‘रश्मिरथी’ खण्डकाव्य के कृष्ण का चरित्रांकन प्रस्तुत कीजिए। (2018)
अथवा ‘रश्मिरथी’ के आधार पर ‘कृष्ण’ का चरित्रांकन कीजिए। Imp. (2017, 16)
अथवा ‘रश्मिरथी’ के कृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए। (2020, 16)
अथवा ‘रश्मिरथी’ के आधार पर कृष्ण की चारित्रिक/चरित्रगत विशेषताएँ/चरित्र- चित्रण/चरित्रांकन लिखिए। V Imp (2020, 15, 14, 13, 12)
‘रश्मिरथी’ के श्रीकृष्ण की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- महान् कूटनीतिज्ञ ‘रश्मिरथी’ के श्रीकृष्ण में महाभारत के युग के कृष्ण के चरित्र की अधिकांश विशेषताएँ विद्यमान है, किन्तु मुख्य रूप से उनके कूटनीतिज्ञ स्वरूप का ही चित्रण हुआ है। पाण्डवों की ओर से वे कूटनीतिज्ञ का कार्य करते हैं। वह कर्ण को दुर्योधन से अलग करना चाहते हैं। वह उसे बताते हैं कि वह कुन्ती का ज्येष्ठ पुत्र है, बल एवं शील में परम श्रेष्ठ है, परन्तु कर्ण उनकी बातों में नहीं आते हैं, तब वे पाण्डवों की ओर से युद्ध सम्बन्धी कूटनीति का प्रयोग करते हैं।
- निर्भीक एवं स्पष्टवादी श्रीकृष्ण निर्भीक एवं स्पष्टवादी हैं। वह युद्ध नहीं चाहते पर इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह कायर हैं। वे दुर्योधन को बहुत समझाते हैं कि वह अपनी हठ छोड़ दे, किन्तु जब वह नहीं मानता तो वह कहते हैं
"तो ले अब मैं जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ। याचना नहीं अब रण होगा, जीवन-जय या कि मरण होगा।"
- गुण प्रशंसक ‘रश्मिरथी’ के श्रीकृष्ण गुणपारखी हैं और वे व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा करने वाले हैं। कर्ण की मृत्यु के उपरान्त वे अर्जुन से उनके सम्बन्ध में कहते हैं
"मगर, जो हो, मनुज सुवरिष्ठ था वह, धनुर्धर ही नहीं, धर्मिष्ठ था वह। तपस्वी, सत्यवादी था, व्रती था, बड़ा ब्रह्मण्य था, मन से यती था।"
- अलौकिक शक्ति सम्पन्न ‘महाभारत’ के श्रीकृष्ण की भाँति ‘रश्मिरथी’ के श्रीकृष्ण भी अलौकिक शक्ति से सम्पन्न हैं। वह लीलामय पुरुष हैं। दुर्योधन को समझाने के लिए श्रीकृष्ण राजसभा में पहुँचते हैं। उनकी बात न मानकर दुर्योधन उन्हें कैद करने का प्रयास करता है, तब श्रीकृष्ण अपना विराट रूप दिखाकर उसे पराजित कर देते हैं।
- युद्ध विरोधी श्रीकृष्ण किसी भी मूल्य पर युद्ध रोकना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि युद्ध की विभीषिका मानवता के लिए कितनी दुःखदायी होती है। पाण्डवों के दूत बनकर वे हस्तिनापुर जाते हैं और कौरवों से उनके लिए केवल पाँच गाँव माँगते हैं। दुर्योधन के न मानने पर वे सोचते है कि यदि कर्ण दुर्योधन का साथ छोड़ दे, तो यह युद्ध टल सकता है। इसलिए वे कर्ण के पास जाकर युद्ध की भीषणता तथा दुष्परिणाम उसे समझाते हैं।
- सदाचार का समर्थन करने वाले श्रीकृष्ण सदाचार एवं शील का समर्थन करने वाले हैं। वे समाज एवं मानव जाति के कल्याण के लिए पुरुषार्थ को किसी भी जाति, धर्म या जन्म से जुड़ा हुआ नहीं मानते, अपितु उन्हें सच्चा पुरुषार्थ शील और सदाचार युक्त आचरण में दिखाई देता है।
इस प्रकार श्रीकृष्ण महान् कूटनीतिज्ञ और अलौकिक शक्तिसम्पन्न हैं। इसके साथ ही वे लोक कल्याण एवं मंगलभावना के नए स्वरूप को भी धारण किए हुए हैं।