वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-1▼
प्रश्न 1. उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों द्वारा बताए गए तीन प्रकार के प्रवाहों का उल्लेख कीजिए।
अथवा उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों द्वारा बताए गए किन्हीं दो प्रवाहों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : आर्थिक विनिमयों के प्रवाह – अर्थशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन प्रकार की गतियों या प्रवाहों का उल्लेख किया है, ये प्रवाह निम्नलिखित हैं-
- व्यापार का प्रवाह – पहला प्रवाह व्यापार का होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में व्यापार का प्रवाह मुख्य रूप से वस्तुओं के व्यापार तक ही सीमित था। इन वस्तुओं में कपड़ा, गेहूँ, कपास आदि शामिल थे।
- श्रम का प्रवाह – दूसरा, श्रम को प्रवाह होता है। इसमें लोग काम अथवा रोजगार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
- पूँजी का प्रवाह- तीसरा, पूँजी का प्रवाह होता है। इसमें पूँजीपति लोग अल्प अवधि अथवा दीर्घ अवधि के लिए दूर-दराज के प्रदेशों में पूँजी का निवेश करते हैं।
प्रश्न 2. वर्ष 1929 की आर्थिक मन्दी के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़े तीन प्रभावों को बताइए।
अथवा वर्ष 1929 की आर्थिक महामन्दी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी के किन्हीं तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक महामन्दी के परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: वर्ष 1929 की आर्थिक मन्दी के भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-
- (1) 1928 से 1934 के बीच देश का आयात-निर्यात घटकर लगभग आधा रह गया। जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने लगीं तो यहाँ भी कीमतें नीचे आ गईं।
- (2) शहरी निवासियों के मुकाबले किसानों और काश्तकारों को अधिक नुकसान हुआ। सबसे बुरी मार उन किसानों पर पड़ी जो विश्व बाजार के लिए उपज पैदा करते थे।
- (3) किसान पहले से ज्यादा कर्ज में डूब गए।
प्रश्न 3. ‘कॉर्न लॉ’ के निरस्त होने के बाद ब्रिटेन की खाद्य समस्या का हल किस प्रकार हुआ? स्पष्ट कीजिए। [2023 FB]
उत्तर: (1) ‘कॉर्न लॉ’ के निरस्त होने के बाद ब्रिटेन की खाद्य समस्या लगभग हर्ल हो गयी। अब कम कीमत पर लोगों के लिए खाद्य पदार्थों का आयात करना सम्भव हो गया।
(2) आयातित खाद्य पदार्थों की कीमत ब्रिटेन में उत्पादित खाद्य पदार्थों से भी कम थी।
(3) खाद्य पदार्थों की कीमत में गिरावट आने से ब्रिटेन में उपभोग का स्तर बढ़ गया। औद्योगिक प्रगति के चलते ब्रिटेन के लोगों की आय में वृद्धि हुई जिससे खाद्य पदार्थों का पहले से अधिक आयात होने लगा।
प्रश्न 4. ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है? इसका क्या उद्देश्य था? [2022]
उत्तर : ब्रेटन वुड्स समझौता एक विचार है जिसे औद्योगिक देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय भागीदारी के अन्तर्गत आम सहमति से तैयार किया है। इसमें ‘युद्धोत्तर आर्थिक भरपाई और राशि का संचय कैसे स्थिर रहे’ इस विषय पर रणनीति बनाई गई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में आर्थिक स्थिरता को बनाए रखना था।
ब्रेटन वुड्स समझौता इस परिणाम के पश्चात् सामने आया था कि किसी देश की आर्थिक स्थिरता अन्य देशों को भी प्रभावित करती है क्योकि आज देश परस्पर निर्भर हैं।
प्रश्न 5. 1929 की महामन्दी से क्या अभिप्राय है? इस महामन्दी के क्या कारण थे?
अथवा महामन्दी का क्या आशय है? इसके मुख्य दो कारण बताइए। इसके दो प्रभाव भी लिखिए। [2020
अथवा महामन्दी के कारणों की व्याख्या करें। [2020]
अथवा वैश्विक आर्थिक महामन्दी के कारणों का उल्लेख कीजिए। [2023 FC]
अथवा प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् होने वाली आर्थिक महामन्दी के कारणों की समीक्षा कीजिए।
[2023 FD]
उत्तर : महामन्दी से आशय
प्रथम विश्वयुद्ध के फलस्वरूप उत्पन्न क्षतिपूर्ति तथा युद्ध-ऋण को समस्याओ ने विश्व दिया। उद्योगों में मशीनीकरण तथा वैज्ञानिकीकरण, उत्पादन का आधिक्य, क्रय-शक्ति में गिरावट, आर्थिक राष्ट्रवाद तथा स्वर्ण के असमान वितरण ने विश्व में भीषण आर्थिक संकट उत्पन्न कर दिया। अक्टूबर 1929 ई० में न्यूयॉर्क के शेयर बाजार में शेयरों के मूल्य एकाएक बहुत नीचे गिर गए, जिसके फलस्वरूप आर्थिक जगत में खलबली मच गई। इसे ही 1929 ई० की महामन्दी कहा गया। आर्थिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को छिन्न-भिन्न कर
महामन्दी के कारण
आर्थिक महामन्दी का प्रारम्भ 1929 ई० से हुआ। यह मन्दी तीस के दशक के मध्य तक बनी रही। यह दो महायुद्धों के बीच का समय था। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् अमेरिका अन्तर्राष्ट्रीय कर्जदाता देश के रूप में उभरा। पूँजी उत्पादन एवं उपयोग तथा पूँजी के देश से बाहर प्रवाह के कारण इसकी अर्थव्यवस्था में उछाल उत्पन्न हो गया। लेकिन यह उछाल लम्बे समय तक बना न रह सका। जैसे ही उछाल समाप्त हुआ, कृषि उत्पादों के दाम नीचे आ गए। किसान घाटे के कारण कर्ज में डूब गए। संयुक्त राज्य अमेरिका की पूरी बैंकिंग व्यवस्था गड़बड़ा गई। अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था जो बड़े पैमाने पर अमेरिकी पूँजी पर निर्भर थी वह भी अस्त-व्यस्त हो गई, जिससे सम्पूर्ण संसार में आर्थिक महामन्दी का दौर प्रारम्भ हुआ। इस प्रकार कृषि, अति उत्पाद और विश्व बाज़ार से अमेरिकी निवेश के हट जाने से महामन्दी व्याप्त हो गई।
आर्थिक मन्दी के प्रभाव – आर्थिक मन्दी के प्रभाव निम्नलिखित हुए-
- (1) विश्व के लगभग सभी पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात पहुँचा।
- (2) आर्थिक संकट के परिणामस्वरूप यूरोप में फासीवादी शक्तियाँ जोर पकड़ने लगीं।
- (3) माल की खपत न हो पाने के कारण अनेक कारखाने बन्द हो गए।
- (4) वस्तुओं की माँग घट जाने से अनेक वस्तुओं का उत्पादन कम हो गया।
- (5) अनेक कारखाने बन्द हो जाने के कारण विश्व के लगभग (8) करोड़ श्रमिक बेकार हो गए।
- (6) आर्थिक मन्दी से निर्धनता में अत्यधिक वृद्धि हुई।
प्रश्न 6. प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् होने वाली आर्थिक महामन्दी का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा? [2023 EY]
उत्तर : प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् होने वाली आर्थिक महामन्दी का भारत पर प्रभाव – महामन्दी के कारण भारत के निर्यात व आयात का अर्द्धपंतन हो गया और प्राथमिक उत्पादों जैसे गेहूँ, जूट आदि का मूल्य वर्ष 1928 से 1934 के बीच तेजी से गिर गया, लेकिन औपनिवेशिक सरकार ने राजस्व की माँग को कम करने से मना कर दिया, इसलिए किसान बुरी तरह से संकट में आ गए। इस अवधि के दौरान भारत कीमती धातुओं, विशेष रूप से सोने का निर्यातक बन गया। इससे वैश्विक आर्थिक उगाही अर्थात् आर्थिक व्यवस्था को वैश्विक रूप से बढ़ावा मिला, लेकिन भारतीय किसानों को बहुत कम लाभ मिला। पूरे भारत में किसानों की दशा चिन्ताजनक हो गई। नियमित आय वाले लोगो को मूल्य के गिरने के कारण कम समस्या का सामना करना पड़ा। वर्ष 1931 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर दिया।
वर्णनात्मक प्रश्नोत्तर-2▼
प्रश्न 1. विश्व के महान् आर्थिक संकट या आर्थिक मन्दी के कारणों तथा परिणामों की विवेचना कीजिए।
अथवा महामन्दी के कारणों की व्याख्या कीजिए और बताइए कि भारतीय
अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ा। [2020]
अथवा वैश्विक आर्थिक महामन्दी के किन्ही तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।[2022]
उत्तर : विश्वव्यापी आर्थिक संकट (आर्थिक मन्दी)
आर्थिक मन्दी के कारण – प्रथम विश्वयुद्ध के फलस्वरूप उत्पन्न क्षतिपूर्ति तथा युद्ध-ऋण की समस्याओं ने विश्व के आर्थिक तन्त्रों तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को छिन्न-भिन्न कर दिया। उद्योगों में मशीनीकरण तथा वैज्ञानिकीकरण, उत्पादन के आधिक्य, क्रय-शक्ति में गिरावट, आर्थिक राष्ट्रवाद तथा स्वर्ण के असमान विभाजन ने विश्व में भीषण आर्थिक संकट उत्पन्न कर दिया। अक्टूबर 1929 ई० में न्यूयॉर्क के शेयर बाजार में शेयरों के मूल्य एकाएक बहुत नीचे गिर गए, जिसके फलस्वरूप आर्थिक जगत में खलबली मच गई। इस आर्थिक मन्दी के परिणाम बड़े दूरगामी और प्रभावकारी हुए।
आर्थिक मन्दी के परिणाम- आर्थिक मन्दी के कारण अनेक देशों की आर्थिक व्यवस्था चौपट हो गई, कल-कारखाने बन्द हो गए और बेकारी की समस्या भयंकर रूप धारण कर गई। लाखों व्यक्तियों और कम्पनियों को व्यापार में विनाशकारी घाटा उठाना पड़ा। पूँजीपति, उद्योगपति, मध्यमवर्गीय व्यक्ति, यहाँ तक कि श्रमिक, किसान और मजदूर भी घोर आर्थिक संकट में फँस गए।
अमेरिका और यूरोप के देशों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भयंकर घाटा उठाना पड़ा। वे व्यापार में ‘संरक्षण नीति’ अपनाने के लिए बाध्य हुए। बेकारी, भुखमरी, अस्थिरता, असुरक्षा तथाj निराशा की भावना के कारण जनता में लोकतन्त्र के प्रति आस्था कम होने लगी। मजदूर तथा किसान असन्तुष्ट होकर साम्यवाद और फासीवाद की ओर आकर्षित होने लगे।
आर्थिक संकट का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम जर्मनी में नाजीवाद का उदय था। जर्मनी की आर्थिक दुर्दशा का लाभ उठाकर हिटलर जर्मनी का चांसलर बन गया। आर्थिक मन्दी के कारण ही पोलैण्ड, यूगोस्लाविया, रूमानिया, बल्गेरिया, यूनान, पुर्तगाल आदि देशों में लोकतन्त्र का पतन हो गया। वहाँ पर अधिनायकवादी शक्तियाँ पनपने लगीं। आर्थिक संकट के परिणामस्वरूप यूरोप में साम्यवाद का व्यापक प्रचार हुआ। यूरोप के बेकार श्रमिक बड़ी तेजी के साथ साम्यवाद की ओर आकर्षित होने लगे, जिसके बड़े भयंकर परिणाम निकले। आर्थिक संकट ने जापान में भी सैनिकवाद का विकास किया।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी का प्रभाव – भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी का उत्यधिक प्रभाव पड़ा। यथा-
- (1) औपनिवेशक भारत कृषि वस्तुओं का निर्यातक तथा तैयार माल का आयातक बन चुका था।
- (2) महामन्दी के दौरान देश का आयात घटकर आधा रह गया।
- (3) भारत में कृषि उत्पादनों की कीमतों में गिरावट आई।
- (4) इस महान्दी से किसानों और काश्तकारों का बहुत अधिक नुकसान हुआ। लेकिन इस हामन्दी का शहरी लोगों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।
प्रश्न 2. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समक्ष क्या समस्याएँ थीं? इसे ब्रेटन वुड्स सम्मेलन द्वारा किस प्रकार सुलझाया गया [2020]
उत्तर : प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने के केवल दो दशक बाद द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया। इस युद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समक्ष दो प्रमुख समस्याएँ थीं- अत्यधिक सामाजिक तबाही और गम्भीर आर्थिक हानि । ऐसी दशा में पुनर्निर्माण का कार्य बहुत कठिन हो गया।
ब्रेटन वुड्स सम्मेलन – युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार को बनाए रखना था। इसके अनुरूप जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना की गयी। युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक अर्थात् विश्व बैंक का गठन किया गया। इसलिए विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष को ब्रेटन वुड्स ट्विन भी कहा जाता है। इसी युद्धोत्तर आर्थिक व्यवस्था को ब्रेटन वुड्स व्यवस्था कहा गया है।
ब्रेटन वुड्स व्यवस्था निश्चित विनिमय दरों पर आंधारित थी। इस व्यवस्था में राष्ट्रीय मुद्राएँ एक निश्चित विनिमय दर में बंधी हुई थीं। उदाहरण के रूप में, एक डॉलर के बदले में रुपयों की संख्या निश्चित थी। डॉलर का मूल्य भी सोने से बँधा हुआ था। एक डॉलर का मूल्य 35 ओस सोने के बराबर था।
प्रश्न 3. प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार उत्प्रेरित किया है? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए। [2023 FA]
उत्तर : विश्व अर्थव्यवस्था से प्रायः विश्व के सम्पूर्ण देशों की अर्थव्यवस्था पर आधारित अर्थव्यवस्था का बोध होता है। इस प्रकार वैश्विक अर्थव्यवस्था को विश्व समाज की अर्थव्यवस्था कह सकते हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के काल में पुनर्निर्माण का कार्य दो बड़े प्रभावों के साथ आगे बढ़ा। पश्चिमी विश्व में अमेरिका आर्थिक, राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से एक वर्चस्वशाली ताकत बन चुका था। विश्व बैंक और आई०एम०एफ० ने 1947 में औपचारिक रूप से काम शुरू किया।
रेलवे, भाप के जहाज, टेलीग्राफ ये सब तकनीकी बदलाव बहुत महत्त्वपूर्ण रहें। औपनिवेशीकरण के कारण यातायात और परिवहन साधनों में भारी सुधार किए गए। तेज चलने वाली रेलगाड़ियाँ बनी, बोगियों का भार कम किया गया। जलपोतों का आकार बढ़ा, जिससे किसी भी उत्पाद को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में कम लागत पर अधिक सरलता से पहुँचाया जा सके। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड, सब जगहों से जानवरों की बजाय उनका मांस यूरोप भेजा जाने लगा। इससे न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्चा कम हो गया बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए। 1970 के दशक के अन्तिम वर्षों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ भी एशिया के ऐसे देशों में उत्पादन केन्द्रित करने लगीं जहाँ वेतन कम थे। चीन जैसे देशों में विदेशी कम्पनियों ने जमकर निवेश करना प्रारम्भ कर दिया।