप्राय यह है कि दुःखी राधा को सुगन्धित पवन का झोंका और भी दुःखी कर रहा है। इसे वह पवन की क्रूरता मान रही हैं और पवन से पूछ रही हैं कि आखिर वह क्रूर क्यों हो गई है?
काव्य सौन्दर्य–
भाव पक्ष –
- (i) राधा की मनोदशा का भावपूर्ण चित्रण हुआ है।
- (ii) रस वियोग श्रृंगार
कला पक्ष–
- भाषा खड़ीबोली
- शैली प्रबन्ध
- छन्द मन्दाक्रान्ता
- अलंकार अनुप्रास तथा मानवीकरण
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने राधा की किस स्थिति का वर्णन किया है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने विरहावस्था के कारण दुःखी नायिका (राधा) का वर्णन किया है। जिसके नयनों से अश्रुओं की धारा बह रही है तथा मन को हर्षित एवं आनन्दित करने वाली प्रातःकालीन पवन भी नायिका को दुःखी करती है। नायिका की इसी स्थिति का वर्णन कवि ने किया है।
(iv) नायिका ने पवन को क्रूर क्यों कहा?
उत्तर नायिका का मन खिन्न एवं उदास था। उसके नयन अश्रुओं से भरे हुए थे। नायिका की इस दैन्य दशा में प्रातःकालीन पवन जब सभी में उमंग एवं उत्साह का संचार कर रही थी, तब वह नायिका के लिए हृदय विदारक बनकर उसके दुःख को बढ़ा रही थी, इसलिए नायिका ने उसे क्रूर कहा।
(v) प्रस्तुत पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में वियोग श्रृंगार रस है। इस पद्यांश में कवि ने नायिका की विरहावस्था का वर्णन किया है।
2. मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले। जाके आये न मधुवन से औ न भेजा सँदेसा। मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ। जाके मेरी सब दुःख-कथा श्याम को तू सुना दे।।
सन्दर्भ -प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग -प्रस्तुत पद्यांश में राधा के द्वारा पवन को दूतिका मानकर कृष्ण के लिए सन्देश भेजा जा रहा है। वे पवन से मार्ग में पड़ने वाली सुष्मा का वर्णन करते हुए, उसे उससे प्रभावित नहीं होने के लिए कहती हैं।
व्याख्या -पवन से अपनी विरह-व्यथा बताती हुई राधा कहती हैं कि नवीन बादल से शोभायमान एवं कमल समान सुन्दर नेत्रों वाले मेरे प्रियतम कृष्ण ब्रज के इस वन (मधुबन) को छोड़कर जाने के पश्चात् फिर यहाँ नहीं आए और न तो उन्होंने मेरे लिए कोई सन्देश ही भेजा। उनसे बिछड़ कर मेरी दशा अत्यन्त दयनीय हो गई है। मैं रोते-रोते पागल हो रही हूँ। अतः तुम जाकर मेरे इन दुःखों से उन्हें अवगत कराना।
काव्य सौन्दर्य –
भाव पक्ष –
- (i) राधा प्रिय विरह से उत्पन्न व्याकुलता के विषय में पवन को बताते हुए उसे उसके सन्देश के शीघ्र अतिशीघ्र प्रिय तक पहुँचाने के लिए कहती हैं।
- (ii) रस वियोग श्रृंगार
कला पक्ष –
- भाषा खड़ीबोली
- शैली प्रबन्ध
- छन्द मन्दाक्रान्ता
- अलंकार उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश, अन्त्यानुप्रास एवं मानवीकरण
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) राधा किसके द्वारा कृष्ण को सन्देश भिजवाती है?
उत्तर राधा पवन द्वारा कृष्ण को संदेश भिजवाती है ताकि पवन उसकी विरह व्यथा को कृष्ण को सुना सके।
(ii) कृष्ण का सौन्दर्य कैसा है? उल्लेख कीजिए।
उत्तर श्रीकृष्ण का सौन्दर्य नवीन बादल के समान शोभायमान है तथा उनके नेत्र कमल के समान सुन्दर हैं।
(iii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iv) राधा की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर कृष्ण से बिछड़कर राधा की मनोदशा अत्यन्त दयनीय हो गई है। कृष्ण के विरह में राधा रोते-रोते पागल हो गई है। वह कहती है कि जब से कृष्ण ब्रज को छोड़कर गए हैं, तब से वह न तो स्वयं आए हैं और न ही उन्होंने कोई संदेश भेजा है। इसी कारण रोते-रोते उसकी दशा पागलों जैसी हो गई है।
(v) उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक ‘पवन दूतिका’ है तथा कवि का नाम अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध है।
3. जाते जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे। तो जाके सन्निकट उसकी कलान्तियों को मिटाना। धीर-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना। सद्गंधों से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना। लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये। होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को। जो थोड़ी भी श्रमित वह हो गोद ले श्रान्ति खोना। होंठों की औ कमल-मुख की म्लानताएँ मिटाना।।
सन्दर्भ -प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा मथुरा जाने वाली पवन-दूतिका को मार्ग में मिलने वाले मनोरम स्थलों व दृश्यों से अवगत कराती हुई उसे उनसे मोहित न होने, किन्तु दुखियों के कष्ट दूर करने की सीख देती हैं।
व्याख्या राधा, पवन-दूती से आगे कहती हैं किं मार्ग में तुम्हें कोई थका-हारा व्यक्ति मिल जाए तो तुम उसके पास चले जाना। फिर धीरे-धीरे उसके शरीर का स्पर्श कर उसके दुःख सन्ताप को मिटा देना। साथ ही उसकें चारों ओर अपनी सुगन्ध बिखेरकर उस थके व्यक्ति को प्रफुल्लित कर देना।
कृष्ण की विरह-अग्नि में जलती हुई राधा पवन दूतिका को समझाती हुई कहती हैं, कि हे पवन ! यदि तुझे मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखाई दे तो तू उसके वस्त्रों को मत उड़ाना। यदि वह थोड़ी भी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान मिटा देना, साथ ही उसके होंठों और कमल सदृश-दिखने वाले उसके मुख की मलिनता को हर लेना।
राधा पवन से यह भी कहती हैं कि यदि तुम्हें मार्ग में, खेत में काम करने वाली कोई थकी हुई स्त्री दिखे तो तुम धीरे-धीरे उसके पास पहुँचकर अपने स्पर्श से उसकी थकान मिटा देना। साथ ही आकाश में बादल के दिखाई देने पर उसे पास लाकर उसकी छाया के द्वारा उस थकी हुई स्त्री को शीतलता प्रदान करना, उसे आराम पहुँचाना।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) पद्यांश में मथुरा के भव्य मन्दिरों का गुणगान किया गया है।
- (ii) रस शान्त
कला पक्ष
- भाषा खड़ीबोली
- शैली प्रबन्ध
- अलंकार पुनरुक्तिप्रकाश, उपमा एवं अनुप्रास छन्द मन्दाक्रान्ता
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा
पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(ⅰ) राधा पवन को क्लान्त व्यक्ति के सम्बन्ध में क्या समझाती है?
उत्तर राधा पवन को क्लान्त व्यक्ति के संबंध में समझाती है कि मार्ग में तुम्हें कोई थका-हारा व्यक्ति मिल जाए, तो तुम उसके पास चले जाना फिर धीरे-धीरे उसके शरीर का स्पर्श कर उसके दुःख संताप को मिटा देना।
(ii) राधा ने पवन को पथिक महिला के साथ कैसा व्यवहार करने के लिए निर्देश दिया?
उत्तर राधा ने पवन को पथिक महिला के साथ सद्व्यवहार करने के लिए निर्देश दिया। कि हे पवन। यदि मार्ग में तुम्हें कोई लाजवन्ती पथिक स्त्री महिला मिले, तो तू उसके वस्त्रों को मत उड़ाना। यदि वह थकी हुई लगे, तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान मिटा देना।
(iii) ‘कमल-मुख’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर ‘कमल-मुख’ में उपमा अलंकार है। यहाँ मुख की तुलना कमल से की गई है।
(iv) रेखांकित अंश का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) उपर्युक्त पद्यांश के पाठ का शीर्षक और उसके कवि का नाम लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश के पाठ का शीर्षक ‘पवन-दूतिका’ है तथा कवि का नाम ‘अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ है।
4. लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए। होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।। जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना। होठों की औ कमल-मुख की म्लानताएँ मिटाना।। कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे। धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना ।। जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला। छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।
सन्दर्भ -प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग राधा पवन को दूतिका बनाकर कृष्ण के पास भेजते हुए कहती है कि उसे मार्ग में मिले पथिकों का उपकार करते हुए जाने की प्रेरणा देती है। अपने दुःख में भी उन्हें अन्य लोगों के दुःख की चिन्ता है।
व्याख्या कृष्ण की विरह-अग्नि में जलती हुई राधा पवन दूतिका को समझाती हुई कहती है, हे पवन ! यदि तुझे मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखाई दे तो तू उसके वस्त्रों को मत उड़ाना। यदि वह थोड़ी भी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान मिटा देना, साथ ही उसके होंठों और कमल सदृश-दिखने वाले उसके मुख की मलिनता को हर लेना।
राधा पवन से यह भी कहती हैं कि यदि तुम्हें मार्ग में खेत में काम करने वाली कोई थकी हुई स्त्री दिखे तो तुम धीरे-धीरे उसके पास पहुँचकर अपने स्पर्श से उसकी थकान मिटा देना। साथ ही आकाश में बादल के दिखाई देने पर उसे पास लाकर उसकी छाया के द्वारा उस थकी हुई स्त्री को शीतलता प्रदान करना, उसे आराम पहुँचाना।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने विरहिणी राधा को पर-पीड़ा से व्यथित दिखाया गया है।
- (ii) रस वियोग श्रृंगार.
कला पक्ष
- भाषा खड़ीबोली
- शैली प्रबन्ध
- छन्द मन्दाक्रान्ता
- अलंकार रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश एवं मानवीकरण
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका के द्वारा पवन को कही गई बातों के माध्यम से परोपकार की भावना को महत्त्व दिया है। नायिका द्वारा स्वयं की पीड़ा से पहले दूसरों की पीड़ा एवं कष्टों को दूर करने का सन्देश दिया गया है।
(iii) नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति कैसा आचरण अपनाने के लिए कहती है?
उत्तर नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति स्नेह एवं प्रेम का आचरण अपनाने के लिए कहती है कि यदि उसे मार्ग में कोई लज्जाशील महिला मिले तो वह उसके वस्त्रों को न उड़ाए। यदि वह उसे थोड़ी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान और मुख की मलिनता को हर लेना।
(iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प सौन्दर्य का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। प्रबन्ध शैली में नायिका की वियोगावस्था का वर्णन किया है। रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश व मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग करके पद्यांश के भाव-सौन्दर्य में वृद्धि कर दी है।
5. जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों। छिद्रों में जा क्वणित करना वेणु-सा कीचकों को। यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपाँगना की। जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती। ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही। थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो-हो डुबाना। यों देना ऐ भगिनी जतला एक अम्भोजनेत्रा । आँखों को ही विरह-विधुरा वारि में बोरती है।
सन्दर्भ -प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राधा पवन को कृष्ण के समक्ष अपना सन्देश भेजने के लिए बाँसों और कमल के खिले हुए फूलों को माध्यम बनाने की सीख दे रही है।
व्याख्या राधा पवन को कहती हैं कि यदि तुम्हें कृष्ण किसी उपवन अथवा बगीचे में खड़े नजर आएँ तो तुम बाँसों के छिद्रों में पहुँचकर उन्हें बाँसुरी के सदृश बजाना, ताकि उन्हें उनकी बाँसुरी सुनने के लिए व्याकुल होती गोपियों की याद आ जाए।
राधा आगे कहती हैं कि मेरे प्रियतम के समक्ष ही खिले हुए कमल की पंखुड़ियों को व्याकुल होकर थोड़ा-थोड़ा जल में डुबोना, ताकि ऐ बहन ! यह देख कृष्ण को इसका आभास हो जाए कि कमल नेत्रों वाली राधा वियोग में व्यथित होकर अपने नेत्रों को आँसुओं में डुबोए रखती हैं अर्थात् दिन-रात रोती रहती हैं।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश में राधा द्वारा पवन को बगीचे में खड़े कृष्ण तक अपना सन्देशा पहुँचाने की विधियाँ बता रही हैं।
- (ii) रस वियोग श्रृंगार
कला पक्ष
- शैली प्रबन्ध
- छन्द मन्दाक्रान्ता
- भाषा खड़ीबोली
- अलंकार उपमा, अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा
- भाव साम्य सूरदास के इस पद में उपरोक्त पद्यांश से भाव साम्यता दर्शाई गई है-
“निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।। अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे। कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे ।। आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे। טן ‘सूरदास’ अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे।।”
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक तथा रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक ‘पवन दूतिका’ है तथा रचनाकार का नाम अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ है।
(ii) राधा स्वयं विरहावस्था से श्रीकृष्ण को अवगत कराने के लिए पवन को उपाय सुझाती हैं? क्या
उत्तर राधा श्रीकृष्ण को स्वयं की विरहावस्था एवं पीड़ा से अवगत कराने हेतु पवन से कहती हैं कि श्रीकृष्ण के समक्ष उपस्थित कमल के पत्तों को पानी में डुबोना, ताकि उस दृश्य को देखकर श्रीकृष्ण कमल से नयनों वाली राधा की वियोगावस्था को पहचान लें।
(iii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iv) पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर पद्यांश में श्रीकृष्ण के मथुरा से द्वारका आ जाने के कारण ब्रज की गोपियों व राधा की विरहावस्था का वर्णन किया गया है। अतः पद्यांश में वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता विद्यमान है।
(v) श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से क्या कहती हैं?
उत्तर श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से कहती हैं कि अगर तुम्हें कृष्ण उपवन में दिखाई दें, तो तुम बाँस में प्रवेश करके उसे बाँसुरी की तरह बजाना, जिससे श्रीकृष्ण को उनकी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनने के लिए लालायित गोपियों की याद आ जाए।
6. सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो तो पाँवों के निकट उसको श्याम के ला गिराना।। यों सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो मेरा होना अतिमलिन औ सूखते नित्य जाना।। कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही। धीरे-धीरे सँभल रखना औ उन्हें यों बताना पीला होना प्रबल दुख से प्रोषिता-सा हमारा।।
सन्दर्भ -प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग राधा, श्रीकृष्ण के पास पवन को दूत के रूप में भेजने से पहले समझा रही हैं कि वह मथुरा की भूमि पर पड़ी हुई मलिन लतिका और पेड़ के पीले पत्ते के माध्यम से उनके प्रिय को उनकी प्रेमिका की स्थिति का भान कैसे कराएगी।
व्याख्या राधा पवन से कहती हैं कि यदि मथुरा की भूमि पर तुम्हें कहीं मुरझाई हुई लता दिखाई दे तो उसे कृष्ण के पैरो के पास ले जाकर गिरा देना। इस प्रकार, उनके समक्ष स्पष्ट रूप से यह प्रकट कर देना कि प्रेम-विहीन रहकर मैं भी उसी लतिका की तरह मुरझाकर सदा सूखते जा रही हूँ।
यदि नए पेड़ के पीले पड़ गए पत्ते पर तुम्हारी दृष्टि पड़े तो तुम हमारे प्रियतम की आँखों के आगे उसे धीरे से रख देना और उन्हें बताना कि पति से बिछुड़ी हुई स्त्री के समान मैं भी नित्य पीली पड़ती जा रही हूँ।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश में विरहिणी राधा ने अपनी शारीरिक दुर्बलता को बताने के लिए मलिन लता व पीले पत्ते का सहारा लिया है।
- (ii) रस वियोग श्रृंगार
कला पक्ष
- भाषा खड़ीबोली
- शैली प्रबन्ध
- छन्द मन्दाक्रान्ता
- अलंकार उपमा और पुनरुक्तिप्रकाश
- गुण प्रसाद
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) राधा पवन से पृथ्वी पर पड़ी हुई लता को क्या करने के लिए कहती हैं?
उत्तर राधा पवन से पृथ्वी पर पड़ी हुई लता को कृष्ण के पैरों के पास ले जाकर रखने के लिए कहती है।
(ii) सूखी लता से राधा कृष्ण को क्या संदेश देना चाहती हैं?
उत्तर सूखी लता से राधा कृष्ण को यह सन्देश देना चाहती हैं कि उनके वियोग में वह भी इस लता के समान हो गई हैं अर्थात् उनके प्रेम से विहीन रहकर वह मुरझाकर सूखती जा रही हैं।
(iii) पीले पत्ते को श्रीकृष्ण के सामने लाने से राधा का क्या अभिप्राय है?
उत्तर पीले पत्ते को श्रीकृष्ण के सामने लाने से राधा का अभिप्राय यह है कि इस पत्ते के माध्यम से वह कृष्ण को अपनी स्थिति का आभास कराना चाहती हैं कि वह भी पत्ते के समान दिन-प्रतिदिन पीली पड़ती जा रही हैं।
(iv) उपर्युक्त पद्यांश की रेखांकित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) पाठ का शीर्षक तथा रचयिता के नाम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर पाठ का नाम ‘पवन दूतिका’ है तथा रचायिता का नाम अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ है।
नीले फूले कलम दल-सी गात की श्यामता है। पीला प्यारा बसन कटि में पैन्हते हैं फबीला। छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती। सद्धस्त्रों में नवल तन की फूटती-सी प्रभा है।।. साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौंदर्यशाली। सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-संपोषिका है। दोनों कंधे वृषभ-वर से बड़े ही सजीले लम्बी बाहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।।
सन्दर्भ -प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘पवन दूतिका’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में पवन को दूत के रूप में मथुरा भेजने के क्रम में राधा उसे श्रीकृष्ण की पहचान बताती हैं।
व्याख्या राधा पवन से कहती हैं कि हे दूती! उनका शरीर नीले खिले हुए कमल के समूह के सदृश साँवला और मनोरम है। वे कमर पर पीताम्बर अर्थात् पीला वस्त्र पहनते हैं, जो अति शोभायमान लगता है। उनके बालों से लटकी एक लट उनके मुख की शोभा और बढ़ा देती है। सुन्दर वस्त्र धारण किए हुए कृष्ण के सौम्य शरीर से प्रकाश की किरणें-सी निकलती रहती है।
राधा पवन से कृष्ण की शोभा का गुणगान करती हुई कहती हैं कि उनका सम्पूर्ण शरीर साँचे में ढला हुआ अर्थात् सुडौल है, जिसे देख अलौकिक सौन्दर्य के दर्शन का आभास होता है। उनके शरीर से निकलने वाली सुगन्धित पुष्पों के सदृश सुगन्ध प्राणों का पोषण करने वाली अर्थात् मन को आह्लादित कर देने वाली है।
उनके कन्धों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे उत्तम कोटि के साँड़ के कन्धे हों। यहाँ कहने का भाव यह है कि श्रीकृष्ण के कन्धे अति बलिष्ठ हैं। राधा आगे कहती हैं कि कृष्ण की भुजाएँ हाथी की सूँड़ के सदृश बल की पिटारी अर्थात् अति शक्तिशाली हैं।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) राधा के कथन के माध्यम से कवि ने श्रीकृष्ण के संम्पूर्ण शरीर का शोभा-वर्णन उपयुक्त बिम्बों की सहायता से किया है।
- (ii) रस वियोग श्रृंगार
कला पक्ष
- शैली प्रबन्ध
- छन्द मन्दाक्रान्ता
- भाषा खड़ीबोली
- अलंकार उपमा और अनुप्रास रूपक
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा
- भाव साम्य निम्न पद्यांशों में उक्त पद्यांश से भाव-सौम्यता दर्शाई गई है
“मोर मुकुट और कानन कुण्डल पीताम्बर सोहे अति माधुरी। सीस मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल। इहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल ।।”
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) राधा, पवन से कृष्ण को पहचानने का क्या उपाय बताती है?
उत्तर राधा, पवन से कृष्ण को पहचानने का उपाय बताती है कि उनका शरीर नीले खिले हुए कमल के समूह के समान साँवला और मनोरम है। वे कमर पर पीला वस्त्र पहनते हैं जो अति शोभायमान लगता है, उनके बालों से लटकी एक लट उनके मुख की शोभा बढ़ाती है।
(ii) ‘अलक’ तथा ‘सकल’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर ‘अलक’ का अर्थ सिर के लटकते बाल तथा ‘सकल’ का अर्थ ‘सम्पूर्ण’ है। पद्यांश में ये दोनों शब्द श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त हुए ह
(iii) ‘कलभ-कर-सी’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर ‘कलम-कर सी’ पंक्ति में उपमा अलंकार है। यहाँ कृष्ण की भुजाएँ उपमेय की हाथी की सूँड उपमान से समानता दिखाने के कारण उपमा अलंकार है तथा ‘सी’ वाचक शब्द है।
(iv) पाठ का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
उत्तर पाठ का शीर्षक ‘पवन-दूतिका’ तथा कवि का नाम ‘अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’ है।