अभिनव मनुष्य : रामधारी सिंह ‘दिनकर’
पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. शीश पर आदेश कर अवधार्य, प्रकृति के बस तत्त्व करते हैं मनुज के कार्य। मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश, और करता शब्दगुण अम्बर वहन सन्देश। नव्य नर की मुष्टि में विकराल, हैं सिमटते जा रहे प्रत्येक क्षण दिक्काल यह मनुज, जिसका गगन में जा रहा है यान, काँपते जिसके करों को देखकर परमाणु। खोलकर अपना हृदयगिरि, सिन्धु, भू, आकाश, हैं सुना जिसको चुके निज गुह्यतम इतिहास। खुल गए परदे, रहा अब क्या यहाँ अज्ञेय? किन्तु नर को चाहिए नित विघ्न कुछ दुर्जेय; सोचने को और करने को नया संघर्ष; नव्य जय का क्षेत्र, पाने को नया उत्कर्ष।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित काव्य खण्ड ‘कुरुक्षेत्र’ के ‘अभिनव मनुष्य’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवि ने अभिनव मनुष्य की असीम शक्तियों का ओजपूर्ण चित्रण किया है। साथ ही अभिनव मनुष्य की प्रकृति पर विजय, उसकी सफलताओं एवं लगातार प्रगति करते रहने की प्रवृत्ति को उजागर किया है।
व्याख्या कवि कहता है कि आधुनिक मनुष्य इतना शक्तिशाली है कि उससे भयभीत होकर प्रकृति के सभी तत्त्व उसके आदेशों का पालन करते हैं। साथ ही मनुष्य की इच्छानुसार सभी कार्य करते हैं। वर्तमान समय में जलदेवता मनुष्यों की माँगो का पालन करते हैं जैसे- जहाँ जल की आवश्यकता है, वहाँ जल की उपस्थिति करा देता है, जहाँ जल का अथाह भण्डार है वहाँ नदियों पर बाँध बनाकर सूखे मैदान बनाने में सक्षम है। यहाँ तक कि उसने जल बरसाने की विद्या को इच्छानुसार ग्रहण कर लिया है।
वर्तमान समय में मनुष्य रेडियो यन्त्रों के माध्यम से सन्देशों को इच्छित स्थानों तक पहुँचा देता है। इस आधुनिक मनुष्य की मुट्ठी में समस्त दिशाएँ प्रतिक्षण समाई जा रही हैं। आज मनुष्य की पहुँच इस अथाह समुद्र में ही नहीं, बल्कि अपार आकाश में हैं यान अर्थात् वह पक्षी की भाँति आकाश में स्वतन्त्र विचरण करता है। अभिनव मनुष्य इतना अधिक शक्तिशाली है कि उसके हाथों की अपार शक्ति को देखकर परमशक्तिशाली परमाणु भी भयभीत होकर थर-थर काँपने लगता है।
कवि कहता है कि वर्तमान युग में मनुष्य का ज्ञान, शोधात्मक प्रवृत्ति एवं साहसिक कार्यों के परिणामस्वरूप पर्वत, सागर, पृथ्वी, आकाश भी हृदय खोलकर अपना सर्वाधिक गोपनीय इतिहास बता चुके हैं। आज प्रकृति के समस्त रहस्यों से पर्दा हट चुका है अर्थात् अब कुछ भी अज्ञात नहीं रह गया है। इसके पश्चात् भी अभिनव मनुष्य ऐसी उपलब्धियों को अर्जित करने का इच्छुक है, जिन्हें सरलतापूर्वक हासिल करना असम्भव प्रतीत होता है। वह अपने लिए ऐसे दुर्गम व कठिन मार्ग तथा बाधाओं को आमन्त्रित करता रहता है, जिन पर कठिनाई से ही सही; परन्तु सफलता प्राप्त की जा सके। वह चिन्तन एवं कर्म की दृष्टि से बारम्बार नए तौर-तरीकों से संघर्ष करने के लिए तत्पर रहता है तथा नवीन विजय प्राप्त करने के लिए सतत् रूप से आगे बढ़ते रहने के लिए इच्छुक रहता है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) कवि ने मनुष्य के द्वारा की गई वैज्ञानिक प्रगति और उन्नति का वर्णन किया गया।
- (ii) कवि ने अभिनव मनुष्य की महत्त्वाकांक्षाओं की प्रवृत्ति का यथार्थवादी चित्रण किया है।
- (iii) रस वीर
कला पक्ष
- भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली
- शैली प्रबन्धात्मक
- छन्द मुक्त
- अलंकार अनुप्रास एवं मानवीकरण
- गुण ओज प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक काव्यांजलि में संकलित राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित ‘अभिनव मनुष्य’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
(ii) ‘काँपते जिसके करों को देखकर परमाणु’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ‘काँपते जिसके करों को देखकर परमाणु’ पंक्ति का भाव यह है कि अभिनव मनुष्य इतना अधिक शक्तिशाली है कि उसके हाथों की अपार शक्ति को देखकर परम शक्तिशाली परमाणु भी भयभीत होकर थर-थर काँपने लगता है।
(iii)प्रस्तुत पद्यांश में मनुष्य की किस प्रवृत्ति को प्रकट किया गया है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में मनुष्य की निरन्तर कुछ नया प्राप्त करने की इच्छा की
प्रवृत्ति को प्रकट किया गया है। कवि कहता है कि आधुनिक मनुष्य अपने लिए ऐसे दुर्गम और कठिन मार्ग तथा बाधाओं को आमन्त्रित करता रहता है, जिन पर कठिनाई से ही सही, किन्तु सफलता अवश्य प्राप्त की जा सके।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में किस रस की अभिव्यक्ति है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में वीर रस की अभिव्यक्ति हुई है, यहाँ मनुष्य की शक्ति के सन्दर्भ में उत्साह भाव की अभिव्यक्ति के कारण वीर रस है।
2. आज की दुनिया विचित्र, नवीन; प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन । हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप, हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप। हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान, लाँघ सकता नर सरित, गिरि, सिन्धु एक समान।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित काव्य खण्ड ‘कुरुक्षेत्र’ के ‘अभिनव मनुष्य’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि आज का मनुष्य इतनी अधिक प्रगति कर चुका है कि प्रकृति के सभी अंगों पर उसका नियन्त्रण है, परन्तु फिर भी उसमें विवेक का अभाव है।
व्याख्या कवि दिनकर जी कहते हैं कि आज की दुनिया नई तो है, किन्तु बड़ी विचित्र है। आज मनुष्य ने वैज्ञानिक प्रगति के द्वारा प्रकृति से संघर्ष करते हुए सभी क्षेत्रों में विजय प्राप्त कर ली है। आज मनुष्य ने जल, बिजली, दूरी, वातावरण का ताप आदि सभी पर अपना नियन्त्रण कर लिया है, सभी उसके हाथों में बँधे हुए हैं। हवा में मौजूद ताप भी उसकी अनुमति से ही बदलता है अर्थात् प्रकृति के लगभग सभी अंगों, अवयवों या क्षेत्रों पर मनुष्य ने पूर्णतया अपना अधिकार कर लिया है, उसका नियन्त्रण स्थापित हो गया है। अब उसके सामने कोई भी ऐसी समस्या नहीं है, कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जो उसे किसी भी तरह का व्यवधान पहुँचा सके।
आज का मनुष्य हर दृष्टि से इतना अधिक उन्नत और साधनसम्पन्न हो चुका है कि वह नदी, पर्वत, सागर सभी को समान रूप से पार कर सकता है। अब उसके लिए कोई भी कार्य कठिन नहीं रह गया है। कहने का आशय यह है कि आज का मनुष्य भौतिक दृष्टि से अत्यधिक प्रगति कर चुका है और प्रकृति के लगभग सभी क्षेत्रों एवं अंगों पर उसका पूरी तरह नियन्त्रण हो गया है। मानव ने अपनी क्षमता को अत्यधिक बढ़ा लिया है, परन्तु दुर्भाग्य से उसमे विवेक का अभाव है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (1) कवि ने मनुष्य की भौतिक उन्नति को दर्शाया है। इसके बावजूद, कवि ने करुणा, परोपकार व सार्वजनिक कल्याण को ही इन भौतिक उपलब्धियों से श्रेष्ठ बताया है।
- (ii) रस वीर
कला पक्ष
- भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली
- शैली प्रबन्धात्मक
- छन्द मुक्त
- अलंकार रूपक एवं अनुप्रास
- गुण ओज
- शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) आज के मनुष्य ने किस पर विजय प्राप्त कर ली है?
उत्तर आज के मनुष्य ने वैज्ञानिक प्रगति के द्वारा प्रकृति से संघर्ष करते हुए सभी क्षेत्रों में विजय प्राप्त कर ली है। अतः प्रकृति के सभी अंगों और क्षेत्रों पर उसका पूर्ण नियन्त्रण हो गया है।
(ii) किसके हुक्म पर पवन का ताप चढ़ता-उतरता है?
उत्तर मनुष्य के हुक्म पर पवन का ताप चढता उतरता है, क्योंकि मनुष्य ने जल, बिजली, वातावरण, ताप आदि सभी पर नियन्त्रण कर लिया है। हवा में मौजूद ताप भी उसकी अनुमति से बदलता है।
(iii) ‘कहीं भी व्यवधान नहीं बाकी है’ का क्या अर्थ है?
उत्तर कहीं भी व्यवधान नहीं बाकी है’ का अर्थ है कि मनुष्य के सामने अब कोई भी ऐसी समस्या नहीं है, कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है. जो उसके मार्ग में किसी तरह का व्यवधान (बाधा) उत्पन्न कर सके।
(iv) कविता का शीर्षक तथा कवि का नाम बताइए।
उत्तर कविता का शीर्षक ‘अभिनव मानव’ है और कवि का नाम ‘रामधारी सिंह दिनकर’ है।
3. सावधान, मनुष्य। यदि विज्ञान है तलवार, तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार। हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी अज्ञान, फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान। खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार, काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित रामधारीसिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित काव्य खण्ड ‘कुरुक्षेत्र’ के ‘अभिनव मनुष्य’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने विज्ञान के नकारात्मक व विनाशकारी परिणामो के प्रति मानव को सचेत करने का प्रयास किया है।
व्याख्या कवि दिनकर जी कहते हैं कि विज्ञान के माध्यम से मानव ने प्रकृति के साथ संघर्ष करते हुए अनेक ऐसे नए उपकरणों एवं प्रयोगों को विकसित किया है, जिससे वह प्रकृति को नियन्त्रित कर सके। प्रकृति को नियन्त्रित करने की इच्छा ने जिन नवीन वैज्ञानिक उपकरणों एवं खोजों को जन्म दिया, उनसे वातावरण में विनाश की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं। विज्ञान का दुरुपयोग मानव के कल्याणकारी साधनों के विनाश का कारण बन सकता है।
यही कारण है कि कवि दिनकर जी अभिनव मानव को सावधान करते हुए कहते हैं कि हे मानव ! तू विज्ञानरूपी तीक्ष्ण धार वाली तलवार से खेलना छोड़ दे। यह मानव समुदाय के हित में नहीं है। यदि विज्ञान तीक्ष्ण तलवार है, तो इस मोह को त्यागकर फेंक देना ही उचित है। इस विज्ञानरूपी तलवार पर अभी मनुष्य को नियन्त्रण प्राप्त करना मुश्किल है। अभी मनुष्य अबोध शिशु की तरह है। उसे फूल एवं काँटे में अन्तर करना मालूम नहीं है। वह काँटे को फूल समझकर उसकी ओर आकर्षित हो रहा है। अभी वह अबोध है, अज्ञानी है। अभी विज्ञानरूपी तलवार से खेलने में वह सक्षम नहीं है। वह इसकी तीक्ष्ण धार से अपने ही अंगों को घायल कर सकता है। उसे अभी इससे सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि मानव की तनिक-सी असावधानी भी स्वयं उसके लिए ही विनाश का कारण बन सकती है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) कवि ने विज्ञान के विध्वंसात्मक पक्ष को रेखांकित किया है।
- (ii) स्पष्ट किया है कि विज्ञान एक ऐसी तीक्ष्ण तलवार साबित हो सकता है, जो अपने निर्माता को ही घायल कर दे।
- (iii) रस वीर एवं शान्त
कला पक्ष
- भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली
- शैली प्रबन्धात्मक
- छन्द मुक्त
- अलंकार रूपक
- गुण ओज
- शब्द शक्ति लक्षणा एवं व्यंजना
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) कवि मनुष्य को सावधान क्यों कर रहा है?
उत्तर कवि मनुष्य को सावधान इसलिए कर रहा है, क्योंकि मनुष्य ने प्रकृति को नियन्त्रित करने की इच्छा, से जिन नवीन वैज्ञानिक उपकरणों एवं खोजों को जन्म दिया, उनसे वातावरण में विनाश की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
(ii) मनुष्य को अज्ञान शिशु क्यों कहा गया है?
उत्तर मनुष्य को अज्ञान शिशु इसलिए कहा गया है, क्योंकि मनुष्य वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रति अत्यधिक मोह रखता है तथा वह विज्ञान के परिणामों के प्रति सचेत नहीं है।
(iii) किसकी धार बड़ी तीखी है?
उत्तर विज्ञानरूपी (तीक्ष्ण धारवाली) तलवार की धार बड़ी तीखी होती है। इस विज्ञानरूपी तलवार पर मनुष्य का नियन्त्रण प्राप्त कर पाना मुश्किल है। अतः कवि मनुष्य को आगाह करता है कि इस तलवार से खेलना छोड़ दो, क्योंकि यह मानव जाति के हित में नहीं है।
(iv)पाठ का शीर्षक एवं कवि का नाम लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पाठ का शीर्षक ‘अभिनव मनुष्य’ है तथा कवि का नाम रामधारी सिंह ‘दिनकर’ है।