स्वदेश प्रेम : रामनरेश त्रिपाठी – पद्यांशों की सन्दर्भ-सहित व्याख्या | Class 10

रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय –

अतुलनीय जिनके प्रताप का,
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर।
घूम-घूम कर देख चुका है,
जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर।
देख चुके हैं जिनका वैभव,
ये नभ के अनन्त तारागण।
अगणित बार सुन चुका है नभ,
जिनका विजय-घोष रण-गर्जन।
शोभित है सवर्वोच्च मुकुट से,
जिनके दिव्य देश का मस्तक।
गूँज रही हैं सकल दिशाएँ जिनके जय-गीतों से अब तक ।।
जिनकी महिमा का है अविरल,
साक्षी सत्य-रूप हिम-गिरि-वर।
उतरा करते थे विमान-दल,
जिसके विस्तृत वक्षःस्थल पर।
सागर निजं छाती पर जिनके,
अगणित अर्णव-पोत उठाकर ।
पहुँचाया करता था प्रमुदित,
भूमण्डल के सकल तटों पर ।।
नदियाँ जिसकी यश-धारा-सी,
बहती हैं अब भी निशि-वासर।
ढूँढो, उनके चरण-चिह्न भी,
पाओगे तुम इनके तट पर।।
विषुवत् रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर।।
ध्रुव-वासी, जो हिम में तम में,
जी लेता है काँप-काँप कर।
वह भी अपनी मातृ-भूमि पर,
कर देता है प्राण निछावर ।।
निर्भय स्वागत करो मृत्यु का,
मृत्यु एक है विश्राम-स्थल।
जीव जहाँ से फिर चलता है,
धारण कर नव जीवन-संबल ।।
मृत्यु एक सरिता है, जिसमें,
श्रम से कातर जीव नहाकर।
फिर नूतन धारण करता है,
काया-रूपी वस्त्र बहाकर।।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी – तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर।
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर ।।
देश-प्रेम वह पुण्य-क्षेत्र है,
अमल असीम त्याग से विलसित ।
आत्मा के विकास से जिसमें,
मनुष्यता होती है विकसित ।।

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