बहादुर : अमरकान्त
पाठ/कहानी का सारांश/कथावस्तु
‘दिलबहादुर’ से ‘बहादुर’ बनने की प्रक्रिया
दिलबहादुर लगभग 12-13 वर्ष का एक पहाड़ी नेपाली लड़का है, जिसके पिता की युद्ध में मृत्यु हो चुकी है और उसकी माँ बहुत गुस्सैल स्वभाव की है। माँ की पिटाई की वजह से वह घर से भागकर एक मध्यमवर्गीय परिवार में नौकर बन जाता है, जहाँ गृहस्वामिनी निर्मला बड़ी उदारता के साथ उसके नाम से ‘दिल’ शब्द हटाकर उसे सिर्फ बहादुर पुकारती है। अब स्वतन्त्र ‘दिलबहादुर’ नौकर ‘बहादुर’ बन गया।
परिश्रमी एवं हँसमुख बहादुर
बहादुर अत्यन्त परिश्रमी लड़का है, जो अपनी मेहनत से पूरे घर को न केवल साफ़-सुथरा रखता है, बल्कि घर के सभी सदस्यों की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है। उसके आने से परिवार के सभी सदस्य बड़े ही आरामतलबी एवं कामचोर या आलसी बन गए हैं। इतना काम करने के बावजूद वह हमेशा हँसता रहता है। हँसना और हँसाना मानो उसकी आदत बन गई थी। वह रात में सोते समय कोई-न-कोई गीत अवश्य गुनगुनाता है।
किशोर की बदतमीज़ी
निर्मला का बड़ा लड़का किशोर एक बिगड़ा हुआ लड़का था, जो शानो-शौकत तथा रोब-दाब से रहना चाहता था। उसने अपने सारे काम बहादुर को सौंप दिए। यदि बहादुर उसके काम में थोड़ी-सी भी लापरवाही करता, तो वह बहादुर को गालियाँ देता। छोटी-छोटी गलती पर वह बहादुर को पीटता भी था। बहादुर पिटाई खाकर एक कोने में चुपचाप खड़ा हो जाता और कुछ देर बाद घर के कामों में पूर्ववत् जुट जाता। एक दिन किशोर ने बहादुर को ‘सुअर का बच्चा’ कह दिया, जिससे उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँची और उसने किशोर का काम करने से मना कर दिया। उसने लेखक के पूछने पर रोते हुए कहा कि “बाबूजी, भैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया?” इतना कहकर वह रो पड़ा।
निर्मला के रिश्तेदार द्वारा चोरी का आरोप लगाना
धीरे-धीरे निर्मला के व्यवहार में भी अन्तर आने लगा और अब उसने बहादुर के लिए रोटियाँ सेंकनी बन्द कर दीं। वह भी बहादुर पर हाथ उठाने लगी। मारपीट एवं गालियों के कारण बहादुर से गलतियाँ एवं भूलें अधिक होने लगीं। एक दिन निर्मला के घर उसके रिश्तेदार अपने परिवार के साथ आए। चाय-नाश्ते के बाद बातचीत के दौरान अचानक रिश्तेदार की पत्नी ने अपने ग्यारह रुपये घर में खो जाने की बात कही। सभी ने बहादुर पर ही शक किया। बहादुर के लगातार ना कहने के बावजूद उसे डराया, धमकाया एवं पीटा गया, चूँकि बहादुर पर लगा यह आरोप झूठा था, इसलिए वह लगातार इससे इनकार करता रहा। अन्त में लेखक ने भी उसे पीटा।
बहादुर के प्रति घरवालों का कटुतापूर्ण व्यवहार
इस घटना के बाद से घर के सभी सदस्य बहादुर को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे और उसे कुत्ते की तरह दुत्कारने लगे। बहादुर भी बहुत ही खिन्न रहने लगा। अब उसके अन्दर परिवार के लोगों के प्रति अपनापन नहीं रह गया। अन्दर से वह बड़ी बेचैनी एवं बन्धन महसूस करता था।
बहादुर का घर से भाग जाना
एक दिन उसके हाथ से सिल छूटकर गिर गई और उसके दो टुकड़े हो गए। पिटाई के डर से तथा लोगों के क्रूर एवं असभ्य व्यवहार से तंग आकर वह अपना सारा सामान घर में ही छोड़कर कहीं चला गया। वह अपना भी कोई सामान लेकर नहीं गया था। निर्मला, उसके पति एवं किशोर को उसकी ईमानदारी पर विश्वास हो गया था। वे जानते थे कि रिश्तेदार के रुपये उसने नहीं चुराए थे। सभी बहादुर पर स्वयं द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए पश्चात्ताप करने लगे।