संकेत बिन्दु – प्रस्तावना, आरम्भिक जीवन-परिचय, काव्यगत विशेषताएँ, उपसंहार
प्रस्तावना
दुनिया में कई प्रसिद्ध साहित्यकार हुए हैं, जिनकी अपनी विशेषताएँ हैं। अगर मुझसे पूछा जाए कि मेरा प्रिय साहित्यकार कौन है, तो मेरा उत्तर होगा महाकवि तुलसीदास। तुलसीदास का काव्य भक्ति-भावना से भरा हुआ है, और उनके द्वारा रचित काव्य आज भी भारतीय जनमानस में जीवित है। उनका लेखन आज भी हमें मार्गदर्शन करता है, इसलिए वे मेरे प्रिय साहित्यकार हैं।
आरंभिक जीवन परिचय
तुलसीदास के बारे में सही जानकारी मिलना मुश्किल है, जैसे प्राचीन समय के कवियों और लेखकों के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती। फिर भी माना जाता है कि तुलसीदास का जन्म 1599 ई. में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे था, और माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि इनके माता-पिता ने इन्हें अशुभ मानकर जन्म के तुरंत बाद ही त्याग दिया था। इसी कारण तुलसीदास का बचपन बहुत ही कठिनाइयों में बीता।
तुलसीदास ने अपनी शिक्षा गुरु नरहरिदास से प्राप्त की। उनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ था, लेकिन विवाह के बाद एक कटु वाक्य ने उन्हें राम-भक्ति की ओर मोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य राम-भक्ति को बना लिया। तुलसीदास ने अपने जीवन में 37 ग्रंथों की रचना की, लेकिन इनमें से 12 ग्रंथ ही प्रामाणिक माने जाते हैं। उनका देहावसान 1680 ई. में हुआ।
काव्यगत विशेषताएँ
तुलसीदास का जन्म उस समय हुआ था, जब हिन्दू समाज पर मुसलमान शासकों का अत्याचार था। समाज में नैतिक गिरावट आ रही थी और लोग संस्कारहीन हो रहे थे। ऐसे समय में समाज को एक आदर्श की आवश्यकता थी। इस आदर्श को स्थापित करने का भार तुलसीदास ने अपने ऊपर लिया और रामचरितमानस जैसी महान काव्य रचना की।
रामचरितमानस के माध्यम से तुलसीदास ने भगवान श्रीराम का चरित्र चित्रित किया। यह काव्य भक्ति-भावना से ओत-प्रोत है, लेकिन इसके माध्यम से तुलसीदास ने आदर्श समाज और सही आचरण का संदेश दिया। इसके अलावा, उन्होंने कवितावली, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका, जानकीमंगल, रामलला नहछू, बरवै, रामायण वैराग्य सन्दीपनी और पार्वतीमंगल जैसी रचनाएँ भी कीं। लेकिन तुलसीदास की प्रसिद्धि का मुख्य कारण रामचरितमानस ही है।
तुलसीदास एक सच्चे लोकनायक थे। उन्होंने कभी किसी विशेष सम्प्रदाय या मत का विरोध नहीं किया, बल्कि सभी को समान रूप से सम्मान दिया। उन्होंने निर्गुण और सगुण दोनों रूपों की स्तुति की और अपने काव्य में कर्म, ज्ञान, और भक्ति की प्रेरणा दी। रामचरितमानस के माध्यम से उन्होंने आदर्श भारत की कल्पना की, जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सफल रही।
साहित्यिक दृष्टि से तुलसीदास का काव्य अद्वितीय है। उनके काव्य में सभी रसों का समावेश है। तुलसीदास को संस्कृत के अलावा राजस्थानी, भोजपुरी, बुंदेलखंडी, प्राकृत, अवधी, ब्रज और अरवी भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था, जिसका प्रभाव उनके काव्य में साफ दिखाई देता है। उन्होंने विभिन्न छंदों में रचनाएँ कीं और अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन किया। तुलसीदास ने प्रबंध और मुक्त दोनों प्रकार के काव्य रचनाएँ कीं।
कवि जयशंकर प्रसाद ने तुलसीदास की प्रशंसा में लिखा था:
“प्रभु का निर्भय सेवक था, स्वामी था अपना, जाग चुका था, जग था जिसके आगे सपना। प्रबल प्रचारक था जो उस प्रभु की प्रभुता का, अनुभव था सम्पूर्ण जिसे उसकी विभुता का। राम छोड़कर और की, जिसने कभी न आस की, रामचरितमानस-कमल, जय हो तुलसीदास की।”
उपसंहार
तुलसीदास जी अपनी सभी विशेषताओं के कारण हिन्दी साहित्य के अमर कवि हैं। उनका काव्य न केवल उनके युग के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों और पूरे संसार के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रदान करता है। इसलिए वे मेरे प्रिय कवि हैं। उनके काव्य का प्रभाव आज भी हम पर है और हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
अंत में, तुलसीदास के बारे में यह कहा जा सकता है:
“कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”
(तुलसीदास ने कविता को अपने जीवन का उद्देश्य नहीं बनाया, बल्कि कविता ने तुलसीदास की कला को महान बना दिया।)