अन्य शीर्षक– स्वदेश-प्रेम देश प्रेम: सर्वोच्च प्रेम, स्वदेशप्रेम : एक उच्च भावना, देश-प्रेम की भावना उन्नति का परिचायक, राष्ट्र के लिए जिएँ
संकेत बिन्दु– भूमिका, स्वदेश-प्रेम (राष्ट्रप्रेम) – एक उच्च भावना, स्वदेश-प्रेम (राष्ट्रप्रेम) की अभिव्यक्ति के प्रकार, उपसंहार।
भूमिका-
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”
मैथिलीशरण ‘गुप्त’ की इन काव्य पंक्तियों का अर्थ यह है कि देश-प्रेम के अभाव में मनुष्य जीवित प्राणी नहीं, बल्कि पत्थर के ही समान कहा जाएगा। हम जिस देश या समाज में जन्म लेते हैं, उसकी उन्नति में समुचित सहयोग देना हमारा परम कर्त्तव्य बनता है। स्वदेश के प्रति यही कर्तव्य भावना, इसके प्रति प्रेम अर्थात् स्वदेश-प्रेम ही देशभक्ति का मूल स्रोत है। कोई भी देश साधारण एवं निष्यण भूमि का केवल ऐस्म टुकड़ा नहीं होता, जिसे मानचित्र द्वारा दर्शाया जाता है। देश का निर्माण उसकी सीमाओं से नहीं, बल्कि उसमें रहने वाले लोगों एवं उनके सांस्कृतिक पहलुओं से होता है। लोग अपनी पृथक् सांस्कृतिक पहचान एवं अपने जीवन-मूल्यों को बनाए रखने के लिए ही अपने देश की सीमाओं से बँधकर इसके लिए अपने प्राण न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं। यही कारण है कि देश-प्रेम की भावना देश की उन्नति का परिचायक होती है।
स्वदेश-प्रेम (राष्ट्रप्रेम) एक उच्च भावना वास्तव में, देश-प्रेम की भावना मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ भावना है। इसके सामने किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत लाभ का कोई महत्त्व नहीं होता। यह एक ऐसा पवित्र व सात्विक भाव है, जो मनुष्य को निरन्तर त्याग की प्रेरणा देता है, इसलिए कहा गया है- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। मानव की हार्दिक अभिलाषा रहती है कि जिस देश में उसका जन्म हुआ, जहाँ के अन्न-जल से उसके शरीर का पोषण हुआ एवं जहाँ के लोगों ने उसे अपना प्रेम एवं सहयोग देकर उसके व्यक्तित्व को निखारा, उसके प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन वह सदा करता रहे। यही कारण है कि मनुष्य जहाँ रहता है, अनेक कठिनाइयों के बावजूद उसके प्रति उसका मोह कभी खत्म नहीं होता, जैसा कि कवि रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी कविता में कहा है
“विषुवत् रेखा का वासी जो जीता है नित हॉफ हॉफ कर,
रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर।
हिमवासी जो हिम में, तम में जी लेता है कॉप-काँपकर,
वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण निछावर।”
स्वदेश-प्रेम (राष्ट्रप्रेम) की अभिव्यक्ति के प्रकार स्वदेश-प्रेम यद्यपि मन की एक भावना है तथापि इसकी अभिव्यक्ति हमारे क्रियाकलापों से हो जाती है। देश-प्रेम से ओत-प्रोत व्यक्ति सदा अपने देश के प्रति कर्त्तव्यों के पालन हेतु न केवल तत्पर रहता है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर इसके लिए अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटता। सच्चा देशभक्त आवश्यकता पड़ने पर अपना तन, मन, धन सब कुछ समर्पित कर देता है।
कवि रामअवतार त्यागी के शब्दों में-
“तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किन्तु, इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण।”
यह स्मरण रहे कि स्वदेश-प्रेम को किसी विशेष क्षेत्र एवं सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। हमारे जिस कार्य से देश की उन्नति हो, वही स्वदेश-प्रेम की सीमा में आता है। अपने प्रजातन्त्रात्मक देश में, हम अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए ईमानदार एवं देशभक्त जनप्रतिनिधि का चयन कर देश को जाति, सम्प्रदाय तथा प्रान्तीयता की राजनीति से मुक्त कर इसके विकास में सहयोग कर सकते हैं। जाति प्रथा, दहेज प्रथा, अन्धविश्वास, छुआछूत इत्यादि कुरीतियाँ देश के विकास में बाधक हैं। हम इन्हें दूर करने में अपना योगदान कर देश-सेवा का फल प्राप्त कर सकते हैं।
अशिक्षा, निर्धनता, बेरोज़गारी, व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़कर हम अपने देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं। हम समय पर टैक्स का भुगतान कर देश की प्रगति में सहायक हो सकते हैं। इस तरह किसान, मज़दूर, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, चिकित्सक, सैनिक और अन्य सभी पेशेवर लोगों के साथ-साथ देश के हर नागरिक द्वारा अपने कर्त्तव्यों का समुचित रूप से पालन करना भी देशभक्ति ही है।
उपसंहार नागरिकों में स्वदेश-प्रेम (राष्ट्र-प्रेम) का अभाव राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़ी बाधा के रूप में कार्य करता है, जबकि राष्ट्र की आन्तरिक शान्ति तथा सुव्यवस्था और बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है। यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा एवं राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है और राष्ट्रीय एकता बनाए रखना तब ही सम्भव है, जब हम देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे।
यह हमारा कर्त्तव्य है कि सब कुछ न्योछावर करके भी हम देश के विकास में सहयोग दें, ताकि अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का सामना कर रहा हमारा – देश निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे। अन्ततः हम कह सकते हैं कि देश सर्वोपरि है। अतः इसके मान-सम्मान की रक्षा हर कीमत पर करना हम सभी देशवासियों का परम कर्त्तव्य है।