जीवन परिचय-
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म वर्ष 1911 में हुआ था। इनके पिता पण्डित हीरानन्द शास्त्री पंजाब के करतारपुर (तत्कालीन जालन्धर जिला) के निवासी और वत्स गोत्रीय सारस्वत ब्राह्मण थे। भारत की स्वाधीनता की लड़ाई एवं क्रान्तिकारी आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें 4 वर्षों तक जेल में तथा 2 वर्षों तक घर में नजरबन्द रखा गया। इन्होंने बी.एससी. करने के बाद अंग्रेजी, हिन्दी एवं संस्कृत का गहन स्वाध्याय किया। सैनिक’, ‘विशाल भारत’, ‘प्रतीक’ और अंग्रेजी त्रैमासिक ‘वाक्’ का सम्पादन किया।
इन्होंने समाचार साप्ताहिक ‘दिनमान’ और ‘नया प्रतीक’ पत्रों का भी सम्पादन किया। तत्कालीन प्रगतिवादी काव्य का ही एक रूप ‘प्रयोगवाद’ काव्यान्दोलन के रूप में प्रतिफलित हुआ।
इसका प्रवर्तन ‘तार सप्तक’ के माध्यम से ‘अज्ञेय’ ने किया। तार सप्तक की भूमिका इस नए आन्दोलन का घोषणा-पत्र सिद्ध हुई। इनका निधन 4 अप्रैल, 1987 को हो गया।
साहित्यिक गतिविधियाँ-
अज्ञेय प्रयोगशील नूतन परम्परा के ध्वज वाहक होने के साथ साथ अपने पीछे अनेक कवियों को लेकर चलते हैं, जो उन्हीं के समान नवीन विषयों एवं नवीन शैली के समर्थक हैं।
अज्ञेय उन रचनाकारों में से हैं जिन्होंने आधुनिक हिन्दी साहित्य को एक नया आयाम, नया सम्मान एवं नया गौरव प्रदान किया। हिन्दी साहित्य को आधुनिक बनाने का श्रेय अज्ञेय को जाता है। अज्ञेय का कवि, साहित्यकार, गद्यकार, सम्पादक, पत्रकार सभी रूपों में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
कृतियाँ-
‘अज्ञेय’ ने साहित्य की गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में लेखन कार्य किया।
- कविता संग्रह– भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षणभर, बावरा अहेरी, इन्द्र धनुष रौंदे हुए ये, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, अरी ओ करुणामय प्रभामय।
- अंग्रेजी काव्य-कृति– ‘प्रिजन डेज एण्ड अदर पोयम्स’
- निबन्ध संग्रह– सब रंग और कुछ राग, आत्मनेपद, लिखि कागद कोरे आदि।
- आलोचना– हिन्दी साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य, त्रिशंकु आदि।
- उपन्यास– शेखर : एक जीवनी (दो भाग), नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी आदि।
- कहानी संग्रह– विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, तेरे ये प्रतिरूप, अमर वल्लरी आदि।
- यात्रा साहित्य– अरे यायावर! रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली।
हिन्दी साहित्य में स्थान-
अज्ञेय जी नई कविता के कर्णधार माने जाते हैं। ये प्रत्यक्ष का यथावत् चित्रण करने वाले सर्वप्रथम साहित्यकार थे। देश और समाज के प्रति इनके मन में अपार वेदना थी। ‘नई कविता’ के जनक के रूप में इन्हें सदा याद किया जाता रहेगा।