मेरी प्रिय पुस्तक पर निबन्ध: Meri Priy Pustak Par Nibandh

प्रस्तावना

किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में पुस्तकें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें न केवल ज्ञान का भंडार होती हैं, बल्कि ये हमारे सोचने, समझने और जीवन को दिशा देने का एक प्रमुख माध्यम भी हैं। प्राचीन इतिहास, संस्कृति और धार्मिक विचारों को जानने के लिए पुस्तकों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। पुस्तकें शिक्षा का प्रमुख साधन हैं और साथ ही इनसे हमें मनोरंजन का भी अनुभव होता है। इसी कारण, पुस्तकों के प्रति मेरा विशेष लगाव रहा है और मैंने कई पुस्तकें पढ़ी हैं। इनमें से ‘रामचरितमानस’ मेरी सर्वाधिक प्रिय पुस्तक है। यह न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि जीवन जीने की कला और आदर्शों का एक अमूल्य संग्रह भी है।

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पुस्तक की विशेषताएँ

‘रामचरितमानस’ एक अवधी भाषा में रचित महाकाव्य है, जिसे सोलहवीं सदी के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा। यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन पर आधारित है, जो महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत काव्य ‘रामायण’ का एक रूपांतर है। तुलसीदास ने इस ग्रंथ को सात काण्डों में विभाजित किया है, जो भगवान राम के जीवन के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हैं। ये काण्ड हैं:

  1. बालकाण्ड – इसमें राम के जन्म, ताड़का वध और राम विवाह के प्रसंग का वर्णन है।
  2. अयोध्याकाण्ड – राम का अयोध्या में युवराज बनना, वनवास और राम-भरत मिलाप की घटनाएँ यहाँ दी गई हैं।
  3. अरण्यकाण्ड – इसमें राम का वन में सन्तों से मिलना, शूर्पणखा का अपमान, और सीता के हरण का वर्णन है।
  4. किष्किन्धाकाण्ड – इसमें राम का सीता की खोज के लिए हनुमान से मिलना और सुग्रीव से मित्रता का प्रसंग है।
  5. सुन्दरकाण्ड – हनुमान का समुद्र लांघना, लंका दहन और सीता से मिलने का विवरण इसमें है।
  6. लंकाकाण्ड – इसमें राम और रावण के बीच युद्ध और रावण के वध का वर्णन है।
  7. उत्तरकाण्ड – इसमें राम का अयोध्या लौटना, रामराज्य की स्थापना और अपने भाइयों को उपदेश देने की घटनाएँ हैं।

‘रामचरितमानस’ का उद्देश्य केवल भगवान राम की भक्ति का प्रचार नहीं था, बल्कि समाज को आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देना था। इसमें गुरु-शिष्य, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन, आदि के आदर्शों को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि ये आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

इस महाकाव्य को रचनात्मक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। तुलसीदास ने अपने काव्य में भारतीय समाज की समस्याओं को उजागर किया और लोगों को अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति आस्था बनाए रखने के लिए प्रेरित किया। उनका यह काव्य न केवल धार्मिक था, बल्कि समाज सुधार की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम था।

उपसंहार

‘रामचरितमानस’ को आज भी भारत में सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला ग्रंथ माना जाता है। इसके दोहे और छंद अब भारतीय जनमानस में कहावतों के रूप में प्रसिद्ध हैं। उदाहरण के लिए, ‘रामचरितमानस’ से लिया गया एक प्रसिद्ध दोहा है-

“सकल पदारथ ऐहि जग माहि, करमहीन नर पावत नाहि।”

यह ग्रंथ न केवल हिन्दू परिवारों में पढ़ा जाता है, बल्कि इसके अनुवाद कई विदेशी भाषाओं में भी किए गए हैं। हालांकि, अन्य भाषाओं में अनूदित ‘रामचरितमानस’ में वह काव्य सौंदर्य और लालित्य नहीं मिलता जो मूल अवधी संस्करण में है। इसका पाठ करते समय व्यक्ति को संगीत और भजन से प्राप्त होने वाली शांति का अहसास होता है, जिससे यह एक अद्वितीय अनुभव बन जाता है।

‘रामचरितमानस’ ने न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि यह जीवन के आदर्श और नैतिकता का अद्वितीय ग्रंथ बनकर उभरा। आज भी इसके काव्य, छंद और शिक्षाएँ समाज में एक मजबूत प्रभाव छोड़ती हैं। यही कारण है कि यह ग्रंथ धार्मिक से लेकर सामाजिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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