वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1▼
प्रश्न 1. भारत में तृतीयक क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ने के कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर: भारत में तृतीयक क्षेत्रक का महत्त्व बढ़ने के तीन कारण हैं-
(1) भारत एक विकासोन्मुखी देश है। सन् 1984 से ही भारत ने आर्थिक सुधारों को अपनाया है। आर्थिक सुधारों के दूसरे चरण में, सन् 1991 से भारत ने नई आर्थिक नीति-निजीकरण, वैश्वीकरण एवं उदारीकरण की नीति अपनाई है। इस नीति के अन्तर्गत निजी एवं विदेशी निवेशों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस प्रोत्साहन के फलस्वरूप देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों/निगमों का अन्तप्रवाह बढ़ा है। साथ ही, तृतीयक क्षेत्रक का भी तेजी से विस्तार हुआ है। देश में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार हो रहा है, शिक्षा, आवास एवं स्वास्थ्य सेवाएँ बढ़ रही है, बैंकिंग, परिवहन व संचार के विस्तार पर बल दिया जा रहा है तथा अनेक नवीन सेवाओं में कार्यरत लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
(2) सकल घरेलू उत्पाद में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान लगातार बढ़ रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्रक का योग तेजी से घटा है, द्वितीयक क्षेत्रक का योगदान धीमी गति से बढ़ा है, जबकि तृतीयक क्षेत्रक का योगदान तेजी से बढ़ा है।
(3) रोजगार में तृतीयक क्षेत्रक का प्रतिशत भी बढ़ा है। यद्यपि रोजगार की दृष्टि से तृतीयक क्षेत्रक का प्रतिशत योगदान बहुत अधिक नहीं है, तथापि इसमें वृद्धि हुई है।
प्रश्न 2. “भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करते हैं।” ये लोग कौन हैं? [NCERT EXERCISE]
अथवा अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्रक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करते हैं।ये लोग है-
(1) प्रथम वर्ग में वे लोग आते है जिनकी सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता करती हैं। यह सहायता प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों ही क्षेत्रको को प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं खुदरा विक्रेताओं को बेचने के लिए परिवहन के साधनो-टूक व रेलगाड़ियों की आवश्यकता होती है तथा वस्तुओं के भण्डारण के लिए गोदामों की आवश्यकता होती है। टेलीफोन पर वार्ता उत्पादन एवं व्यापार में सहायक होती है और संवाद बैंको से ऋण सुविधाएँ लेने के लिए आवश्यक है।
(2) द्वितीय वर्ग में कुछ ऐसे सेवा प्रदाता आते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करते। शिक्षक, डॉक्टर, धोवी, नाई, मोची, वकील, प्रशासन व लेखाकर्मियों की सेवाएँ इसी वर्ग में आती है। वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ जैसे इण्टरनेट कैफे,ए०टी०एम० बूथ, कॉल सेण्टर, सॉफ्टवेयर कम्पनी आदि भी महत्त्वपूर्ण हो गई है।
प्रश्न 3. आर्थिक गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं?
उत्तर: अर्थव्यवस्था में गतिविधियों रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर संगठित एवं असंगठित क्षेत्रकों में वर्गीकृत की जाती हैं-
1.संगठित क्षेत्रक- संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं, जहाँ रोजगार की अवधि नियत होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं एवं उन्हें राजकीय नियमों व विनियमों का अनुपालन करना होता है।
इन नियमों व विनियमों का अनेक विधियों; जैसे-कारखाना अधिनियम के निश्चित मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम आदि में उल्लेख किया गया है। यह क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी कुछ औपचारिक प्रक्रिया एवं क्रियाविधि होती है। इस
क्षेत्रक में रोजगार सुरक्षित होता है, काम के घण्टे निश्चित होते हैं, अतिरिक्त कार्य के लिए अतिरिक्त वेतन मिलता है। कर्मचारियों को कार्य के दौरान एवं सेवानिवृत्ति के बाद भी अनेक सुविधाएँ मिलती हैं।
2.असंगठित क्षेत्रक- असंगठित क्षेत्रक में वे छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयाँ शामिल होती हैं जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं। यद्यपि इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। ये अनियमित एवं कम वेतन वाले रोजगार होते हैं। इनमें सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है और न ही रोजगार की सुरक्षा होती है। श्रमिकों को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है।
प्रश्न 4. यदि किसानों को सिंचाई व विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं तो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर : यदि किसानों को सिंचाई व विपणन सुविधाएँ उपलब्ध करा दी जाएँ तो रोजगार और आय में निश्चित रूप से वृद्धि होगी। कुएँ, तालाब, बाँध, ट्यूबवैल, पानी की टंकियों आदि से प्लम्बरों, कारीगरों व मजदूरों आदि को रोजगार मिलेगा। किसान वर्ष में एक से अधिक फसल उगा सकेंगे, सब्जियों, फलों की खेती का विस्तार होगा और कृषि पर आधारित कुटीर उद्योगों (डेयरी, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन) का विकास होगा।
विपणन सुविधाएँ मिलने से किसान अपनी उपज को विपणन केन्द्रों पर ले जाकर उचित मूल्यों पर बेच सकेंगे और कृषि व कृषि पर आधारित उद्योगों के लिए आवश्यक आदाओं को उचित मूल्य पर खरीद सकेंगे। इससे रोजगार भी बढ़ेगा और आय में भी वृद्धि होगी।
प्रश्न 5. शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर : शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि निम्नलिखित उपायों द्वारा की जा सकती है-
(1) शहरों में कुटीर, लघु व बड़े पैमाने के नये-नये उद्योग स्थापित किए जाएँ तथा पुराने उद्योगों का विस्तार किया जाए।
(2) शहरी लोगों को सस्ते व्याज पर बैंकों द्वारा ऋण देकर उन्हें नये-नये काम जैसे फुटकर व्यापार, भवन निर्माण आदि के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
(3) शहरों में बड़ी संख्या में सार्वजनिक निर्माण कार्य कराए जाएँ जैसे सड़कें, पार्क, पुल, नालियाँ, मार्ग व उपमार्ग, भवन-निर्माण गतिविधियों का विस्तार किया जाना चाहिए।
(4) शहरों में सार्वजनिक सुविधाएँ व सेवाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए; जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य व परिवहन सुविधाएँ, विद्युत, संचार, बैंकिंग व बीमा सुविधाएँ आदि।
(5) निजी निवेश को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उपर्युक्त उपायों द्वारा शहरी क्षेत्रो में रोजगार की पर्याप्त वृद्धि की जा सकती है।
प्रश्न 6. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 (मनरेगा, 2005) के उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर : केन्द्र सरकार ने वर्ष 2005 में देश के चयनित 200 जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘काम का अधिकार’ लागू करने के लिए एक कानून बनाया। इस कानून को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 कहते हैं। इस कानून को बनाने का उद्देश्य उन लोगों को जो कार्य करने योग्य है। तथा जिन्हें कार्य की आवश्यकता है, सरकार द्वारा एक वर्ष में 100 दिनों के रोजगार का आश्वासन देना है। यदि सरकार इस उद्देश्य की प्राप्ति में असफल रहती है तो वह लोगों को बेरोजगारी भत्ता देगी।
इस कानून को वर्तमान में देश के समस्त जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू कर दिया गया है तथा इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया है।
इस अधिनियम के अन्तर्गत इस तरह के कार्यों को वरीयता दी गयी है जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. सार्वजनिक क्षेत्रक देश के आर्थिक विकास में कैसे सहयोग करता है? समझाइए।
उत्तर : किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक निम्नानुसार योगदान करता है-
(1) सार्वजनिक क्षेत्रक अधिक निवेश द्वारा पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करने में सहायक है।
(2) सार्वजनिक क्षेत्रक के विस्तार से रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि हुई है।
(3) किसी देश का औद्योगिक विकास आधारिक संरचना पर निर्भर करता है। आधारिक संरचना के विकास के लिए बड़ी मात्रा में निवेश की आवश्यकता होती है जबकि इसका गर्भावधिकाल काफी लम्बा होता है। प्रतिफल की दर कम होने के कारण निजी क्षेत्रक इनके विकास में रुचि नहीं ले पाता। सार्वजनिक क्षेत्रक ही इस उत्तरदायित्व को पूरी तरह निभाता है।
(4) देश में एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार के निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्रक का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। पूँजीगहन व आधारभूत उद्योगों की स्थापना करके तथा उसमें विविधता लाकर सार्वजनिक क्षेत्रक ने देश के आर्थिक विकास में गतिवर्द्धक का काम किया है।
(5) सार्वजनिक क्षेत्रक ने लघुस्तरीय उद्योगों को प्रोत्साहित किया है।
(6) देश के कुछ सार्वजनिक उपक्रम विदेशी आयातों पर हमारी निर्भरता को कम करने में सहायक रहे हैं।
(7) सार्वजनिक क्षेत्रक ने भारत में सन्तुलित प्रादेशिक विकास को सम्भव बनाया है।
सार्वजनिक क्षेत्रक की उपर्युक्त गतिविधियों के कारण देश का समुचित आर्थिक विकास हुआ है।
प्रश्न 2. आर्थिक गतिविधियों के तीन क्षेत्रक कौन-कौन से हैं? सोदाहरण समझाइए।
अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था को किन तीन क्षेत्रकों में विभाजित किया गया है? प्रत्येक क्षेत्रक की गतिविधि बताइए।
अथवा प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर : धन कमाने के उद्देश्य से की जाने वाली गतिविधियों को आर्थिक गतिविधियाँ कहा जाता है। आर्थिक गतिविधियों के तीन क्षेत्रक निम्नलिखित हैं-
प्राथमिक क्षेत्रक में हम प्राकृतिक संसाधनों के प्रत्यक्ष उपयोग पर आधारित गतिविधियों का अध्ययन करते हैं। उदाहरण के लिए कपास, डेरी उत्पाद (दूध), खनिज और अयस्क प्राकृतिक उत्पाद हैं और इनसे सम्बन्धित गतिविधियों का अध्ययन प्राथमिक क्षेत्रकों में किया जाता है। इसे हम प्राथमिक क्षेत्रक कहते हैं क्योंकि यह उन सभी उत्पादों का आधार है जिन्हें हम क्रमशः निर्मित करते हैं।
द्वितीयक क्षेत्रक में वे गतिविधियाँ शामिल होती हैं जिनके द्वारा प्राकृतिक उत्पादों को अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। यहाँ वस्तुएँ प्रकृति द्वारा उत्पादित नहीं होती हैं बल्कि निर्मित की जाती हैं। उदाहरण के लिए कपास के पौधे से प्राप्त रेशे का प्रयोग कर सूत कातना और कपड़ा बुनना, गन्ने से चीनी अथवा गुड़ बनाना और मिट्टी से ईंटें व भवने बनाना। यह प्राथमिक क्षेत्रक से अगला कदम है।
तृतीयक क्षेत्रक उपर्युक्त दोनों ही क्षेत्रकों से भिन्न है। ये गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में मदद करती हैं। ये गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं अपितु वस्तुओं के उत्पादन में मदद करती हैं। परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंक सेवाएँ और व्यापार तृतीयक गतिविधियों के उदाहरण हैं। ये गतिविधियाँ वस्तुओ के स्थान पर सेवाओ का सृजन करती हैं। सेवा क्षेत्रक में कुछ ऐसी अपरिहार्य सेवाएँ भी हैं जो प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं के उत्पादन में सहायता नहीं करती है; जैसे- शिक्षक, डॉक्टर, धोबी, नाई, मोची, वकील, प्रशासक अथवा लेखाकर्मी। वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित कुछ नवीन सेवाएँ और इण्टरनेट कैफे, ए०टी०एम० बूथ, कॉल सेण्टर व सॉफ्टवेयर कम्पनियों भी महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।
प्रश्न 3. “असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है।” क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
अथवा अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की किन्हीं तीन समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : रोजगार (नियोजित होने) के आधार पर अर्थव्यवस्था को दो प्रकार के क्षेत्रको में विभाजित किया जाता है- संगठित क्षेत्रक व असंगठित क्षेत्रका असंगठित क्षेत्रक छोटी-छोटी और विखरी इकाइयो, जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का अत्यधिक शोषण किया जाता है, यह सत्य है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-
(1) इस क्षेत्रक में नियमों एवं विनियमों का पालन नहीं होता है। इसमें बहुत कम वेतन/मजदूरी दी जाती है और वह भी नियमित रूप से नहीं दी जाती।
(2) इस क्षेत्रक में अतिरिक्त समय में काम तो लिया जाता है किन्तु अतिरिक्त वेतन नहीं दिया जाता। सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है।
(3) रोजगार न तो स्थायी है और न ही सुरक्षित। कर्मचारी को बिना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है। काम नियोक्ता की पसन्द पर निर्भर करता है।
(4) इस क्षेत्रक में काम करने वाले बहुसंख्यक श्रमिक अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और अनुसूचित जनजाति से हैं। अनियमित रोजगार एवं कम मजदूरी के साथ-साथ ये सामाजिक भेदभाव के भी शिकार हो जाते हैं।
प्रश्न 4. आर्थिक गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं?
अथवा रोजगार के संगठित तथा असंगठित क्षेत्रों में अन्तर कीजिए।
उत्तर : रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को दो क्षेत्रको में विभाजित किया जाता है। इसे लोगों के नियोजित होने के आधार पर देखा जाता है अर्थात् उनके काम करने की शर्तें क्या है? क्या कोई नियम और विनियम है जिसका उनके रोजगार के सन्दर्भ में अनुपालन किया जाता है। ये दो क्षेत्रक हैं-संगठित क्षेत्रक तथा असंगठित क्षेत्रक।
संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है और इसलिए लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है। ये क्षेत्रक सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और इन्हें सरकारी नियमों एवं विनियमो का अनुपालन करना होता है। इन नियमों एवं विनियमों का अनेक विधियों जैसे कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, सेवानुदान अधिनियम, दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम इत्यादि में उल्लेख किया गया है। यह क्षेत्रक संगठित क्षेत्रक इसलिए कहा जाता है क्योकि इसकी कुछ औपचारिक प्रक्रिया एवं क्रिया-विधि होती है। इसमें रोजगार सुरक्षित होता है, काम के घण्टे निश्चित होते हैं, अतिरिक्त काम के लिए अतिरिक्त वेतन मिलता है तथा कर्मचारियों को कार्य के दौरान एवं सेवानिवृत्ति के बाद भी अनेक सुविधाएँ मिलती हैं।
संगठित क्षेत्रक के विपरीत असंगठित क्षेत्रक छोटी और बिखरी इकाइयों, जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं, से निर्मित होता है। इस क्षेत्रक के नियम या विनियम तो होते हैं किन्तु उनका अनुपालन नहीं होता। ये अनियमित एवं कम वेतन वाले रोजगार होते हैं। इनमें न तो सवेतन अवकाश का ही कोई प्रावधान होता है और न ही रोजगार की सुरक्षा।
प्रश्न 5. तृतीयक क्षेत्रक क्या है? इसकी विशेषताओं की समीक्षा कीजिए।
उत्तर : जो गतिविधियाँ स्वयं वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती बल्कि प्राथमिक या द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती हैं, तृतीयक क्षेत्रक के अन्तर्गत आती हैं। तृतीयक क्षेत्रक के क्रियाकलाप बुद्धि और कुशलता से जुड़ी सेवाएँ हैं। उदाहरण के लिए शिक्षक, व्यापारी, वकील, डॉक्टर, बैंकर, सी०ए० आदि। तृतीयक क्षेत्रक के क्रियाकलाप की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) तृतीयक क्षेत्रक के क्रियाकलाप बुद्धि और कुशलता से जुड़ी सेवाएँ हैं।
(2) इनमें से सभी सेवाएँ सम्मिलित हैं जिन्हें हम शुल्क देकर प्राप्त करते हैं।
(3) सभी प्रकार की सेवाओं को कुशलता, सैद्धान्तिक ज्ञान एवं क्रियात्मक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
(4) मानव संसाधन, सेवा सेक्टर का महत्त्वपूर्ण घटक है।
(5) इसमें उत्पादन और विनिमय दोनों सम्मिलित होते हैं।
(6) इन सेवाओं द्वारा मूर्त वस्तुओं का उत्पादन नहीं होता।
(7) इन सेवाओं के बिना विनिर्माण नहीं हो सकता।
प्रश्न 6. असंगठित कार्य क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? इसकी किन्हीं तीन समस्याओं को लिखिए।
उत्तर: असंगठित क्षेत्रक असंगठित क्षेत्रक में वे छोटी-छोटी और बिखरी इकाइयों शामिल होती हैं जो अधिकांशतः सरकारी नियन्त्रण से बाहर होती हैं। यद्यपि इस क्षेत्रक के नियम और विनियम तो होते हैं परन्तु उनका पालन नहीं होता है। ये अनियत एवं कम वेतन वाले रोजगार होते हैं। इनमें सवेतन छुट्टी, अवकाश, बीमारी के कारण छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं होता है और न ही रोजगार की सुरक्षा होती है। श्रमिकों को विना किसी कारण काम से हटाया जा सकता है।
असंगठित क्षेत्रक की मुख्य समस्याएँ एवं समाधान निम्नलिखित है-
- मजदूरी– असंगठित क्षेत्रक में पुरुष व महिला श्रमिकों को कम व असमान मजदूरी दी जाती है। यह गलत है। पुरुष और महिला श्रमिकों को उचित व समान मजदूरी मिलनी चाहिए। मजदूरी के अतिरिक्त उन्हें अन्य भत्ते (परिवहन, शिक्षा, चिकित्सा, आवास) भी मिलने चाहिए। उनकी मजदूरी में वार्षिक वृद्धि होनी चाहिए तथा सरकार द्वारा घोषित महँगाई भत्ते की किस्त भी दी जानी चाहिए।
- सुरक्षा-सभी श्रमिको व कर्मचारियो को रोजगार की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। कोई भी नियोक्ता उन्हें मनमाने रूप से नौकरी से बाहर न कर सके। नौकरी से निकालने की प्रक्रिया नियमानुसार होनी चाहिए और कर्मचारियों को इसके लिए उचित क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए। कारखानों के अन्दर काम करते समय अथवा काम पर आते और काम समाप्त करके घर लौटते समय होने वाली किसी भी दुर्घटना के लिए उन्हें क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए।
- स्वास्थ्य– सभी श्रमिको व कर्मचारियों को सेवाकाल के दौरान और सेवानिवृत्ति के बाद स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए; जैसे- नर्सों व डॉक्टरों की सेवा सुविधाएँ, चिकित्सा सुविधाएँ आदि।
उपर्युक्त उपाय अपनाकर असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों का संरक्षण किया जा सकता है।
प्रश्न 7. देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक के योगदान पर एक टिप्पणी लिखिए। [2020]
उत्तर: किसी देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक निम्नलिखित प्रकार से योगदान करता है-
(1) देश के सुदृढ़ औद्योगिक आधार के निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्रक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(2) सार्वजनिक क्षेत्रक के विस्तार से रोजगार के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि होती है।
(3) सार्वजनिक क्षेत्रक अधिक पूँजी निवेश द्वारा पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करने में सहायक है।
(4) सार्वजनिक क्षेत्रक विकास के लिए वित्तीय संसाधन जुटाता है।
(5) यह क्षेत्रक सस्ती दर पर आसानी से वस्तुओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करता है।
(6) यह सन्तुलित प्रादेशिक विकास को प्रोत्साहित करता है।
(7) यह आधारभूत संरचनाओं के निर्माण एवं विस्तार द्वारा तीव्र आर्थिक विकास को प्रेरित करता है।
(8) यह अर्थव्यवस्था पर निजी एकाधिकार को नियन्त्रित करता है।
(9) यह लघु व कुटीर स्तरीय उद्योगों को प्रोत्साहित करता है।
(10) यह आय व सम्पत्ति की समानता लाता है।
(11) देश के कुछ सार्वजनिक उद्यम विदेशी आयातो पर हमारी निर्भरता को कम करने में सहायक रहे हैं।
प्रश्न 8. अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक से क्या तात्पर्य है? द्वितीयक क्षेत्रक की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर : हम अपने आसपास लोगों को विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न होते देखते हैं। इनमें से कुछ गतिविधियाँ वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। साथ ही कुछ अन्य सेवाओं का सृजन करती हैं। ये गतिविधियाँ हमारे चारों ओर हर समय चलती रहती हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण मानदण्डों के आधार पर आर्थिक कार्यों को क्षेत्रकों के विभिन्न समूहों में वर्गीकृत कर दिया जाता है। इन समूहों को अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक कहते हैं।
द्वितीयक क्षेत्रक की विशेषताएँ –
(1) द्वितीयक क्षेत्रक की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादो को विनिर्माण के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है।
(2) यह प्राथमिक क्षेत्रक के बाद की स्थिति है।
(3) यहाँ वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होतीं बल्कि तैयार की जाती हैं। इसलिए विनिर्माण की प्रक्रिया अपरिहार्य है।
(4) यह प्रक्रिया किसी कारखाने, किसी कार्यशाला या घर में हो सकती है।
(5) चूंकि यह क्षेत्रक क्रमशः सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से
सम्बद्ध है इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है।
प्रश्न 9. मनरेगा 2005 के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : मनरेगा 2005 (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम 2005) के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) मनरेगा योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवारों के एक सदस्य को वर्ष में कम-से-कम 100 दिन अकुशल श्रम वाले रोजगार की गारण्टी देना है।
(2) यदि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने में असफल रहती है तो वह पंजीकृत श्रमिकों को बेरोजगारी भत्ता देगी।
(3) इस अधिनियम के अन्तर्गत उस तरह के कार्यों को वरीयता दी जाएगी जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।
(4) इस प्रावधान के तहत एक-तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए सुरक्षित किया गया।
(5) मनरेगा योजना का मुख्य उद्देश्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों की क्रय शक्ति को बढ़ावा मिले और यह लोग बेरोजगार न रहें तथा अपना रोजगार पा सके।
(6) विकास कार्य के साथ-साथ आर्थिक मजबूती प्रदान करना।