‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती का चरित्र-चित्रण/ चरित्रांकन कीजिए। V Imp. (2020, 19, 18, 17, 16)
अथवा ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। V Imp. (2012, 11, 10)
अथवा ‘रश्मिरथी’ के आधार पर कुन्ती के चरित्र की मूलभूत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। Imp (2011, 10)
अथवा ‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के आधार पर कुन्ती के अन्तर्द्वन्द्व (मन की घुटन) पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘रश्मिरथी’ के आधार पर कुन्ती के मातृत्व की समीक्षा कीजिए।
कुन्ती पाण्डवों की माता है। सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म कुन्ती के गर्भ से ही हुआ था। इस प्रकार कुन्ती के पाँच नहीं वरन् छः पुत्र थे। कुन्ती की चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- समाज भीरु कुन्ती लोकलाज के भय से अपने नवजात शिशु को गंगा में बहा देती हैं। वह कभी भी उसे स्वीकार नहीं कर पातीं। उसे युवा और वीरत्व की मूर्ति बने देखकर भी अपना पुत्र कहने का साहस नहीं कर पातीं। जब युद्ध की विभीषिका सामने आती है, तो वह कर्ण से एकान्त में मिलती हैं और अपनी दयनीय स्थिति को व्यक्त करती हैं।
- ममतामयी माँ कुन्ती– ममता की साक्षात् मूर्ति हैं। कुन्ती को जब पता चलता है कि कर्ण का उनके अन्य पाँच पुत्रों से युद्ध होने वाला है, तो वह कर्ण को मनाने उसके पास जाती हैं और उसके प्रति अपना ममत्व एवं वात्सल्य प्रेम प्रकट करती हैं। वह नहीं चाहतीं कि उनके पुत्र युद्धभूमि में एक-दूसरे के साथ संघर्ष करें। यद्यपि कर्ण उनकी बातें स्वीकार नहीं करता, पर वह उसे आशीर्वाद देती हैं, उसे अंक में भरकर अपनी वात्सल्य भावना को सन्तुष्ट करती हैं।
- अन्तर्द्वन्द्व से ग्रस्त– कुन्ती के पुत्र परस्पर शत्रु बने हुए थे, तब कुन्ती के मन में भीषण अन्तर्द्वन्द्व मचा हुआ था, वह बड़ी उलझन में पड़ी हुई थीं। पाँचों पाण्डवों और कर्ण में से किसी की भी हानि हो, पर वह हानि तो उन्हीं की होगी। वह इस स्थिति को रोकना चाहती थीं, परन्तु कर्ण के अस्वीकार कर देने पर वह इस नियति को सहने के लिए विवश हो जाती हैं। इस प्रकार कवि ने ‘रश्मिरथी’ में कुन्ती के चरित्र में कई उच्च गुणों का समावेश किया है और इस विवश माँ की ममता को महान् बना दिया है।