यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-‘लोक’ + ‘उक्ति’ अर्थात् किसी क्षेत्र-विशेष में कही हुई बात। इसके अन्तर्गत किसी कवि की प्रसिद्ध उक्ति भी आ जाती है। लोकोक्ति किसी प्रासंगिक घटना पर आधारित होती है। समाज के प्रबुद्ध साहित्यकारों, कवियों आदि द्वारा जब किसी प्रकार के लोक-अनुभवों को एक ही वाक्य में व्यक्त कर दिया जाता है, तो उनको प्रयुक्त करना सुगम हो जाता है। ये वाक्य अथवा लोकोक्तियाँ (कहावतें, सूक्ति) गद्य एवं पद्य दोनों में ही देखने को मिलते हैं।इस प्रकार ऐसा वाक्य, कथन अथवा उक्ति, जो अपने विशिष्ट अर्थ के आधार पर संक्षेप में ही किसी सच्चाई को प्रकट कर सके, ‘लोकोक्ति’ अथवा ‘कहावत’ कही जाती है।
मुहावरे और लोकोक्ति में अन्तर मुहावरा देखने में छोटा होता है अर्थात् यह पूरे वाक्य का एक अंग-मात्र होता है, साथ ही इसमें लाक्षणिक अर्थ की प्रधानता होती है, परन्तु लोकोक्ति में जिस अर्थ को प्रकट किया जाता है, वह लगभग पूर्ण होता है। उसमें अधूरापन नहीं होता।
- अन्धा क्या चाहे दो आँखें– इच्छित वस्तु का प्राप्त होना।
वाक्य प्रयोग– चींटी पानी में डूबी जा रही थी, तभी उसकी दृष्टि बहकर पास आते पत्ते पर पड़ी। अन्धा क्या चाहे दो आँखें। वह उस पर जा चढ़ी।
- अन्या बाँटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को ही दे– स्वार्थ लाभ, सम्पूर्ण लाभ स्वयं उठाना।
वाक्य प्रयोग– आज के भ्रष्ट नेता अन्धा बाँटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को ही’ देने वाली उक्ति चरितार्थ कर रहे हैं।
- अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए– जिससे सहानुभूति की सम्भावना न हो, उसके सामने दुःख-दर्द की बातें करना व्यर्थ है।
वाक्य प्रयोग– रामू उस कंजूस व्यक्ति से सहायता माँग रहा था, यह ठीक वैसा ही लगता है-अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए।
- अक्ल बड़ी या भैंस– शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि अधिक बड़ी होती है।
वाक्य प्रयोग-शशांक हर काम को बलपूर्वक ही करना चाहता है। उसने अक्ल बड़ी या भैंस वाली कहावत नहीं सुनी है।
- अधजल गगरी छलकत जाय– अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति अधिक बोलता है। अथवा अज्ञानी लोग ही अपने ज्ञान की शेखी बघारते हैं।
वाक्य प्रयोग– रतन ने गायन सीखना प्रारम्भ करते ही स्वयं को गायक कहना शुरू कर दिया है। सच ही कहा गया है- अधजल गगरी छलकत जाय।
- अपना हाथ जगन्नाथ– अपने हाथ से किया गया कार्य ही विश्वसनीय और कल्याणकारी होता है।
वाक्य प्रयोग- संजेश किसी भी काम में दूसरों की सहायता अवश्य लेता है। उसे पता ही नहीं कि अपना हाथ जगन्नाथ होता है।
- अपनी करनी पार उतरनी– अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है।
वाक्य प्रयोग– अपने कर्मों के कारण ही रहमत जेल में है। सच ही कहा है- अपनी करनी पार उतरनी।
- अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अथवा अपनी डफली, अपना राग– सबका अपनी-अपनी बात कहना।
वाक्य प्रयोग– रानी की बर्थडे पार्टी में कुछ लोग अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अलाप रहे थे।
- अन्त भला तो सब भला- परिणाम अच्छा रहता है, तो सब कुछ अच्छा कहा जाता है।
वाक्य प्रयोग– गुरमीत साइकिल प्रतियोगिता में प्रारम्भ में पीछे था, पर अन्त तक जाते-जाते उसने ऐसी गति दिखाई कि वह पहले नम्बर पर आ गया। लोग कहने लगे अन्त भला तो सब भला ।
- आँख के अन्धे गाँठ के पूरे– मूर्ख और हठी।
वाक्य प्रयोग– रत्नेश के परिवार वाले क्रोधी ही नहीं, आँख के अन्धे और गाँठ के पूरे भी हैं।
- आँखों के अन्धे नाम नयनसुख– गुणों के न होने पर भी नाम गुणवान जैसा होना।
वाक्य प्रयोग– राकेश का भाई एकदम कमजोर और डरपोक है, पर उसका नाम महावीर है। इसी को कहते हैं-आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।
- आ बैल मुझे मार– जान-बूझ कर परेशानी को आमन्त्रण देना।
वाक्य प्रयोग- रवि और श्याम की लड़ाई तो पहले से ही थी, तुमने उन्हें क्यों छेड़ा, बेवजह ही परेशानी को आमन्त्रण दे दिया। तुम पर यह उक्ति सही लागू होती है-‘आ बैल मुझे मार’।
- आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँख फूटे- जिधर जाएँ उधर ही संकट।
वाक्य प्रयोग- चोरी होने पर थाने जाते हैं, तो पुलिसवाले रुपये माँगते हैं, नहीं जाते हैं, तो रात में चोरों का मनोबल बढ़ता है अर्थात् आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आँख फूटे।
- आगे कुआँ, पीछे खाई– विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न सूझना।
वाक्य प्रयोग- केदारनाथ में यात्री जहाँ से गुजर रहे थे, उनके पीछे की भूमि खिसकती जा रही थी और सामने भयावह ब्राढ़ का दृश्य था। यात्रियों की स्थिति तो आगे कुआँ, पीछे खाई जैसी थी।
- आगे नाव न पीछे पगहा– कोई उत्तरदायित्व (जिम्मेदारी) ही न होना।
वाक्य प्रयोग– बुढ़ापे में दादाजी की स्थिति आगे नाथ न पीछे पगहा वाली है।
- आटे के साथ पुन भी पिसता है– अपराधी के साथ निरपराध भी दण्ड प्राप्त करता है।
वाक्य प्रयोग-बिजली के घोटाले में दरबान शामिल न था, पर पुलिस उसे भी पकड़कर ले गई, क्योंकि आटे के साथ घुन भी पिसता है।
- आटे-दाल का भाव मालूम होना– सांसारिक कठिनाइयों से साक्षात्कार होना।।
वाक्य प्रयोग-जिम्मेदारी आते ही सबको आटे-दाल का भाव मालूम हो जाता है।
- आधी तज सारी को धाए, आधी मिले न सारी पाए– लालच में सब कुछ समाप्त हो जाता है।
वाक्य प्रयोग– जुआ खेलने वालों की मृत्यु कर्ज में खूबकर ही हो जाती है। उन्हें पता ही नहीं कि आधी तज सारी को धाए, आधी मिले न सारी पाए।
- आधा तीतर आधा बटेर– न इधर का न उधर का
वाक्य प्रयोग– शास्त्रीय संगीत में पाश्चात्य संगीत का मिश्रण आधा तीतर आधा बटेर-सा लगता है।
- आप काज महाकाज– अपने द्वारा किया गया कार्य विश्वसनीय होता है।
वाक्य प्रयोग– रंजीत के भाई ने उसे समझाते हुए कहा कि अपने पर भरोसा रखो। आप काज महाकाज होता है।
- आप भला तो जग भला– अपनी नियत ठीक होने पर सारा संसार ठीक लगता है।
वाक्य प्रयोग– रमेश के पापा नेक इनसान है और उन्हें सारे लोग भी नेक ही दिखते हैं। सच ही कहा गया है-आप भला तो जग भला।
- आम के आम गुठलियों के दाम– दोहरा लाभ उठाना।
वाक्य प्रयोग– आज ठेले वालों को मेले के कारण आम के आम गुठलियों के भी दाम मिले हैं।
- आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास– किसी महान् कार्य को करने का लक्ष्य बनाकर भी निम्न स्तर के काम में लग जाना।
वाक्य प्रयोग– काशीनाथ पढ़ने के लिए शहर गया, मगर वहाँ जाकर मजदूरी करने लगा। इसी को कहते हैं आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।
- आसमान से गिरा खजूर पर अटका– एक विपत्ति से छूटकर दूसरी में उलझ जाना।
वाक्य प्रयोग-राजन की नौकरी छूटते-छूटते बच गई, पर किसी ने उसे झूठे केस में फँसा दिया। तब पड़ोसी कहने लगे-आसमान से गिरा खजूर पर अटका।
- उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई– निर्लज्ज बन जाने पर किसी की चिन्ता न करना।
वाक्य प्रयोग- राजू एक बार जेल क्या गया कि उसे तो अब जेल जाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। इसी उक्ति को कहते हैं-उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई।
- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे-अपना दोष स्वीकार न कर उल्टा पूछने वाले पर आरोप लगाना।
वाक्य प्रयोग- गलती सुरेश ने ही की थी, मगर वह दोष अपने पड़ोसी पर लगा रहा है। उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
- उल्टे बाँस बरेली को– विपरीत काम करना।
वाक्य प्रयोग- इलाहाबाद का व्यक्ति मथुरा से अमरूद खरीदकर लाया तब लोगों ने कहा, “तुमने तो उल्टे बाँस बरेली को” वाली कहावत चरितार्थ कर दी है।
- ऊधो का लेना न माधो का देना-स्पष्ट व्यवहार करना।
वाक्य प्रयोग-तुम्हारी गलती छुपाने के लिए मैं झूठ क्यों बोलूँ! मैं तो उघो का लेना न माधो का देना के पथ पर चलता हूँ।
- एक ही लकड़ी से सबको हाँकना– सभी के साथ समान व्यवहार करना।
वाक्य प्रयोग- कुछ ही अधिकारी ऐसे होते हैं, जिनकी नजरों में सब बराबर हैं। तभी तो वे अपने कार्यालय के सभी कर्मचारियों को एक ही लकड़ी से हाँकते हैं।
- एक और एक ग्यारह होना– एकता में शक्ति होती है।
वाक्य प्रयोग- स्कूल में शिक्षक बच्चों को समझा रहे थे कि एक और एक ग्यारह होते हैं।