प्रबुद्धो ग्रामीण : UP Board Class 10 Sanskrit Chapter 4

एकदा बहवः जना धूमयानम् (रेलगाड़ी) आरुह्य नगरं प्रति गच्छन्ति स्म। तेषु केचित् ग्रामीणाः केचिच्च नागरिकाः आसन्। मौनं स्थितेषु तेषु एकः नागरिकः ग्रामीणान् अकथयत्, “ग्रामीणाः अद्यापि पूर्ववत् अशिक्षिताः अज्ञाश्च सन्ति। न तेषां विकासः अभवत् न च भवितुं शक्नोति।” तस्य तादृशं जल्पनं श्रुत्वा कोऽपि चतुरः ग्रामीणः अब्रवीत् – “भद्र नागरिकः भवान् एव किञ्चित् ब्रवीतु, यतो हि भवान् शिक्षितः बहुज्ञः च अस्ति।”

अथवा

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तस्य तां वार्ता श्रुत्वा स चतुरः ग्रामीणः अकथयत्- “भोः वयम् अशिक्षिताः भवान् च शिक्षितः, वयम् अल्पज्ञाः भवान् च बहुज्ञः, इत्येवं विज्ञाय अस्माभिः समयः कर्त्तव्यः, वयं परस्परं प्रहेलिकां प्रक्ष्यामः। यदि भवान् उत्तरं दातुं समर्थः न भविष्यति तदा भवान् दशरूप्यकाणि दास्यति। यदि वयम् उत्तरं दातुं समर्थाः न भविष्यामः तदा दशरूप्यकाणाम् अर्ध पञ्चरूप्यकाणि दास्यामः।”

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘प्रबुद्धो ग्रामीणः’ नामक पाठ से लिया गया है। इस गद्यांश में ग्रामीणों की चतुराई को हास्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ग्रामीण और शहरी के बीच पहेली पूछने का वर्णन है।

अनुवाद- एक बार बहुत से मनुष्य रेलगाड़ी पर सवार होकर नगर की ओर जा रहे थे। उनमें कुछ ग्रामीण और कुछ शहरी व्यक्ति थे, उनके (ग्रामीणों) मौन रहने पर एक शहरी ने ग्रामीणों का उपहास करते हुए कहा, “ग्रामीण आज भी पहले की तरह अशिक्षित और मूर्ख हैं। न तो उनका (अब तक) विकास हुआ है और न हो सकता है।” उसकी इस तरह की बातें सुनकर कोई चतुर ग्रामीण बोला, “हे सभ्य शहरी ! आप ही कुछ कहें, क्योंकि आप ही पढ़े-लिखे और
जानकार हैं। यह सुनते ही शहरी ने घमण्ड के साथ गर्दन ऊँची उठाकर कहा-” कहूँगा, पर हमें पहले एक शर्त लगा लेनी चाहिए।” उसकी इस बात को सुनकर उस चतुर ग्रामीण ने कहा, “अरे हम अशिक्षित हैं और आप शिक्षित हैं, हम कम जानते हैं और आप बहुत जानते हैं, ऐसा जानकर शर्त लगानी चाहिए ! हम आपस में पहेली पूछेंगे। यदि आप जवाब देने में असमर्थ होंगे तो आप दस रुपये देंगे, यदि हम उत्तर न दे सकेंगे तो (हम) दस के आधे अर्थात् पाँच रुपये देंगे।”

“आम् स्वीकृतः समयः”, इति कथिते तस्मिन् नागरिके स ग्रामीणः नागरिकम् अवदत् – “प्रथमं भवान् एव पृच्छतु।” नागरिकश्च तं ग्रामीणम् अकथयत्- “त्वमेव प्रथमं पृच्छ” इति। इदं श्रुत्वा स ग्रामीणः अवदत् – “युक्तम्, अहमेव प्रथमं पृच्छामि –
अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः। अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति स पण्डितः ।।
अस्या उत्तरं ब्रवीतु भवान्।”

अथवा

नागरिकः बहुकालं यावत् अचिन्तयत्, परं प्रहेलिकायाः उत्तरं दातुं समर्थः न अभवत्। अतः ग्रामीणम् अवदत्” अहम् अस्याः प्रहेलिकायाः उत्तरं न जानामि।” इदं श्रुत्वा ग्रामीणः अकथयत् यदि भवान् उत्तरं न जानाति, तर्हि ददातु दशरूप्यकाणि।” अतः म्लानमुखेन नागरिकेण समयानुसारं दशरूप्यकाणि दत्तानि।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘प्रबुद्धो ग्रामीणः’ नामक पाठ से लिया गया है।
इस गद्यांश में ग्रामीण द्वारा नागरिक से पहेली पूछने का वर्णन किया गया है।
अनुवाद – “हाँ! शर्त स्वीकार है”, उस शहरी द्वारा ऐसा कहे जाने पर उस ग्रामीण ने शहरी (व्यक्ति) से कहा, “पहले आप पूछें।” और शहरी ने उस ग्रामीण से कहा, “पहले तुम ही पूछो,” यह सुनकर वह ग्रामीण बोला, “ठीक है, मैं ही पहले पूछता हूँ-

श्लोक– “बिना पैर वाला है, किन्तु दूर तक जाता है, साक्षर (अक्षर सहित) है, किन्तु पण्डित नहीं है। मुख नहीं है, किन्तु स्पष्ट बोलने वाला है, जो इसे जानता है, वह पण्डित ज्ञानी है।

आप इसका उत्तर दें।”

शहरी (व्यक्ति) बहुत देर तक सोचता रहा, लेकिन पहेली का उत्तर देने में असमर्थ रहा। अतः उसने ग्रामीण से कहा, मैं इस पहेली का उत्तर नहीं जानता हूँ। यह सुनकर ग्रामीण ने कहा, यदि आप उत्तर नहीं जानते हैं, तो दस रुपये दें। अतः उदास मुख वाले शहरी (व्यक्ति) ने दस रुपये शर्त के अनुसार दे दिए।

पुनः ग्रामीणोऽब्रवीत् – “इदानीं भवान् पृच्छतु प्रहेलिकाम्।” दण्डदानेन खिन्नः नागरिकः बहुकालं विचार्य न काञ्चित् प्रहेलिकाम् अस्मरत्, अतः अधिकं लज्जमानः अब्रवीत् – “स्वकीयायाः प्रहेलिकायाः त्वमेव उत्तरं ब्रूहि।” तदा सः ग्रामीणः विहस्य स्वप्रहेलिकायाः सम्यक् उत्तरम् अवदत् “पत्रम्” इति। यतो हि इदं पदेन विनापि दूरं याति, अक्षरैः युक्तमपि न पण्डितः भवति। एतस्मिन्नेव काले तस्य ग्रामीणस्य ग्रामः आगतः। स विहसन् रेलयानात् अवतीर्य स्वग्रामं प्रति अचलत्। नागरिकः लज्जितः भूत्वा पूर्ववत् तूष्णीम् अतिष्ठत्। सर्वे यात्रिणः वाचालं तं नागरिकं दृष्ट्वा अहसन्। तदा स नागरिकः अन्वभवत् यत् ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति। ग्रामीणाः अपि कदाचित् नागरिकेभ्यः प्रबुद्धतराः भवन्ति ।

सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत खण्ड’ में संकलित ‘प्रबुद्धो ग्रामीणः’ नामक पाठ से लिया गया है
इस गद्यांश में नागरिक द्वारा अपनी भूल की अनुभूति होने एवं सीख मिलने का वर्णन है।

अनुवाद– फिर ग्रामीण बोला “अब आप पहेली पूछें। दण्ड चुकाने (देने) से दुःखी शहरी बहुत समय तक सोचने-विचारने के बाद भी कोई पहेली न याद कर सका। अतः बहुत अधिक लज्जा का अनुभव करता हुआ बोला,” अपनी पहेली का उत्तर तुम ही दो” तब उस ग्रामीण ने हँसकर अपनी पहेली का सही-सही उत्तर दिया ‘पत्र’। क्योंकि वह (पत्र) पैरों के बिना भी दूर-दूर तक जाता है और अक्षरों से युक्त होने पर भी पण्डित नहीं होता है। इसी समय उस ग्रामीण का गाँव आ गया। वह हँसकर रेलगाड़ी से उतरकर अपने गाँव की ओर चल पड़ा। शहरी (व्यक्ति) लज्जित होकर पहले की तरह बैठा रहा। सारे यात्री उस बहुत बोलने वाले शहरी (व्यक्ति) को देखकर हँस रहे थे। तब उस शहरी (व्यक्ति) ने अनुभव किया कि ज्ञान हर स्थान पर सम्भव है। कभी ग्रामीण भी शहरियों से अधिक बुद्धिमान होते (निकल आते) हैं।

प्रश्न 1. ग्रामीणान् काः उपाहसत्?

उत्तर- ग्रामीणान् एकः नागरिकः उपाहसत्।

प्रश्न 2. ग्रामीणान् उपहसन् नागरिकः किम् अकथयत्?

उत्तर- ग्रामीणान् उपहसन् नागरिकः अकथयत्- “ग्रामीणाः अद्यापि पूर्ववत् अशिक्षिताः अज्ञाश्च सन्ति। न तेषां विकासः अभवत् न च भवितुम् शक्नोति।”

प्रश्न 3. नागरिकः कथं किमर्थं लज्जितः अभवत् ?

उत्तर- नागरिकः ग्रामीणस्य प्रहेलिकायाः उत्तरम्. दातुं न अशक्नोत् अतः सः लज्जितः अभवत्।

प्रश्न 4. ग्रामीणस्य प्रहेलिकायाः किम् उत्तरम् आसीत्?

अथवा प्रहेलिकायाः किम् उत्तरम् आसीत्?

उत्तर– ग्रामीणस्य प्रहेलिकायाः उत्तरं आसीत् ‘पत्रम्’।

प्रश्न 5. पदेन विना किम् दूरंयाति?

उत्तर- पदेन बिना पत्रं दूरं याति।

प्रश्न 6. अमुखोऽपि कः स्फुटवक्ता भवति ?

उत्तर- अमुखोऽपि पत्रं स्फुटवक्ता भवति।

प्रश्न 7. धूमयाने समयः केन जितः?

उत्तर- धूमयाने समयः ग्रामीणेन जितः।

प्रश्न 8. अन्ते नागरिकः किम् अनुभवम् अकरोत् ?

अथवा कः अन्वभवत् यत् ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति ?

उत्तर- अन्ते नागरिकः अनुभवं अकरोत् यत् ज्ञानम् सर्वत्र सम्भवति।

प्रश्न 9. ज्ञानं कुत्र सम्भवति ?

उत्तर– ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति।

प्रश्न10. ग्रामीणं नागरिकम् अपृच्छत् ?

उत्तर- ग्रामीणं नागरिकम् एकं प्रहेलिकाम् अपृच्छत्।

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