‘पंचलाइट’ कहानी का उद्देश्य-
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ हिन्दी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध आँचलिक कथाकार हैं। ग्रामीण अंचलों से उनका निकट का परिचय है। बिहार के अंचलों के सजीव चित्र उनकी कथाओं के अलंकार हैं। पंचलाइट भी बिहार के परिवेश की कहानी है। कहानीकार ने ग्रामीण अंचल का वास्तविक चित्र खींचा है। आवश्यकता किस प्रकार बड़े-से-बड़े संस्कार और निषेध को अनावश्यक सिद्ध कर देती है। इसी केन्द्रीय भाव के आधार पर कहानी के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य को स्पष्ट किया गया है। गोधन द्वारा पेट्रोमैक्स जला देने
पर उसकी सब गलतियाँ माफ कर दी जाती हैं। उस पर लगे सारे प्रतिबन्ध हटा लिए जाते हैं तथा उसे मनचाहे आचरण की छूट दे दी जाती है। ग्रामवासी जाति के आधार पर अनेक टोलियों में बँट जाते हैं। वे आपस में ईर्ष्या-द्वेष के भावों से भरे रहते हैं। इसका बड़ा सजीव चित्रण कहानी में प्रस्तुत किया गया है। कहानीकार ने यह स्पष्ट किया है कि इस आधुनिक युग में अभी भी कुछ गाँव और जातियाँ पिछड़ी हुई हैं । रेणुजी ने अप्रत्यक्ष रूप से ग्राम-सुधार की प्रेरणा भी दी है।
‘पंचलाइट’ के वैशिष्ट्य की विवेचना-
‘पंचलाइट’ फणीश्वरनाथ रेणु की आँचलिक कहानी है। यह कहानी ग्रामीण जीवन पर आधारित है। ग्रामीण आँचल के जीवन से सम्बन्धित इस कहानी के माध्यम से गाँव की रूढ़िवादिता, सरलता एवं अज्ञानता के बारे में स्पष्ट संकेत मिलता है। इसमें आँचलिक परिवेश के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण किया गया है। कहानी के तत्त्वों के आधार पर ‘पंचलाइट’ कहानी की समीक्षा निम्नलिखित है
(i) कथानक / कथावस्तु ‘पंचलाइट’ कहानी घटना प्रधान है। कहानी का आरम्भ महतो टोली के पंचों द्वारा पंचलाइट की खरीदारी से होता है। पंचलाइट की खरीदारी के पश्चात् गाँव के लोगों के समक्ष उसे जलाने की समस्या उत्पन्न होती है। गाँव वालों द्वारा गोधन की खोज करना तथा गोधन का वापस गाँव आना कहानी का विकास है। गोधन द्वारा पंचलाइट जलाना व गाँव में खुशहाली का माहौल बन जाना तथा पंचायत द्वारा गोधन को माफ़ी देना कहानी का ‘अन्त’ चरण है। अतः कथानक की दृष्टि से यह कहानी पूर्ण रूप से सफल है। इस कहानी की कथावस्तु स्वाभाविक, सहज, सजीव, कौतूहलवर्द्धक, गतिशील एवं मार्मिक बन पड़ी है। इसके अतिरिक्त कथानक में सरलता, रोचकता, संक्षिप्तता, मनोवैज्ञानिकता, यथार्थता, स्वाभाविकता व ऑचलिकता आदि अनेक विशेषताओं का समावेश है।
(ii) पात्र तथा चरित्र-चित्रण प्रस्तुत कहानी चूँकि आँचलिक कहानी है। अतः इस कहानी के केन्द्र में आँचल-विशेष या क्षेत्र-विशेष है, कोई पात्र या चरित्र केन्द्र में नहीं है। इसके बावजूद, ‘पंचलाइट’ कहानी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं प्रमुख पात्र गोधन है। कहानीकार ने कुछ पात्रों के चरित्रों को उभारने की कोशिश की है। प्रस्तुत कहानी में सरदार, दीवान, मुनरी की माँ, गुलरी काकी, फुटंगी झा आदि एक वर्ग के पात्र है, जबकि गोधन, मुनरी दूसरे वर्ग के कहानी के सभी पात्र जीवन्त प्रतीत होते हैं। उनके माध्यम से ग्रामवासियों की मनोवृत्तियों का परिचय बड़े ही यथार्थ रूप में प्राप्त होता है। लेखक को ग्रामीण समूह के चरित्र को उभारने में विशेष सफलता मिली है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘रेणु’ जी ने अपने पात्रों के माध्यम से ग्रामाँचल का सजीव चित्रण किया है। साथ-ही-साथ लेखक ने ग्रामवासियों की मनोवृत्तियों का परिचय बड़े सजीव, स्वाभाविक, मनोवैज्ञानिक और यथार्थ रूप में दिया है।
(iii) कथोपकथन/संवाद ‘पंचलाइट’ कहानी में लेखक ने कथोपकथन या संवादों का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में किया है। इस कहानी के संवाद सरल, स्पष्ट, संक्षिप्त, रोचक, आकर्षक, स्वाभाविक, सजीव, गतिशील और पात्रानुकूल हैं। इसके संवाद कथा के विकास, पात्रों के चरित्र और उद्देश्य की अभिव्यक्ति में अहम् भूमिका निभाते हैं। संवादों के माध्यम से बिहार के ग्रामीण आँचल की भाषा का प्रयोग, ग्रामीण जीवन की अशिक्षा, रूढ़िवादिता, अज्ञानता पर प्रकाश डालकर जीवन्त वातावरण निर्मित किया गया है, जैसे-मुनरी ने चालाकी से अपनी सहेली कनेली के कान में बात डाल दी, ‘कनेली!…. चिगों, चिध SS चिन…।’ कनेली मुसकुराकर रह गई- गोधन तो बन्द है।’ मुनरी बोली ‘तू कह तो सरदार से। गोधन जानता है ‘पंचलाइट’ बालना।’ कनेली बोली, ‘कौन, गोधन ? जानता है बालना? लेकिन…।’ इस प्रकार इस कहानी के संवाद पात्र एवं परिस्थिति के अनुकूल हैं। कथाकार ने उनका चरित्र-चित्रण मनोवैज्ञानिक आधार पर किया है।
(iv) भाषा-शैली ‘पंचलाइट’ कहानी की भाषा बिहार के ग्रामीण अंचलों में बोली जाने वाली जन भाषा है। यह सरल, स्पष्ट, रोचक, स्वाभाविक, सजीव और आकर्षक है। गाँवों में प्रचलित विकृत शब्द रूपों का प्रयोग एक ओर वातावरण को यथार्थ बनाता है, तो दूसरी ओर हास्य-व्यंग्य के प्रयोजन की भी पूर्ति करता है; जैसे-पुन्याह, मूलगैन, भगतिया, वैकाट, पच्छक, पम्पू, सलीमा आदि। इस कहानी में ग्रामीण मुहावरों के प्रयोग से कथा की प्रभाव-वृद्धि में योगदान दिया गया है, जैसे-नेमटेम, डेड़-बेढ़, धुरखेल आदि। इस कहानी की शैली भाषा की तरह ही व्यावहारिक व भावानुकूल है। लेखक ने इस कहानी में संवादात्मक, चित्रात्मक और व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग सहजता से किया है। इस कहानी की शैलीगत विशेषताओं में स्वाभाविकता, सजीवता एवं
प्रभावशीलता के गुण विद्यमान हैं। व्यंग्यात्मक शैली का एक उदाहरण जो कथा को जीवन्त बनाता है
“एंक नौजवान ने आकर सूचना दी-राजपूत टोली के लोग हँसते-हँसते पागल हो रहे हैं। कहते हैं, कान पकड़कर ‘पंचलैट’ के सामने पाँच बार उठो-बैठो, तुरन्त जलने लगेगा।” इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘पंचलाइट’ कहानी भाषा-शैली की दृष्टि से सफल कहानी है।
(v) देशकाल और वातावरण रेणुजी की कहानी ग्रामीण परिवेश की आँचलिक कहानी है। इस कहानी के देशकाल और वातावरण की सजीवता पाठकों को सहजता से अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। उन्होंने इस कहानी में पैट्रोमैक्स, जिसे गाँव वाले ‘पंचलैट’ कहते हैं, के माध्यम से ग्रामीण वातावरण का चित्रण करते हुए ग्रामवासियों के मनोविज्ञान की वास्तविक झलक प्रस्तुत की है। यद्यपि
इस कहानी में वातावरण का वर्णन नहीं किया गया है तथापि घटनाओं और पात्रों के माध्यम से वातावरण स्वयं जीवन्त हो उठता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘पंचलाइट’ कहानी देशकाल और वातावरण की दृष्टि से एक श्रेष्ठ कहानी है।
(vi) शीर्षक ‘पंचलाइट’ कहानी का शीर्षक अत्यन्त संक्षिप्त और आकर्षक है। ‘पंचलाइट’ शीर्षक की दृष्टि से यह एक उच्च स्तरीय कथा है, जिसमें एक घटना के माध्यम से सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए दिखाया गया है। पंचलाइट शीर्षक कहानी का भाव, उद्देश्य और विषय-वस्तु की दृष्टि से पूर्णतः सार्थक है। सम्पूर्ण कहानी शीर्षक के इर्द-गिर्द घूमती है। इस प्रकार यह कहानी शीर्षक की दृष्टि से सफल कहानी है।