भाषा और आधुनिकता : जी. सुन्दर रेड्डी
गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. रमणीयता और नित्य नूतनता अन्योन्याश्रित हैं, रमणीयता के अभाव में कोई भी चीज मान्य नहीं होती। नित्य नूतनता किसी भी सृजक की मौलिक उपलब्धि की प्रामाणिकता सूचित करती है और उसकी अनुपस्थिति में कोई भी चीज वस्तुतः जनता व समाज के द्वारा स्वीकार्य नहीं होती। सड़ी-गली मान्यताओं से जकड़ा हुआ समाज जैसे आगे बढ़ नहीं पाता, वैसे ही पुरानी रीतियों और शैलियों की परम्परागत लीक पर चलने वाली भाषा भी जनचेतना को गति देने में प्रायः असमर्थ ही रह जाती है। भाषा समूची युगचेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है और ऐसी सशक्तता वह तभी अर्जित कर सकती है, जब वह अपने युगानुकूल सही मुहावरों को ग्रहण कर सके।
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य गरिमा’ में संकलित प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ नामक निबन्ध से उद्धृत है।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने भाषा के विकासशील स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसमें नवीनता को आवश्यक माना है।
व्याख्या लेखक कहता है कि रमणीयता (सुन्दरता) और नवीनता दोनों ही एक-दूसरे पर आश्रित हैं या कह सकते हैं कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जो वस्तु सुन्दर होगी वह नवीन भी होगी और जो नवीन होगी, उसमें सुन्दरता भी रहेगी। सुन्दरता के बिना कोई भी वस्तु महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकती और न ही उसको मौलिकता की मान्यता मिल सकती है। किसी कलाकार या रचनाकार की रचना में व्याप्त नवीनता ही उसकी मौलिकता का सबसे बड़ा प्रमाण है। रचना में व्याप्त नवीनता के कारण ही समाज उस रचना के प्रति आकर्षित होगा। इस नवीनता के अभाव में कोई भी वस्तु जनता और समाज के द्वारा स्वीकार नहीं की जाती। यदि कोई कलाकार या रचनाकार अपनी रचना में नवीन और मौलिक दृष्टि नहीं दे सकता तो उस रचना को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल पाती।
जिस प्रकार, पिछड़ी हुई रूढ़ियों और मान्यताओं के आधार पर कोई समाज प्रगति नहीं कर सकता, उसी प्रकार पुरानी रीतियों, परम्पराओं और शैलियों पर चलने वाली भाषा भी युग के अनुरूप जन-चेतना उत्पन्न करने में असमर्थ हो जाती है। लेखक ने स्पष्ट कहा है कि भाषा समस्त युग-चेतना की अभिव्यक्ति करने का सशक्त माध्यम है और कोई भी भाषा ऐसी सशक्तता तभी प्राप्त कर सकती है, जब वह अपने युग के अनुरूप सटीक तथा नवीन मुहावरों को ग्रहण कर सके।
साहित्यिक सौन्दर्य
(i) भाषा परिष्कृत, परिमार्जित एवं प्रवाहपूर्ण खड़ीबोली है। वाक्य-विन्यास सुगठित है।
(ii) शैली विवेचनात्मक है।
(iii) शब्द-शक्ति लक्षणा है।
(iv) विचार सौष्ठव लेखक ने स्पष्ट किया है कि वही भाषा श्रेष्ठ होगी, जो युग के अनुरूप भावों को ग्रहण कर सके।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ नामक निबन्ध से उधृत है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iii) किसी लेखक की रचना में मौलिकता का बड़ा प्रमाण क्या है?
उत्तर किसी भी लेखक या रचनाकार की रचना में मौलिकता का सबसे बड़ा प्रमाण उसकी रचना में व्याप्त नवीनता है, क्योंकि रचना में व्याप्त नवीनता के कारण ही समाज उस रचना के प्रति आकर्षित होता है।
(iv) ‘भाषा समूची युगचेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ‘भाषा समूची युगचेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है’ पंक्ति का आशय यह है कि सभ्यता संस्कृति और ज्ञान के विकास के फलस्वरूप जो वैचारिक क्रान्ति होती है, जिसे हम युगचेतना के नाम से जानते हैं, उसकी सफल अभिव्यक्ति का एकमात्र सशक्त माध्यम भाषा ही है। कोई भी भाषा सशक्त अभिव्यक्ति तभी प्राप्त कर सकती है, जब वह अपने युग के अनुरूप सटीक, औचित्यपूर्ण नए मुहावरे को ग्रहण करे।
(v) लेखक के अनुसार किस रचना को समाज में स्वीकृति नहीं मिल पाती ?
उत्तर लेखक के अनुसार नवीनता के अभाव में कोई भी वस्तु जनता और समाज के द्वारा स्वीकार नहीं की जाती, क्योंकि यदि कोई रचनाकार अपनी रचना में नवीन एवं मौलिक दृष्टि का अभाव रखता हो, तो उस रचना को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल पाती।
2.भाषा सामाजिक भाव-प्रकटीकरण की सुबोधता के लिए ही उद्दिष्ट है, उसके अतिरिक्त उसकी जरूरत ही सोची नहीं जाती। इस उपयोगिता की सार्थकता समसामयिक सामाजिक चेतना में प्राप्त (द्रष्टव्य) अनेक प्रकारों की संश्लिष्टताओं की दुरुहता का परिहार करने में निहित है।
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य गरिमा’ में संकलित प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ नामक निबन्ध से उद्धृत है।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने भाषा के उद्देश्य को स्पष्ट किया है।
व्याख्या लेखक भाषा के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहता है कि भाषा का सर्वप्रमुख उद्देश्य समाज के भावों की अभिव्यक्ति को सरल बनाना है अर्थात् समाज में लोगों के भावों और विचारों को सरलता से एक-दूसरे तक पहुँचाना है। इसके अलावा भाषा की अन्य कोई-आवश्यकता अनुभव नहीं की जा सकती अर्थात् भाषा का समाज में अन्य कोई उपयोग नहीं है।
लेखक कहता है कि भाषा की यह उपयोगिता तभी सार्थक सिद्ध हो सकती है, जब भाषा समसामयिक चेतना की सूक्ष्म कठिनाइयों को दूर करके विचाराभिव्यक्ति को सरल बना सके।
साहित्यिक सौन्दर्य
(i) भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। वाक्य-विन्यास सुगठित है।
(ii) शैली विवेचनात्मक है।
(iii) शब्द शक्ति लक्षणा है।
(iv) विचार सौष्ठव लेखक ने भाषा की उपयोगिता और उद्देश्य को स्पष्ट किया है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है तथा इसके लेखक कौन हैं?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश ‘भाषा और आधुनिकता’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी हैं।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iii) लेखक के अनुसार भाषा का उद्देश्य क्या है?
उत्तर लेखक के अनुसार भाषा का सर्वप्रमुख उद्देश्य समाज के भावों की अभिव्यक्ति को सरल बनाकर भावों एवं विचारों को सरलता से एक-दूसरे तक पहुँचाना है।
(iv) भाषा की सुबोधता से क्या आशय है?
उत्तर जब भाषा के द्वारा सरलता से भाव व्यक्त किए जा सकें तथा अन्य उसे सरलता से समझ सकें, तब उसे भाषा की सुबोधता कहते हैं।
(v) लेखक के अनुसार भाषा की उपयोगिता कब सार्थक सिद्ध हो सकती है?
उत्तर लेखक के अनुसार भाषा की उपयोगिता तभी सार्थक सिद्ध हो सकती है, जब भाषा समसामयिक चेतना की सूक्ष्म कठिनाइयों को दूर करके विचाराभिव्यक्ति को सरल बना सके।
3.भाषा स्वयं संस्कृति का एक अटूट अंग है। संस्कृति परम्परा से निःसृत होने पर भी परिवर्तनशील और गतिशील है। उसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है। वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रभाव के कारण उद्भूत नई सांस्कृतिक हलचलों को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा के परम्परागत प्रयोग पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए नए प्रयोगों की, नई भाव-योजनाओं को व्यक्त करने के लिए नए शब्दों की खोज की महती आवश्यकता है।
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य गरिमा’ में संकलित प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ नामक निबन्ध से उद्धृत है।
प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने संस्कृति के विकास में भाषा के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
व्याख्या प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि भाषा किसी भी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग होती है। अभिव्यक्ति का माध्यम होने के कारण भाषा की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भाषा का निर्माण समाज के द्वारा किया जाता है। अतः समाज द्वारा निर्मित संस्कृति एवं भाषा भी परिवर्तनशील है। परम्पराएँ, रीतियाँ, मूल्य आदि के परिवर्तित होने के साथ-साथ संस्कृति एवं भाषा भी परिवर्तित होती है। भाषा में होने वाले परिवर्तन का सम्बन्ध विज्ञान की प्रगति के साथ भी है। वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रभाव के कारण उत्पन्न नई सांस्कृतिक गतिविधियों को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा में भी परिवर्तन आवश्यक हो जाता है। उस नई परिस्थिति, नई विशेषताओं को अभिव्यक्त करने के लिए परम्परागत भाषा प्रासंगिक नहीं रह जाती।
इस प्रकार लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि संस्कृति में होने वाले परिवर्तन, विज्ञान में होने वाले परिवर्तन के अनुसार, भाषा में परिवर्तन होना भी आवश्यक हो जाता है। नए विचारों को, नए वैज्ञानिक आविष्कारों को और नई सोच को पुरानी भाषा वहन नहीं कर सकती। इसके लिए नए शब्दों की, नई वाक्य-संरचना की आवश्यकता पड़ती है, जो परिवर्तित एवं विकसित भाषा ही कर सकती है।
साहित्यिक सौन्दर्य
- (i) भाषा परिमार्जित एवं प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है। वाक्य-विन्यास सुसंगठित है।
- (ii) शैली विवेचनात्मक तथा विचारात्मक है।
- (iii) शब्द-शक्ति लक्षणा है।
- (iv) विचार सौष्ठव लेखक ने भाषा में भी नवीनीकरण को औचित्यपूर्ण ढंग से आवश्यक सिद्ध किया है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखित ‘भाषा और आधुनिकता’ नामक निबन्ध से उधृत है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(iii) भाषा परिवर्तनशील क्यों है?
उत्तर समाज द्वारा निर्मित भाषा परिवर्तनशील है, क्योंकि समय के साथ परम्पराएँ, रीतियाँ, मूल्य आदि परिवर्तित होते हैं, जिसका प्रभाव भाषा पर पड़ता है, इसलिए भाषा में परिवर्तन होना आवश्यक होता है।
(iv) भाषा में नई वाक्य-संरचना की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
उत्तर विज्ञान की प्रगति के कारण नए आविष्कारों का जन्म होता है। जिस कारण प्रत्येक देश की संस्कृति प्रभावित होती है और इन प्रभावों से संस्कृति में आए परिवर्तनों को अभिव्यक्त करने के लिए नई शब्दावली एवं नई वाक्य-संरचना की आवश्यकता पड़ती है।
(v) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस बात पर बल दिया है?
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने शब्दों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने पर ही बल दिया है, क्योंकि कोई विदेशज शब्द यदि किसी भाव को सम्प्रेषित करने में सक्षम है, तो उसमें अनावश्यक परिवर्तन नहीं करना चाहिए।
अथवा
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) सांस्कृतिक की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर संस्कृति परम्परा से निर्मित होती है। यह परिवर्तनशील तथा गतिशील होती है। संस्कृति की गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है।
(ii) नए शब्दों की खोज की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर नए शब्दों की खोज की आवश्यकता इसलिए होती हैं, क्योंकि नए विचारों को नए वैज्ञानिक आविष्कारों को और नई सोच को पुरानी भाषा वहन नहीं कर सकती।
(iii) ‘उद्भूत’ और ‘परम्परागत’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर ‘उद्भूत’ का अर्थ है- जिसका जन्म हुआ हो, उत्पन्न ‘परम्परागत’ का अर्थ है- परम्परा से चला आता हुआ।
(iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत गद्यांश के पाठ का शीर्षक ‘भाषा और आधुनिकता’ है तथा लेखक का नाम ‘प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी’ है।
5.यदि यह नवीनीकरण सिर्फ कुछ पण्डितों की व आचार्यों की दिमागी कसरत ही बनी रहे तो भाषा गतिशील नहीं होती। भाषा का सीधा सम्बन्ध प्रयोग से हैं और जनता से है। यदि नए शब्द अपने उद्गम स्थान में ही अड़े रहें और कहीं भी उनका प्रयोग किया नहीं जाए तो उसके पीछे के उद्देश्य पर ही कुठाराघात होगा।
(1) भाषा परिमार्जित एवं प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है। वाक्य-विन्यास सुसंगठित है।
(ii) शैली विवेचनात्मक तथा विचारात्मक है।
(iii) शब्द-शक्ति लक्षणा है।
(iv) विचार सौष्ठव लेखक ने भाषा के विकास के लिए उसमें उपभोग को आवश्यक बताया है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) भाषा का सीधा सम्बन्ध किससे है?
उत्तर भाषा का सीधा सम्बन्ध प्रयोग और जनता से है, जो भाषा जनता द्वारा जितनी अधिक स्वीकृत एवं परिवर्तित की जाती है, वह भाषा उतनी ही अधिक जीवन्त तथा चिरस्थायी होती है।
(ii) नए शब्दों के प्रयोग न किए जाने पर क्या परिणाम होगा?
उत्तर नए शब्दों के प्रयोग न किए जाने का परिणाम यह होगा कि भाषा के उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो पाएँगे। भाषा का उद्देश्य समाज के भावों की अभिव्यक्ति को सरल बनाकर भावों एवं विचारों को सरलता से एक-दूसरे तक पहुँचाना है। अतः भाषा को सजीव बनाने के लिए नवीनता का समावेश होना आवश्यक है।
(iii) ‘कुठाराघात’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ‘कुठाराघात’ का आशय है-बहुत हानि पहुँचाने वाला कार्य। प्रस्तुत गद्यांश में कुठाराघात शब्द का प्रयोग भाषा के उद्देश्य के सन्दर्भ में हुआ है, क्योंकि यदि भाषा में नए शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया, तो इससे भाषा के उद्देश्य को बहुत हानि पहुँचेगी।
(iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का काले अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर पाठ का शीर्षक ‘भाषा और आधुनिकता’ और लेखक का नाम ‘ प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी’ है।