खनिज तथा ऊर्जा संसाधन
प्रश्न 1. खनिज क्या हैं?
उत्तर : खनिज प्राकृतिक रूप से विद्यमान एक समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आन्तरिक संरचना है। खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं; जिनमें कठोर हीरा व कोमल चूना तक सम्मिलित होता है। किसी विशेष खनिज का निर्माण उस समय की भौतिक व रासायनिक परिस्थितियों के अनुसार होता है। इसी के परिणामस्वरूप खनिजों में विविध रंग, कठोरता, चमक, घनत्व तथा विविध क्रिस्टल पाए जाते हैं।
प्रश्न 2. आग्नेय तथा कायान्तरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर : आग्नेय तथा कायान्तरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण दबाव एवं ताप वृद्धि का परिणाम है। ताप, दाब एवं गैसीय प्रभाव से चट्टानों में विद्यमान खनिज तत्त्व जब तरल या गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं तो ये दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर आ जाते हैं तथा ऊपर आकर ठण्डे होकर जम जाते हैं। अतः आग्नेय एवं कायान्तरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं। जस्ता, ताँबा, जिंक, सीसा आदि खंनिज इसी तरह शिराओ व जमावों से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 3. हमें खनिजों के संरक्षण की क्यों आवश्यकता है?
उत्तर : खनिजों का विवेकपूर्ण उपयोग और उनका प्रबन्धन करना ‘खनिज संसाधन संरक्षण’ कहलाता है। कुछ खनिज ऐसे होते हैं जिन्हें एक बार उपयोग कर लेने पर वे सदैव के लिए समाप्त हो जाते हैं; जैसे- मैंगनीज, अभ्रक, प्लेटिनम, एण्टीमनी, पारा, रेडियम आदि। इसके विपरीत कुछ खनिज संसाधनों का उपयोग चक्रण द्वारा बार-बार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए लोहे का एक बार उपयोग कर लेने पर उसे पुनः गलाकर उपयोग में लाया जा सकता है। अतः एक बार उपभोग कर समाप्त होने वाले खनिज संसाधनों के संरक्षण की सर्वाधिक आवश्यकता है जिससे हमारी भावी पीढ़ियों को भी खनिज सुगमता से प्राप्त होते रहें।
प्रश्न 4. अभ्रक की उपयोगिता बताइए एवं भारत में इसके किन्हीं दो उत्पादक राज्यों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर : अभ्रक का उपयोग- अभ्रक का उपयोग मुख्यतया विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में किया जाता है, बिजली के सामान के अलावा अभ्रक का उपयोग बेतार का तार, हवाई जहाज, मोटरकार, आँखों के चश्मे, लालटेन, धमन भट्ठियों में ताप सहविद्युत कुचालक ईंटों, मकानों की खिड़कियों, अनेक प्रकार के सजावट के सामान व दवाओं में किया जाता है।
अभ्रक उत्पादक राज्य – (1) झारखण्ड, (2) आन्ध्र प्रदेश, (3) बिहार, (4) राजस्थान, (5) तमिलनाडु आदि।
प्रश्न 5. भारत में लौह अयस्क के उत्पादन पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर : भारत में लौह अयस्क विशाल मात्रा में उपलब्ध है। मैग्नेटाइट सर्वोत्तम लौह अयस्क है। इसमें लगभग 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है। हेमेटाइट, उद्योगों की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लौह अयस्क है। इसका अधिकाधिक मात्रा में उपभोग हुआ है।
भारत में लौह अयस्क की निम्नलिखित पेटियाँ (क्षेत्र) पायी जाती हैं-
- ओडिशा-झारखण्ड पेटी– ओडिशा में उच्चकोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज व केन्दूझर जिलों में बादाम पहाड़ की खदानों से निकाला जाता है। झारखण्ड राज्य के सिंहभूम जिले में गुआ एवं नोआमुंडी से हेमेटाइट अयस्क प्राप्त किया जाता है।
- दुर्ग-बस्तर-चन्द्रपुर पेटी- लौह अयस्क की यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ में फैली हुई है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी श्रृंखलाओं से उत्तम किस्म का हेमेटाइट लौह अयस्क प्राप्त होता है।
- बल्लारि-चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलुरु-तुमकूरु पेटी-कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। कर्नाटक में पश्चिमी घाट में स्थित कुद्रेमुख की अयस्क खानों से प्राप्त सम्पूर्ण अयस्क निर्यात कर दिया जाता है।
- महाराष्ट्र-गोवा पेटी – यह पेटी गोवा और महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में स्थित है। इस पेटी का लौह अयस्क उत्तम प्रकार का नहीं है फिर भी इसका खनन कुशलतापूर्वक किया जा रहा है। मार्मागाओ पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।
प्रश्न 6. धात्विक खनिज किसे कहते हैं? ऐसे दो खनिजों के नाम लिखिए।
उत्तर : धात्विक खनिज- वे खनिज जिनसे धातु प्राप्त होती है, धात्विक खनिज कहलाते हैं। ऐसे दो खनिज हैं-
(1) लौह अयस्क, (2) ताँबा।
प्रश्न 7. जीवाश्मीय ईंधन से क्या अभिप्राय है? इनमें कौन-से अवगुण पाए जाते हैं?
उत्तर : जिन ईंधनों (ऊर्जा शक्ति) की उत्पत्ति जैविक पदार्थों से हुई है, उन्हें जीवाश्मीय ईंधन या खनिज ईंधन कहा जाता है। कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस की उत्पत्ति जैविक पदार्थों से हुई है, जिनका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है। जीवाश्मीय ईंधनों में निम्नलिखित अवगुण पाए जाते हैं-
- (1) जीवाश्मीय ईंधन ऊर्जा के क्षयी संसाधन हैं अर्थात् इनके भण्डार कभी भी समाप्त हो सकते हैं।
- (2) जीवाश्मीय ईंधन के उपयोग से राख, धुआँ, गन्दगी उत्पन्न होती है जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।
- (3) इनका एक वार उपयोग करने के बाद ये सदैव के लिए समाप्त हो जाते हैं।
- (4) इनके आवागमन में भारी व्यय करना पड़ता है, परन्तु इनसे ताप शक्ति अधिक प्राप्त होती है।
- (5) जीवाश्मीय ईंधनों के उपयोग से पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होती जा रही है जो आधुनिक युग की एक ज्वलन्त समस्या है जिसका सामना विश्व के सभी देश कर रहे हैं।
प्रश्न 8. ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्त्रोत किसे कहते हैं? भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य कैसा है?
उत्तर : ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्त्रोत ऊर्जा प्राप्ति के वे साधन जिनका उपयोग मनुष्य ने कुछ वर्षों पूर्व ही प्रारम्भ किया है, गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं।
भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य–
भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
- (1) भारत एक उष्ण कटिबन्धीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम सम्भावनाएँ हैं।
- (2) सौर ऊर्जा का अर्थ सूर्य से प्राप्त ऊर्जा है। भारत में विपुल मात्रा में वर्षभर सौर ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
- (3) यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।
- (4) सौर ऊर्जा के प्रयोग से प्रदूषण नहीं होता है।
- (5) भारत में उपलब्ध परम्परागत ऊर्जा संसाधन वर्तमान उपयोग की दर के अनुसार आने वाले 50 वर्षों में समाप्त हो जाएँगे।
- (6) धूप को फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी के द्वारा सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जा सकता है।
- (7) भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयन्त्र गुजरात में भुज के निकट माधापुर में स्थित है। यहाँ सौर ऊर्जा के द्वारा दूध के बड़े वर्तनों को कीटाणुमुक्त किया जाता है।
- (8) थार का मरुस्थल भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा केन्द्र बन सकता है।
- 9) भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
- (10) सौर ऊर्जा का उपयोग खाना पकाने, पम्प द्वारा पानी निकालने, पानी गर्म करने, प्रशीतन तथा सड़कों को रोशन करने में किया जाता है। सर्दी में घरों को गर्म करने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके उपयोग से ग्रामीण घरों को ईंधन के लिए उपलों व लकड़ी की निर्भरता कम होगी तथा गोबर का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकेगा।
अतः यह कहा जा सकता है कि भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है।
प्रश्न 9. ऊर्जा के परम्परागत स्त्रोत किसे कहते हैं? भारत में खनिज तेल के दो क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर : ऊर्जा के परम्परागत स्त्रोत – ऊर्जा के परम्परागत स्रोत से आशय उन संसाधनों से है जिनका उपयोग प्राचीनकाल से मनुष्य करता आ रहा है तथा जो सीमित ‘तथा समाप्तप्राय (जलविद्युत को छोड़कर) है। उदाहरण- कोयला, पेट्रोलियम, विद्युत, प्राकृतिक गैस। भारत में खनिज तेल के क्षेत्र – भारत में खनिज तेल के दो क्षेत्रों के नाम हैं-
- (1) अंकलेश्वर (गुजरात)
- (2) असम।
प्रश्न 10. ‘मुम्बई हाई’ क्यों प्रसिद्ध है? देश के आर्थिक विकास में इसका क्या योगदान है?
उत्तर : स्वाधीनता के पश्चात् अपतटीय क्षेत्रों में तेल तथा प्राकृतिक गैस मिलने की अपार सम्भावनाएँ व्यक्त की गईं। फलस्वरूप मुम्बई तट से 115 किमी दूर और वड़ोदरा से 80 किमी दक्षिण में अरब सागर में पेट्रोल के विशाल भण्डारों का पता चला जिसे तेल क्षेत्र में मुम्बई हाई के नाम से जाना जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा अपतटीय तेल क्षेत्र है, जो 143 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल में विस्तृत है। यहाँ तेल 1,416 मीटर की गहराई से निकाला जाता है तथा जापान से आयात किए गए सागर सम्राट नामक विशाल जलयान द्वारा सन् 1974 से तेल का उत्पादन किया जा रहा है। यहाँ लगभग 262 लाख टन खनिज तेल का उत्पादन किया जाता है।
इस प्रकार देश के पेट्रोलियम उत्पादन में मुम्बई हाई का योगदान सराहनीय रहा है। पहले भारत बड़ी मात्रा में तेल का आयात करता था, परन्तु मुम्बई हाई की खोज के बाद तेल के आयात में कमी आई है। इस क्षेत्र में तेल की उपलब्धता से प्रभावित होकर अन्य नये अपतटीय तेल क्षेत्रों में तेल की खोज के कार्य को प्रोत्साहन दिया जा रहा है तथा परिणाम भी अनुकूल मिल रहे हैं। इस प्रकार तेल उत्पादन क्षेत्र में मुम्बई हाई का देश के आर्थिक विकास में. महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2 #
प्रश्न 1. खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है? खनिजों के संरक्षण की किन्हीं तीन विधियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : प्राकृतिक संसाधनों में खनिज पदार्थों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। किसी भी राष्ट्र का औद्योगिक विकास खनिज संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। विश्वस्तर पर खनिजों की उपलब्धता सीमित है। फलस्वरूप विश्व में खनिजों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाने लगा है। इन विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए खनिज संसाधनों का संरक्षण करना अति आवश्यक है। कुछ खनिज संसाधन ऐसे होते हैं जिन्हें एक बार उपयोग कर लेने पर वे सदैव के लिए समाप्त हो जाते हैं; जैसे- मैंगनीज, अभ्रक, प्लेटिनम, एण्टीमनी, पारा, रेडियम आदि। इसके विपरीत कुछ खनिज संसाधनों का उपयोग चक्रण द्वारा बार-बार किया जा सकता है। अतः एक बार उपभोग कर समाप्त होने वाले खनिज संसाधनों के
संरक्षण की सर्वाधिक आवश्यकता है जिससे हमारी भावी पीढ़ियों को भी खनिज सतत रूप में प्राप्त होते रहे। खनिजों के संरक्षण की चार विधियाँ निम्नलिखित हैं-
- (1) धातु अयस्कों का उपयोग चक्रीय प्रक्रिया द्वारा किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए लोहे एवं सोने को पुनः गलाकर उपयोग में लाया जा सकता है।
- (2) खनिज संसाधनों के संरक्षण के लिए उनके वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग किया जाना चाहिए।
- (3) खनिज संसाधनों का उत्खनन करते समय तथा उनके निर्माण की प्रक्रियाओं में उनकी बरबादी कम-से-कम की जानी चाहिए।
- (4) खनिजों के संरक्षण के लिए उनके स्थान पर अन्य वस्तुओं का उपयोग किया जाना चाहिए। जो खनिज संसाधन शीघ्र समाप्त होने वाले हों, उनका उपयोग बड़ी ही मितव्ययिता से किया जाना चाहिए तथा उनका भविष्य के लिए संरक्षण करना अति आवश्यक है।
प्रश्न 2. ऊर्जा के गैर-परम्परागत चार स्त्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: भारत में गैर-परम्परागत संसाधन निम्नलिखित हैं-
परमाणु अथवा आण्विक ऊर्जा – इस प्रकार की ऊर्जा परमाणुओ से प्राप्त की जाती है। इस ऊर्जा का उत्पादन रेडियोएक्टिव पदार्थों की सहायता से किया जाता है। भारत में परमाणु ऊर्जा हेतु प्रयुक्त होने वाले यूरेनियम व थोरियम झारखण्ड व राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं। इनका प्रयोग परमाणु अथवा आण्विक ऊर्जा उत्पादन में किया जा रहा है।
सौर ऊर्जा – यह ऊर्जा सूर्य की धूप की सहायता से प्राप्त की जाती है। इस हेतु विशेष प्रकार की तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिसे ‘फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी’ कहते हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का विकास किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का उपयोग लकड़ी व उपलों जैसे ईंधन के स्थान पर किया जा सकता है।
पवन ऊर्जा – भारत में पवन ऊर्जा फार्म की विशालतम पेटी (क्षेत्र) तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरै तक अवस्थित है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए प्रसिद्ध हैं।
बायोगैस – ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि अपशिष्टो, पशुओं व मानवजनित अपशिष्टों से बायोगैस उत्पन्न की जा सकती है। जैविक पदार्थों के अपघटन से गैस उत्पन्न होती है। बायोगैस की तापीय क्षमता उपलों एवं मिट्टी के तेल से अधिक होती है। बायोगैस संयन्त्र सरकार की सहायता एवं निजी स्तर पर लगाए जाते हैं। पशुओं के गोबर का प्रयोग करने वाले संयन्त्र ग्रामीण भारत में गोबर गैस प्लाण्ट के नाम से लगाए गए हैं। गोबर गैस संयन्त्र किसानों को ऊर्जा के साथ-साथ उन्नत प्रकार का उर्वरक भी उपलब्ध कराते है।
ज्वारीय ऊर्जा- इस प्रकार की ऊर्जा प्राप्त करने के लिए महासागरीय तरंगों का उपयोग किया जाता है। उच्च ज्वार में संकरी खाड़ीनुमा प्रवेशद्वार से पानी भीतर भर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है। बाढ़ द्वार के बाहर, ज्वार उतरने पर बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की ओर बहाया जाता है, जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है। भारत में कच्छ की खाड़ी में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।
भू-तापीय ऊर्जा-पृथ्वी के आन्तरिक भागों से निकलने वाले ताप का प्रयोग कर भूतापीय ऊर्जा को उत्पन्न किया जाता है। जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई बढ़ती है, ताप बढ़ता जाता है। ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल, चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर तप्त हो जाता है। यह अधिक तप्त होकर पृथ्वी की सतह की ओर उठकर भाप में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 3. अलौह खनिज किन्हें कहते हैं? अलौह खनिजों में किन-किन खनिजों को शामिल किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : अलौह खनिज – अलौह खनिजों में लोहे का अंश नहीं होता। इस खनिज के अन्तर्गत ताँबा, बॉक्साइट, सीसा व सोना आदि आते हैं। इनका उपयोग धातु शोधन, इन्जीनियरिंग व विद्युत उद्योगों में किया जाता है। भारत में अलौह खनिजों की संचित मात्रा व उत्पादन कम है।
ताँबा – इसका उपयोग बिजली के तार, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योग आदि में किया जाता है। मध्य प्रदेश की वालाघाट खादानों से लगभग 52 प्रतिशत ताँबे का उत्पादन किया जाता है। झारखण्ड के सिंहभूम जिले की खादानों से भी ताँबे का उत्पादन होता है। राजस्थान राज्य की खेतड़ी खादाने भी ताँबे के उत्पादन से सम्बद्ध हैं।
बॉक्साइट – बॉक्साइट ऐलुमिनियम धातु का खनिज अयस्क है। यह एक हल्की एवं विद्युत की कुचालक धातु है। वायुयान निर्माण, विजली से सम्बन्धित उद्योगों एवं दैनिक जीवन में इस धातु का बहुत अधिक उपयोग होता है। भारत में बॉक्साइट के निक्षेप (अयस्क भण्डार) मुख्य रूप से अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियाँ एवं बिलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते है। ओडिशा बॉक्साइट का सबसे – बड़ा उत्पादक राज्य है। इस राज्य के कोरापुट जिले में पंचपतमाली है। इसके निक्षेप पाए जाते हैं।