अशोक वाजपेयी का जीवन परिचय-
युवा जंगल: पद्यांश 1–
एक युवा जंगल मुझे,
अपनी हरी उँगलियों से बुलाता है।
मेरी शिराओं में हरा रक्त लगा है
आँखों में हरी परछाँइयाँ फिसलती हैं
कन्धों पर एक हरा आकाश ठहरा है
होठ मेरे एक हरे गान में काँपते हैं-
मैं नहीं हूँ और कुछ
बस एक हरा पेड़ हूँ
शब्दार्थ– युवा-जवान; शिराओं-नसों: परछाँड्यौं प्रतिविम्ब;
सन्दर्भ– प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के काव्य-खण्ड के ‘युवा जंगल’ शीर्षक से उधृत है। यह कवि अशोक वाजपेयी द्वारा रचित ‘विविधा’ से लिया गया है।
प्रसंग– ‘युवा जंगल’ में कवि ने मानव को भी वृक्षों की तरह हमेशा दृढ़ रहने और सहनशक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा दी है, उन्होंने हरे जंगल को लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत मानकर उनसे आशा, उत्साह और प्रेरणा ग्रहण करने को कहा है। कवि ने वन संरक्षण की आवश्यकता पर भी बल दिया है।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि हरे-भरे युवा जंगल को देखकर ऐसा लगता है, मानो नए वृक्षों वाला युवा जंगल उत्साहित होकर आकाश को छूने को उत्सुक अपनी पतली-पतली टहनियों से उसे (कवि को) बुला रहा हो। युवा जंगल के आमन्त्रण से कवि की सूखी नसों में स्थित निराशा की भावना दूर हो जाती है तथा उनमें उत्साह और आशा का संचार होने लगता है। इस आमन्त्रण से कवि की आँखों में सुखद और सुनहरे भविष्य के सपने तैरने लगते हैं, अब कवि के जीवन का उद्देश्य बदल गया है और वह अपने कन्धो पर उस उत्तरदायित्व को महसूस कर रहा है, जिससे उसकी जीवनरूपी निराशा समाप्त हो गई है।
निराशा के कारण सूखकर कड़े हो चुके होंठों से जो हरियाली रूपी हँसी गायब हो चुकी थी, वह वृक्ष के आमन्त्रण से आशा एवं उत्साह का रस पाकर सरस हो उठी है अर्थात् जीवन के नए गीत गाने के लिए उत्सुक है। कवि को ऐसा लगता है, मानो वह व्यक्ति न होकर एक हरा-भरा पेड़ बन गया हो, जिसमें उत्साहरूपी हरी पत्तियों की आशा भर गई हो। कवि स्वयं को उत्साह से परिपूर्ण हरे-भरे लहराते युवा पेड़ों की तरह महसूस कर रहा है।
काव्य सौन्दर्य–
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जंगल को प्रेरणा स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसकी हरियाली देखकर व्यक्ति की निराशा दूर हो जाती है।
- भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली
- शैली- प्रतीकात्मक तथा मुक्तक
- गुण- प्रसाद
- रस-शान्त
- छन्द-अतुकान्त व छन्दमुक्त
- शब्द-शक्ति-अभिधा व लक्षणा
- अलंकार- मानवीकरण अलंकार- जंगल को युवा के रूप में व्यक्त किया है, इसलिए यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
भाषा एकमात्र अनन्त है: पद्यांश 2–
फूल झरता है फूल शब्द नहीं!
बच्चा गेंद उछालता है, सदियों के पार
लोकती है उसे एक बच्ची !
बूढ़ा गाता है एक पद्य,
दुहराता है दूसरा बूढ़ा,
भूगोल और इतिहास से परे
किसी दालान में बैठा हुआ !
न बच्चा रहेगा,
न बूढ़ी, न गेंद, न फूल, न दालान
रहेंगे फिर भी शब्द
भाषा एकमात्र अनन्त है!
शब्दार्थ- झरता है-गिर जाता है; सदियों-शताब्दियों, लोकती देखती; ‘पद्य-कविता, गीत; दालान-बरामदा, ओसारा; एकमात्र केवल एक; अनन्त-जिसका अन्त न हो।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘काव्यखण्ड’ के ‘भाषा एकमात्र अनन्त है’ शीर्षक से उधृत है। यह कवि अशोक वाजपेयी द्वारा रचित ‘तिनका-तिनका’ काव्य संग्रह से ली गई है।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश में कवि भाषा (शब्द) की शक्ति की सामर्थ्य और उसकी शाश्वत सत्ता का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या– कवि कहते हैं कि भाषा ही एकमात्र अनन्त है अर्थात् जिसका अन्त नहीं है। फूल वृक्ष से टूटकर पृथ्वी पर गिरता है, उसकी पंखुड़ियाँ टूटकर बिखर जाती हैं और अन्त में वह मिट्टी में ही विलीन हो जाता है। प्रकृति ने फूल को जन्म दिया है और अन्ततः वह प्रकृति में ही विलीन हो जाता है। फूल की तरह शब्द विलीन नहीं होते। भाषा जो शब्दों से बनी है, वह कभी समाप्त नहीं होती। सदियों पश्चात् भी भाषा का अस्तित्व उसी प्रकार बना रहता है, जिस प्रकार एक बालक गेंद को उछालता है और दूसरा उसे पकड़कर पुनः उछाल देता है। आज किसी ने कोई बात कही, सैकड़ों वर्षों बाद परिवर्तित स्वरूप में कोई दूसरा व्यक्ति भी उसी बात को कह देता है।
अतः भाषा ही एकमात्र अनन्त है, जिसका कभी कोई अन्त नहीं है, परन्तु ‘शब्द’ शाश्वत है। वह इतिहास और भूगोल की सीमाओं से परे है, क्योंकि शब्द कभी इतिहास नहीं बनता है, वह सदैव वर्तमान रहता है। किसी देश तथा जाति की भौगोलिक सीमा उसे अपने बन्धन में बाँध नहीं पाती है। उसका प्रयोग या विस्तार अनन्त है, सार्वकालिक है। उदाहरण के रूप में एक वृद्ध व्यक्ति यदि किसी कविता को या गीत को गुनगुनाता है, तो उसका वह गीत उसके मरने के बाद समाप्त नहीं हो जाता, बल्कि वह गीत बहुत बाद की पीढ़ी के वृद्ध व्यक्ति के द्वारा बरामदा में बैठकर उसी प्रकार गाया जाता है, जिस प्रकार उसे पहली बार वृद्ध व्यक्ति के द्वारा बरामदा में बैठकर गाया गया था। इस प्रकार वह गीत कभी इतिहास नहीं बनता, सदैव वर्तमान में ही रहता है, क्योंकि वृद्धों के द्वारा उसे दुहराया जाता है। अन्त में कवि कहते हैं कि इस संसार में सभी वस्तुएँ नश्वर हैं। एक दिन वह गेंद उछालने वाला बच्चा, वह गीत गाने वाला वृद्ध, गेंद, फूल और बरामदा कुछ भी नहीं रहेगा, परन्तु गीत के शब्द सदैव जीवन्त रहेंगे, क्योंकि शब्द अर्थात् भाषा कभी मरती नहीं। वह अजर, अमर और अनन्त है। संसार में केवल भाषा (शब्द) ही अमर है, बाकी सब नश्वर है।
काव्य सौन्दर्य–
- भाषा-साहित्यिक खड़ी-बोली
- शैली– विवेचनात्मक तथा मुक्तक
- रस– शान्त
- गुण-प्रसाद
- छन्द– अतुकान्त व छन्दमुक्त
- शब्द-शक्ति– अभिधा व लक्षणा
- अलंकार– मानवीकरण अलंकार- अप्राकृतिक वस्तुओं द्वारा यहाँ प्रकृति का मानवीकरण किया गया है, जिस कारण यहाँ मानवीकरण अलंकार है।