सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय
पद्यांश 1–
यहीं कहीं पर बिखर गई वह,
भग्न विजयमाला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं,
है यह स्मृतिशाला-सी।।
सहे वार पर वार अंत तक,
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर,
चमक उठी ज्वाला-सी।।
शब्दार्थ– बिखर गई-फैल गई, भान-खण्डितः फूल-अस्थियाँ; संचित-एकत्रित; स्मृतिशाला स्मारक, स्मृति भवन, सहे-सहन करना; वार-आघात ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी के ‘काव्यखण्ड’ के झाँसी की रानी की समाधि पर शीर्षक से उधृत है। यह सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित त्रिधारा से लिया गया है।
प्रसंग- इन पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता एवं अत्यन्त साहस के साथ अंग्रेजों से किए गए युद्ध का वर्णन है, जिसमें उन्हें वीरगति प्राप्त हुई थी।
व्याख्या- कवयित्री रानी लक्ष्मीबाई को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करती हुई कहती है कि इसी समाधि के आस-पास वह वीर महिला टूटी हुई विजयमाला के समान बिखर गई थीं अर्थात् उनकी विजयरूपी माला टूट कर यहीं बिखर गई थी। वे इस विजयमाला को और आगे न ले जा सकीं, क्योंकि वे अंग्रेजों से युद्ध करते-करते शहीद हो गई थीं।
रानी की अस्थियाँ इसी समाधि में संचित हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को उनकी वीरता के स्मृति चिह्न के रूप में याद दिलाएँगी तथा देश के लिए कुछ कर गुज़रने की प्रेरणा देंगी।
कवयित्री रानी द्वारा अंग्रेजों के साथ किए गए युद्ध का वर्णन करती हुई कहती हैं कि रानी लक्ष्मीबाई अपने जीवन के अन्त तक अंग्रेज़ सैनिक की तलवारों के वार-पर-वार सहती रहीं। जिस तरह यज्ञ में हवन सामग्री की आहुति पड़ते ही ज्वाला प्रज्वलित हो उठती है, उसी प्रकार रानी के इस बलिदान ने स्वतन्त्रता की वेदी पर आहुति का काम किया। लोगों में इससे स्वतन्त्रता पाने की लालसा भड़क उठी और वे क्रान्ति के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो उठे। रानी के युद्धभूमि में इस प्रकार वीरगति पाने से उनका यश चारों ओर फैल गया।
काव्य सौन्दर्य–
प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री ने रानी द्वारा किए गए वीरता एवं साहसपूर्ण युद्ध का वर्णन किया है, जिसमें रानी शहीद हो गईं।
- भाषा- सरल, सुबोध खड़ी-बोली
- शैली- ओजपूर्ण आख्यानक गीति
- गुण– ओज
- रस- वीर
- शब्द-शक्ति- अभिधा
- छन्द– तुकान्त-मुक्त
- अलंकार–
- रूपक अलंकार- रानी की अस्थियों को फूल रूपी अस्थियों कहा गया है, जिस कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
पद्यांश 2
बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की, भस्म यथा सोने से।।
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की, आशा की चिनगारी।।
शब्दार्थ- मान-सम्मान, रण युद्ध; मूल्यवती मूल्यवान, निहित रखी हुई।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी के ‘काव्यखण्ड’ के झाँसी की रानी की समाधि पर शीर्षक से उधृत है। यह सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित त्रिधारा से लिया गया है।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान का वर्णन करते हुए कवयित्री कहती हैं कि देश की आजादी की रक्षा हेतु अपना बलिदान देने से रानी का गौरव और भी बढ़ गया है।
व्याख्या- कवयित्री कहती है कि युद्धभूमि से पलायन करना कायरों की निशानी है तथा युद्ध करते हुए वीरगति पाना वीरों की निशानी है। कवयित्री इन पंक्तियों में कह रही हैं कि स्वतन्त्रता की रक्षा करते हुए वीरगति पाने से वीरों का मान बढ़ जाता है। रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई, इसलिए उनका मान भी ऐसे बढ़ गया, जैसे सोने से भी अधिक मूल्यवान उसकी भस्म होती है।
रानी ने भी अपना बलिदान देकर हम भारतीयों में स्वतन्त्रता की ज्योति जलाई है, इसलिए उनकी यह समाधि हमें बहुत प्रिय है। इस समाधि में स्वतन्त्रता रूपी आशा की चिंगारी छिपी हुई है, जो अग्नि के रूप में फैलकर हम भारतीयों को भविष्य में अन्य किसी की दासता से मुक्त होने के लिए प्रेरित करती रहेगी। यह समाधि हम भारतीयों के अन्दर की स्वतन्त्रता की ज्योति को कभी बुझने नहीं देगी तथा आजादी न मिलने तक हमें निरन्तर इसके लिए संघर्ष करने की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी।
काव्य सौन्दर्य-
प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री ने रानी की समाधि को अधिक प्रिय होने तथा देश के लिए बलिदान देने पर उनकी महत्ता बढ़ने का भाव व्यक्त किया है।
- भाषा– सरल-सुबोध खड़ी-बोली
- शैली- ओजपूर्ण आख्यानक गीति
- गुण-ओज एवं प्रसाद
- छन्द- तुकान्त-मुक्त.
- रस- वीर
- शब्द-शक्ति- अभिधा
- अलंकार-
- रूपक अलंकार– ‘आशा की चिनगारी’ में आशा रूपी चिंगारी की बात की गई, जिस कारण यहाँ रूपक अलंकार है।
पद्यांश 3-
इससे भी सुन्दर समाधियाँ,
हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में,
क्षुद्र जन्तु ही गाते।।
पर कवियों की अमर गिरा में,
इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है,
वीरों की बानी।
शब्दार्थ– निशीथ रात्रिः क्षुद्र जन्तु-झींगुर, छोटे-छोटे प्राणी: गिरा-वाणी; अमिट-कभी न मिटने वाला; स्नेह-प्रेम; बानी-वाणी।
सन्दर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी के ‘काव्यखण्ड’ के झाँसी की रानी की समाधि पर शीर्षक से उधृत है। यह सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित त्रिधारा से लिया गया है।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने रानी की समाधि की अन्य समाधियों से तुलना करते हुए, उनकी समाधि को श्रेष्ठ बताया है।
व्याख्या– कवयित्री कहती हैं कि हमारे देश में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि से सुन्दर अनेक समाधियाँ देखने को मिलती हैं, परन्तु उन समाधियों का महत्त्व इस समाधि की तरह नहीं है। उन समाधियों पर क्षुद्र जन्तु, जैसे-कीड़े-मकोड़े, छोटे-छोटे जीव-जन्तु; जैसे-झींगुर और छिपकलियाँ आदि ही रात में गाते हैं। तात्पर्य यह है कि
वे समाधियाँ गौरव-गान करने के लायक नहीं हैं, वे उपेक्षित हैं, तभी तो उन पर छोटे-छोटे जीव-जन्तु निवास करते हैं। रानी लक्ष्मीबाई की समाधि गौरव से परिपूर्ण एक ऐसी समाधि है, जिसकी अमिट कहानी कवियों की अमर वाणी से सदा गाई जाती रहेगी। इस देश के लोग स्नेह और श्रद्धा से वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की अमर कथा का गुणगान करते हैं।
काव्य सौन्दर्य–
प्रस्तुत पद्यांश में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि को अन्य समाधियों से श्रेष्ठ बताया गया है।
- भाषा- सरल, साहित्यिक खड़ी-बोली
- शैली- ओजपूर्ण आख्यानक गीति
- गुण– ओज
- छन्द- तुकान्त-मुक्त
- रस- वीर
- शब्द-शक्ति- व्यंजना
- अलंकार-
- अनुप्रास अलंकार- ‘सुन्दर समाधियाँ’ और ‘अमर गिरा’ में ‘स’ और ‘र’ वर्ण की पुनरावृत्ति होने से यहाँ अनुप्रास अलंकार है।