मित्रता : गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर: Mitrata Class 10 UP Board Solution

विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों में हमें दृढ़ करेंगे, दोषों और त्रुटियों से हमें बचाएँगे, हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंगे, जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे, तब वे हमें सचेत करेंगे, जब हम हतोत्साहित होंगे, तब हमें उत्साहित करेंगे। सारांश यह है कि वे हमें उत्तमतापूर्वक जीवन-निर्वाह करने में हर तरह से सहायता देंगे। सच्ची मित्रता में उत्तम-से-उत्तम वैद्य की-सी निपुणता और परख होती है, अच्छी-से-अच्छी माता की-सी धैर्य और कोमलता होती है। ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक पुरुष को करना चाहिए। M Imp (2023, 20, 18, 16, 13, 11)

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उत्तर– (क) सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘मित्रता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ हैं।

उत्तर– (ख) आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि विश्वासपात्र मित्र दवा के समान होता है। जिस प्रकार अच्छी दवा लेने से व्यक्ति का रोग दूर हो जाता है, उसी प्रकार विश्वासपात्र मित्र हमारे जीवन में आकर हमारे बुरे संस्कार व दुर्गुणरूपी रोगों से हमें मुक्ति दिलवाता है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे हमें दोषों, अवगुणों व बुराइयों से बचाएँ और हमारे विचारों व संकल्पों को मजबूत बनाने में हमारी सहायता करें। हमारे हृदय में अच्छे विचारों को उत्पन्न करें तथा हमें हर प्रकार की बुराइयों से बचाते रहें। हमारे मन में सत्य, मर्यादा व पवित्रता के प्रति प्रेम विकसित करें। यदि हम किसी कारणवश या लोभवश किसी गलत मार्ग पर चल पड़े हैं, तब वे हमारा मार्गदर्शन करके हमें गलत मार्ग पर चलने से बचाएँ। यदि हम निराश व हताश हो जाएँ तो वह हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करें। तात्पर्य यह है कि वे हमें हर प्रकार से उत्तम जीवन जीने के लिए प्रेरित करें।
लेखक सच्चे मित्र के गुण बताते हुआ कहता है कि सच्चा मित्र एक कुशल वैद्य के समान होता है। जिस प्रकार एक उत्तम वैद्य रोगी की नब्ज़ देखकर ही उसके रोग का पता लगा लेता है, उसी प्रकार एक सच्चा मित्र भी मित्र के हाव-भाव व उसके लक्षणों को देखकर उसके गुण-दोषों की परख कर लेता है तथा उसका सही मार्गदर्शन करके उसको भटकने से बचा लेता है। जिस प्रकार एक अच्छी माता पुत्र के सभी कष्टों को धैर्य से स्वयं सहन करके अपने पुत्र को सभी मुसीबतों से बचाती है तथा कोमलता से उसे समझा-बुझाकर सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है, ठीक उसी प्रकार के मित्र की खोज मनुष्य को करनी चाहिए, जिसमें एक अच्छे वैद्य की परख तथा अच्छी माँ जैसा धैर्य व कोमलता हो। तभी मानव का जीवन दिनों-दिन उन्नति को प्राप्त करेगा।

उत्तर– (ग) (i) व्यक्ति को अपने मित्रों से यह उम्मीद करनी चाहिए कि वे उसे संकल्पवान बनाएँगे, अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे, मन में अच्छे विचार उत्पन्न करेंगे, बुराइयों और गलतियों से बचाकर मानवीय गुण प्रगाढ़ करने तथा अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेंगे। वे हमें उत्साहित भी करेंगे।

उत्तर– (ii) एक सच्चा मित्र उसे कहा गया है, जो उत्तम वैद्य के समान हमारे दुर्गुणों को पहचान कर हमें उनसे मुक्ति दिलाए। उसमें अच्छी माता जैसा धैर्य हो तथा जो किसी भी स्थिति में कोमलता न छोड़े।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय

यह कोई बात नहीं है कि एक ही स्वभाव और रुचि के लोगों में ही मित्रता हो सकती है। समाज में विभिन्नता देखकर लोग एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। जो गुण हममें नहीं हैं, हम चाहते हैं कि कोई ऐसा मित्र मिले जिसमें वे गुण हों। चिन्ताशील मनुष्य प्रफुल्लित चित्त का साथ ढूँढ़ता है, निर्बल बली का, थीर उत्साही का। (2023)

उत्तर- (क) सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘मित्रता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ हैं।

उत्तर- (ख) प्रस्तुत गद्यांश के रेखांकित अंश में यह बताया गया है कि एकसमान रुचि व स्वभाव के लोगों में ही मित्रता नहीं हो सकती है, बल्कि समाज में इसके विपरीत दो भिन्न दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्तियों में भी मित्रता देखने को मिलती है। व्यक्ति चाहता है कि जो गुण उसमें नहीं है, उन्हीं गुणों से युक्त व्यक्ति से मित्रता बढ़ाई जाए, जिससे जीवन में कठिन समय आने पर वह उनसे सहायता व मार्ग दर्शन प्राप्त कर सकें।

उत्तर- (ग) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार, व्यक्ति समाज में विभिन्नता देखकर ही एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं।

मित्र का कर्त्तव्य इस प्रकार बताया गया है- उच्च और महान् कार्य में इस प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी निज की सामर्थ्य से बाहर काम कर जाओ। यह कर्त्तव्य उसी से पूरा होगा, जो दृढ़-चित्त और सत्य-संकल्प का हो। इससे हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए, जिनमें हम से अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए, जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हो, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा नहीं होगा।

उत्तर(क) सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘मित्रता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ हैं।

उत्तर(ख) शुक्ल जी कहते हैं कि सहायता करना, उत्साहित करना व मनोबल बढ़ाने का कार्य वही व्यक्ति कर सकता है, जो स्वयं भी दृढ़ इच्छाशक्ति वाला, परिश्रमी तथा सत्य संकल्पों वाला हो। अतः मित्र बनाते समय हमें ऐसे ही व्यक्ति को ढूँढना चाहिए, जो हम से भी अधिक साहसी, परिश्रमी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाला व उच्च आत्मबल वाला हो। यदि सौभाग्य से ऐसा मित्र मिल जाता है, तो फिर हमें उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए; जैसे- वानर-राज सुग्रीव ने श्रीराम की आत्मशक्ति, ओज व बल का विश्वास हो जाने पर ही उनका आश्रय ग्रहण किया और फिर कभी उनका साथ नहीं छोड़ा। श्रीराम की शक्ति के बल पर ही वह अपनी पत्नी व अपने राज्य को पुनः प्राप्त कर सके। श्रीराम जैसा मित्र पाकर तो सुग्रीव धन्य हो गया था। मित्र का चयन करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मित्र ऐसा हो, जिसकी समाज में प्रतिष्ठा व सम्मान हो, जो निश्छल व निष्कपट हृदय का हो, स्वभाव से मृदुल हो, परिश्रमी हो, सभ्य आचरण वाला हो, सत्यनिष्ठ हो अर्थात् सत्य का आचरण करने वाला हो। ऐसे व्यक्ति पर हम यह विश्वास कर सकते हैं कि हमें उससे किसी प्रकार का धोखा नहीं मिलेगा।

उत्तर(ग) सच्चे मित्र का कर्त्तव्य है कि वह अपने मित्र को निम्नलिखित गुणों से अवगत कराए-

  • बुरे मार्ग से हटाकर अच्छे मार्ग पर ले जाए।
  • शिष्ट आचरण करने की सीख दे।
  • सत्यनिष्ठ बनने की प्रेरणा दे।
  • आलस्य छोड़ उद्यमी बनने में सहयोग दे।

कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सदृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-प्रतिदिन अवनति के गड्‌ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी। V Imp (202, 19, 17, 15)

उत्तर– (क) सन्दर्भ– प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘गद्य खण्ड’ में संकलित ‘मित्रता’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ हैं।

उत्तर– (ख) आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि मानव जीवन पर संगति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। बुरे और दुष्ट लोगों की संगति घातक बुखार की तरह हानिकारक होती है। जिस प्रकार भयानक ज्वर व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्ति व स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है तथा कभी-कभी रोगी के प्राण भी ले लेता है, उसी प्रकार बुरी संगति में पड़े हुए व्यक्ति की बुद्धि, विवेक, सदाचार, नैतिकता व सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं तथा वह उचित अनुचित व अच्छे-बुरे का विवेक भी खो देता है। मानव जीवन में युवावस्था सबसे महत्त्वपूर्ण अवस्था होती है। कुसंगति किसी भी युवा पुरुष की सारी उन्नति व प्रगति को उसी प्रकार बाधित करती है, जिस प्रकार किसी व्यक्ति के पैर में बँधा हुआ भारी पत्थर उसको आगे नहीं बढ़ने देता, बल्कि उसकी गति को अवरुद्ध करता है। उसी प्रकार कुसंगति भी हमारे विकास व उन्नति के मार्ग को अवरुद्ध करके अवनति व पतन की ओर धकेल देती है तथा दिन-प्रतिदिन विनाश की ओर अग्रसर करती है। दूसरी ओर, यदि युवा व्यक्ति की संगति अच्छी होगी तो वह उसको सहारा देने वाली बाहु (हाथ) के समान होगी, जो अवनति के गर्त में गिरने वाले व्यक्ति की भुजा पकड़कर उठा देती है तथा सहारा देकर खड़ा कर देती है और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर देती है।

उत्तर– (i) युवा पुरुष यदि बुरी संगति करता है, तो विकास की अपेक्षा उसका विनाश होना तय है। यदि वह अच्छी संगति करेगा, तो उन्नति के पथ पर आगे बढ़ता जाएगा।

उत्तर– (ii) अच्छी संगति के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • व्यक्ति को पतन से बचाती है।
  • मानवीय गुणों का विकास करती है।
  • व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है।
  • जीवन की रक्षा करने वाली औषधि (दवा) के समान होती है।

उत्तर– (iii) कुसंग/कुसंगति का व्यक्ति के जीवन पर निम्नलिखित प्रकार से प्रभाव पड़ता है-

  • व्यक्ति पतन के गड्‌ढे में गिर जाता है।
  • व्यक्ति का सदाचार नष्ट हो जाता है। वह दुराचार करने लगता है।
  • व्यक्ति की बुद्धि व विवेक का नाश हो जाता है।

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