संकेत बिन्दु:
- प्रस्तावना
- राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता एवं बाधाएँ
- एकता बनाए रखने के उपाय
- उपसंहार
प्रस्तावना:
राष्ट्रीय एकता का मतलब है भारत की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक एकता। हालांकि हमारे धार्मिक विश्वास, खाना, पहनावा और रहन-सहन अलग हो सकते हैं, लेकिन हमारे राष्ट्रीय और राजनीतिक विचारों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। जैसा कि एक प्रसिद्ध उक्ति है:
“जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”
यह वाक्य यह बताता है कि राष्ट्रीय एकता का आधार हमारे देश के प्रति प्रेम और समर्पण है।
राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता एवं बाधाएँ:
किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा और उन्नति के लिए राष्ट्रीय एकता जरूरी है। जब लोग आपस में लड़ते-झगड़ते हैं और एक-दूसरे से नफरत करते हैं, तो वह देश कभी भी महान नहीं बन सकता। इससे देश की ऊर्जा बेकार हो जाती है, और शांति की भावना समाप्त हो जाती है। इस कमजोरी का फायदा अन्य देश उठा सकते हैं। भारत के इतिहास में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को गुलाम बनाना इस एकता के अभाव का उदाहरण है।
लेकिन, राष्ट्रीय एकता बनाए रखने में कुछ बड़ी बाधाएँ भी हैं, जैसे:
- जातिवाद: अपनी जाति को श्रेष्ठ मानने और दूसरों को नीचा समझने की भावना, साथ ही जातिगत आरक्षण की नीति ने एकता में खलल डाला है। आरक्षण विरोधी आंदोलनों में कई हिंसक घटनाएँ हुई हैं, जो राष्ट्रीय एकता को तोड़ने का कारण बनीं।
- प्रादेशिकता: अलग-अलग राज्य बनाने की मांग ने राष्ट्रीय एकता को कमजोर किया है। कुछ क्षेत्रों में क्षेत्रीय और अलगाववादी भावना बढ़ी है, जिससे एकता में दरार आई है।
- साम्प्रदायिकता: धर्म के नाम पर समाज को विभाजित करने की कोशिशें भी एकता की राह में बड़ी बाधा बनीं। कुछ राजनीतिज्ञ और धार्मिक नेता इस मुद्दे को बढ़ावा देते हैं।
- भाषायी विवाद: अपनी भाषा और संस्कृति को श्रेष्ठ मानने की भावना भी एकता के खिलाफ काम करती है। इससे विभिन्न भाषाई समुदायों के बीच तनाव पैदा हुआ है।
एकता बनाए रखने के उपाय:
राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि उन राजनीतिज्ञों को बाहर किया जाए, जो अपने फायदे के लिए साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। साथ ही, शिक्षा के प्रसार पर जोर देना चाहिए ताकि लोग एक-दूसरे को समझें और उनके बीच एकता का भाव पैदा हो। ‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ की भावना को बढ़ावा दिया जाए, ताकि हम सब एक देश के नागरिक के रूप में एकजुट हो सकें।
उपसंहार:
विज्ञान और प्रौद्योगिकी में बड़ी उन्नति हो चुकी है, लेकिन अगर हम मानसिक और विचारात्मक रूप से भी उन्नत नहीं होते, तो भौतिक विकास का कोई मतलब नहीं होगा। यदि वैचारिक विकास के साथ-साथ भौतिक विकास भी होता रहे, तो राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी और देश और अधिक शक्तिशाली बनेगा। एक संगठित राष्ट्र को कोई भी तोड़ नहीं सकता। हमें यह समझना चाहिए कि जब देश एकजुट होता है, तो कोई भी ताकत उसे कमजोर नहीं कर सकती। इसलिए, यह हर भारतीय का कर्तव्य है कि वह देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करे।