पुष्प की अभिलाषा एवं जवानी: माखनलाल चतुर्वेदी- पद्यांशों की सन्दर्भ-सहित व्याख्या | Class 10

माखनलाल चतुर्वेदी जीवन परिचय

चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ में देना तुम फेंक। मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक।
पहन ले नर-मुंड-माला,
उठ स्वमुंड सुमेरु कर ले,
भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी,
प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!
द्वार बलि का खोल चल,
भूडोल कर दें,
एक हिम-गिरि एक सिर,
का मोल कर दें,
मसल कर,
अपने इरादों-सी, उठा कर,
दो हथेली हैं कि
पृथ्वी गोल कर दें?
रक्त है?
या है नसों में क्षुद्र पानी!
जाँच कर, तू सीसं दे-देकर जवानी?
विश्व है असि का? नहीं संकल्प का है!
हर प्रलय का कोण काया-कल्प का है!
फूल गिरते, शूल शिर ऊँचा लिए है;
रसों के अभिमान को नीरस किए हैं।
खून हो जाए न तेरा देख, पानी,
मरण का त्योहार, जीवन की जवानी।
“लाल चेहरा है नहीं, फिर लाल किसके ?
लाल खून नहीं, अरे, कंकाल किसके ?
प्रेरणा सोयी कि, आटा-दाल किसके ?
सिर न चढ़ पाया, कि छापा माल किसके?”
वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी
धूल है जो जग नहीं पाई जवानी

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