अन्योक्तिविलास : (अन्योक्तियों का सौन्दर्य)
हिंदी अनुवाद –
श्लोक 1–
नितरां नीचोऽस्मीति त्वं खेदं कूप! कदापि मा कृथाः। अत्यन्तसरसहृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि ।।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘अन्योक्तिविलासः’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रस्तुत श्लोक में अपने अवगुणों पर दुःखी न होने तथा दूसरे के गुणों को ग्रहण करने को श्रेष्ठ बताया गया है।
अनुवाद– हे कुएँ! ‘मैं अत्यधिक नीचा (गहरा) हूँ’, तुम इस प्रकार कभी दुःखी मत होओ, क्योंकि तुम अत्यन्त सरस हृदय (जल से भरे हुए) हो और दूसरों के गुणों (रस्सियों) को ग्रहण करने वाले हो।’
श्लोक 2–
नीर-क्षीर-विवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत्। विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः ।।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘अन्योक्तिविलासः’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रस्तुत श्र्लोक में अपने कुलधर्म व कर्तव्यपालन की शिक्षा दी गई है।
अनुवाद– हे हंस ! यदि तुम ही नीर और क्षीर अर्थात् दूध और पानी का विवेक करने में आलस्य करोगे, तो इस संसार में कौन ऐसा (व्यक्ति) है, जो अपने कुलधर्म (दूध और पानी को अलग करना) व कर्त्तव्य का पालन करेगा?
श्लोक 3–
कोकिल! यापय दिवसान् तावद् विरसान् करीलविटपेषु। यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लसति ।।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘अन्योक्तिविलासः’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रस्तुत श्लोक में बुरे दिनों में भी धैर्य रखने की प्रेरणा दी गई है।
अनुवाद– हे कोयल ! जब तक भौंरों से युक्त कोई आम का पेड़ लहराने नहीं लगता, तब तक तुम अपने नीरस (शुष्क) दिनों को किसी भी प्रकार से करील के पेड़ पर ही बिताओ। भाव यह है कि जब तक अच्छे दिन नहीं आते, तब तक व्यक्ति को अपने बुरे दिनों को किसी न किसी प्रकार से व्यतीत कर लेना चाहिए।
श्लोक 4–
रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम्। अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः। केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा। यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ।। .
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘अन्योक्तिविलासः’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रस्तुत श्लोक में चातक के माध्यम से यह बताया गया है कि हमें किसी के सामने दीन वचन बोलकर याचना नहीं करनी चाहिए।
अनुवाद– हे चातक ! सावधान मन से क्षण भर सुनो। आसमान में बहुत-से बादल रहते हैं, पर सभी एक जैसे (दानी, उदार) नहीं होते हैं। कुछ तो वर्षा से पृथ्वी को गीला कर देते हैं और कुछ तो व्यर्थ में गर्जना करते हैं। अतः तुम जिस-जिस को देखते हो अर्थात् किसी को भी देखकर, उसके सामने दीन वचन मत कहो। भाव यह है कि हर किसी के सामने याचना नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हर कोई दानी नहीं होता, जो हमें कुछ दे।
श्लोक 5–
न वै ताडनात् तापनाद् वह्निमध्ये
न वै विक्रयात्
क्लिश्यमानोऽहमस्मि ।
सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं
यतो मां जना गुञ्जया तोलयन्ति।।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘अन्योक्तिविलासः’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रस्तुत श्लोक में स्वर्ण के माध्यम से गुणवान और स्वाभिमानी व्यक्ति के मन की व्यथा को व्यक्त किया गया है।
अनुवाद– मैं (स्वर्ण) न तो पीटे जाने से, न अग्नि में तपाए जाने से और न ही बेचे जाने से दुःखी होता हूँ। मेरे दुःख का सबसे बड़ा कारण तो यह है कि लोग मुझे रत्ती (घुँघची) से तोलते हैं। सोने का अर्थात् मेरे दुःख का कारण तो एक ही है कि मेरी तुलना किसी तुच्छ वस्तु से की जाती है अर्थात् गुणवान व स्वाभिमानी व्यक्ति को कष्टों को सहने में इतनी पीड़ा नहीं होती, जितनी मानसिक पीड़ा उसके स्वाभिमान को ठेस लगने से होती है।
श्लोक 6–
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं ।
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजालिः।।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे।
हा हन्त! हन्ता नलिनीं गज उज्जहारः ।।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘अन्योक्तिविलासः’ नामक पाठ से लिया गया है।
प्रस्तुत श्लोक में कमलिनी में बन्द भौरे के माध्यम से जीवन की क्षणभंगुरता को बताया गया है।
अनुवाद– खिले कमल के पराग का रसपान करता कोई भौंरा सूर्यास्त होने पर कमल में बन्द हो गया। वह रातभर यही सोचता रहा कि ‘रात्रि बीत जाएगी, सुन्दर सवेरा होगा, सूर्य उदय होगा, कमल के झुण्ड खिल जाएँगे।’ दुःख का विषय है कि कमल की पंखुड़ियों में बन्द भौरे के इस प्रकार की बातें सोचते-सोचते किसी हाथी ने कमलिनी को उखाड़ लिया (और भौरा कमल के पुष्प में बन्द रह गया)। भाव यह है कि व्यक्ति सोचता कुछ है, पर ईश्वर की इच्छा से कुछ और ही हो जाता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1. कूपः किमर्थं दुःखम् अनुभवति ?
उत्तर– अहम् नितरां नीचः अस्मि इति विचार्य कूपः दुःखम् अनुभवति।
प्रश्न 2. अत्यन्त सरस हृदयो यतः किं ग्रहीतासि ?
उत्तर– अत्यन्त सरस हृदयो यतः परेषां गुण ग्रहीतासि।
प्रश्न 3. नीर-क्षीर-विषये हंसस्य का विशेषताः अस्ति?
उत्तर– यत् हंसः नीरं-क्षीरं पृथक् पृथक् करोति। इदमेव तस्य विशेषताः अस्ति।
प्रश्न 4. कवि हंसं किं बोधयति ?
उत्तर– कवि हंसं बोधयति यत् त्वया नीर-क्षीर विवेके आलस्यं न कुर्यात्।
प्रश्न 5. हंसस्य किं कुलव्रतम् अस्ति ?
उत्तर– हंसस्य विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतम् अस्ति।
प्रश्न 6. कविः कोकिल किं कथयति ? अथवा कविः कोकिलं किं बोधयति ?
उत्तर– कविः कोकिलं कथयति यत् यावत् रसालः न समुल्लसति तावत् त्वं करीलवृक्षेषु दिवसान् यापय।
प्रश्न 7. कवि चातकं किम् उपदिशति (शिक्षयति)?
उत्तर– कवि चातकम् उपदिशति यत् यथा सर्वे अम्भोदाः जलं न यच्छन्ति तथैव सर्वे अनाः घनं न यच्छन्ति, अतः सर्वेषां पुरतः दीनं वचनं मा ब्रूहि।
प्रश्न 8. सुवर्णस्य मुख्यं दुःखं किम् अस्ति? अथवा स्वर्णस्य किं मुख्य दुःखम् अस्ति ?
उत्तर– सुवर्णस्य मुख्यं दुःखं अस्ति यत् जनाः ताम् गुञ्जया सह तोलयन्ति।
प्रश्न 9. कोशगतः भ्रमरः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तर– कोशगतः भ्रमरः अचिन्तयत् यत् रात्रिर्गमिष्यति, सुप्रभातं भविष्यति, भास्वानुदेष्यति पङ्कजालिः हसिष्यति।
प्रश्न 10. यदा भ्रमरः चिन्तयति तदा गजः किम् अकरोत? अथवा गजः काम् उज्जहार?
उत्तर– यदा भ्रमरः चिन्तयति तदा गजः नलिनीम् उज्जहार।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏Thank you sir,🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳