कथावस्तु पर आधारित प्रश्न
कथावस्तु –
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘लोकायतन’ महाकाव्य का एक अंश है। इसमें वर्ष 1921 से 1947 तक के मध्य घटित भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है।
अंग्रेज़ शासकों ने नमक पर कर बढ़ा दिया था। महात्मा गांधी ने इसका डटकर विरोध किया। वे साबरमती आश्रम से चौबीस दिनों की यात्रा करके दाण्डी ग्राम पहुँचे और सागरतट पर नमक बनाकर ‘नमक कानून’ तोड़ा।
इसके माध्यम से वे अंग्रेज़ों के इस कानून का विरोध करके जनता में चेतना उत्पन्न करना चाहते थे। उनके इस विरोध का आधार सत्य और अहिंसा था। गांधीजी के इस सत्याग्रह से शासक क्षुब्ध हो गए और उन्होंने भारतीयों पर दमनचक्र चलाना आरम्भ कर दिया। गाँधीजी तथा कई नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
भारतीयों द्वारा जेलें भरी जाने लगीं। जैसे-जैसे दमनचक्र बढ़ता गया, वैसे-वैसे मुक्तियज्ञ भी बढ़ता चला गया। गांधीजी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया। सबने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया। वर्ष 1927 में भारत में ‘साइमन कमीशन’ आया, जिसका भारतीयों ने बहिष्कार किया। साइमन कमीशन को वापस जाना पड़ा। वर्ष 1942 में गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। अब सब पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे। अंग्रेज़ों ने ‘फूट डालो’ की नीति अपनाकर ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना करा दी। मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की माँग की। वर्ष 1947 में भारत को पूर्ण स्वतन्त्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया।
अंग्रेज़ों ने भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का विभाजन कर दिया। देश में एक ओर तो स्वतन्त्रता का उत्सव मनाया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर विभाजन के विरोध में गांधीजी मौन व्रत धारण किए हुए थे। वे चाहते थे कि हिन्दू-मुस्लिम पारस्परिक बैर को त्यागकर सत्य, अहिंसा, प्रेम आदि सात्विक गुणों को अपनाएँ और मिल-जुलकर रहें।
इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य देशभक्ति से परिपूर्ण, गांधी युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है। इसमें उस युग का वर्णन है जब भारत में चारों ओर हलचल मची हुई थी, चारों ओर क्रान्ति की अग्नि धधक रही थी। कविवर पन्त ने महात्मा गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से विभिन आदर्शों की स्थापना का सफल प्रयास किया है।
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के नायक/प्रमुख पात्र/गांधी जी का चरित्र-चित्रण।