तुमुल खण्डकाव्य
(वाराणसी, इटावा, बिजनौर, जालौन एवं बदायूँ जिलों के लिए)
प्रश्न 1. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की कथा/कथावस्तु/कथानक संक्षेप में अपनी भाषा/अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के रचयिता ‘हल्दीघाटी’ के प्रणेता श्यामनारायण पाण्डेय हैं। सम्पूर्ण खण्डकाव्य को पन्द्रह सर्गों में विभाजित किया गया है। इनका क्रम इस प्रकार है-ईश स्तवन, दशरथ-पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल, मेघनाद, मकराक्ष-वध, रावण का आदेश, मेघनाद-प्रतिज्ञा, मेघनाद का अभियान, युद्धासन्न सौमित्र, लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्च्छा, हनुमान द्वारा उपदेश, उन्मन राम, राम विलाप और सौमित्र का उपचार, विभीषण की मन्त्रणा, मख-विध्वंस और मेघनाद-वध तथा राम की वन्दना।
इस खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग में ईश-वन्दना करने के पश्चात् कवि ने दूसरे सर्ग में राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न के जन्म का वर्णन किया है और महाराज दशरथ की कीर्ति भी वर्णित की है। तीसरे सर्ग में मेघनाद के बल, बुद्धि, रण-कौशल आदि का वर्णन किया गया है। उसने युवावस्था में ही इन्द्र के पुत्र जयन्त को हराकर ख्याति पाई थी। उसके सामने युद्ध में कोई भी नहीं ठहर पाता था। चतुर्थ सर्ग में श्रीराम द्वारा मकराक्ष वध एवं उसकी मृत्यु से शोक संतप्त रावण की मनोदशा का वर्णन है। मकराक्ष की मृत्यु से दुःखी रावण अपने ज्येष्ठ पुत्र मेघनाद को युद्ध के लिए भेजने का निर्णय लेता है, क्योंकि मेघनाद को वे अपने समान ही पराक्रमी मानता था। पंचम सर्ग में रावण मेघनाद को युद्ध के लिए कूच करने का आदेश देता है और उसके शौर्य की प्रशंसा करते हुए मकराक्ष वध का प्रतिशोध लेने के लिए कहता है। पिता की आज्ञा मानते हुए षष्ठ सर्ग में मेघनाद युद्धभूमि में जाने के लिए तैयार हो जाता है। वह प्रतिज्ञा करता है कि यदि आज के संग्राम में विजयी बनकर नहीं लौटा तो फिर कभी युद्ध नहीं करेगा। सप्तम सर्ग में मेघनाद युद्ध के लिए प्रस्थान करता है। वह अपनी हारी हुई सेना में नवीन उत्साह भरता है और भीषण रण के लिए तैयार हो जाता है।
अष्टम सर्ग में सौमित्र भी मेघनाद की ललकार सुनकर श्रीराम से युद्ध करने की अनुमति लेते हैं, परन्तु जब रणभूमि में उनका मेघनाद से सामना होता है, तो उस वीर की प्रशंसा करने से वे स्वयं को रोक नहीं पाते और उससे युद्ध न कर पाने की इच्छा व्यक्त करते हैं, परन्तु नवम सर्ग में मेघनाद उनसे युद्ध की माँग करता है। वे युद्धोचित सत्कार के पश्चात् लक्ष्मण को युद्ध करने के लिए ललकारता है। इस पर लक्ष्मण कुपित होकर युद्ध करना प्रारम्भ करते हैं। दोनों वीरों में काफी समय तक भयानक संग्राम होता है। दोनों पक्ष की सेनाएँ इस भीषण युद्ध को देखकर संशय में पड़ जाती हैं कि किसकी विजय होगी। अन्त में लक्ष्मण की शक्ति का ह्रास होते देख मेघनाद उन पर शक्ति छोड़ता है, जिसके लगते ही लक्ष्मण मूच्छित होकर गिर पड़ते हैं।
दशम सर्ग में हनुमान वानर सेना को उपदेश देते हैं कि वे लक्ष्मण की दशा देखकर अपना धीरज न खोएँ, क्योंकि इससे शत्रु को उनका उपहास करने का अवसर मिल जाएगा। एकादश सर्ग में राम की उन्मन दशा वर्णित है। उन्हें रह-रहकर किसी अनिष्ट की आशंका होती है, जिससे उनका हृदय काँप उठता है। द्वादश सर्ग में राम मूच्छित लक्ष्मण को देखकर तरह-तरह से विलाप करते हैं। लक्ष्मण उनके प्राणों का आधार थे, इसलिए उनकी ऐसी दशा देखकर राम की स्थिति अत्यन्त कारुणिक हो जाती है। तब मारुति जाम्बवन्त के आदेश से लंका के वैद्यराज सुषेन को लेकर आते हैं तथा उनके द्वारा बताई हुई संजीवनी बूटी लाते हैं, जिससे उन्होंने लक्ष्मण का उपचार किया। उपचार के उपरान्त लक्ष्मण स्वस्थ होकर उठ बैठे और उनकी सेना हर्षित हो उठी। त्रयोदश सर्ग में विभीषण राम से मन्त्रणा करते हैं कि मेघनाद देवी निकुम्भिला का यज्ञ कर रहा है। यदि उसका यह यज्ञ पूरा हो गया तो वह अजेय हो जाएगा। इसलिए उस पर अभी आक्रमण कर देना चाहिए। राम उससे सहमत होते हुए लक्ष्मण को युद्ध की आज्ञा दे देते हैं। चतुर्दश सर्ग में लक्ष्मण द्वारा मेघनाद का वध करने का वर्णन है। लक्ष्मण उसका यज्ञ पूर्ण नहीं होने देते और यज्ञशाला में ही उसका अन्त कर देते हैं। यद्यपि क्रोधित मेघनाद की बातें सुनकर एक बार लक्ष्मण उस पर प्रहार करने से पूर्व सोच में पड़ जाते हैं, परन्तु विभीषण के पुनः कहने पर वे उसका वध कर देते हैं। अन्तिम सर्ग में राम, लक्ष्मण की विजय को अपूर्व बताकर उसका अभिनन्दन करते हैं, परन्तु लक्ष्मण अपनी जीत का श्रेय उन्हीं को देते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। यहाँ इस खण्डकाव्य का अन्त होता है।
इस खण्डकाव्य का कथानक सरल रेखा की तरह लक्ष्योन्मुख है। इसका प्रमुख उद्देश्य लक्ष्मण-मेघनाद के बीच हुए युद्ध का चित्रण करना है। यद्यपि खण्डकाव्य का कथानक संक्षिप्त है और संवादों की प्रधानता है, परन्तु फिर भी काव्य कहीं भी शिथिल नहीं पड़ता। कथासूत्र कहीं भी धीमा नहीं पड़ता और घटनाओं के तेज़ी से घटने के कारण काव्य में गतिशीलता है, जिससे एक काव्य-लय उत्पन्न हो गई है। कवि का लेखन एवं कथा संगठन प्रशंसनीय हैं, क्योंकि रामायण के इस महत्त्वपूर्ण अंश को सरलतापूर्वक संक्षिप्त रूप से काव्यबद्ध करना सरल नहीं है। अन्त में कहा जा सकता है कि यह खण्डकाव्य अत्यन्त रोचक, ओज गुण से परिपूर्ण, प्रवाहमान तथा सशक्त कथानक वाला है, जो पाठकों को निराश नहीं करता।
प्रश्न 2. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए।
प्रथम सर्ग
उत्तर-‘तुमुल’ खण्डकाव्यं के प्रथम सर्ग का नाम ‘ईश स्तवन’ है। इस सर्ग में ईश्वर की वन्दना की गई है तथा उसे सृष्टि के कण-कण में विद्यमान बताया गया है। कवि ईश्वर को नभ, तारों के प्रकाश, रवि, चाँद, वृक्षों, पवन, अग्नि, सागर, फूलों आदि में देखता है और उसे प्रणाम करता है। यह सर्ग मंगलाचरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 3. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु का सारांश संक्षेप में लिखिए।
द्वितीय सर्ग
उत्तर- ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का नाम ‘दशरथ पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल’ है। इसकी कथावस्तु इस प्रकार है
सन्तानहीन राजा दशरथ का दुःख दूर करने तथा सज्जनों को अत्याचार एवं अन्याय से बचाने के लिए इक्ष्वाकु कुल में राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। इनकी तेज तथा मनोहर छवि से सभी हर्षित होते थे। दशरथ सहित तीनों माताएँ राजकुमारों की बाल-क्रीड़ाएँ देखकर परम सुख पाती थीं। लक्ष्मण की माता देवी सुमित्रा थी।
दशरथ इक्ष्वाकु वंश के परम-प्रतापी राजा थे। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी कीर्ति की ध्वजा फहरा रही थी। वे कर्त्तव्यपरायण होने के साथ-साथ दानवीर भी थे और युद्धविद्या में भी प्रवीण थे। युद्ध में महाराज दशरथ ने सदा विजय प्राप्त की थी। वे परम उदार थे। सच्चरित्र दशरथ नीति-निपुण, गुणी तथा सभी विद्याओ के ज्ञाता थे। ऋषि-मुनि तथा साधारण जन उनके राज में सुख से रहते थे। ऐसे गुणवान राजा के पुत्र भी गुणी थे और वे शिक्षा ग्रहण कर अपने चरित्र को उज्ज्वल कर रहे थे।
प्रश्न 4. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का कथानक लिखिए।
तृतीय सर्ग
उत्तर- ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग (मेघनाद) में रावण के सबसे बड़े और पराक्रमी पुत्र मेघनाद का वर्णन है। इसका कथानक इस प्रकार है
मेघनाद राक्षसों के राजा रावण का पुत्र था। उसका तेज सूर्य के समान था, साथ ही वह बहुत पराक्रमी और रणधीर था। उसने युवावस्था में इद्र के पुत्र जयन्त को युद्ध में पराजित किया था तथा सर्पराज को हराकर फणी-समाज को भी अपने अधीन कर लिया था। उसके प्रताप से धरती के सभी राजा डरते थे। उसके सामने आने से सभी घबराते थे। अब तक उसके समक्ष युद्ध में कोई भी ठहर नहीं पाया था। उसके पराक्रम के सामने सभी नतमस्तक हो जाते थे।
प्रश्न 5. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य में मकराक्ष वध के परिणामस्वरूप शोकग्रस्त रावण की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर- ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के चतुर्थ और पंचम सर्ग में मकराक्ष वध के परिणामस्वरूप शोकग्रस्त रावण की मनोदशा का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है
चतुर्थ सर्ग (मकराक्ष-वध)
इस सर्ग में राम द्वारा मकराक्ष वध का वर्णन किया गया है। श्रीराम ने अपने तीखे वाणों के द्वारा राक्षसों का संहार किया। उनके सामने राक्षस-पुत्र मकराक्ष भी टिक नहीं पाया और वह युद्ध में उनके हाथों मारा गया। इस घटनाक्रम को सुनकर दशानन रावण उनसे भयभीत हो गया और दुःख से उसका हृदय भर आया। मकराक्ष को याद करते हुए दुःख और शोक से उसका मुख पीला पड़ गया और आँखों से आँसू बहने लगे। उसने मकराक्ष की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए मेघनाद को युद्ध में भेजने की योजना बनाई, क्योंकि मेघनाद उसके समान ही परमवीर था। मेघनाद ने अनेक राजाओं के साथ ही देवराज इन्द्र को भी पराजित किया था और ‘इन्द्रजीत’ उपनाम पाया था। युद्ध-क्षेत्र में वह काल का भी काल दिखाई देता था।
प्रश्न 6. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के पंचम सर्ग का कथानक लिखिए।
पंचम सर्ग (रावण का आदेश)
उत्तर– मेघनाद के प्रताप के सामने रावण कुछ पल के लिए मकराक्ष-वध की व्यथा भी भूल गया था। उसने निश्चय कर लिया था कि अब मेघनाद को ही युद्ध के लिए भेजना उपयुक्त रहेगा। मकराक्ष-वध को सुनकर स्वयं मेघनाद भी राम-लक्ष्मण से युद्ध के लिए बहुत उतावला था। वह रावण से मिलने आया और उसके चरण स्पर्श किए। उसका अनुकूल व्यवहार देखकर रावण ने अपने मन की बात उसे कह सुनाई। उसने कहा, ‘हे पुत्र! तुम्हारे रहते हुए राज्य की कैसी दशा हो गई है। सब ओर अस्थिरता छाई हुई है, चारों ओर हलचल मची हुई है। न जाने मेरे नगर में यह परिस्थिति क्यों उत्पन्न हुई है? परन्तु हे पुत्र ! जो भी हो, अब हम युद्ध से पीछे नहीं हट सकते। अब राम से बदला लेना ही धर्म हो गया है। अतः मेरी आज्ञा है कि ‘तुम युद्ध क्षेत्र में जाओ और लक्ष्मण को मारकर मेरे हृदय के विषाद को समाप्त करो।’ आगे रावण मेघनाद के बल और वीरता का गुणगान करता है। वह कहता है कि मेघनाद तुम्हारी शक्तियों का अन्त नहीं है। घमासान युद्ध में भी तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होता। युद्ध-क्षेत्र में तुम्हारे सामने आने का साहस किसी में नहीं है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम युद्ध में शत्रु दल को अवश्य पराजित करोगे और राम से मकराक्ष-वध का प्रतिशोध लोगे। अतः अब तुम्हें शीघ्र ही युद्ध के लिए प्रस्थान करना चाहिए। कि उति
प्रश्न 7. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘मेघनाद-प्रतिज्ञा’ का वर्णन कीजिए।
अथवा ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग का कथानक/कथावस्तु लिखिए।
षष्ठ सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के पष्ठ सर्ग ‘मेघनाद की प्रतिज्ञा’ में मेघनाद द्वारा की गई प्रतिज्ञा का वर्णन है। इस सर्ग का सारांश निम्न है-
पिता से युद्ध की आज्ञा प्राप्त कर मेघनाद ने भीषण गर्जना की। उसकी ललकार से रावण का स्वर्ण-महल भी कॉप गया। वहाँ बैठे सभी वीर उत्साह से एकटक उसे देखने लगे। यह देखकर रावण का हृदय भी विजय की आशा से सगर्व फूल गया। पिता को देखकर मेघनाद ने प्रतिज्ञा की- हे पिताजी ! मेरे होते हुए आपको शोक करने की आवश्यकता नहीं। यदि मैं आपका कष्ट नहीं हर पाया तो फिर कभी धनुष धारण नहीं करूँगा। उसने कहा-
“मैं राम के सम्मुख हो लहूँगा, जाके सभी का शिर काट दूँगा। सौमित्र का भी वल देख लूँगा, लंकापुरी का दुःख मैं हरूंगा।।”
मेघनाद आगे कहता है कि वे (राम-लक्ष्मण) झूठे अभिमान से भरे हुए हैं, लगता है अभी तक उनका सामना वीरों से नहीं हुआ है। मैं रणक्षेत्र में रक्त की धारा बहा दूँगा। मैं आप से बस इतना ही कहता हूँ कि संग्राम में मैं विजयी बनकर ही लौटूंगा। मैं सिंह की भाँति भयंकर युद्ध करूँगा और अपने शत्रुओं का नाश करूंगा। वे चाहे आकाश में वास करें या पाताल में शरण लें, वे कहीं भी मुझसे अपने प्राणों की रक्षा नहीं कर पाएँगे। अन्त में वह रावण को वचन देता है “लेंगे न देख मम नेत्र अड़ा किसी को, दूँगा सगर्व रहने न खड़ा किसी को। संग्राम में यदि न मैं विजयी बनूँगा, तो युद्ध का फिर न नाम कदापि लूँगा।।”
प्रश्न 8. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘मेघनाद अभियान’ सर्ग की कथा लिखिए।
सप्तम सर्ग
उत्तर- ‘तुमुल’ खण्डकाव्य में वर्णित सप्तम सर्ग ‘मेघनाद का अभियान’ का कथासार निम्नलिखित है-
अपने पिता रावण के सामने प्रतिज्ञा कर मेघनाद ने उसे धीरज बंधाया, परन्तु पिता का दुःख टेखकर स्वयं क्रोध से जलने लगा। वह युद्ध के लिए तैयार होकर रणभूमि में जाने के लिए सजग हो गया। उसके क्रोध से समस्त देवता भी काँपने लगे। ऐसा लग रहा था मानो उसके हाथों सभी की मृत्यु आ गई है। उसने अपने तेज और क्रोध से सभी को डरा दिया था। उसका क्रोध प्रचण्ड था।
“उस भाँति उसका क्रोध द्वारा, लाल मुख था हो गया। मानो दशानन-लाल का मुख, काल-मुख था हो गया।।”
राम को पराजित करने की बात सोचता हुआ वह अपनी सेना का अवलोकन करने गया। एक बार तो उसके सेनापति भी उसके क्रोध से डर गए और काँपते हुए उसके क्रोध का कारण पूछा-
“क्या क्रोध करने का महोदय, हेतु है बतलाइए। मैं जानता कुछ भी नहीं हूँ, इसलिए बतलाइए।।”
अपने सैनिकों में उत्साह पाकर मेघनाद सेनापति को रथ सजवाने एवं युद्ध के बाजे बजाने के लिए निर्देश देता है। एक ओर लंका के वीर विजय की आशा कर रहे थे, तो दूसरी ओर देव लोक मेघनाद की वीरता का अनुमान लगाते हुए श्रीराम एवं उनकी सेना के अनिष्ट के बारे में सोच-सोचकर घबरा रहा था। युद्ध के लिए मेघनाद को जाते हुए देखकर देवताओं के मुख भय से पीले पड़ गए।
“कैसे बचेंगे राम’ कह, चिन्ताग्नि से जलने लगे।
भयभीत होकर सुर परस्पर, बात यों करने लगे।।”
सभी देवता उसकी वीरता के बारे में जानते हैं। अतः वे कहने लगे कि मेघनाद तो काल को भी मारने में समर्थ है। लगता है आज भूमि वीरों से विहीन हो जाएगी। ऐसा लगता है कि आज तो वह राम को जीत ही लेगा।
जब वह बाण छोड़ता है तो सूर्य और चन्द्रमा भी धीरज त्याग देते हैं। यद्यपि रघुनाथ बलशाली हैं, परन्तु आज मेघनाद सिंह के समान लड़ेगा। देवतागण परस्पर ये बातें ही कर रहे थे कि मेघनाद ने युद्धक्षेत्र में क्रोध से भरकर सिंह के समान भयानक गर्जना की।
प्रश्न 9. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘युद्धासन्न सौमित्र’ खण्ड की कथा संक्षेप में लिखिए।
अष्टम सर्ग (युद्धासन्न सौमित्र)
उत्तर इस सर्ग में राम जी से आज्ञा पाकर लक्ष्मण युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। मेघनाद की रण-गर्जना सुनकर शत्रु सेना भी भयंकर नाद करने लगी। गुद्धातुर लक्ष्मण को देखकर हनुमान आदि वीर भी युद्ध हेतु तत्पर हो गए। लक्ष्मण ने क्षण भर में ही मेघनाद के सम्मुख मोर्चा ले लिया। दोनों वीरों में भीत्रण युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस युद्ध में कौन विजयी होगा, इसका अनुमान नहीं किया जा सकता था। मेघनाद के उन्नत ललाट, लम्बी भुजाओं और वीरवेश को देखकर स्वयं लक्ष्मण ने भी उनकी प्रशंसा की। लक्ष्मण ने कहा कि तुम्हें अपने सम्मुख देखकर भी युद्ध करने की इच्छा नहीं होती। मुझे चिन्ता है कि मैं अपने बाणों से तेरी छाती को कैसे छलनी करूँगा? मेघनाद, लक्ष्मण के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर उनकी उदारता के विषय में विचार करने लगा। यद्यपि वह लक्ष्मण के ज्ञान की गरिमा को समझता है, फिर भी शत्रु समझकर उनकी मधुर वाणी के जाल में उलझना नहीं चाहता और युद्ध करने का निश्चय करता है।
प्रश्न 10. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नवम सर्ग का वर्णन कीजिए।
नवम सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नवम सर्ग का नाम ‘लक्ष्मण मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्च्छा’ है। इसमें दोनों के मध्य हुए युद्ध एवं उसके परिणाम का वर्णन इस प्रकार है
लक्ष्मण द्वारा प्रशंसा सुनकर मेघनाद गर्वित हो उठता है, परन्तु कुछ देर सोचकर विनयपूर्वक कहता है कि आपके वचन सत्य हैं। आप भी रूपवान होने के साथ-साथ बुद्धिमान, अत्यन्त वीर, पराक्रमी, नीतिज्ञ, वेदज्ञानी, मर्मज्ञ तथा सर्वज्ञ है, किन्तु आप भी सुन लीजिए कि मैं आज यहाँ अपने पिता के सम्मुख प्रतिज्ञा करके आया हूँ कि मैं अपने शत्रुओं को युद्धभूमि में सदा-सदा के लिए सुला दूँगा। चाहे आपकी इच्छा कुछ भी हो, परन्तु मैं आज अपने पिता की इच्छा पूर्ण करने के लिए आया हूँ। मैं युद्ध किए बिना यहाँ से जाऊँगा नहीं। अतः आप भी युद्ध करने के लिए तैयार हो जाइए।
मेघनाद के वचन सुनकर लक्ष्मण को क्रोध आ गया और कहने लगे-
“मैंने हँसी की और यह, बनता बली वरवीर है। यह नीच अपने आप को, क्या समझता रणधीर है।।”
लक्ष्मण कहने लगते हैं कि पता नहीं क्या सोचकर मैंने अपने हृदय के भाव तुम्हें बता दिए, परन्तु सत्य यही है कि जिस प्रकार सर्प दूध पीने पर भी अपने विष को नहीं त्यागते, ठीक उसी प्रकार मधुर वाणी सुनकर भी दुष्ट और खल नहीं सुधरते। यह कहकर सौमित्र युद्ध के लिए तत्पर हो गए और शत्रु-पक्ष पर अपने तीखे वाणों से प्रहार करने लगे। उनके रण-कौशल को देखकर मेघनाद की सेना का उत्साह मन्द पड़ गया और वे पीछे हटने लगी। यह देखकर मेघनाद अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने लगा उसने अपने सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि शत्रु से डरकर रण त्यागना कायरता है। तुम्हारी इस कायरता पर धिक्कार है। मेरे युद्ध-कौशल को भी देखो और शत्रुओं से वीरतापूर्वक युद्ध करो। मैं शीघ्र ही शत्रुओं को परास्त कर दूँगा-
“पूरा करूंगा तात से जो बात मैने है कही। लड़ते हुए अरि को धराशायी करूँगा शीघ्र ही।।”
मेघनाद का उपदेश सुनकर उसकी सेना में पुनः उत्साह का संचार हुआ और वह पहले की तरह शत्रु से लड़ने लगी। अब मेघनाद ने भीषण युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया। वह कभी आकाश में जाकर तो कभी धरती पर आकर वानर-सेना का संहार करने लगा। मेघनाद-लक्ष्मण में भयंकर संग्राम होने लगा। जिस प्रकार दो सिंह आपस में लड़ते हैं, वैसे ही दोनों वीर लड़ने लगे। मेघनाद धीरे-धीरे लक्ष्मण पर हावी होने लगा। लक्ष्मण की सेना भी मेघनाद के प्रताप से घबराने लगी। दोनों वीर रक्त से लथपथ थे।
लक्ष्मण की शक्ति मन्द पड़ते हुए देखकर मेघनाद ने शक्ति सन्धान किया और लक्ष्मण पर छोड़ दी। शक्ति लगते ही लक्ष्मण पलभर में मूच्छित होकर धरती पर गिर पड़े। लक्ष्मण की यह दशा देखकर उनकी सेना में भीषण विषाद छा गया। सारा संसार भी मेघनाद की शक्ति देखकर अकुला गया। इधर मेघनाद लक्ष्मण को पराजित करके गर्व से उन्मत्त होकर सिंह के समान दहाड़ता हुआ लंका की ओर चल पड़ा।
प्रश्न 11. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘हनुमान द्वारा उपदेश’ सर्ग का सारांश लिखिए।
दशम सर्ग
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के दशम सर्ग (हनुमान द्वारा उपदेश) में लक्ष्मण-मूर्च्छा के पश्चात् वानर सेना के व्याकुल होने का वर्णन है। इसका सारांश निम्नलिखित है-
लक्ष्मण के मूच्छित होते ही वानर सेना शोक से व्याकुल हो उठी। वे तरह-तरह से विलाप करने लगे और अपनी शक्ति खोने लगे। तब हनुमान ने परिस्थिति को सँभालते हुए सैनिकों को ढाँढस बंधाया और उपदेश देने लगे। हनुमानजी कहते हैं कि इस समय चिन्ता करना व्यर्थ है।
तुम सब वीर हो, अतः वीर बनकर अपने हृदय की वेदना दूर करो। हम सभी श्रीराम के उपासक हैं, जो साक्षात् भगवान है। उनकी समता कोई नहीं कर सकता। काल भी उनके क्रोध को देखकर व्याकुल हो जाता है। वे सदा शान्ति स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। लक्ष्मण उनके प्राणों का आधार हैं। तुम्हे क्या लगता है कि जो लक्ष्मण रघुनाथ के हृदय में वास करते हैं, वे सदा के लिए सो गए? तुम्हारा यह सोचना एवं आँसू बहाना व्यर्थ है। अतः घबराओ नहीं और शान्त हो जाओ। जो धीर-वीर होते है, उन्हें इस प्रकार रण में शोक करना शोभा नहीं देता। तुम्हारी ऐसी दशा देखकर शत्रु तुम्हारा उपहास करेंगे। हनुमान के ये वचन सुनकर उनके सैनिक कुछ संभले और शोकरहित होने लगे। राम अपनी कुटी में बैठे हुए थे। अचानक ही उनका मन चिन्तित हो गया।
प्रश्न 12. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘राम-विलाप और सौमित्र का उपचार’ सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।
उत्तर ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वादश सर्ग ‘राम-विलाप और सौमित्र का उपचार’ का सारांश निम्न है
लक्ष्मण को मूच्छित देखकर राम जैसे धीर-वीर पुरुष भी शोक-सागर में डूब जाते हैं। वे तरह-तरह से विलाप करते हुए कहते हैं कि तुम्हारी यह दशा मुझसे देखी नहीं जाती। मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता। तुम्हारे बिना में अयोध्या वापस कैसे जाऊँगा? तुम तो योगी हो, फिर आज नयन मूंदे क्यों पड़े हो? हे धनुर्धर ! तुम हाथ में धनुष लेकर फिर से उठ जाओ। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता, एक बार अपने नेत्रों को खोलो। रघुनाथ की यह कारुणिक दशा देखकर जाम्बवन्त हनुमान को परामर्श देते हैं कि तुम शीघ्र जाकर लंका से वैद्यराज सुपेन को. ले आओ।
हनुमान बिना विलम्ब किए वैद्यराज को लंका से ले आते हैं। सुपेन वैद्य कहते हैं कि संजीवनी बूटी के बिना लक्ष्मण की चिकित्सा असम्भव है। हनुमान फिर संकटमोचन बनकर संजीवनी लाने को प्रस्थान करते हैं। मार्ग में वे कालनेमि का संहार करते हैं। जब हनुमान पर्वत पर पहुँचे तो वे संजीवनी बूटी की पहचान न कर पाए। अतः देर किए बिना पूरा पर्वत लेकर ही लंका की ओर चल पड़े। उधर राम की व्याकुलता बढ़ती जा रही थी कि तभी हनुमान संजीवनी लेकर पहुँच जाते है। सुपेन संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार करते हैं और
“सौमित्र सिह समान सोकर, मुस्कराते जग गए।
रामादि के उर-ताप जाकर शत्रु-उर से लग गए।।”
लक्ष्मण की मूर्च्छा टूटते ही वानर सेना में सर्वत्र प्रसन्नता की लहर दौड़ गई और उनमें उत्साह का संचार होने लगा। यह सर्ग हमें इस काव्य का सबसे मार्मिक स्थल लगा, क्योंकि इसमे राम के भ्रातृ-प्रेम की झलक मिलती है। करुणा से भरकर उनका लक्ष्मण के लिए विलाप करना पाठको को भी व्यथित कर देता है।