संकेत बिन्दु- भूमिका, प्राचीन स्थिति, वर्तमान स्थिति, देश के लिए बोझ, परिवार के लिए बोझ, उपसंहार।
भूमिका- देश की बढ़ती हुई जनसंख्या एक भयावह समस्या है। भारत ही नहीं, बल्कि इस भयावह समस्या से तो समूचा विश्व ही मानो विनाश की कगार पर जा पहुँचा है। स्वाधीन भारत में देश की समृद्धि के लिए किए गए सरकार के सभी निर्णय और किए गए श्रेष्ठ कार्यों में गतिरोध उत्पन्न होने का एक प्रमुख कारण जनसंख्या का निरन्तर बढ़ते जाना है। अतः सरकार ने इसके समाधान के लिए परिवार नियोजन का आह्वान किया है।
प्राचीन स्थिति– सृष्टि के प्रारम्भ में जनसंख्या बहुत कम थी और प्रकृति का वरदान रूपी हाथ मानव के शीश पर मुक्त रूप से अपनी कृपाएँ बिखराया करता था। समाज की समृद्धि, सुरक्षा और सभ्यता के विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि अति आवश्यक थी। वंश वृद्धि पवित्र कार्य माना जाता था। वेदों में दस पुत्रों की कामना की गई है। कौरव सौ भाई थे। ये बातें उस समय के लिए कदाचित् आवश्यक और उपयोगी भी थीं, पर आज के लिए नहीं।
वर्तमान स्थिति– आज स्थिति बदल चुकी है। वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 55 करोड़ थी। वर्ष 1976 के आरम्भ में यह 60 करोड़ से ऊपर थी। नए आँकड़ों के अनुसार, अब यह एक अरब से ऊपर पहुँच चुकी है।
देश के लिए बोझ– वस्तुतः देश की जनसंख्या ही उसकी शक्ति का आधार होती है, परन्तु अनियन्त्रित गति से इसका बढ़ते जाना निश्चय ही देश के लिए बोझ सिद्ध होगा। सीमा से अधिक आबादी किसी देश के लिए गौरव की बात कदापि नहीं कही जा सकती। ऐसी दशा में तो जनसंख्या एक अभिशाप ही कही जाएगी। भारत इस समय आबादी की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।
परिवार के लिए बोझ– स्वाधीनता के उपरान्त भारत में सम्पत्ति के उत्पादन व वितरण की गलत नीतियों के कारण रोज़गार इतना नहीं बढ़ा कि सबको किसी एक स्तर तक समान रूप से रहने, खाने, पहनने और स्वस्थ रहकर अपना योगदान देने का अवसर मिले। यह भी अनुचित है कि शिक्षा तथा आर्थिक विकास के परिणामों की प्रतीक्षा करते-करते परिवार नियोजन का प्रश्न अनदेखा कर दें।
वास्तविक तथ्य यह है कि जब तक आर्थिक विकास होगा, तब तक जनसंख्या इतनी बढ़ चुकी होगी कि वह समग्र विकास को निगल जाएगी। प्रगति की सभी योजनाएँ धरी-की-धरी रह जाएँगी। जनसंख्या का अनियन्त्रित ढंग से बढ़ना समग्र विकास को नष्ट कर डालेगा। देश के नेताओं और कर्णधारों का मत उचित है कि अधिक सन्तानों का होना आर्थिक असुरक्षा का बड़ा कारण है। जनसंख्या के बढ़ने से परिवार का जीवन स्तर गिरता है। जीवन का विकास रुक जाता है और नैतिक तथा चारित्रिक पतन बढ़ता जाता है। जनसंख्या के बढ़ते जाने से माँग अधिक होती जाती है और उत्पादन व पूर्ति कम होती जाती है, जिसके कारण कीमतें बढ़ती हैं यानी महंगाई बढ़ती जाती है। इससे बेकारी की समस्या बढ़ती जाती है तथा देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है। परिवार नियोजन का महत्त्व आर्थिक तथा मानवीय दोनों ही दृष्टियो से है। आर्थिक दृष्टि से सीमा से अधिक लोगों का पालन-पोषण कर उन्हें श्रेष्ठ मनुष्य बनाना सम्भव नहीं। जनसंख्या को बढ़ने से रोकने के लिए शिक्षा को बढ़ावा देना अनिवार्य है।
उपसंहार -भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। देश में कुछ धार्मिक पुरुष, हिन्दुओं की जनसंख्या घटने के डर से परिवार नियोजन का विरोध करते हैं। ईसाई तथा इस्लाम धर्म भी अपने-अपने धार्मिक दृष्टिकोण से इसका विरोध करते हैं। ऐसी देश-विरोधी भावनाओं को राष्ट्र के उत्थान के लिए नष्ट करना नितान्त आवश्यक है। आपातकालीन स्थिति में सरकार ने इस राष्ट्रीय समस्या का युद्ध स्तर पर समाधान निकालने का जो निश्चय किया था, उसको क्रियान्वित करने में कहीं-कहीं ज्यादती भी हुई। तथापि सरकार द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों, सन्देशों तथा शिक्षा के प्रसार ने अच्छे परिणाम भी प्रदान किए हैं। जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने में ही देश की भलाई है।