‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का उद्देश्य
‘धुवयात्रा’ हिन्दी के सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित एक मनोवैज्ञानिक और मार्मिक कहानी है। कहानीकार ने इस कहानी में मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण में समन्वित करके एक नवीन विचारधारा को जन्म दिया। प्रस्तुत कहानी में जैनेन्द्र जी ने बताया है कि प्रेम एक पवित्र बन्धन है और विवाह सामाजिक बन्धन है। प्रेम की भावना व्यक्ति को लक्ष्य तक पहुँचने में सहायता करती है। प्रेम में पवित्रता होती है और विवाह में स्वार्थता। प्रेम की पवित्रता को आदर्शवाद की कसौटी पर कसना ही कहानी का प्रतिपाद्य रहा है। अपने प्रतिपाद्य को प्रकट करने में कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है। कहानीकार के अनुसार, वैयक्तिक सुखों की अपेक्षा सार्वभौमिक और अलौकिक उपलब्धि अधिक श्रेष्ठ है। अतः प्रेम को ही सर्वोच्च दर्शाना इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है।
‘ध्रुवयात्रा’ के वैशिष्ट्य की विवेचना
‘ध्रुव यात्रा’ कहानी हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र द्वारा रचित एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इस कहानी के माध्यम से जैनेन्द्र ने मानवीय संवेदना को मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक दृष्टिकोण से समन्वित करके एक नवीन विचारधारा
को जन्म दिया है। कहानी के तत्त्वों के आधार पर ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी की समीक्षा
निम्नलिखित प्रकार से है।
(i) कथानक/कथावस्तु ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी की कथावस्तु राजा रिपुदमन बहादुर की ध्रुवयात्रा पर आधारित है। इस कहानी के कथानक का ताना-वाना प्रेम और त्याग की पराकाष्ठा के मनोवैज्ञानिक धरातल पर बुना गया है। इसमें रोचकता, मनोवैज्ञानिकता, सांकेतिकता, दार्शनिकता व प्रभावशीलता जैसी विशेषताओं का समन्वय है। ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि पात्रों के मानसिक द्वन्द्व के साथ-साथ पाठक के अन्दर भी एक द्वन्द्व निरन्तर चलता रहता है। इसी मानसिक द्वन्द्व के कारण पाठक को ऐसी अनुभूति होती है जैसे कथानक का चरमोत्कर्ष आ गया हो। अतः कहा जा सकता है कि ध्रुवयात्रा कहानी की कथावस्तु सुव्यवस्थित, मौलिक, मार्मिक, सुगठित तथा कौतूहलपूर्ण है। इस प्रकार ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी कथानक की दृष्टि से सफल कहानी है।
(ii) पात्र और चरित्र-चित्रण यद्यपि इस कहानी का कथानक अत्यधिक विस्तृत है, परन्तु पात्रों की संख्या अत्यन्त सीमित है। इस कहानी में कुल तीन पात्र ही हैं। राजा रिपुदमन इस कहानी का नायक है और उर्मिला नायिका है। आचार्य मारुति नायिका उर्मिला के पिता हैं। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने व्यक्ति के मन का विश्लेषण किया है। लेखक ने कहानी में संकलित मनोवैज्ञानिक वातावरण का निर्माण करके पात्रों के चरित्र को बड़ी कलात्मकता के साथ उभारा है। कहानी का प्रत्येक पात्र कर्त्तव्यनिष्ठा एवं नैतिकता के प्रति सचेत दिखाई पड़ता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से अत्यन्त सफल कहानी है।
(iii) कथोपकथन/संवाद ध्रुवयात्रा कहानी में लेखक ने कथोपकथन या संवादों का प्रयोग किया है। इस कहानी के संवाद अत्यन्त स्वाभाविक, गम्भीर और पात्रों के मनोभावों को प्रकट करने में पूर्ण रूप से समर्थ हैं। कहानी में प्रयुक्त सभी संवाद पात्रानुकूल हैं। कहानीकार ने रिपुदमन को उर्मिला की अपेक्षा दुर्बल दिखाया है। इसका पता हमें पात्रों के संवाद से स्पष्ट हो जाता है;
जैसे-“अब मुझे क्या करना है?
“करना क्या है राजा, तुम्हें जाना है, मुझे भेजना है!”
उपरोक्त संवाद राजा रिपुदमन की दुर्बलता को स्पष्ट करता है। यह सिद्ध करता है कि कहानी में संवादों का प्रयोग सटीक रूप से किया गया है, जो कहानी के पात्रों को जीवन्तता प्रदान करते हैं। अतः कथोपकथन या संवाद की दृष्टि से ध्रुवयात्रा कहानी सफल कहानी है।
(iv) भाषा-शैली ध्रुवयात्रा कहानी की भाषा-शैली भावानुकूल, पात्रानुकूल तथा व्यावहारिक है। इस कहानी में सरल, सहज व परिष्कृत भाषा का प्रयोग किया गया है। लेखक ने कहानी की भाषा को कथानुसार काव्यात्मकता भी प्रदान की है। भाषा में सर्वत्र स्वाभाविकता और सजीवता के दर्शन होते हैं। इस कहानी की शैली भाषा की तरह ही व्यावहारिक व भावानुकूल है। लेखक ने इस कहानी में संवादात्मक, व्यंग्यात्मक, वर्णनात्मक, विचारात्मक, चित्रात्मक, सूत्रात्मक, आलंकारिक व काव्यात्मक शैलियों का प्रयोग बड़ी सहजता के साथ किया है। इस कहानी की शैलीगत विशेषताओं में स्वाभाविकता, सजीवता, मार्मिकता और प्रभावशीलता के गुण विद्यमान हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि ध्रुवयात्रा कहानी भाषा-शैली की दृष्टि
से सफल कहानी है। (v) देशकाल और वातावरण ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी मनोवैज्ञानिक कहानी है। लेखक ने इसी मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए देशकाल और वातावरण की सृष्टि की है। ध्रुवयात्रा कहानी वातावरण प्रधान कहानी है। इस कहानी को सात खण्डों में विभक्त किया गया है। कहानी में जीवन्त वातावरण की पृष्ठभूमि पर मानवीय संवेदना का मर्मस्पर्शी चित्रण किया गया है। इस कहानी के स्वाभाविक, सजीव, प्रभावशाली, वातावरण और देशकाल को देखकर ऐसा अनुभव होता है मानो यह कहानी कोई सत्य घटना हो। अतः देशकाल और वातावरण की दृष्टि से ‘ध्रुवयात्रा’ एक सफल कहानी मानी जाएगी।
(vi) शीर्षक ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का शीर्षक अत्यन्त संक्षिप्त और आकर्षक है। ‘ध्रुवयात्रा’ शीर्षक की दृष्टि से एक उच्चस्तरीय कथा है, जिसमें उच्चकुलीन वर्गों के पात्रों का चयन किया गया है, क्योंकि ध्रुवयात्रा जनसामान्य की सोच से बहुत दूर है। प्रत्येक पात्र ध्रुवयात्रा की पूर्णता में ही अपने जीवन को सफल मानता है। आरम्भ में राजा रिपुदमन का एकमात्र लक्ष्य भी ध्रुवयात्रा ही थी और अन्त में उर्मिला भी यही चाहती है। कहानी के शीर्षक में प्रतीकात्मकता और सांकेतिकता के गुण विद्यमान हैं। अतः शीर्षक तत्त्व के आधार पर ध्रुवयात्रा कहानी श्रेष्ठ व सफल कहानी के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत होती है।