नौका-विहार/बापू के प्रति – सुमित्रानन्दन पन्त
पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
* नौका-विहार *
1. जब पहुँची चपला बीच धार छिप गया चाँदनी का कगार ! दो बाँहों से दूरस्थ तीर धारा का कृश कोमल शरीर आलिंगन करने को अधीर ! अति दूर, क्षितिज पर विटप-माल लगती भ्रू-रेखा-सी अराल, अपलक नभ, नील-नयन विशाल, माँ के उर पर शिशु-सा, समीप, सोया धारा में एक द्वीप, उर्मिल प्रवाह को कर प्रतीप, वह कौन विहग? क्या विकल कोक, उड़ता हरने निज विरह शोक? छाया को कोकी का विलोक !
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘नौका विहार’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नौका विहार करते हुए दोनों तटों के प्राकृतिक दृश्यों का मनोरम चित्र अंकित किया है।
व्याख्या कवि की नाव जब गंगा के मध्य धार में पहुँचती है, तो वहाँ से चन्द्रमा की चाँदनी में चमकते हुए रेतीले तट स्पष्ट दिखाई नहीं देते। कवि को दूर से दिखते दोनों किनारे ऐसे प्रतीत हो रहे हैं, जैसे वे व्याकुल होकर गंगा की धारा रूपी नायिका के पतले कोमल शरीर का आलिंगन करना चाहते हो, जिसके लिए उन्होंने अपनी दोनों बाँहें फैला रखी हैं। दूर क्षितिज पर कतारबद्ध वृक्षों को देख ऐसा लग रहा है, मानो वे नीले आकाश के विशाल नेत्रों की तिरछी भौहें हैं और धरती को एकटक निहार रहे हैं।
कवि आगे कहते हैं कि वहाँ पास ही एक द्वीप है, जो लहरों के प्रवाह को विपरीत दिशा में मोड़ रहा है। गंगा की धारा के मध्य स्थित उस द्वीप को देख कवि को ऐसा आभास हो रहा है, जैसे कोई छोटा-सा बालक अपनी माता की छाती से लगकर सो रहा हो। वहीं गंगा नदी के ऊपर एक पक्षी को उड़ते देख कवि सोचने लगता है कि कहीं यह चकवा तो नहीं है, जो भ्रमवश जल में अपनी ही छाया को चकवी समझ उसे पाने की चाह लिए विरह-वेदना को मिटाने हेतु व्याकुल हो आकाश में उड़ता जा रहा है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपनी सूक्ष्म कल्पनाओं द्वारा द्वीप एवं पक्षी का वर्णन कर गंगा के सौन्दर्य को अति रंजित करने का प्रयास किया है।
- (ii) रस श्रृंगार
कला पक्ष
- भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली
- शैली प्रतीकात्मक
- छन्द स्वच्छन्द
- अलंकार अनुप्रास, रूपक, उपमा, मानवीकरण एवं भ्रान्तिमान
- गुण माधुर्य
- शब्द शक्ति लक्षणा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) प्रस्तुत पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘नौका-विहार’ कविता से उद्धृत है तथा इसके कवि प्रकृति के सुकुमार कवि ‘सुमित्रानन्दन पन्त’ है।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नौका-विहार करते हुए दोनों तटों के प्राकृतिक दृश्यों एवं द्वीप और समुद्र का अपनी सूक्ष्म कल्पनाओं द्वारा वर्णन किया है। साथ-ही-साथ गंगा नदी के सौन्दर्य को अति रंजित करने का प्रयास किया है।
(iii) ‘दो बाँहों से दूरस्थ तीर धारा का कृश कोमल शरीर’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर कवि को दूर से दिखते दोनों किनारे ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे वे व्याकुल होकर गंगा की धारारूपी नायिका के पतले कोमल शरीर का आलिंगन करना चाहते हों।
(iv) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) कवि को वृक्षों को देखकर कैसा प्रतीत हुआ?
उत्तर कवि को दूर क्षितिज पर कतारबद्ध वृक्षों को देख ऐसा लग रहा है, मानो वे नीले आकाश के विशाल नेत्रों की तिरछी भौंहें हैं और धरती को एकटक निहार रही हैं।
2. हे जगजीवन के कर्णधार चिर जनन-मरण के आर-पार शाश्वत जीवन नौका विहार मैं भूल गया अस्तित्व ज्ञान जीवन का यह शाश्वत प्रमाण करता मुझको अमरत्व दान।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘नौका विहार’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नौका विहार के अनुभव का वर्णन किया है।
व्याख्या कवि कहता है कि संसार की जीवनरूपी नौका को चलाने वाले ईश्वर जीवन की गति में जन्म एवं मृत्यु का शाश्वतत कर्म बनाए रखते हैं। जीवनरूपी नौका का विहार निरन्तर होता रहता है। कवि कहते हैं कि चिन्तनशील होकर मैं अपने अस्तित्व का, सत्ता का ज्ञान भूल गया। जीवन की शाश्वतता का जलधारारूपी यह शाश्वत प्रमाण मुझे अमरत्व प्रदान करता है।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) कविता का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
उत्तर कविता का शीर्षक ‘नौका विहार’ और कवि का नाम ‘सुमित्रानन्दन पन्त’ है।
(ii) ‘कर्णधार’ तथा ‘शाश्वत’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर ‘कर्णधार’ शब्द का अर्थ है-माँझी, नाव को पार लगाने वाला तथा ‘शाश्वत’ शब्द का अर्थ है-सदा बना रहने वाला या जो सदा से चला आ रहा हो।
(iii) किस अदृश्य सत्ता की ओर पन्त जी का संकेत है?
उत्तर पन्त जी ने ईश्वर की अदृश्य सत्ता की ओर संकेत करते हुए कहा है कि ईश्वर रूपी नाविक जीवनरूपी नौका को चलाता है।
(4) ‘जगजीवन के कर्मधार’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ‘जगजीवन के कर्णधार’ का आशय संसार की जीवनरूपी नौका को चलाने वाले ईश्वर से है, जो जीवन की गति में जन्म व मृत्यु का शाश्वत नियम बनाए रखते हैं।
3.चाँदनी रात का प्रथम प्रहर हम चले नाव लेकर सत्वर सिकता की सस्मित सीपी पर मोती की ज्योत्स्ना रही विचर लो पालें चढ़ीं, उठा लंगर। मृदु मंद-मंद मंथर मंथर लघु तरणि हंसिनी सी सुन्दर तिर रही खोल पालों के पर निश्चल जल के शुचि दर्पण पर प्रतिबिम्बित हो रंजत पुलिन निर्भर दुहरे ऊँचे लगते क्षण भर काला काँकर का राजभवन सोया जल में निश्चिन्त प्रमन पलकों पर वैभव स्वप्न सघन सन्दर्भ पूर्ववत्।
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘नौका विहार’ शीर्षक कविता से उधृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में चाँदनी रात में किए जाने वाले नौका-विहार का मनोरम चित्रण किया गया है।
व्याख्या कवि पन्त जी कहते हैं कि वे चाँदनी रात के प्रथम पहर में नौका-विहार करने के लिए एक छोटी-सी नाव लेकर तेज़ी से गंगा में आगे बढ़ जाते हैं। गंगा के तट के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए वे कहते हैं कि गंगा का तट ऐसा रम्य लग रहा है मानो खुली पड़ी रेतीली सीपी पर चन्द्रमा रूपी मोती की चमक यानी चाँदनी भ्रमण कर रही हो। ऐसे सुन्दर वातावरण में गंगा में खड़ी नावों की पालें नौका-विहार के लिए ऊपर चढ़ गई हैं और उन्होंने अपने लंगर उठा लिए हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि एक साथ अनेक नावें नौका विहार के लिए गंगा तट से खुली हैं। लंगर उठते ही छोटी-छोटी नावें अपने पालरूपी पंख खोलकर सुन्दर हंसिनियों के समान धीमी धीमी गति से गंगा में तैरने लगीं। गंगा का जल शान्त एवं निश्चल है, जो दर्पण के समान शोभायमान है। उस जलरूपी स्वच्छ दर्पण में चाँदनी में नहाया रेतीला तट प्रतिबिम्बित होकर दोगुने परिमाण में प्रकट हो रहा है।
गंगा तट पर शोभित कालाकाँकर के राजभवन का प्रतिबिम्ब गंगा जल में झलक रहा है। ऐसा लग रहा है मानो यह राजभवन गंगा जलरूपी शय्या पर निश्चिन्त होकर सो रहा है और उसकी झुकी पलकों एवं शान्त मन में वैभवरूपी स्वप्न तैर रहे हैं।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश में गंगा के पावन होने तथा इसके तट के अत्यन्त सुन्दर होने का भाव प्रस्तुत किया गया है।
- (ii) रस शान्त
कला पक्ष
- शैली प्रतीकात्मक
- भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली
- अलंकार अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश, ‘उपमा, उत्प्रेक्षा एवं रूपक
- छन्द स्वच्छन्द
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) कवि नौका विहार हेतु किस समय प्रस्थान करते हैं?
उत्तर कवि नौका विहार हेतु चाँदनी रात के प्रथम पहर के समय प्रस्थान करते हैं तथा गंगा नदी के तट के सौन्दर्य का वर्णन कर रहे हैं।
(ii) रात्रि में गंगा नदी की रेती की शोभा कैसी लग रही थी?
उत्तर रात्रि में गंगा की रेती की शोभा अत्यन्त मनोहर लग रही थी। गंगा का तट ऐसा रम्य लग रहा था, मानो खुली पड़ी रेतीली सीपी पर चन्द्रमा रूपी मोती की चमक यानी चाँदनी भ्रमण कर रही हो।
(iii) ‘लघु तरणि हंसिनी सी सुन्दर’ में कौन सा अलंकार है?
उत्तर ‘लघु तरणि हंसिनी सी सुन्दर पंक्ति में उपमा अलंकार है। यहाँ उपमेय तरण को उपमान हंसनी के समान बताया गया है। इसमें ‘सी’ वाचक शब्द है।
(iv) रेखांकित पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित पंक्तियों की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) पाठ का शीर्षक तथा कवि का नाम बताइए।
उत्तर पाठ का शीर्षक ‘नौका-विहार’ तथा कवि का नाम ‘सुमित्रानन्दन पन्त’ है।
बापू के प्रति
4. तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन हे अस्थिशेष ! तुम अस्थिहीन, तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल हे चिर पुराण! हे चिर नवीन ! तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव-शून्य लीन, आधार अमर, होगी जिस पर भावी की संस्कृति समासीन। तुम मांस, तुम्हीं हो रक्त-अस्थि निर्मित जिनसे नवयुग का तन, तुम धन्य ! तुम्हारा निःस्व त्याग हे विश्व भोग का वर साधन; इस भस्म-काम तन की रज से, जग पूर्ण-काम नव जगजीवन, बीनेगा सत्य-अहिंसा के ताने-बानों से मानवपन !
सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित तथा सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा लिखित ‘बापू के प्रति’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से राष्ट्रपति महात्मा गाँधी का गुणगान किया तथा इन्हें नवयुग के निर्माता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
व्याख्या कवि पन्त जी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को नमन करते हुए कहते हैं कि हे महात्मन ! तुम्हारे शरीर में मांस और रक्त का अभाव है। तुम हड्डियों का ढाँचा मात्र हो। तुम्हें देख ऐसा आभास होता है कि तुम्हारा शरीर हड्डियों से रहित है। तुम पवित्रता एवं उत्तम ज्ञान से परिपूर्ण केवल आत्मा हो। हे प्राचीन संस्कृतियों के पोषक ! हे नवीन
संस्कृति के प्रतीक ! तुम्हारे विचारों में प्राचीन व नवीन दोनों आदर्शों का सार विद्यमान है। हे आदर्श पुरुष! तुममें जीवन की सम्पूर्णता झलकती है, जिसमें विश्व की सम्पूर्ण असारता को समा लेने की क्षमता है। तुम्हारे ही आदर्शों से देश की संस्कृति का आधार परिलक्षित होगा और भविष्य की संस्कृति को पुनः प्रतिष्ठित करने में भी तुम्हारे ही जीवन के आदर्श महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।
पन्त जी कहते हैं कि हे बापू! तुम नवयुग के आदर्श हो, जिस प्रकार शरीर के निर्माण में मांस, रक्त और अस्थि की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, उसी प्रकार नवयुग के निर्माण में तुम्हारे सआदर्शों का अमूल्य योगदान है। तुम धन्य हो। तुम्हारे द्वारा निःस्वार्थ भाव से किया गया सर्वस्व त्याग सम्पूर्ण जगत् को कल्याण का मार्ग दिखाएगा। यह संसार तुम्हारे बताए हुए आदर्शों का अनुपालन करते हुए अपनी समस्त कामनाओं को भस्म कर उसकी राख से सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त को आत्मसात करेगा, जिस प्रकार ताने और बाने के मेल से सुन्दर वस्त्र बुने जाते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे द्वारा दिए गए सत्य और अहिंसा रूपी ताने-बाने से मानवता का सृजन होगा अर्थात् सम्पूर्ण मानव जाति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से राष्ट्रीयता महात्मा गांधी के आदर्शों को भारतीय संस्कृति का वाहक बताया गया है।
- (ii) प्रस्तुत पद्यांश मे कवि ने गांधीजी को सत्य और अहिंसा की प्रतिपूर्ति मान कर उनके बताए गए आदर्शों पर चलने की कामना व्यक्त की है।
- (iii) रस शान्त
कला पक्ष
- भाषा संस्कृतनिष्ठ, शुद्ध परिष्कृत खड़ीबोली
- शैली गीतात्मक मुक्त शैली
- अलंकार विरोधाभास, यमक, रूपक एवं उपमा
- छन्द स्वच्छन्द
- गुण प्रसाद
- शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से अवतरित है तथा इसके रचयिता कौन हैं?
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश ‘बापू के प्रति’ नामक कविता से अवतरित है तथा इसके रचयिता प्रकृति के र के सुकुमार कवि ‘सुमित्रानन्दन पन्त’ जी है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त देखिए।
(iii) ‘तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन, हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीन’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर कवि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नमन करते हुए कहते हैं कि हे महात्मन ! तुम्हारे शरीर में मांस और रक्त का अभाव है। तुम हड्डियों का ढाँचा मात्र हो।
(iv) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने राष्ट्रपिता को नवयुग के रूप में किस प्रकार प्रस्तुत किया है?
उत्तर कवि राष्ट्रपिता को नवयुग के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि हे बापू! तुम नवयुग के आदर्श हो, जिस प्रकार शरीर के निर्माण में मांस, रक्त और अस्थि की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, उसी प्रकार नवयुग के निर्माण में तुम्हारे सआदर्शों का अमूल्य योगदान है।
(v) प्रस्तुत पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर प्रस्तुत पद्यांश में ‘हे अस्थिशेष! तुम् अस्थिहीन’ पंक्ति में विरोधाभास अलंकार, ‘सत्य-अहिंसा के ताने-बानों से मानवपन’ में उपमा अलंकार है।
5.कारा की संस्कृति विगत, भित्ति बहु धर्म-जाति-गति रूप नाम, बंदी जग-जीवन, भू विभक्त विज्ञान-मूढ़ जन प्रकृति-कम, आये तुम मुक्त पुरुष, कहने मिथ्या जड़ बन्धन, सत्य राम, नानृतं जयति सत्यं मा भैः, जय ज्ञान-ज्योति तुमको प्रणाम।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा किए गए महान् कार्यों क उल्लेख किया गया है।
व्याख्या प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवि पन्त जी कहते हैं कि हे बापू! भारतीय संस्कृति विगत कई वर्षों से परतन्त्र थी, कैद थी। यहाँ के लोग धर्म, जाति, अर्थ, शिक्षा, रूप, ख्याति आदि बहुत से बन्धनों में जकड़े हुए थे अर्थात् यहाँ का सामान्य जन-जीवन ही कैद था। यहाँ की धरती क्षेत्रीयता, भाषावाद जैसे कई आधारों पर बँटी हुई थी।
विज्ञान के प्रभाव में आकर यहाँ के लोग अविवेक हो प्रकृति का उपभोग अपनी इच्छा के अनुरूप करना चाहते थे।
किन्तु लम्बे समय से गुलामी का दंश झेलने वाले भारतीयों के लिए उद्धारक (बन्धनमुक्त कराने वाले) बनकर आने वाले हे बापू ! तुमने जन-जन में यह सन्देश भी फैलाया है कि सांसारिक सम्बन्ध अर्थात् रिश्ते-नाते सब झूठे और दिखावे वाले हैं। ईश्वर का नाम ही एकमात्र सत्य और शाश्वत है। असत्य की नहीं, वरन् सर्वदा सत्य की ही जीत होती है। अतः डर को त्याग दो। ज्ञान की ऐसी दिव्य ज्योति जगाने वाले युग पुरुष बापू ! तुम्हें प्रणाम !
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
- (i) प्रस्तुत पद्यांश में अंग्रेजी साम्राज्य के दौरान भारत के लोगों में जातीय, धर्म आदि के भेदभाव का चित्रण किया गया है। साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का वन्दन भी किया गया है।
- (ii) रस शान्त
कला पक्ष
- भाषा संस्कृतनिष्ठ, शुद्ध परिष्कृत खड़ीबोली शैली गीतात्मक मुक्त
- छन्द स्वच्छन्द
- अलंकार अनुप्रास एवं रूपक
- शब्द शक्ति अभिधा एवं लक्षणा
- गुण प्रसाद
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(1) विगत संस्कृति की कौन-कौन सी दीवारें थीं?
उत्तर विगत संस्कृति की दीवारें धर्म, जाति, अर्थ, शिक्षा, रूप, ख्याति आदि थीं। भारत के लोग इन दीवारों के बन्धनों में जकड़े हुए थे अर्थात् इन सबमें सामान्य जन-जीवन कैद था।
(ii) ‘जड़ बन्धन मिथ्या है और राम सत्य है’ यह उद्घोष करने कौन आया?
उत्तर ‘जड़ बन्धन मिथ्या है और राम सत्य है’ यह उद्घोष महात्मा गाँधी लाए थे। उन्होंने यह सन्देश फैलाया था कि सांसारिक बन्धन रिश्ते-नाते सब झूठे और दिखावटी हैं। केवल ईश्वर का नाम ही एकमात्र सत्य और शाश्वत है।
(iii) ‘नानृतं जयति सत्यं’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर ‘नानृतं जयति सत्यं’ का अर्थ है कि असत्य की नहीं बल्कि सर्वदा सत्य की ही जीत होती है। अतः सत्य हमेशा जीतता है।
(iv) रेखांकित अंश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर रेखांकित अंश की व्याख्या के लिए उपरोक्त व्याख्या का मोटे अक्षरों में मुद्रित भाग देखिए।
(v) कविता का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
उत्तर कविता का शीर्षक ‘बापू के प्रति’ तथा कवि का नाम ‘सुमित्रानन्दन पन्त’ है।