देशप्रेम पर निबन्ध | स्वदेश प्रेम पर निबन्ध : Deshprem Par Nibandh

संकेत बिन्दु– भूमिका, स्वदेश-प्रेम (राष्ट्रप्रेम) – एक उच्च भावना, स्वदेश-प्रेम (राष्ट्रप्रेम) की अभिव्यक्ति के प्रकार, उपसंहार।

भूमिका

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“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”
मैथिलीशरण ‘गुप्त’ की इन काव्य पंक्तियों में यह संदेश छिपा है कि यदि किसी व्यक्ति के हृदय में देश-प्रेम की भावना नहीं है, तो वह जीवित होते हुए भी पत्थर के समान है। जब तक हम अपने देश से प्रेम नहीं करेंगे, तब तक हम उस देश के वास्तविक नागरिक नहीं कहला सकते। स्वदेश-प्रेम, या राष्ट्रप्रेम, हमारी जिम्मेदारी और कर्तव्य की भावना का प्रतीक है। हमें अपने देश के विकास और समृद्धि में योगदान देना चाहिए, क्योंकि देश केवल सीमाओं से नहीं, बल्कि उसमें रहने वाले लोगों की संस्कृति, उनके विचार, और उनके योगदान से बनता है। इस प्रकार, देश-प्रेम की भावना हमारे कर्तव्यों का पालन करने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने का आधार बनती है।

स्वदेश-प्रेम (राष्ट्रप्रेम) का महत्त्व

स्वदेश-प्रेम या राष्ट्रप्रेम एक महान भावना है, जो व्यक्ति को अपने देश के प्रति निष्ठा, प्रेम और त्याग की प्रेरणा देती है। यह किसी भी व्यक्तिगत लाभ से ऊपर होता है और एक व्यक्ति को अपने देश की उन्नति के लिए बिना किसी स्वार्थ के कार्य करने की प्रेरणा देता है। यह ऐसा पवित्र और सात्विक भाव है, जो व्यक्ति को न केवल देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है, बल्कि यह उसे अपने देश के लिए प्राणों की आहुति देने तक भी तैयार करता है। जैसा कि कवि रामनरेश त्रिपाठी ने कहा है:

“विषुवत् रेखा का वासी जो जीता है नित हॉफ हॉफ कर,
रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर।
हिमवासी जो हिम में, तम में जी लेता है कॉप-काँपकर,
वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर।”

यह दिखाता है कि चाहे कोई विषम परिस्थितियों में जी रहा हो, चाहे वह हिमालय की बर्फीली चोटियों में हो या रेगिस्तान में, उसका दिल अपनी मातृभूमि के लिए हमेशा प्रेम और श्रद्धा से भरा रहता है। इस प्रकार, राष्ट्रप्रेम केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक जीवनमूल्य है, जिसे हमें जीवनभर निभाना होता है।

स्वदेश-प्रेम की अभिव्यक्ति के प्रकार

स्वदेश-प्रेम केवल विचारों में नहीं बल्कि हमारे कार्यों से भी व्यक्त होता है। जब हम अपने देश की सेवा करते हैं, तब हम राष्ट्रप्रेम की सच्ची अभिव्यक्ति करते हैं। एक सच्चा देशभक्त हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करता है और अगर आवश्यकता पड़े तो वह अपने देश के लिए प्राणों की आहुति भी दे सकता है। राष्ट्रप्रेम का वास्तविक स्वरूप तब उभरता है, जब हम अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए उसे प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। कवि रामअवतार त्यागी ने इस भावना को इस प्रकार व्यक्त किया है:

“तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किन्तु, इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण।”

यह पंक्तियाँ यह स्पष्ट करती हैं कि राष्ट्रप्रेम केवल एक विचार नहीं, बल्कि उसे कार्यों में ढालने की आवश्यकता होती है। जब हम अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं और स्वार्थों से ऊपर उठकर अपने देश की सेवा में लगे रहते हैं, तब यही सच्चा राष्ट्रप्रेम होता है।

स्वदेश-प्रेम के सामाजिक योगदान और राष्ट्रीय एकता

स्वदेश-प्रेम को सीमाओं और क्षेत्रों में बांधना संभव नहीं है। यह देश की हर पहलू में दिखाई देता है, चाहे वह राजनीति, शिक्षा, या सामाजिक कार्य हो। अपने लोकतांत्रिक देश में हम चुनावों में ईमानदार तरीके से वोट डालकर, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर और जातिवाद जैसी कुरीतियों के खिलाफ लड़कर भी राष्ट्रप्रेम का योगदान दे सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि जब हम अपनी कुरीतियों और सामाजिक समस्याओं को दूर करते हैं, तो हम अपने देश की उन्नति में सहायक होते हैं। उदाहरण स्वरूप, अशिक्षा, बेरोज़गारी, गरीबी, भ्रष्टाचार, और सामाजिक असमानताएँ हमारे देश के विकास में बाधक हैं। इन समस्याओं को हल करके हम राष्ट्रप्रेम का सच्चा पालन कर सकते हैं।

इसके अलावा, राष्ट्रप्रेम का एक महत्वपूर्ण पहलू है राष्ट्रीय एकता। यदि हम अपने व्यक्तिगत या जातीय भेदभाव को छोड़कर एकजुट होकर देश के विकास में योगदान देंगे, तो हम एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। यह हमें अपनी संस्कृति, धरोहर और समाज को बचाए रखने की प्रेरणा देता है। राष्ट्रप्रेम केवल देश की सीमाओं में नहीं, बल्कि इसके प्रत्येक नागरिक की एकता और समृद्धि में भी व्यक्त होता है।

उपसंहार

स्वदेश-प्रेम, राष्ट्रप्रेम की भावना एक ऐसी शक्ति है, जो हमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक करती है और देश की उन्नति में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित करती है। यह एक अत्यन्त पवित्र और बलिदान की भावना है, जो न केवल हमारी व्यक्तिगत समृद्धि को, बल्कि देश की सामूहिक समृद्धि को भी सुनिश्चित करती है। अगर हम सभी देशवासियों ने मिलकर अपने-अपने कर्तव्यों का पालन किया और राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम को महसूस किया, तो हम अपने देश को हर प्रकार की समस्याओं से उबार कर उसे प्रगति की ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं। इस प्रकार, राष्ट्रप्रेम का मतलब केवल शब्दों में नहीं, बल्कि हमारे क्रियाकलापों में साकार होना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने देश के प्रति सच्चे प्रेम को व्यक्त करते हुए उसकी प्रगति और खुशहाली में भागीदार बनें।

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