काव्य तथा उसके विविध भेद
प्राचीन काव्यशास्त्र के आचार्यों ने काव्य के प्रमुख दो भेद माने हैं-
- प्रबन्ध काव्य;
- मुक्तक काव्य।
इनको निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है
(1) प्रबन्ध काव्य-
प्रबन्ध काव्य उस काव्य को कहते हैं, जो किसी कथा के द्वारा विकास के विभिन्न क्रमों में सुव्यवस्थित रूप से बंधा हुआ हो। संक्षेप में जो काव्य किसी महापुरुष अथवा किसी विशिष्ट पात्र के जीवन सम्बन्धी कथानक से बंधा हुआ, सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध हो, उसे ‘प्रबन्ध काव्य’ कहते हैं।
(2) मुक्तक काव्य-
स्वच्छन्द लघु काव्य-रचनाओं को ‘मुक्तक काव्य’ कहा जाता है।
प्रबन्ध काव्य के भेद-प्रबन्ध काव्य के दो भेद है-
- महाकाव्य
- खण्डकाव्य
‘महाकाव्य‘ में किसी महापुरुष के जीवन की सर्वांगीण एवं सम्पूर्ण रूप से विकसित कथा का समावेश होता है तथा उस कथा में कथा से सम्बन्धित महापुरुष के चरित्र को प्रकाशित करने वाले कई पात्र होते हैं, जबकि ‘खण्डकाव्य’ में किसी महापुरुष या नायक के जीवन के किसी एक विशेष विन्दु या पक्ष का हो वर्णन होता है।
खण्डकाव्य के तत्त्व
विद्वानों ने किसी काव्य में दो तत्त्वों को मान्यता दी है-
(क) कलापक्ष, (ख) भावपक्ष; किन्तु खण्डकाव्य केवल काव्य ही नहीं होता, वरन् उसमें एक कथावस्तु भी होती है और इसका खण्डकाव्य में विशेष महत्त्व होता है। अतः किसी खण्डकाव्य में मुख्य रूप से तीन तत्त्व होते हैं-
- कथावस्तु या वस्तुपक्ष;
- भावपक्ष;
- कलापक्ष
इनका विवेचन इस प्रकार है-
(1) कथावस्तु या वस्तुपक्ष-
वस्तुपक्ष का सम्बन्ध खण्डकाव्य के कथानक एवं उसके चरित्र-चित्रण से सम्बन्धित होता है। कुछ विद्वान् वस्तुपक्ष में शीर्षक एवं उद्देश्य आदि को भी स्थान देते हैं; किन्तु वस्तुतः ये सभी खण्डकाव्य के कथानक के ही अंग हैं। शीर्षक का सम्बन्ध कथानक के भावात्मक अर्थ से सम्बन्धित होता है और उद्देश्य का सम्बन्ध भी कथा-योजना से ही होता है; क्योंकि यह कथा की उस योजना का ही उद्देश्य होता है।
(2) भावपक्ष-
खण्डकाव्य का भावपक्ष उसकी रस-योजना एवं बिम्ब-चित्रण से सम्बन्धित होता है। किसी खण्डकाव्य में चित्रित किए गए गतिशील एवं संवेदनशील चित्रों तथा उसकी रस-निष्पत्ति का अत्यधिक महत्त्व होता है। वस्तुतः किसी खण्डकाव्य की काव्यात्मक श्रेष्ठता की कसौटी भी यही है।
(3) कलापक्ष-
कलापक्ष से तात्पर्य खण्डकाव्य की भाषा-शैली, छन्द-योजना एवं अलंकार-योजना आदि से है। भावों के अनुकूल छन्दों, शब्दों, भाषा, शैली एवं अलंकारों की योजना के आधार पर खण्डकाव्य का भावपक्ष और अधिक प्रभावोत्पादक हो जाता है, जिससे उसका स्वरूप श्रेष्ठ हो जाता है।