झाँसी की रानी की समाधि पर: सुभद्रा कुमारी चौहान-पद्यांशों की सन्दर्भ-सहित व्याख्या | Class 10

सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय

यहीं कहीं पर बिखर गई वह,
भग्न विजयमाला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं,
है यह स्मृतिशाला-सी।।
सहे वार पर वार अंत तक,
लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर,
चमक उठी ज्वाला-सी।।
बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की, भस्म यथा सोने से।।
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की, आशा की चिनगारी।।
इससे भी सुन्दर समाधियाँ,
हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में,
क्षुद्र जन्तु ही गाते।।
पर कवियों की अमर गिरा में,
इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है,
वीरों की बानी।

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