वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1▼
प्रश्न 1. भारत में घटते जल स्तर के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर : भारत में घटते जल स्तर के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं-
- (1) भारत में जल का अधिकांश भाग (विशेष रूप से नदियाँ) प्रदूषित हो चुका है।
- (2) भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा अनियमित एवं अनिश्चित होती है तथा इसका वितरण भी असमान है। यह वर्षा भी मात्र तीन महीनों में ही होती है। किसी वर्ष वर्षा अधिक होने से बाढ़ आ जाती है तथा किसी वर्ष वर्षा की कमी से सूखा (अकाल) पड़ जाता है। अतः दोनों ही स्थितियों में जल का अभाव बना रहता है।
- (3) यद्यपि देश में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है, परन्तु वर्षाजल का संग्रह नहीं किया जाता है। वर्षा का जल नालो के माध्यम से नदियों में तथा नदियाँ सागरों में मिल जाती हैं तथा यह जल व्यर्थ ही बह जाता है। इस जल का मात्र 8.5% भाग ही उपयोग में लाया जा सका है।
- (4) देश में भूमिगत जल का स्तर सर्वत्र समान नहीं है तथा ने ही यह जल सभी स्थानों पर पीने योग्य है। इसके साथ इस जल का स्तर भी नीचे गिरता जा रहा है जिस कारण इस जल को प्राप्त करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः जनसंख्या के बड़े भाग को शुद्ध पेयजल उपलब्ध ही नहीं हो पाता है।
- (5) भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती जा रही है जिसके लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने में अनेक कठिनाइयाँ उपस्थित हो रही हैं।
- (6) भारत की लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। अनेक प्रयासों के उपरान्त भी सभी नागरिकों को शुद्ध पेयजल सुलभ नहीं हो सका है। आज भी बहुत-से ग्रामवासियो को पेयजल प्राप्ति हेतु कई किमी पैदल चलना पड़ता है। लम्बी शुष्कता के चलते अधिकांश जलस्रोत सूख जाते हैं तथा जल का अभाव बना रहता है।
प्रश्न 2. जल दुर्लभता क्या है और इसके मुख्य कारण क्या हैं
अथवा जल दुर्लभता क्या है? इसके तीन मुख्य कारण बताइए। [2020]
उत्तर : यह आश्चर्यजनक है कि पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग जल से घिरा है और जल नवीकरण योग्य संसाधन होते हुए भी वर्तमान में जल के उचित प्रबन्धन, वितरण तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ती माँग आदि कारणों से दुर्लभ है। स्वीडन के एक विशेषज्ञ फाल्कन मार्क के अनुसार ‘जल दुर्लभता तब होती है जब प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 1,000 घन मीटर से कम जल उपलब्ध होता है। सामान्यतः जल प्राप्त करने के लिए कठिन परिस्थितियों का सामना करने की दशा को जल दुर्लभता कहा जाता है। महानगरी एवं राजस्थान के मरुस्थल में जल दुर्लभता का अधिक सामना करना पड़ता है।
जल दुर्लभता के कारण
- (1) उद्योगों में जल अधिक लगता है इसलिए जल की कमी हो रही है।
- (2) तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण भी जल दुर्लभता की समस्या है।
- (3) निजी दोहन संसाधनों से पृथ्वी के आन्तरिक क्षेत्र के जल का दोहन जल दुर्लभता का एक कारण है।
प्रश्न 3. बहुउद्देशीय परियोजनाओं से होने वाले लाभ और हानियों की तुलना करें।
उत्तर : भारत में स्वतन्त्रता के बाद शुरू की गई समन्वित जल संसाधन प्रबन्धन उपागम पर आधारित बहुउद्देशीय परियोजनाओं को जवाहरलाल नेहरू गर्व से ‘आधुनिक भारत के तीर्थ’ कहा करते थे। उनका मानना था कि इन परियोजनाओं से कृषि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, औद्योगीकरण, मनोरंजन और नगरीय अर्थव्यवस्था को समन्वित रूप से विकसित किया जा सकता है।
पिछले कुछ वर्षों में बहुउद्देशीय परियोजनाएँ और बड़े बाँध कई कारणों से हानि और विरोध के विषय भी बन गए हैं। इन परियोजनाओं और बाँधों से नदियों का प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध होता है, बाढ़ के कारण मैदानों में इनसे वहाँ उपलब्ध वनस्पति व मिट्टी की उपजाऊ परत जल में डूबकर नष्ट हो जाती हैं। स्थानीय समुदाय को विस्थापन का कष्ट उठाना पड़ता है।
अतएव बहुउद्देशीय परियोजनाएँ जहाँ एक ओर अनेक लाभ प्रदान करती है वहीं इनसे अनेक हानियाँ भी उठानी पड़ती हैं।
प्रश्न 4. बहुउद्देशीय नदी परियोजनाएँ क्या हैं? इनसे क्या लाभ हैं?
उत्तर : समन्वित जल संसाधन प्रवन्धन पर बहुउद्देशीय नदी परियोजनाएँ आधारित हैं। देश के चहुंमुखी एवं सर्वांगीण विकास में बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं का सर्वोपरि योगदान होने के कारण भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री. पं० जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें आधुनिक भारत के तीर्थ कहा था। वहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ भारत के आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास की मानदण्ड हैं। इन परियोजनाओं से एकसाथ कई उद्देश्यों की पूर्ति होती है, जिसका विवरण निम्नलिखित है-
- (1) पनबिजली का उत्पादन करना,
- (2) बाढ़ पर नियन्त्रण करना,
- (3) सिचाई कार्यों हेतु नहरों का निर्माण एवं विकास करना,
- (4) मत्स्य पालन का विकास करना,
- (5) भूमि-क्षरण पर प्रभावी नियन्त्रण करना,
- (6) उद्योग-धन्धों का विकास करना,
- (7) जल परिवहन का विकास करना,
- (8) दलदली भूमि को सुखाना तथा उसको मानव उपयोग हेतु तैयार करना,
- (9) शुद्ध पेयजल की उत्तम व्यवस्था करना।
प्रश्न 5. राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर : राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में जल का संग्रहण
राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर बीकानेर, फलौदी और बाड़मेर में लगभग सभी घरों में पीने के लिए वर्षा के जल को संगृहीत करने की व्यवस्था होती है। यहाँ घरों में भूमिगत टैंक अथवा ‘टाँका’ बनाया जाता है। इसका आकार एक कमरे के बराबर होता है। सामान्यतः यह टाँका 6.1 मीटर गहरा, 4.27 मीटर लम्बा और 2.44 मीटर चौड़ा होता है। इस टैंक को मुख्य घर या आँगन में बनाया जाता है तथा घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार छतों से वर्षा का जल टैंक में एकत्र हो जाता है। यह जल अगली वर्षा ऋतु तक संगृहीत किया जाता है तथा जल की कमी वाले दिनों में इस जल का उपयोग किया जाता है। कुछ घरो में तो टॉकों के साथ भूमिगत कमरे भी बनाए जाते है क्योंकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठण्डा रखता था जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2
प्रश्न 1. प्राकृतिक संसाधन के रूप में जल का क्या महत्त्व है? इसके उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
जल का महत्त्व
जल एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। ऐसा माना जाता है कि जीवन की उत्पत्ति सबसे पहले जल में ही हुई थी। ‘जल ही जीवन है’, यह कथन बिल्कुल सत्य है। भारत का यह एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है जो वर्तमानकाल में जलस्तर कम हो जाने व प्रदूषित हो जाने के कारण संकटग्रस्त अवस्था में पहुँच चुका है। मानसूनी वर्षा की प्रवृत्तियों ने इसकी प्रकृति को और अधिक संकटपूर्ण बना दिया है। इसका उपयोग पीने एवं घरेलू कार्यों में सर्वाधिक होता है। विभिन्न औद्योगिक उद्देश्यों की पूर्ति में इसका उपयोग किया जाता है। तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए कृषि में जल का उपयोग सिचाई के लिए दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। तेजी से हो रहा विकास और आधुनिक जीवन जीने के ढंग के कारण नगरों में जल की माँग प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। केवल इतना ही नहीं जल-मल की निरन्तर बढ़ती निकासी और सभी प्रकार की गन्दगी व कूड़े-कचरे के निपटान के लिए जल अपरिहार्य है। जल ही जीवन का आधार है क्योंकि सिचाई, जल परिवहन, पनविद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन और अनेक दैनिक घरेलू तथा औद्योगिक क्रियाकलापों को पूरा करने के लिए जल की आवश्यकता होती है। जल संसाधनों का शोषण बहुत सोच-समझकर करना चाहिए जिससे जल की सभी क्षेत्रों में आपूर्ति सुनिश्चित हो सके और भविष्य में भी जल संकट का सामना न करना पड़े।
जल संसाधन का उपयोग
जल के विविध उपयोग हैं जिनमें सिचाई का प्रथम स्थान है। कुल उपयोग किए गए जल का 84% भाग सिंचाई में उपयोग होता है। जल की माँग अन्य कार्यों मे भी बढ़ती जा रही है। इससे भविष्य में सिचाई के लिए जल का प्रतिशत घट जाएगा। प्राचीनकाल से ही जल का उपयोग सिचाई के लिए होता आ रहा है। कावेरी नदी से ग्राण्ड ऐनीकट का दूसरी शताब्दी में निर्माण किया गया था। सन् 1882 में उत्तर प्रदेश की पूर्वी यमुना नहर का निर्माण किया गया। कृषि के अतिरिक्त जल का उपयोग घरेलू कार्यों और उद्योगों में भी किया जाता है।
प्रश्न 2. जल संरक्षण क्यों आवश्यक है? जल संरक्षण की चार विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : जल संसाधनों का संरक्षण
जल एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है जिसका संरक्षण किया जाना नितान्त आवश्यक है। भारत एक कृषिप्रधान देश है तथा कृषि ही भारत की अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा उसमें स्थायित्व लाया जाना बहुत ही आवश्यक है। सौभाग्यवश हमारे देश में वर्षभर फसलें उगाने के लिए अनुकूल जलवायु तो है, परन्तु मानसूनी वर्षा का वितरण बड़ा ही अनियमित, अनिश्चित और असमान है। अतः सूखी-प्यासी धरती को सिचाई द्वारा ही हरा-भरा बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त घरेलू कार्यों के लिए भी जल संसाधनों के विकास की अधिक आवश्यकता है। यदि खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि का प्रयास किया जाता है तो उसके साथ-साथ जल संसाधनों में भी वृद्धि करना अपरिहार्य है क्योकि सिंचन साधनों में वृद्धि करने से ही खाद्यान्न उत्पादन में अपेक्षित सफलता प्राप्त की जा सकती है। इन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए जल संसाधनों का संरक्षण किया जाना अति आवश्यक है। जल के कुशल प्रवन्धन के लिए उसके संरक्षण की चार विधियाँ निम्नलिखित हो सकती है-
- (1) जन-जागरण पैदा करना और जल के संरक्षण एवं उसके कुशल प्रबन्धन से सम्बन्धित सभी क्रियाकलापों में जन-सामान्य को सम्मिलित करना।
- (2) बागवानी, वाहनों की धुलाई, शौचालयों और वाश-बेसिनों में उपचारित जल के उपयोग में कमी लाना।
(3) जलाशयों को प्रदूषण से बचाना। एक बार प्रदूषित होने पर जलाशय वर्षों बाद पुनः उपयोगी हो पाते हैं। - (4) जल की बरबादी तथा जल-प्रदूषण को रोकने के लिए जल की पाइप लाइनों की तत्काल मरम्मत करना।
इस प्रकार जल को किसी भी प्रकार नष्ट होने से बचाना ही जल संरक्षण है। परन्तु जल संरक्षण के लिए सभी क्षेत्रों में एक जैसे उपाय लागू नहीं किए जा सकते हैं। क्षेत्र-विशेष के जल संसाधनों के विकास और प्रवन्धन के लिए क्षेत्र से सम्बन्धित स्थानीय जन-सामान्य की भागीदारी सुनिश्चित करना अति आवश्यक है।
प्रश्न 3. जल प्रदूषण के कारण क्या हैं? इसे दूर करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर
जल प्रदूषण
जल प्रदूषण का अर्थ- जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ तथा हानिकारक पदार्थ घुले होने से जल प्रदूषित हो जाता है। यह प्रदूषित जल जीवों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न कर सकता है। जल प्रदूषक विभिन्न रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु, वायरस, कीटाणुनाशक पदार्थ, अपतृणनाशक पदार्थ, वाहित मल, रासायनिक खादे, अन्य कार्बनिक पदार्थ. आदि अनेक पदार्थ हो सकते हैं।
जल प्रदूषण के स्त्रोत- जल प्रदूषण के निम्नलिखित विभिन्न स्रोत हो सकते हैं-
- (1) कृषि में प्रयोग किए गए कीटाणुनाशक, अपतृणनाशक, विभिन्न रासायनिक खादें।
- (2) सीसा, पारा आदि के अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ, जो औद्योगिक संस्थानों से निकलते हैं।
- (3) भूमि पर गिरने वाला या तेल वाहकों द्वारा ले जाया जाने वाला तेल तथा अनेक प्रकार के वाष्पीकृत होने वाले पदार्थ जैसे पेट्रोल, एथिलीन आदि वायुमण्डल से द्रवित होकर जल में आ जाते हैं।
- (4) रेडियोधर्मी पदार्थ जो परमाणु विस्फोटों आदि से उत्पन्न होते हैं और जल-प्रवाह में पहुँचते हैं।
- (5) वाहित मल जो मनुष्यों द्वारा जल प्रवाह में मिला दिया जाता है।
- जल प्रदूषण की रोकथाम के उपाय – जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं-
- (1) कूड़ा-करकट, सड़े-गले पदार्थ एवं मल-मूत्र को शहर से बाहर गड्डा खोदकर दबा देना चाहिए।
- (2) सीवर का जल पहले नगर से बाहर ले जाकर दोषरहित करना चाहिए। बाद में इसे नदियों में छोड़ना चाहिए।
- (3) विभिन्न कारखानों आदि से निकले जल तथा अपशिष्ट पदार्थों आदि का शुद्धीकरण आवश्यक है।
- (4) विभिन्न प्रदूषकों को समुद्री जल में मिलने से रोका जाना चाहिए।
- (5) समुद्र के जल में परमाणु विस्फोट नहीं किया जाना चाहिए।
- (6) झीलो, तालाबों आदि में शैवाल जैसे जलीय पौधे उगाए जाने चाहिए, ताकि जल को शुद्ध रखा जा सके।
- (7) मृत जीवों, जले हुए जीवों की राख आदि को नदियों में नहीं फेकना चाहिए।
- (8) खेतों में तथा जल में कीटाणुनाशक दवाओं का कम-से-कम प्रयोग किया जाना चाहिए।
- (9) स्वच्छ जल के दुरुपयोग को रोका जाना चाहिए।
- (10) ग्राम-स्तर से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक समितियों का गठन किया जाना चाहिए।