जीवन-सूत्राणि (जीवन के सूत्र)
श्लोकों का सन्दर्भ-सहित अनुवाद –
श्लोक 1
किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् ?
किंस्वित् शीघ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ?
अथवा
माता गुरुतरा भूमेः खात् पितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात।।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘जीवन-सूत्राणि’ पाठ से उधृत है। इस श्लोक में यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं।
अनुवाद– (यक्ष पूछता है) भूमि से अधिक श्रेष्ठ क्या है? आकाश से ऊँचा क्या है? वायु से ज्यादा तेज चलने वाला क्या है? (और) तिनकों से भी अधिक (दुर्बल बनाने वाला) क्या है?
(युधिष्ठिर जवाब देते हैं) माता भूमि से अधिक भारी है (और)। पिता आकाश से भी ऊँचा है। मन वायु से भी तेज चलने वाला है। चिन्ता तिनकों से अधिक (दुर्बल बनाने वाली) है।
श्लोक 2 –
किंस्विद प्रवसतो मित्रं किंस्विन् मित्रं गृहे सतः । आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन् मित्रं मरिष्यतः ।
अथवा
सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः। आतुरस्य भिषङ् मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘जीवन-सूत्राणि’ पाठ से उधृत है।इस श्लोक में यक्ष-युधिष्ठिर के माध्यम से विदेश व घर पर रहने वाले तथा रोगी व मरने वाले के मित्र के बारे में पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं।
अनुवाद– (यक्ष पूछता है)-विदेश में रहने वाले व्यक्ति का मित्र कौन है? गृहस्थ (घर में रहने वाले) व्यक्ति का मित्र कौन है? रोगी का मित्र कौन है और मरने वाले का मित्र कौन है?
(युधिष्ठिर जवाब देते हैं)-साथ जा रहे लोगों का दल (कारवाँ) विदेश में रहने वालों का मित्र है (और) घर पर रहने वालों का मित्र उसकी पत्नी होती है। रोगी का मित्र वैद्य है और मरने वाले का मित्र दान है।
श्लोक 3 –
किंस्विदेकपदं धर्म्य किंस्विदेकपदं यशः। किंस्विदेकपदं स्वर्यं किंस्विदेकपदं सुखम् ।
अथवा
दाक्ष्यमेकपदं धर्म्य दानमेकपदं यशः। सत्यमेकपदं स्वर्यं शीलमेकपदं सुखम् ।।
सन्दर्भ– प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘जीवन-सूत्राणि’ पाठ से उधृत है।
इस श्लोक में यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से धर्म, यश, स्वर्ग व सुख के मुख्य स्थान के बारे में पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं।
अनुवाद – (यक्ष पूछता है)-धर्म का मुख्य स्थान क्या है? यश का मुख्य स्थान क्या है? स्वर्ग का मुख्य स्थान क्या है? और सुख का मुख्य स्थान क्या है?
(युधिष्ठिर जवाब देते हैं)-धर्म का मुख्य स्थान उदारता है, यश का मुख्य स्थान दान है, स्वर्ग का मुख्य स्थान सत्य है और सुख का मुख्य स्थान शील है।
श्लोक 4 –
धान्यानामुत्तमं किंस्विद् धनानां स्यात् किमुत्तमम्। लाभानामुत्तमं किं स्यात् सुखानां स्यात् किमुत्तमम्।
अथवा
धान्यानामुत्तमं दाक्ष्यंधनानामुत्तमं श्रुतम्। लाभानां श्रेयाआरोग्यं सुखानां तुष्टिरुत्तमा ।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘जीवन-सूत्राणि’ पाठ से उधृत है।
इस श्लोक में अन्न, धन, लाभ और सुख में उत्तम क्या है? ऐसा प्रश्न यक्ष युधिष्ठिर से पूछता है और युधिष्ठिर यश के प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
अनुवाद – (यक्ष पूछता है) – अन्नों में उत्तम (अन्न) क्या है? धन में उत्तम (धन) क्या है? लाभों में उत्तम (लाभ) क्या है? सुखों में उत्तम (सुख). क्या है? (युधिष्ठिर जवाब देते हैं) अन्नों में उत्तम (अन्न) चतुरता है। धनों में उत्तम (धन) शास्त्र है। लाभों में उत्तम (लाभ) आरोग्य है। सुखों में उत्तम (सुख) सन्तोष है।
श्लोक 5 –
किं नु हित्वा प्रियो भवति किन्नु हित्वा न शोचति। किं नु हित्वार्थवान् भवति किन्नु हित्वा सुखी भवेत्।
अथवा
मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति । कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।
सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘जीवन-सूत्राणि’ पाठ से उधृत है।
इस श्लोक में यक्ष ने युधिष्ठिर से त्याग के महत्त्व से सम्बन्धित प्रश्न पूछे हैं और युधिष्ठिर उसका जवाब देते हैं
अनुवाद -(यक्ष पूछता है) क्या त्यागकर (मनुष्य) प्रिय हो जाता है? क्या त्यागकर (मनुष्य) शोक नहीं करता? क्या त्यागकर (मनुष्य) धनवान होता है? क्या त्यागकर (मनुष्य) सुखी बनता है?
(युधिष्ठिर जवाब देते हैं) अभिमान त्यागकर (मनुष्य) (सब का) प्रिय हो जाता है। क्रोध त्यागकर (मनुष्य) शोक नहीं करता है। कामना (इच्छा) त्यागकर (मनुष्य) धनवान बनता है और लोभ छोड़कर (मनुष्य) सुखी बनता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न –
प्रश्न 1. किंस्विद् गुरुतरा भूमेः?
अथवा भूमेः गुरुतरं किम् अस्ति?
उत्तर– माता गुरुतरं भूमेः ।
प्रश्न 2. पिता कस्मात् उच्चतरः भवति ?
अथवा खात् (आकाशात्) उच्चतरं किम् अस्ति ?
उत्तर– पिता खात् उच्चतरः भवति।
प्रश्न 3. वातात् शीघ्रतरं किम् भवति ?
उत्तर– वातात् शीघ्रतरं मनः भवति।
प्रश्न 4. धनानां उत्तमं धनं किम् अस्ति ?
उत्तर– सर्वेषु उत्तमं धनं श्रुतम् अस्ति।
प्रश्न 5. अनृतं केन जयेत्?
उत्तर – सत्येन अनृतं जयेत्।
प्रश्न 6. मनुष्य किं हित्वा सुखी भवेत?
अथवा मनुष्यः किं हित्वा सुखी भवति ?
उत्तर– मनुष्य लोभं हित्वा सुखी भवेत।
प्रश्न 7. आतुरस्य मित्रं कः भवति ?
उत्तर– भिषक् आतुरस्य मित्रं भवति।
प्रश्न 8. मरिण्यतः मित्रं किम् अस्ति ?
उत्तर – मरिण्यतः मित्रं दानं अस्ति।
प्रश्न 9. सुखानाम् उत्तमं किम् स्यात्?
उत्तर – सुखानाम् उत्तमं सन्तोणः स्यात्।