वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न 1. वाणिज्यिक कृषि से क्या आशय है?
उत्तर : वाणिज्यिक कृषि एक प्रकार की खेती है जिसमें फसलों को केवल व्यावसायिक उपयोग के लिए उगाया जाता है। इस प्रकार की खेती में बड़ी भूमि, श्रम और मशीनों का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 2. चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
अथवा चावल की उपज के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन
कीजिए। [2020]
अथवा चावल के उत्पादन हेतु उपयुक्त भौगोलिक दशाओं की विवेचना कीजिए एवं भारत में प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों पर प्रकाश डालिए। [2022]
अथवा धान की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए। [2020]
अथवा चावल की खेती हेतु उपयुक्त भौगोलिक दशाओं की विवेचना कीजिए तथा भारत में किन्हीं तीन प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2023 EY]
उत्तर : चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियाँ
चावल प्रमुख रूप से उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु की उपज है। अतः इसकी फसल के लिए उष्णार्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी फसल के लिए 25° सेल्सियस औसत तापमान और सामान्यतः 100 से 200 सेमी तक वर्षा की आवश्यकता होती है। कम वर्षा वाले भागों में सिंचाई द्वारा चावल का उत्पादन किया जाता है। इसकी खेती के लिए चिकनी, कछारी तथा दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। नदियों के डेल्टाई क्षेत्र, बाढ़ के मैदान अथवा समुद्रतटीय मैदान चावल की कृषि के लिए सवर्वोत्तम माने जाते है। पहाड़ी भागों में ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर चावल उगाया जाता है। चावल रोपने, निराई-गुड़ाई करने, काटने तथा घान से चावल व भूसी अलग करने के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि चावल की कृषि सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में ही की जाती है।
प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
1.पश्चिम बंगाल – इस राज्य का भारत के चावल उत्पादन में प्रथम स्थान है। यहाँ अमन, ओस तथा बोरो चावल की तीन फसलें उगाई जाती हैं। इस राज्य की कृषि योग्य भूमि के 77% भू-भाग पर चावल उगाया जाता है। जलपाईगुड़ी, पूर्वी मिदनापुर, पश्चिमी मिदनापुर, बर्दवान, बांकुडा, उत्तरी दिनाजपुर, दक्षिणी दिनाजपुर, बीरभूम, हावड़ा व दार्जिलिंग प्रमुख चावल उत्पादक जिले है।
2.पंजाब- पंजाब भारत का गैर-परम्परागत चावल उत्पादक राज्य है, जहाँ सिंचाई (99% चावल क्षेत्र) के सहारे चावल उत्पादन किया जाता है। यहाँ चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन सर्वाधिक है। लुधियाना, पटियाला, संगरूर, रोपड़, अमृतसर एवं गुरुदासपुर जिले चावल उत्पादन में प्रमुख स्थान रखते हैं।
3.उत्तर प्रदेश- उत्तर प्रदेश राज्य का भारत के चावल उत्पादन में तीसरा स्थान है। यहाँ पूर्वी उत्तर प्रदेश व तराई क्षेत्र चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।
4.तेलंगाना एवं आन्ध्र प्रदेश- ये देश के प्रसिद्ध चावल उत्पादक राज्य है। यहाँ वर्ष में चावल की दो फसलें उगाई जाती हैं। गोदावरी एवं कृष्णा नदियों की घाटियाँ और समुद्रतटीय मैदानों में चावल की कृषि की जाती है।
प्रश्न 3. कपास की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ बताइए।
उत्तर : कपास की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ आवश्यक होती है-
1. तापमान – कपास उष्ण कटिबन्धीय जलवायु का पौधा है। इसकी फसल के लिए 200 से 35° सेल्सियस तापमान आवश्यक होता है। कोहरा एवं पाला कपास की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक होता है।
2.वर्षा-कपास के पौधों को सामान्य नमी की आवश्यकता होती है। इसके लिए कम-से-कम 50 सेमी वर्षा आवश्यक होती है, परन्तु 75 सेमी से अधिक वर्षा हानिकारक होती है। वर्षा का जल पौधों की जड़ो में नहीं ठहरना चाहिए। अतः खेतों में जल-निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
3. मिट्टी-कपास लावा से निर्मित उपजाऊ, गहरी एवं मध्यम काली मिट्टी में उगाई जाती है। काली मिट्टी को कपास की मिट्टी कहा जाता है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है।
4.मानवीय श्रम-कपास की खेती के लिए अधिक संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती हैं। कपास चुनने (डोडे से रेशा पृथक् करना) में स्त्री व बाल श्रमिकों का अधिक उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 4. भारतीय कृषि की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर : भारतीय कृषि की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- [2020, 22]
- प्रकृति पर निर्भरता – भारतीय कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। यही कारण है कि वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक प्रभावित करती है। जिस वर्ष मानसूनी वर्षा नियमित होती है, कृषि उत्पादन भी यथेष्ट मात्रा में प्राप्त होता है।
- कृषि की निम्न उत्पादकता – भारत में कृषि उपजों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अपेक्षाकृत अन्य देशों से कम है। प्रति श्रमिक की दृष्टि से भारत में कृषि श्रमिक की औसत वार्षिक उत्पादकता केवल 105 डॉलर है।
- खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता – भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता रहती है क्योंकि 100 करोड़ से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुल कृषि भूमि के लगभग 65-8% भाग पर खाद्यान्न तथा शेष भाग में व्यापारिक व अन्य फसलों का उत्पादन किया जाता है।
प्रश्न 5. वाणिज्यिक कृषि की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2023 FA]
उत्तर : वाणिज्यिक या बाजार कृषि, कृषि का वह प्रकार है जिसका मुख्य उद्देश्य विपणन है। इसका आशय यह है कि फसल प्रक्रिया से प्राप्त उत्पादों को आर्थिक लाभ प्राप्त करने हेतु बिक्री के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
वाणिज्यिक कृषि का प्रमुख लक्षण आधुनिक निवेशों जैसे अधिक पैदावार वि देने वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त करना है।
रोपण कृषि में शामिल चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला इत्यादि भी एक प्रकार को वाणिज्यिक कृषि है। इस तरह की कृषि में एक बड़े भाग में एकल फसल की कृषि की जाती है।
प्रश्न 6. झूम कृषि की विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2023 EZ]
उत्तर : झूम कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- (1) इस कृषि पद्धति में छोटी-छोटी एवं बिखरी हुई जोते पायी जाती हैं। इस पद्धति में कृषि के परम्परागत पुरातन कृषि यन्त्रों एवं उपकरणों-गेती, फावड़ा, हल, बक्खर, खुरपी, तगारी आदि का प्रयोग किया जाता है। परिवार के सदस्य (स्त्री एवं पुरुष) मिल-जुलकर कृषि कार्य करते हैं। यह आत्मनिर्वाह कृषि भी कहलाती है।
- (2) इस कृषि में अधिकांशतः मोटे अनाजों – मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदो, जिमीकन्द, रतालू आदि का उत्पादन किया जाता है। कुछ उपयुक्त भूमि पर गेहूँ एवं चावल की खेती भी की जाती है।
- (3) इसमें प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है। वास्तव में यह कृषि एक प्रकार से प्रकृति की ही देन है। व्यक्ति केवल बीज बोने का कार्य ही करता है क्योंकि सिचाई या उर्वरक एवं खाद आदि के लिए कृषकों के पास पूँजी का अभाव होता है। उसकी देखभाल प्रकृति ही करती है।
- (4) इस कृषि में उत्पादित फसलों का उपयोग कृषक एवं उसका परिवार स्वयं ही कर लेता है क्योकि इसमें प्रति हेक्टेयर उत्पादन मात्र इतना होता है कि कृषक एवं उसके परिजनों का भी पालन-पोषण कठिन होता है।
- (5) जीविकोपार्जन कृषि करने वाले आदिवासी कृषक अधिकांशतः निर्धन होते है। उनके पास पूँजी का अभाव होता है। अतः वे अपने खेतों में उत्तम एवं सुधरे हुए बीज, रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशको आदि का प्रयोग नहीं कर पाते है जिस कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ नहीं पाता है। परन्तु अब कुछ स्थानों पर गन्ना, तिलहन, कपास एवं जूट जैसी फसलों का उत्पादन किया जाने लगा है जिससे आत्मनिर्वाह कृषि व्यापारिक कृषि की ओर अग्रसर हो रही है।
- (6) कृषकों (आदिवासियों) की निर्धनता के कारण कृषि में आधुनिक तकनीक का उपयोग नहीं किया जाता है। आधुनिक तकनीक से तात्पर्य आधुनिक कृषि यन्त्रों एवं उपकरणों के प्रयोग से है। फलस्वरूप उत्पादन केवल आत्मनिर्भरता तक ही सीमित रहता है।
प्रश्न 7. कृषि क्षेत्र की तीन प्रमुख समस्याओं के नाम लिखिए। [2022]
उत्तर : कृषि क्षेत्र की तीन प्रमुख समस्याएँ हैं-
- उर्वरकों की कमी,
- कृषि सेवाओं का अभाव,
- साख सुविधाओं का अभाव।
प्रश्न 8. गेहूँ की खेती के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ बताइए।[2022]
उत्तर : गेहूँ शीतोष्णकटिबन्धीय पौधा है। इसे बोते समय लगभग 10° से० तापमान अधिक उपयुक्त होता है। गेहूँ के पकते समय 20° तथा 20° से० से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। गेहूँ को बोते समय शीतल आर्द्र जलवायु तथा पकते समय उष्ण एवं शुष्क जलवायु चाहिए। गेहूँ की उपज के लिए 50 सेमी से लेकर 75 सेमी तक वर्षा होनी चाहिए। वर्षा के अभाव की पूर्ति सिंचाई के साधनों से की जा सकती है। शीतकाल में वर्षा इस फसल के लिए बहुत ही लाभप्रद होती है। इसकी अच्छी उपज के लिए समतल उपजाऊ विस्तृत मैदान बहुत उपयुक्त होते हैं। गेहूँ की उपज के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी उत्तम रहती है। यह काली मिट्टी में भी अच्छी फसल देती है।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. भारतीय कृषि की मुख्य समस्याओं के विषय में विस्तार से लिखिए।
अथवा भारत में कृषि क्षेत्र में होने वाली समस्याएँ लिखिए।
उत्तर : भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याएँ
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं को तीन भागों में बाँट सकते हैं-
I. सामान्य कारण,
II. संस्थागत कारण,
III. प्राविधिक कारण।
I. सामान्य कारण
- भूमि पर जनसंख्या का भार – भारत में कृषि भूमि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है, परिणामतः प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि की उपलब्धि निरन्तर कम होती जा रही है। सन् 1901 ई० में जहाँ कृषि योग्य भूमि की उपलब्धि प्रति व्यक्ति 2-1 एकड़ थी, आज वह 0-7 एकड़ से भी कम रह गई है।
- कुशल मानव-शक्ति का अभाव भारत का कृषक सामान्यतया निर्धन, निरक्षर एवं भाग्यवादी होता है। अतः वह स्वभावतः अधिक उत्पादन नहीं कर पाता।
- भूमि पर लगातार कृषि- अनगिनत वर्षों से हमारे यहाँ उसी भूमि पर खेती की जा रही है, फलतः खेती की उर्वरा शक्ति निरन्तर कम होती जा रही है। उर्वरा शक्ति पुनः प्राप्त करने के लिए सामान्यतः न तो हेर-फेर की प्रणाली का ही प्रयोग किया जाता है और न रासायनिक खादों का ही प्रयोग होता है।
II. संस्थागत कारण
- खेतों का लघु आकार- उपविभाजन एवं अपखण्डन के परिणामस्वरूप देश में खेतों का आकार अत्यन्त छोटा हो गया है, परिणामतः आधुनिक उपकरणों का प्रयोग नहीं हो पाता और श्रम व पूँजी के साथ ही समय का भी अपव्यय होता है।
- अल्प-मात्रा में भूमि सुधार– देश में भूमि सुधार की दिशा में अभी महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक प्रगति नहीं हुई है, जिसके फलस्वरूप कृषको को न्याय प्राप्त नहीं होता। इसका उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- कृषि-सेवाओं का अभाव – भारत में कृषि सेवाएँ प्रदान करने वाली – संस्थाओं का अभाव पाया जाता है, जिससे उत्पादकता में वृद्धि नहीं हो पाती।
III. प्राविधिक कारण
- परम्परागत विधियाँ – भारतीय किसान अपने परम्परावादी दृष्टिकोण एवं दरिद्रता के कारण पुरानी और अकुशल विधियों का ही प्रयोग करते हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि नहीं हो पाती।
- उर्वरकों की कमी -उत्पादन में वृद्धि के लिए उर्वरकों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है, परन्तु भारत में गोबर एवं आधुनिक रासायनिक खादों (उर्वरकों) दोनों का ही अभाव पाया जाता है। गत वर्षों में इस दिशा में कुछ प्रगति अवश्य हुई है।
- आधुनिक कृषि-उपकरणों का अभाव– भारत के अधिकांश कृषक पुराने उपकरणों का प्रयोग किया करते हैं, जिससे उत्पादन में उचित वृद्धि नहीं हो पाती। ऐसा प्रतीत होता है कि परम्परागत भारतीय कृषि उपकरणो में अवश्य कोई मौलिक दोष है। अतः कृषकों को आधुनिक उपकरणों को अपनाना चाहिए।
- बीजों की उत्तम किस्मों का अभाव – कृषि के न्यून उत्पादन का एक कारण यह भी रहा है कि हमारे किसान बीजों की उत्तम किस्मों के प्रति उदासीन रहे हैं। इस स्थिति के मूलतः तीन कारण हैं- प्रथम, किसानों को उत्तम बीजों की न्यु उपयोगिता का पता न होना; द्वितीय, बीजों की समुचित आपूर्ति न होना; तृतीय, नी अच्छी किस्म के बीजों का महंगा होना और कृषकों की निर्धनता।
- साख-सुविधाओं का अभाव – अभी तक कृषि विकास के लिए पर्याप्त साख-सुविधाएँ कृषकों को उपलब्ध नहीं थी। इसके मूलतः दो कारण थे- प्रथम, कृषि वित्त संस्थाओ का अभाव व उनका सीमित कार्य क्षेत्र; द्वितीय, उचित कृषि मूल्य नीति का अभाव।
- पशुओं की हीन दशा– भारत में पशुओं का अभाव तो नहीं है; लेकिन उनकी अधिक अच्छी नस्ल नहीं पायी जाती। अन्य शब्दों में, पशु-धन की गुणात्मक स्थिति सन्तोषजनक नहीं है। अतः पशु आर्थिक सहयोग प्रदान करने के स्थान पर कृषकों पर भार बन गए हैं।
प्रश्न 2. एक पेय फसल का नाम लिखिए और उसके उत्पादन पर प्रकाश डलिए। [2022]
उत्तर: एक पेय फसल का नाम – चाय।
चाय उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक या अनुकूल दशाएँ
चाय उत्पादन के लिए निम्नलिखित जलवायविक दशाओं अथवा अनुकूल दशाओं (तापमान और वर्षा) की आवश्यकता होती है-
- तापमान – चाय उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु की उपज है। उपोष्ण कटिबन्ध में भी इसका उत्पादन किया जाता है। चाय के पौधों के लिए 20° से 30° सेल्सियस तापमान आवश्यक होता है। पाला, कोहरा और शीतप्रधान पवनें चाय की फसल के लिए हानिप्रद होती है।
- वर्षा – चाय के पौधों के लिए अधिक नमी की आवश्यक होती है। प्रायः 150 से 200 सेमी वर्षा वाले भागों में चाय के पौधे खूब पनपते हैं। दक्षिणी भारत में 500 सेमी वर्षा वाले भागों में पहाड़ी ढलानों पर भी चाय की खेती की जाती है। चाय के बागान 600 से 1,800 मीटर की ऊँचाई वाले पहाड़ी ढलानों पर ही लगाए जाते हैं।
इनके अतिरिक्त चाय की कृषि के लिए दोमट मिट्टी जिसमें पोटाश, लोहांश एवं जीवांशों की मात्रा अधिक हो, सर्वश्रेष्ठ रहती है। चाय श्रमप्रधान फसल है। इसकी कृषि के लिए अधिक संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है।
प्रश्न 3. गन्ना उत्पादन के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ बताइए। [2022]
अथवा गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए तथा भारत में इसके किन्हीं तीन उत्पादक राज्यों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर : गन्ना उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
गन्ना उगाने के लिए निम्नलिखित जलवायविक दशाओं (तापमान और वर्षा) की आवश्यकता होतो है-
- तापमान – गन्ना उष्णार्द्र जलवायु को उपज है। इसकी फसल के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। यह प्रायः 21° से 27° सेल्सियस तापमान में उगाया जाता है, परन्तु 35° सेल्सियस से अधिक और 15° सेल्सियस से कम तापमान में नहीं उगाया जा सकता है। गन्ने की फसल 10 से 12 माह में तैयार होती है। पाला एवं कोहरा गन्ने की फसल को बहुत ही हानि पहुँचाते हैं।
- वर्षा- गन्ने की फसल के लिए अधिक नमी की आवश्यकता होती है। अतः 75 से 100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में गन्ना उगाया जाता है। परन्तु वर्षा वर्षभर लगातार होती रहनी चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की सहायता से गन्ना उगाया जाता है।
इसके अतिरिक्त गन्ने की कृषि के लिए उपजाऊ दोमट और नमीयुक्त गहरी व चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है। दक्षिणी भारत की लावायुक्त मिट्टी में गन्ना अधिक पैदा होता है। गन्ने की खेती के लिए भारी संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि गन्ना सघन जनसंख्या वाले प्रदेशों में ही उगाया जाता है।
गन्ना उत्पादक प्रमुख राज्य हैं- महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु।
प्रश्न 4. किसी अर्थव्यवस्था में कृषि का क्या महत्त्व होता है? समझाइए। [2022]
अथवा कृषि का भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्व बताइए।
उत्तर : भारत एक कृषिप्रधान देश है तथा 2/3 जनसंख्या प्रत्यक्ष रूप से कृषि कार्य में संलग्न है। मानव एवं पालित पशुओं के लिए खाद्यान्न और चारे की व्यवस्था कृषि के माध्यम से ही होती है। अनेक कृषि आधारित उद्योगों के लिए कच्चा माल भी कृषि से आता है। चाय, कॉफी और मसालों का दूसरे देशों को निर्यात भी किया जाता है। देश के सकल घरेलू उत्पादन में कृषि का योगदान 26% है। प्राचीनकाल से भारत में कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। पहले भारत की कृषि मानसून पर आधारित थी, किन्तु अब सिंचाई के साधनो का विकास होने से राजस्थान के रेगिस्तान में भी फसलोत्पादन किया जा रहा है। तकनीकी और वैज्ञानिक विधियों का कृषि में उपयोग करने से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है। अब पहले की तुलना में मानवश्रम भी कम मात्रा में नियोजित होता है जिससे अतिरिक्त मानवश्रम अन्य वर्गों में नियोजित किया जा रहा है।