सवैये, कवित्त -पद्यांशों की सन्दर्भ-सहित व्याख्या | UP Board Class 10

धूरि भरे अति सोभित स्यामजू,
तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना,
पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी ।।
वा छबि को रसखानि बिलोकत,
वारत काम कला निज कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सो लै गयौ माखन-रोटी।।
मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं,
गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारन संग फिरौगी।।
भावतो वोहि मेरी रसखानि,
सो तेरे कहैं सब स्वाँग करौगी।
या मुरली मुरलीधर की,
अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

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