कैकेयी का अनुताप : मैथिलीशरण गुप्त
पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
1. तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे, नीले वितान के तले दीप बहु जागे। टकटकी लगाए नयन सुरों के थे वे, परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे। उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह-रहकर करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह-महकर। वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी, प्रभु बोले गिरा, गम्भीर नीरनिधि जैसी।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में पंचवटी की प्राकृतिक छटा का मनोहारी वर्णन किया गया है। प्रकृति के सौन्दर्य का यह वर्णन उस क्षण का है जब यहाँ भरत सहित अयोध्या के वासियों को श्रीराम से भेंट करने हेतु रात्रि-सभा का आयोजन किया जाता है।
व्याख्या भरत सहित अयोध्यावासियों के पंचवटी पहुँचने के पश्चात् रात्रि में श्रीराम की कुटिया के सामने सभा बैठाई गई, जिसे देख ऐसा आभास हो रहा था कि मानो
आकाश रूपी मण्डप के नीचे बहुत से तारे रूपी दीपक जगमगा रहे हों, सभा में लिए जाने वाले महत्त्वपूर्ण निर्णय का परिणाम जानने के लिए उत्सुक देवतागण भी वहाँ एकटक नजरें गड़ाए हुए थे। सभी इस बात को लेकर भयभीत थे कि कहीं भरत के आगमन का श्रीराम कुछ और ही अर्थ निकालकर कोई कठोर निर्णय न कर लें। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम था। खिले हुए करौंदे पुष्पों से भरे हुए बगीचों से रह-रह कर आने वाली मन्द, शीतल व सुगन्धित पवन वहाँ उपस्थित लोगों को पुलकित कर रही थी। वहाँ ऐसी मनोहर चाँदनी छिटक रही थी, जिसका अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। वह सभा चन्द्रलोक-सी प्रतीत हो रही थी। अलौकिक दृश्यों से परिपूर्ण उस शान्त सभा में श्रीराम ने सागर सदृश अति गम्भीर स्वर में बोलना प्रारम्भ किया।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) इन काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि द्वारा रात्रि के समय पंचवटी आश्रम के आस-पास की प्राकृतिक छटा के मनोहारी होने का भाव अभिव्यक्त किया गया है।
(ii) रस शान्त
कला पक्ष
भाषा परिष्कृत खड़ीबोली
शैली प्रबन्धात्मक
छन्द मालिनी
अलंकार उपमा, पुनरुक्तिप्रकाश, रूपक एवं अनुप्रास
गुण प्रसाद
शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक तथा कवि का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक ‘कैकेयी का अनुताप’ तथा इसके कवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ जी हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश किस प्रसंग से सम्बन्धित है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में पंचवटी की प्राकृतिक छटा का मनोहारी वर्णन किया गया है। प्रकृति के सौन्दर्य का यह वर्णन उस क्षण का है, जब यहाँ भरत के साथ अयोध्यावासियों को श्रीराम से भेंट करने हेतु रात्रि-सभा का आयोजन किया गया था।
(iv) उत्फुल्ल करौंदी कुंज वायु रह-रहकर’ पंक्ति का आंशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि पंचवटी का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम था। खिले हुए करौंदे, पुष्पों से भरे हुए बगीचों से रह-रहकर आने वाली मन्द, शीतल व सुगन्धित पवन वहाँ उपस्थित लोगों को पुलकित कर रही थी।
(v) प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि द्वारा किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि द्वारा रात्रि के समय पंचवटी आश्रम के आस-पास की प्राकृतिक छटा के मनोहारी होने का भाव अभिव्यक्त किया गया है।
2.बैठी थी अचल तथापि असंख्या तरंगा वह सिंही अब थी हहा! गोमुखी गंगा हाँ जनकर भी मैंने न भरत को जाना सब सुन लें, तुमने अभी स्वयं यह माना यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया अपराधिन मैं हूँ तात, तुम्हारी मैया दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है। पर अबला जन के लिए कौन-सा पथ है?
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राम की बात सुनकर माता कैकेयी स्वयं को दोषी सिद्ध करती हुई उनसे अयोध्या लौटने की बात कहती हैं।
व्याख्या स्थिर बैठी होने के पश्चात् भी उनके मन में विचारों की अनगिनत तरंगे उठ रही थीं। कभी सिंहनी-सी प्रतीत होने वाली रानी कैकेयी आज दीनता के भावों से भरी थीं। आज वह गंगा के सदृश शान्त, शीतल और पावन थीं।
कैकेयी कहती हैं कि सभी लोग सुन लें- मैं जन्म देने के पश्चात् भी भरत को न पहचान सकी। अभी-अभी राम ने भी इस बात को स्वीकार किया है। वह राम से कहती हैं कि यदि तुम्हारी कही बात सच है तो तुम अयोध्या लौट चलो। अपराधिनी मैं हूँ, तुम्हारी माता, भरत नहीं। तुम्हें वन में भेजने का अपराध मैंने किया है। इसके लिए मुझे जो दण्ड चाहो दो, मैं उसे स्वीकार कर लूँगी, परन्तु घर लौट चलो, अन्यथा लोग भरत को दोषी मानेंगे।
कैकेयी, भरत की सौगन्ध खाते हुए राम से कहती हैं कि सौगन्ध खाने से व्यक्ति की दुर्बलता प्रकट होती है, परन्तु स्त्रियों के लिए इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नही हैं।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
(i) प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी को अपराध-बोध से ग्रसित दिखाया गया है। राम को घर लौटने का अनुरोध करके वह सद्मार्ग की ओर अग्रसर होती दिख रही हैं।
(ii) रस शान्त एवं करुण
कला पक्ष
भाषा परिष्कृत खड़ीबोली
शैली प्रबन्धात्मक
छन्द मन्दाक्रान्ता
अलंकार उत्प्रेक्षा एवं उपमा
गुण प्रसाद
शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) प्रस्तुत पद्यांश में किन-किन पात्रों के बीच संवाद हो रहा है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में राम और कैकेयी के बीच संवाद हो रहा है। राम की बात सुनकर माता कैकेयी स्वयं को दोषी सिद्ध करती हुई, उनसे अयोध्या लौटने की बात कहती हैं।
(ii) पाठ का शीर्षक एवं रचयिता के नाम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर पाठ का शीर्षक ‘कैकेयी अनुताप’ है तथा रचयिता का नाम ‘मैथिलीशरण गुप्त’ है।
(iii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iv) घर लौट चलने के लिए कौन किससे आग्रह कर रहा है?
उत्तर घर लौट चलने के लिए कैकेयी, राम से आग्रह कर रही हैं।
(v) सिंहीं और गोमुखी गंगा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर सिंही का अभिप्राय सिंहनी तथा गोमुखी गंगा का गाय के मुख वाली है। पद्यांश में कैकेयी के सन्दर्भ में ये शब्द प्रयुक्त हुए हैं कि कभी सिंहनी सी प्रतीत होने वाली रानी कैकेयी आज गंगा के समान शान्त, शीतल और पावन थीं।
3.क्या कर सकती थी, मरी मन्थरा दासी, मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी। जल पंजर-गत अब अरे अधीर, अभागे, वे ज्वलित भाव थे स्वयं मुझी में जागे। पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में? क्या शेष बचा कुछ न और जन में? कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य-मात्र क्या तेरा? पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा। थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके, जो कोई जो कह सके, कहे, क्यों चूके ? छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे, रे राम, दुहाई करूँ और क्या तुझसे ?
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी, राम को वनवास भेजने के लिए स्वयं को दोषी ठहराते हुए पश्चाताप कर रही है।
व्याख्या कैकेयी, मन्थरा को निदर्दोष बताते हुए कहती हैं कि मन्थरा तो एक साधारण-सी दासी है। वह भला मेरे मन को कैसे बदल सकती ! सच तो यह है कि स्वयं मेरा मन ही अविश्वासी हो गया था।
अपने मन को अधीर और अभागा मान कैकेयी अपने अन्तर्मन को कहती हैं कि मेरे शरीर में स्थित हे मन ! ईर्ष्या-द्वेष से परिपूर्ण वे ज्वलन्त भाव स्वयं तुझमें ही जागे थे। तत्पश्चात् वह अगले ही क्षण सभा को सम्बोधित करते हुए प्रश्न पूछती हैं कि क्या, मेरे मन में केवल आग लगाने वाले भाव ही थे? क्या मुझमें और कुछ भी शेष न था? क्या मेरे मन के वात्सल्य भाव अर्थात् पुत्र-स्नेह का कुछ भी मूल्य नहीं? किन्तु हाय आज स्वयं मेरा पुत्र ही मुझसे पराए की तरह व्यवहार करता है।
अपने कर्मों पर पछताते हुए कैकेयी आगे कहती हैं कि तीनों लोक अर्थात् धरती, आकाश और पाताल मुझे क्यों न धिक्कारे, मेरे विरुद्ध जिसके मन में जो आए वह क्यों न कहे, किन्तु हे राम ! मैं तुमसे दीन स्वर में बस इतनी ही विनती करती हूँ कि मेरा मातृपद अर्थात् भरत को पुत्र कहने का मेरा अधिकार मुझसे न छीना जाए।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी ने अपनी उस विवशता को स्पष्ट किया है जब एक माँ अपनी सन्तान के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है, बावजूद इसके उसे उस सन्तान से प्यार नहीं मिलता।
- (ii) रस करुण
कला पक्ष
भाषा परिष्कृत खड़ीबोली
छन्द मदाक्रान्ता
शैली प्रबन्धात्मक
अलंकार अनुप्रास और उपमा
शब्द शक्ति लक्षणा एवं व्यंजना
गुण प्रसाद
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक से उधृत है।
(ii) ‘क्या कर सकती थी मरी मन्थरा दासी’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर कैकेयी, मन्थरा को निर्दोष बताते हुए कहती हैं कि मन्थरा तो साधारण-सी दासी है। वह भला मेरे मन को कैसे बदल सकती है। सच तो यह है कि स्वयं मेरा मन ही अविश्वासी हो गया था।
(iii) कैकेयी अपने अन्तर्मन को ‘अभागा’ और ‘अधीर’ मानकर क्या कहती हैं?
उत्तर कैकेयी अपने अन्तर्मन को ‘अभागा’ और ‘अधीर’ मानकर कहती हैं कि मेरे मन में स्थित हे मन ! ईर्ष्या-द्वेष से परिपूर्ण वे ज्वलन्त भाव स्वयं तुझमें ही जागे थे।
(iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश की ‘पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा’ पंक्ति में उपमा अलंकार है। ‘जल पंजर-गत अब अरे अधीर, अभागे’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
Alok alok