मेरी प्रिय यात्राः भुवनेश्वर
संकेत बिन्दु -भूमिका, यात्रा-वर्णन, उपसंहार
भूमिका- मैं स्वभाव से ही घुमक्कड़ प्रवृत्ति का हूँ। पिछले पाँच वर्षों में मैंने भारत के लगभग बीस शहरों तथा राज्यों की यात्रा की है, इनमें दिल्ली, मुम्बई राजस्थान, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा आदि शामिल हैं। इन शहरों में भुवनेश्वर ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है। पिछले वर्ष ही गमर्मी की सप्ताह भर की छुट्टियों में मैं इस शहर की यात्रा पर था। यह यात्रा मेरे लिए अविस्मरणीय है।
यात्रा-वर्णन– मैने एवं मेरे कुछ साथियों ने भुवनेश्वर जाने का निश्चय किया। हम दिल्ली से रेलगाड़ी में भुवनेश्वर के लिए रवाना हुए और सुबह लगभग दस बजे भुवनेश्वर पहुँच गए। हमने पहले दिन होटल में आराम कर सफर की थकान दूर की, फिर अगले दिन हम भुवनेश्वर घूमने निकल गए। भुवनेश्वर के बारे में जैसा हमने सुना था, उससे कहीं अधिक दर्शनीय पाया।
भुवनेश्वर, भारत के खूबसूरत एवं हरे-भरे प्रदेश उड़ीसा की राजधानी है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है। ऐतिहासिक ही नहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह शहर भारत के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। इसे ‘मन्दिरों का शहर’ भी कहा जाता है। यहाँ प्राचीन काल के लगभग 600 से अधिक मन्दिर हैं। इसलिए इसे ‘पूर्व का काशी’ भी कहा जाता है। तीसरी शताब्दी ई. पू. में सम्राट अशोक ने यहीं पर कलिंग युद्ध के बाद धम्म की दीक्षा ली थी। धम्म की दीक्षा लेने के बाद अशोक ने यहाँ पर बौद्ध स्तूप का निर्माण कराया था, इसलिए यह बौद्ध धर्मावलम्बियों का भी एक बड़ा तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में भुवनेश्वर में 7000 से अधिक मन्दिर थे, इनमें से अब केवल 600 मन्दिर ही शेष बचे हैं।
हम जिस होटल में ठहरे थे, उसके निकट ही राजा-रानी मन्दिर था, इसलिए सबसे पहले हम उसी के दर्शन के लिए पहुँचे। इस मन्दिर की स्थापना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी। इस मन्दिर में शिव एवं पार्वती की भव्य मूर्तियाँ हैं। इस मन्दिर की दीवारों पर सुन्दर कलाकृतियाँ बनी हुई हैं। इस मन्दिर से लगभग एक किलोमीटर दूर मुक्तेश्वर मन्दिर स्थित है। इसे मन्दिर समूह भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर एक साथ कई मन्दिर है। इन मन्दिरों में से दो मन्दिर अति महत्त्वपूर्ण हैं। एक है परमेश्वर
मन्दिर एवं दूसरा मुक्तेश्वर मन्दिर। इन दोनों मन्दिरों की स्थापना 650 ई. के आस-पास हुई थी। इन दोनों मन्दिरों की दीवारों पर की गई नक्काशी की सुन्दरता देखते ही बनती है। मुक्तेश्वर मन्दिर की दीवारों पर पंचतन्त्र की कहानियों को मूर्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। राजा-रानी मन्दिर एवं मुक्तेश्वर मन्दिर की सैर करते-करते हम थक गए थे। वैसे भी हम दोपहर के बाद सैर करने निकले थे और अब रात होने को थी, इसलिए हम लोग आराम करने के लिए वापस अपने होटल लौट आए। अगली सुबह हम लोग जल्दी तैयार होकर लिंगराज मन्दिर समूह देखने गए। इस मन्दिर के आस-पास सैकड़ों छोटे-छोटे मन्दिर बने हुए हैं, इसलिए इन्हें लिंगराज मन्दिर समूह कहा जाता है। इसका निर्माण 11 वीं शताब्दी में किया गया था। 185 फीट लम्बा यह मन्दिर भारत की प्राचीन शिल्पकला का अप्रतिम उदाहरण है। मन्दिरों की दीवारों पर निर्मित मूर्तियाँ शिल्पकारों की कुशलता की परिचायक हैं।
भुवनेश्वर की यात्रा इतिहास की यात्रा के समान है। इस शहर की यात्रा करते हुए ऐसा लगता है मानो हम उस काल में चले गए हो, जब इस शहर का निर्माण किया . जा रहा था। इस आभास को और भी अधिक बल प्रदान करता है- शहर के लगभग बीचों-बीच स्थित भुवनेश्वर-संग्रहालय। यहाँ प्राचीन मूर्तियों एवं हस्तलिखित ताड़पत्रों का अनूठा संग्रह है।
भुवनेश्वर के आस-पास भी ऐसे अनेक अप्रतिम स्थल हैं, जो ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व रखते हैं और जिनकी सैर के बिना इस शहर की यात्रा अधूरी ही रह जाती है। ऐसा ही एक स्थान है- धौली। यहाँ दूसरी शताब्दी ई. पू. में निर्मित एक बौद्ध स्तूप है। इस स्तूप के पास ही सम्राट अशोक निर्मित एक स्तम्भ भी है, जिसमें उनके जीवन एवं बौद्ध-दर्शन का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त भगवान बुद्ध की मूर्ति तथा उनके जीवन से सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं की मूर्तियाँ भी देखने योग्य हैं।
धौली के बौद्ध स्तूप के दर्शन के बाद हम लोग भुवनेश्वर शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित उदयगिरि एवं खण्डगिरि की गुफाओं को देखने गए। इन – गुफाओं को पहाड़ियों को काटकर बनाया गया है। इन गुफाओं में की गई अधिकांश चित्रकारी नष्ट हो चुकी है, किन्तु यहाँ निर्मित मूर्तियाँ अभी भी अपने प्रारम्भिक स्वरूप में ही विद्यमान हैं। सैर के बाद हम लोगों ने उड़ीसा के स्थानीय भोजन का आनन्द उठाया। पखाल भात, छतु तरकारी, महूराली-चडचडी एवं चिगुडि उड़ीसा के कुछ लोकप्रिय व्यंजन हैं। इस यात्रा को अविस्मरणीय बनाने के लिए हमने फोटोग्राफी और वहाँ की लोकप्रिय वस्तुओं की खरीदारी भी की।
उपसंहार– भुवनेश्वर की यात्रा मेरे लिए ही नहीं, बल्कि मेरे सभी साथियों के लिए भी एक अविस्मरणीय यात्रा बन गई। वस्तुतः किसी भी व्यक्ति की यात्रा का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि मानसिक शान्ति प्राप्त करना भी होता है। भुवनेश्वर के वातावरण में अद्भुत-सी पवित्रता घुली हुई है, जिससे हम सभी को जिस मानसिक शान्ति का अनुभव हुआ, उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता।